💖 मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है
✨ एपिसोड 27 : “उस तारे के नीचे”
---
🌙 1. सुनहरी छाया का आगमन
रात की आख़िरी घड़ी थी।
हवेली की छत पर वही सुनहरी आँखों वाली छाया धीरे-धीरे आकार लेने लगी।
पहले बस उसकी आँखें दिखीं — जैसे किसी पुराने वादे की लौ फिर से जल उठी हो।
फिर होंठ हिले — और एक नाम हवा में तैर गया।
> “राज़…”
हवा थम गई।
चाँदनी ने हवेली की दीवारों को छूकर जैसे रुक जाना चाहा।
नीचे गाँव के पेड़ झूमे, पर पत्तों की सरसराहट में भी उस नाम की गूँज थी।
वो लड़की अनाया नहीं थी, पर उसमें अनाया की आत्मा का अंश ज़रूर था।
उसका चेहरा नया था, पर उसकी मुस्कान वही — जो किसी ने सदियों पहले देखी थी।
धीरे-धीरे वह हवेली की सीढ़ियाँ उतरने लगी।
हर कदम के साथ दीवारों पर सुनहरी लकीरें उभरती जा रही थीं,
जैसे हवेली उसे पहचान रही हो —
अपनी अगली ‘रूह’ के रूप में।
---
🌘 2. गाँव में हलचल
अगली सुबह दरभंगा के गाँव में एक अफवाह फैल गई।
लोग कहने लगे —
“हवेली में फिर किसी ने दीपक जलाया है!”
बुज़ुर्ग रमाकांत बोले,
“बाबू, ई त हवेली फेर से जाग गेलई।
कौन बुझा सका इहाँ के दीपक!”
गाँव के बच्चों ने देखा — हवेली की छत से सुनहरी रोशनी उठ रही थी।
कोई कह रहा था, “अनाया लौट आई!”
तो कोई बोला, “नहीं, ये उसकी रूह का दूसरा जन्म है।”
और उसी वक़्त, हवेली के अंदर वो लड़की आईने के सामने खड़ी थी।
उसने खुद को देखा — और मुस्कुराई।
> “मैं अनाया नहीं… पर अनाया की वजह ज़रूर हूँ।”
---
🌫️ 3. आत्मा का प्रतिबिंब
दर्पण में रोशनी झिलमिलाई।
उसमें तीन चेहरे उभरे — राज़, आर्यव और अनाया।
तीनों मुस्कुरा रहे थे, जैसे अपनी विरासत सौंप रहे हों।
आवाज़ आई —
“रुमानियत खत्म नहीं होती, बस रूप बदलती है।”
वो लड़की — जिसका नाम अब रूहनिशा था —
धीरे-धीरे आँखें बंद करती है।
हवा में गुलाब की खुशबू घुल जाती है।
“मुझे अब उनका अधूरा इश्क़ पूरा करना है…”
उसने बुदबुदाया।
---
🔥 4. पुरानी किताब का खुलना
हवेली के पुराने कमरे में एक बक्सा रखा था।
बक्से पर वही प्रतीक बना था —
काला, सुनहरा और लाल।
रूहनिशा ने बक्सा खोला।
अंदर एक किताब थी —
“रुमानियत की विरासत”
किताब के पहले पन्ने पर लिखा था:
> “जहाँ अनाया की कहानी खत्म हुई,
वहीं से शुरू होगी रूहनिशा की तक़दीर।”
पन्ने से एक हल्की रौशनी निकली और उसके सीने में समा गई।
उसने महसूस किया —
जैसे उसके भीतर किसी और की सांसें, किसी और की धड़कन गूँज उठी हों।
---
🌹 5. अजनबी की दस्तक
रात के अँधेरे में हवेली के फाटक पर किसी ने दस्तक दी।
रूहनिशा नीचे उतरी।
दरवाज़ा खोला —
बाहर एक अजनबी खड़ा था।
काले कपड़ों में, आँखों में हल्की उदासी और एक रहस्य छिपा था।
“तुम कौन?” रूहनिशा ने पूछा।
अजनबी मुस्कुराया,
“मैं वही हूँ, जिसे तुम्हारी आत्मा ने कई जन्मों पहले पहचाना था।”
उसने जेब से एक पुराना लॉकेट निकाला।
अंदर अनाया और राज़ की तस्वीर थी।
रूहनिशा की सांसें थम गईं।
“ये… तुम्हारे पास कैसे?”
अजनबी ने धीमे से कहा,
“क्योंकि मैं उस प्रेम का साया हूँ…
जिसे तुमने अमर किया था।”
---
🌾 6. राज़ का पुनर्जन्म
चाँद की रौशनी उसके चेहरे पर पड़ी —
और वो चेहरा अब अजनबी नहीं, जाना-पहचाना था।
वो राज़ था… मगर पहले जैसा नहीं।
उसकी आँखों में अब शांति थी,
और उसकी मुस्कान में जीवन की नयी कहानी।
“तुम लौट आए?” रूहनिशा की आँखें भर आईं।
राज़ ने सिर झुकाया,
“मैं नहीं लौटा… बस अधूरी रूह ने मुझे पूरा बना दिया।”
वो पास आया, उसकी उँगलियों ने रूहनिशा के चेहरे को छुआ।
“अब हमें इश्क़ नहीं जीना…
हमें उसे फिर से जन्म देना है।”
---
💞 7. हवेली का नया वादा
हवेली के बीचोंबीच दीपक फिर जल उठा।
उसकी लौ सुनहरी नहीं, अब नीली थी —
जैसे आसमान ने खुद उसे आशीर्वाद दिया हो।
रूहनिशा और राज़ ने दीपक के आगे हाथ जोड़ें।
दीवारों पर फिर शब्द उभर आए —
> “जब रूहें एक बार मिल जाएँ,
तो वक़्त भी झुक जाता है।”
राज़ ने कहा,
“इस बार हमारा इश्क़ इंसानों को डराएगा नहीं…
बल्कि उन्हें सिखाएगा,
कि सच्ची रुमानियत में वक़्त भी थम सकता है।”
रूहनिशा ने मुस्कुरा कर कहा,
“और जब वक़्त थम जाए,
तो वहीं से शुरू होता है —
रूह का अगला जन्म।”
---
🌙 एपिसोड 26 – हुक लाइन:
अगली सुबह दरभंगा की हवेली की दीवारों पर एक नया नाम उभरा —
“रूहनिशा राज़”
और उसी पल, आसमान में दो तारे एक साथ चमक उठे…
जैसे दो रूहें फिर मिल गई हों।