रात गहरी हो चुकी थी. बंगले के तहखाने में जल रही मद्धम पीली रोशनी रहस्यमयी माहौल बना रही थी. कबीर के हाथ में वह दस्तावेज था, जिस पर सुनहरे अक्षरों से लिखा था—
सोने का पिंजरा — दौलत से भी गहरी कैद, मोहब्बत से भी कठिन परीक्षा।
कबीर ने गहरी साँस ली, शहवार की ओर देखा.
कबीर( तेज आवाज में)
ये सब दौलत. ये सब शोहरत. ये तो बस परछाईं है, शहवार. असली खेल तो किसी और का लिखा हुआ है।
शहवार( चौंकते हुए)
कबीर, क्या मतलब? कौन- सा खेल?
कबीर( आँखें गडाकर)
इस तहखाने की दीवारें. ये दस्तावेज. सब बताता है कि ‘सोने का पिंजरा’ कोई दौलत नहीं. बल्कि एक इम्तिहान है. और हमें इस इम्तिहान से गुजरना ही होगा।
दृश्य आठ — दुश्मन की परछाईं
उसी समय, बंगले से कुछ ही दूरी पर एक पुराना हवेलीनुमा घर था. अंधेरे कमरे में कुछ परछाईं बैठे थे. मेज पर शराब की बोतलें, नक्शे और हथियार फैले पडे थे.
एक भारी आवाज( मुस्कुराते हुए)
कबीर को लगता है कि वह जीत गया. लेकिन खेल अभी शुरू हुआ है।
दूसरी आवाज:
वो खजाना, वो ताकत. सब हमारे हाथ में आएगा. और शहवार? उसकी मोहब्बत ही कबीर की सबसे बडी कमजोरी है।
कमरे में बैठे सबसे ताकतवर शख्स ने सिगार जलाया और बोला—
अब वक्त है, ‘सोने का पिंजरा’ की असली चाबी पाने का।
दृश्य नौ — बंगले की छत पर संवाद
रात का सन्नाटा, छत पर ठंडी हवा और दूर- दूर तक फैली शहर की रोशनी. कबीर और शहवार एक- दूसरे के सामने खडे थे.
शहवार( धीमे स्वर में)
कबीर, तूने मेरे लिए यह सब हासिल किया. दौलत, शोहरत, नाम. लेकिन मुझे डर है, कहीं यह सब हमें एक- दूसरे से दूर न कर दे।
कबीर( उसका हाथ पकडते हुए)
नहीं शहवार. ये जंग मेरे लिए सिर्फ तुझ तक पहुँचने का रास्ता है. दौलत और शोहरत मेरी जिद है. लेकिन तू मेरी रूह है।
शहवार( आँखों में नमी लिए)
तो वादा कर. चाहे कैसी भी साजिश हो, चाहे कैसी भी ताकत सामने आए. तू मुझे कभी अकेला नहीं छोडेगा।
कबीर( कसम खाते हुए)
तेरे बिना कबीर नाम अधूरा है. मैं सब कुछ खो सकता हूँ. लेकिन तुझे नहीं।
दृश्य दस — पहला बडा धोखा
अगली सुबह बंगले में हलचल थी. मीडिया, अखबार वाले, और शहर के बडे- बडे लोग कबीर से मिलने आए थे. हर ओर बस एक ही नाम गूँज रहा था — कबीर, कबीर, कबीर.
लेकिन भीड के बीच एक नकाबपोश आदमी भी था. उसने धीरे से सुरक्षा गार्ड को कुछ कहा और बंगले के भीतर दाखिल हो गया.
कुछ ही देर बाद तहखाने से जोरदार धमाका हुआ. धुएँ और आग की लपटें उठीं.
नौकर चीखते हुए:
साहब! तहखाना जल रहा है!
कबीर भागता हुआ नीचे पहुँचा. दस्तावेज आधे जल चुके थे. लेकिन एक पन्ना अब भी बचा था, जिस पर लिखा था—
सोने का पिंजरा उस शख्स का है, जो मोहब्बत की कीमत चुका सके।
कबीर( गुस्से में दहाडते हुए)
कौन है ये? कौन खेल रहा है मेरी जिंदगी से?
दृश्य ग्यारह — रहस्यमयी मुलाकात
शाम को कबीर को एक अनजान चिट्ठी मिली. उसमें लिखा था—
अगर सच जानना है, तो आधी रात को पुराने किले के खंडहर में आना. अकेले।
शहवार ने चिट्ठी पढते ही कबीर का हाथ थामा.
शहवार:
ये किसी साजिश की गंध है. मत जाना वहाँ अकेले।
कबीर( आँखों में आग लिए)
साजिश चाहे जितनी गहरी हो. मैं सच जाने बिना चैन से नहीं बैठूँगा।
दृश्य बारह — किले का रहस्य
आधी रात. किला अंधेरे में डूबा हुआ. टूटती दीवारें, सूनी गलियाँ और हवा की डरावनी सरसराहट. कबीर हाथ में तलवार लिए अंदर बढा.
अचानक पीछे से आवाज आई—
कबीर!
वह पलटा. सामने एक शख्स खडा था, लंबा, काले कपडों में लिपटा. चेहरे पर नकाब.
कबीर( गुस्से से)
कौन है तू? सामने आ!
नकाबपोश( धीमी हँसी के साथ)
मैं वही हूँ, जो तेरा अतीत जानता है. और तेरे भविष्य को लिखने वाला हूँ।
कबीर ने तलवार लहराई.
नकाब उतार. नहीं तो यह तलवार तेरी गर्दन उतार देगी।
नकाबपोश धीरे- धीरे आगे बढा और बोला—
‘सोने का पिंजरा’ तेरी जीत नहीं. तेरी बर्बादी है. और इसकी असली चाबी मेरे पास है।
दृश्य तेरह — धोखे की गूँज
अचानक चारों तरफ से हथियारबंद लोग निकल आए. कबीर घिर गया. तलवारों और गोलियों की चमक ने किले को रणभूमि बना दिया.
कबीर ने बहादुरी से लडाई लडी, कई दुश्मनों को गिरा दिया. लेकिन तभी नकाबपोश ने सीटी बजाई और सब रुक गए.
नकाबपोश( तेज स्वर में)
कबीर, तू जीत सकता है. पर इस बार तेरी सबसे बडी कमजोरी तेरे साथ नहीं है।
कबीर की धडकन तेज हो गई.
शहवार.
नकाबपोश ने मुस्कुराकर कहा—
हाँ. तुम्हारी शहवार अब हमारे कब्जे में है।
दृश्य चौदह — शहवार का अपहरण
उसी समय बंगले में शहवार के कमरे का दरवाजा तोडकर कुछ लोग अंदर घुसे. नौकर- चाकर चीखते रह गए, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई रोकने की.
शहवार चीखी—
कबीर!
लेकिन उसकी आवाज सन्नाटे में दब गई.
दृश्य पंद्रह — कबीर की कसम
किले में खडे कबीर की आँखें लाल हो गईं. उसने तलवार जमीन पर दे मारी और आसमान की ओर देखा.
कबीर( गर्जना करते हुए)
सुन ले! चाहे यह जंग मेरी आखिरी साँस तक चले. मैं शहवार को बचाऊँगा. दौलत, शोहरत, ताकत. सब धूल हो जाएँगी. लेकिन मैं अपनी मोहब्बत को कभी हारने नहीं दूँगा।
नकाबपोश ने धीमी हँसी हँसी और बोला—
तो फिर तैयार हो जा, कबीर. ‘सोने का पिंजरा’ की असली जंग अब शुरू होने वाली है।
दृश्य सोलह — अंत में रहस्य
कबीर के हाथ में अब अधजला दस्तावेज था. उसमें आखिरी लाइन चमक रही थी—
जो ‘सोने का पिंजरा’ की कीमत चुकाएगा, वही इसका मालिक कहलाएगा. और उसकी कीमत है— मोहब्बत का बलिदान।
कबीर की आँखों से लहू जैसे आँसू बह निकले.
उसने तलवार उठाई और दहाडा—
मैं दौलत और शोहरत दोनों को अपने नाम करूँगा. पर शहवार को खोने नहीं दूँगा. यही मेरी आखिरी जंग है. अब यह जंग मोहब्बत और विश्वास की होगी!
कहानी का अगला हिस्सा
दृश्य सत्रह — नकाबपोश का सच
किले की टूटी- फूटी दीवारों के बीच चाँदनी उतर रही थी. कबीर का हाथ तलवार पर कस चुका था. सामने नकाबपोश खडा था, और उसके पीछे हथियारबंद लोगों की लंबी कतार. हवा में सन्नाटा इतना गहरा था कि कबीर की साँसों की आवाज भी तलवार की धार से टकराती महसूस हो रही थी.
कबीर( गर्जना भरे स्वर में)
मुझसे मेरी शहवार को छीनने की जुर्रत किसने की? सामने आ, नाम बता अपना!
नकाबपोश धीरे- धीरे अपनी तलवार की नोक जमीन पर घसीटते हुए आगे बढा. उसकी चाल में ठंडा आत्मविश्वास और आँखों में न जाने कितनी पुरानी नफरत थी.
नकाबपोश( हँसते हुए)
नाम? नाम तो बस परछाईं होते हैं, कबीर. असली ताकत तो किस्मत होती है. और तेरी किस्मत अब मेरे हाथों में है।
कबीर का धैर्य टूटा. उसने तलवार हवा में घुमाई और ललकारा—
अगर तेरे हाथों में मेरी किस्मत है, तो आकर इसे लिखकर दिखा!
भीषण टकराव की आवाज गूँजी. दोनों तलवारें टकराईं और चिंगारियाँ अंधेरे में चमकीं. उनके वारों की गूँज से किला काँपने लगा.
दृश्य अठारह — विश्वासघात
कबीर ने नकाबपोश पर लगातार वार किए. हर बार उसकी तलवार हवा को चीरती हुई बिजली की तरह गिरती. लेकिन नकाबपोश हर वार को सहजता से रोक रहा था.
लडाई के बीच नकाबपोश ने अचानक एक नाम लिया—
विराज!
कबीर चौंका. तलवार एक पल के लिए धीमी हो गई.
कबीर( भ्रमित होकर)
विराज. तुझे मेरे पिता का नाम कैसे पता?
नकाबपोश ने तलवार पीछे खींच ली और ठंडी हँसी हँसी.
क्योंकि तेरे पिता ही वो शख्स थे जिन्होंने ये ‘सोने का पिंजरा’ मेरे हाथ से छीन लिया था. और अब तू उसी अधूरे खेल की आखिरी गोटी है।
कबीर की आँखों में खून उतर आया.
तू मेरे पिता का दुश्मन है.
दृश्य उन्नीस — शहवार की चीख
अचानक हवा में एक दिल दहला देने वाली आवाज गूँजी.
कबीर.
यह शहवार की चीख थी. कबीर का दिल दहल गया. उसने तलवार गिराकर चारों ओर देखा. किले की ऊँची मीनार पर शहवार बंधी खडी थी. उसके हाथ पीछे बँधे हुए और मुँह पर पट्टी थी. उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे.
कबीर ने दहाड मारी—
शहवार! मैं आ रहा हूँ!
नकाबपोश ने हाथ उठाया. उसके आदमी शहवार की गर्दन पर खंजर रखकर बोले—
एक कदम और, और तेरी शहवार की साँसें यहीं खत्म!
कबीर का दिल जैसे चीर दिया गया. तलवार हाथ से ढीली पड गई.
दृश्य बीस — चालाक सौदा
नकाबपोश ने पास आकर कबीर के कान में धीमे स्वर में कहा—
सुन, कबीर. तू जितना लड ले, तेरी ताकत मेरी चालों के सामने कमजोर है. मैं तुझे एक मौका देता हूँ. अपनी सारी दौलत, बंगला, गाडियाँ, तिजोरियाँ. सब मेरे हवाले कर दे. और बदले में तुझे तेरी शहवार वापस मिल जाएगी।
कबीर की आँखों में आग जल उठी.
तू सोचता है, मैं दौलत और शोहरत के बिना जी नहीं सकता? ये सब मेरे लिए कीमत नहीं, बस हथियार हैं. लेकिन मोहब्बत. मोहब्बत मेरी जान है।
शहवार की आँखों में आँसू छलक आए.
शहवार( रोते हुए)
कबीर! मेरी वजह से तू हार मत मानना. अगर तुझे जंग लडनी है, तो पूरी ताकत से लड!
दृश्य इक्कीस — दिल और तलवार की जंग
कबीर की साँसें तेज हो गईं. उसके सामने दो रास्ते थे—
एक. दौलत और शोहरत बचाए, और शहवार को खो दे.
दो. सब कुछ त्याग दे, और अपनी मोहब्बत बचा ले.
उसने तलवार उठा ली और आसमान की ओर उठाकर बोला—
दौलत और शोहरत फिर से कमाई जा सकती है. लेकिन शहवार को खोकर. मैं जिंदा नहीं रह सकता।
नकाबपोश ने गुस्से से कहा—
तो तूने मौत चुन ली, कबीर!
लडाई और भी भयंकर हो गई. तलवारें टकराईं, खून की बूँदें गिरीं, और किले की दीवारें लहूलुहान सन्नाटे की गवाह बन गईं.
दृश्य बाईस — दुश्मन का नाम
लंबी जंग के बाद कबीर ने आखिरकार नकाबपोश को दीवार से सटा दिया. उसकी तलवार नकाबपोश के गले पर टिक गई.
कबीर( गरजते हुए)
उतार अपना नकाब. वरना मेरी तलवार तुझे पहचानने का इंतजार नहीं करेगी।
नकाबपोश धीरे- धीरे काँपते हाथ से अपना नकाब उतारने लगा. जैसे ही चेहरा सामने आया, कबीर के पैरों तले जमीन खिसक गई.
कबीर( हकबकाकर)
तू. आरव?
दृश्य तेइस — सच्चाई का झटका
हाँ, नकाबपोश और कोई नहीं बल्कि आरव था— वही आरव जो वेरिका का Boyfriend था.
कबीर( आँखों में सदमा लिए)
तू. तू तो मेरे घर का हिस्सा था. मेरी बहन की मोहब्बत था. तूने ये धोखा क्यों दिया?
आरव( हँसते हुए)
धोखा? नहीं कबीर, ये सब मेरी असली पहचान है. मैंने वेरिका को बस इस्तेमाल किया, ताकि तेरे घर तक पहुँच सकूँ. तेरे बंगले, तेरी दौलत, तेरी ताकत. सब मेरा हक है. क्योंकि ‘सोने का पिंजरा’ पर सिर्फ मेरा अधिकार है।
कबीर की मुट्ठियाँ भींच गईं.
तूने मेरी बहन की मोहब्बत को खेल बना दिया. और शहवार को मोहरा. मैं तुझे इस गुनाह की सजा दूँगा।
दृश्य चौबीस — खून की सौगंध
आरव ने सीटी बजाई. उसके और आदमी मीनार से नीचे उतरने लगे. शहवार अब भी बंधी थी. कबीर ने तलवार कसकर पकडी और आसमान की ओर देखा.
कबीर( आवाज गूँजाते हुए)
मैं दौलत और शोहरत दोनों को अपने नाम करूँगा. पर शहवार को खोने नहीं दूँगा. यही मेरी आखिरी जंग है!
आरव ने हँसकर जवाब दिया—
तो आ जा, कबीर! देखता हूँ तेरी मोहब्बत कितनी बडी है!
दृश्य पच्चीस — अगली सुबह की कसम
लडाई अधूरी रही. रात की जंग के बाद कबीर जख्मी होकर भी बच निकला. लेकिन शहवार दुश्मनों के हाथ में रही.
सुबह जब सूरज निकला, कबीर बंगले की छत पर खडा था. जख्मों से खून रिस रहा था, लेकिन उसकी आँखों में अब भी वही आग जल रही थी.
उसने शहर की ओर देखते हुए कसम खाई—
अब ये जंग सिर्फ दौलत और शोहरत की नहीं. ये मेरी मोहब्बत और विश्वास की जंग है. मैं अपनी शहवार को हर हाल में वापस लाऊँगा. चाहे इस शहर की हर ईंट को खून से रंगना पडे. चाहे इस सोने के पिंजरे को आग में जला देना पडे!
और यहीं से कहानी का नया अध्याय खुलेगा —
जहाँ कबीर आरव का सामना करेगा, वेरिका की मोहब्बत का सच उजागर होगा, और ‘सोने का पिंजरा’ का असली रहस्य सामने आएगा.
कहानी का अगला हिस्सा
दृश्य छब्बीस — वेरिका का टूटा दिल
सुबह का वक्त था. बंगले के ड्रॉइंग Room में वेरिका बैठी थी. उसकी आँखों में बेचैनी थी, हाथ काँप रहे थे. सामने टेबल पर अखबार खुला पडा था. हेडलाइन चमक रही थी—
कबीर पर हुआ हमला, शहवार का अपहरण।
वेरिका की साँसें तेज हो गईं. उसने अखबार को झटके से बंद किया और आँसुओं से भरी आँखें छत की ओर उठाईं.
वेरिका( बुदबुदाते हुए)
हे भगवान. शहवार मेरी भाभी जैसी है. और भाई कबीर. वो अकेला कैसे लडेगा?
उसी वक्त उसके मोबाइल पर Call आया. स्क्रीन पर नाम देखकर उसका दिल थम गया—
आरव.
वेरिका ने काँपते हाथ से फोन उठाया.
आरव. तुम कहाँ हो? कल रात क्या हुआ? लोग कह रहे हैं.
लेकिन दूसरी तरफ से आरव की ठंडी हँसी सुनाई दी.
आरव:
लोग सच कह रहे हैं, वेरिका. मैं ही वो हूँ जिसने तेरे भाई कबीर से उसकी मोहब्बत छीन ली।
वेरिका का चेहरा सफेद पड गया.
क्या. आरव, तुम मजाक कर रहे हो न?
आरव( गंभीर लहजे में)
ये मजाक नहीं, सच्चाई है. मैं कबीर का दुश्मन हूँ. मैं वही नकाबपोश था जिससे उसने कल रात जंग की. और अब शहवार मेरे कब्जे में है।
वेरिका की आँखों से आँसू झरने लगे.
आरव. तुमने मेरे साथ ये धोखा कैसे किया? मैं तुमसे प्यार करती थी. मैंने तुम्हें अपना सब कुछ माना. और तुमने.
दृश्य सत्ताईस — आरव का असली चेहरा
आरव की आवाज में नफरत और जुनून दोनों थे.
आरव:
प्यार? मुझे तेरे प्यार से क्या लेना? मैंने तो तुझे बस एक रास्ते की तरह इस्तेमाल किया. तेरा भाई मेरा असली निशाना था. और अब मैं उसे उसी की ताकत से हराऊँगा।
वेरिका का दिल टुकडे- टुकडे हो गया.
तो ये सब. तुम्हारी सारी बातें. तुम्हारे वादे. सब झूठ थे?
आरव( क्रूरता से)
हाँ. तेरे लिए मोहब्बत खेल थी, मेरे लिए मकसद. तू कबीर की बहन है, इसलिए तेरे जरिए मुझे उसके घर तक पहुँचने का रास्ता मिला. और अब ‘सोने का पिंजरा’ मेरा होगा।
वेरिका ने जमीन पर गिरते हुए मोबाइल कसकर पकड लिया. उसके होंठ काँप रहे थे.
नहीं आरव. तूने सिर्फ मेरे दिल से खेला नहीं, तूने मेरे भाई की जिंदगी और मेरी शहवार भाभी की इज्जत से भी खिलवाड किया है. अब ये वेरिका तुझे तेरे गुनाह की सजा दिलाकर ही चैन लेगी!
दृश्य अट्ठाईस — वेरिका और कबीर का सामना
वेरिका दौडती हुई छत पर पहुँची, जहाँ कबीर जख्मी हाल में खडा था. उसके हाथ में पट्टियाँ बँधी थीं, लेकिन आँखों में जंग की आग अब भी जल रही थी.
वेरिका( रोते हुए)
भैया. भैया. मैंने आरव को फोन पर सुना. वो. वो नकाबपोश आरव ही है. उसने सब कबूल किया. उसने मुझे धोखा दिया।
कबीर ने उसकी ओर देखा, आँखों में गुस्सा और दुख दोनों थे.
तो ये सच है. मेरी बहन की मोहब्बत भी उसके खेल का हिस्सा थी।
वेरिका ने कबीर के पैरों में गिरकर कहा—
भैया, मुझे माफ कर दो. मैं उसकी सच्चाई नहीं पहचान पाई. मैं समझती थी कि वो मुझे चाहता है. लेकिन वो तो हमारी तबाही की वजह बना।
कबीर ने उसे उठाया और कंधे से पकडकर बोला—
नहीं, वेरिका. तू गुनहगार नहीं है. गुनहगार वो है जिसने तेरे दिल को इस्तेमाल किया. और अब तेरे आँसुओं की कसम. मैं आरव को उसकी औकात दिखाऊँगा।
दृश्य उनतीस — बहन- भाई की कसम
दोनों छत पर खडे हुए, शहर की ओर देख रहे थे. हवा तेज बह रही थी.
वेरिका( दृढ स्वर में)
भैया, इस बार मैं भी तेरे साथ रहूँगी. ये मेरी जंग भी है. उसने मेरी मोहब्बत को कुचल दिया है, और अब मैं अपनी नफरत से उसका हिसाब लूँगी।
कबीर ने बहन के माथे पर हाथ रखा.
तो कसम खा, वेरिका. हम दोनों मिलकर इस आरव को हराएँगे. ये जंग सिर्फ ‘सोने का पिंजरा’ के लिए नहीं होगी, बल्कि उस हर धोखे के लिए होगी जिसने हमें तोडने की कोशिश की।
दोनों ने एक साथ हाथ उठाया और कसम खाई—
जब तक शहवार हमारे साथ वापस नहीं होगी, और आरव अपने गुनाहों की सजा नहीं पाएगा. हम चैन से साँस नहीं लेंगे।
दृश्य तीस — आरव की नई चाल
दूसरी ओर, एक सुनसान हवेली में आरव शहवार को बंधक बनाए बैठा था. शहवार की आँखों में आँसू थे, लेकिन हिम्मत भी थी.
शहवार( ठंडी नजर से)
तुझे लगता है तू जीत जाएगा, आरव? याद रख, कबीर तेरे लिए मौत बनकर आएगा।
आरव पास आकर हँस पडा.
कबीर? वो अब टूटा हुआ है. मैंने उसकी दौलत, उसकी शोहरत और उसकी बहन—सब छीन लिया. अब उसके पास बचा ही क्या है?
शहवार ने दृढता से जवाब दिया—
उसके पास उसकी मोहब्बत है. और जब तक मोहब्बत जिंदा है, तू चाहे जितना सोना और पिंजरा बना ले. तेरा खेल अधूरा ही रहेगा।
आरव की आँखें गुस्से से लाल हो गईं. उसने तलवार उठाकर बोला—
तू सही कहती है, शहवार. और इसलिए तेरी मोहब्बत को ही मैं उसकी मौत बना दूँगा।
दृश्य इकत्तीस — जंग की तैयारी
कबीर और वेरिका ने बंगले में अपनी योजना बनानी शुरू की. सुरक्षा दोगुनी कर दी गई, हथियारों का इंतजाम किया गया, और गुप्तचर भेजे गए.
कबीर:
अब ये जंग हम दोनों की है. आरव को लगता है कि वो हमें तोड देगा. लेकिन वो नहीं जानता कि बहन- भाई की ताकत क्या होती है।
वेरिका( आँखों में आग लिए)
मैं उसका चेहरा अपनी आँखों से देखना चाहती हूँ जब वो गिरेगा. जब उसे एहसास होगा कि उसने जिस वेरिका को धोखा दिया, वही उसके पतन की वजह बनी।
कबीर ने तलवार म्यान में रखी और आसमान की ओर देखा.
आरव! सुन ले, अब ये जंग दौलत की नहीं. खून की होगी. और इस बार, न ‘सोने का पिंजरा’ तेरा होगा, न मोहब्बत।
यहाँ से कहानी और भी गहरी होगी—
अब मंच तैयार है कबीर- वेरिका बनाम आरव की निर्णायक जंग के लिए.
कहानी का अगला हिस्सा
दृश्य बत्तीस — आमना- सामना
रात गहरी थी. हवेली के बाहर बिजली की चमक और गर्जन से माहौल और भी डरावना हो चुका था. एक पुरानी, खंडहर जैसी कोठी में मोमबत्ती की टिमटिमाती लौ जल रही थी. वहीं, कमरे के बीचों- बीच आरव खडा था. उसकी आँखों में अजीब- सी चमक थी—मानो जीत उसके कदमों में झुकी हो.
दरवाजा जोर से खुला. भारी कदमों की आहट गूँजी.
वेरिका कमरे में दाखिल हुई. उसकी आँखें लाल थीं, चेहरा आँसुओं और गुस्से से भरा हुआ.
आरव( मुस्कुराकर)
तो आ ही गई तू, वेरिका. मुझे यकीन था कि तू अपने दिल का दर्द दबा नहीं पाएगी।
वेरिका( काँपती आवाज में)
आरव. नहीं, अब मुझे तेरा नाम लेने में भी शर्म आती है. तू वो शख्स है जिसने मेरी मोहब्बत को जंजीरों में बाँध दिया।
आरव( हँसकर)
मोहब्बत? अरे वेरिका, मोहब्बत मेरे लिए बस एक चाल थी. तू मोहरे की तरह थी, और मैंने तुझे वैसे ही इस्तेमाल किया।
वेरिका का चेहरा तमतमा उठा.
वेरिका:
अगर तुझे सिर्फ खेल खेलना था, तो क्यों मेरे सपनों को अपना सच बना दिया? क्यों हर वादा करके मुझे यकीन दिलाया कि तू मुझसे मोहब्बत करता है?
आरव( नजदीक आते हुए, ठंडी साँस लेकर)
क्योंकि मुझे तेरे भरोसे की जरूरत थी. तेरे भाई तक पहुँचने के लिए, उसके किले तक घुसने के लिए. और हाँ, तेरे आँसुओं से मुझे हमेशा मजा आया।
दृश्य तैंतीस — दर्द से आग तक
वेरिका का दिल टूट चुका था, लेकिन उसके चेहरे पर अब दर्द की जगह नफरत की आग जल उठी.
वो जमीन पर गिरा हुआ एक लोहे का दीया उठाकर सीधा आरव की ओर बढी.
वेरिका( गुस्से से)
बस! आज के बाद तू मेरी आँखों का आँसू नहीं देखेगा. आज तू देखेगा कि तेरी नकली मोहब्बत से टूटी वेरिका अब तेरी मौत बनेगी!
आरव ने दीये को झटककर दूर फेंक दिया और उसकी कलाई पकड ली.
आरव( कान के पास झुककर फुसफुसाते हुए)
तेरी नफरत में भी मुझे वही जुनून नजर आता है जो तेरी मोहब्बत में था. इसलिए शायद तुझे छोडना मेरे लिए सबसे मुश्किल काम होगा।
वेरिका ने उसे धक्का देते हुए कहा—
मुझे छूने की कोशिश मत करना! तू मेरे लिए जहर है. और मैं कसम खाती हूँ, जिस तरह तूने मेरे भाई की जिंदगी और मेरी मोहब्बत से खेला है. उसी तरह मैं तेरी हर चाल को राख कर दूँगी।
दृश्य चौंतीस — सच्चाई का सामना
आरव की हँसी थम गई. पहली बार उसके चेहरे पर हल्की बेचैनी दिखी.
आरव:
तुझे लगता है तू मुझे हरा पाएगी? तेरे भाई कबीर को मैंने घुटनों पर ला दिया है. शहवार मेरे कब्जे में है. और अब मैं तेरे इस सोने के पिंजरे को भी तोड दूँगा।
वेरिका( दृढ आवाज में)
नहीं आरव. कबीर टूटा नहीं है. वो तेरे खिलाफ उठ खडा होगा. और इस बार मैं उसके साथ खडी रहूँगी. तूने मेरी मोहब्बत छीनी है, अब मैं तुझसे तेरी जीत छीन लूँगी।
आरव ने मेज से तलवार उठाई और हवा में लहराई.
आरव( चिल्लाते हुए)
तो तैयार हो जा, वेरिका! अगली जंग खून से लिखी जाएगी. और उस जंग में तेरे आँसू मेरी जीत की स्याही होंगे।
वेरिका ने उसी वक्त अपनी जेब से एक छोटा- सा खंजर निकाला और उसके सामने खडी हो गई.
वेरिका:
अगर तुझे लगता है कि मैं तुझे अपने भाई और शहवार तक पहुँचने दूँगी. तो ये भूल है. अब ये वेरिका तेरे रास्ते की दीवार बनेगी. और याद रख, धोखा देने वाले की मौत भी धोखे से ही होती है।
दृश्य पैंतीस — अधूरी मोहब्बत का इजहार
कुछ पल कमरे में खामोशी छा गई. मोमबत्ती की लौ काँप रही थी. हवा में तनाव था.
आरव ने तलवार नीचे करते हुए गहरी साँस ली और वेरिका की ओर देखा.
आरव( धीमी आवाज में)
जानती है वेरिका. कभी- कभी सोचता हूँ अगर मैं तुझसे सच में मोहब्बत करता. तो शायद मेरी जिंदगी अलग होती. शायद मैं भी तेरे भाई जैसा इंसान बन जाता।
वेरिका की आँखें भर आईं, लेकिन उसने चेहरा फेर लिया.
वेरिका:
लेकिन तूने वो रास्ता चुना ही नहीं. तूने धोखा चुना, नफरत चुनी. और अब तेरी मोहब्बत का नाम लेना भी गुनाह है।
आरव के होंठ काँपे. उसके चेहरे पर पहली बार एक सच्चा दर्द झलका.
आरव:
हाँ. अब बहुत देर हो चुकी है।
दृश्य छत्तीस — तूफान की तैयारी
वेरिका ने पीछे हटते हुए दरवाजा खोला और जाते- जाते आखिरी बार कहा—
वेरिका:
आरव, याद रख. तूने जिस वेरिका को रुलाया है, वही वेरिका अब तेरा अंत बनेगी. अगली बार जब हम मिलेंगे, तो या तो तू मरेगा. या मैं।
उसके कदमों की आहट हवेली में गूँजती रही.
आरव अकेला खडा था, लेकिन उसके चेहरे पर मुस्कान और दर्द दोनों साथ थे. उसने तलवार दीवार पर दे मारी और चिल्लाया—
आरव:
आ जा, वेरिका! आ जा कबीर! देखता हूँ कौन इस आरव को हरा पाता है!
यहाँ पर सीन क्लाइमैक्स की तरह रुकेगा. अब जंग के लिए माहौल पूरी तरह तैयार है—
वेरिका और कबीर एक तरफ
आरव और उसकी चालें दूसरी तरफ
और बीच में शहवार की जिंदगी दाँव पर
कहानी का अगला हिस्सा
दृश्य सैंतीस — आमना- सामना
जफरपुर की अंधेरी रात. हवा में तूफान की गंध थी. हवेली के बाहर घोडे और काले SUV खडे थे. चारों तरफ हथियारबंद आदमी खडे थे.
किले जैसे बंगले के बडे गेट पर धमाका हुआ. धूल और धुएँ के बीच कबीर अपने काले कोट और तलवार के साथ अंदर दाखिल हुआ. उसकी आँखों में आग थी और चेहरे पर वही ठंडी मुस्कान.
आरव पहले से अंदर खडा था. उसके हाथ में तलवार चमक रही थी और उसके पीछे दर्जनों गुर्गे हथियार लिए तैयार थे.
आरव( तिरस्कार से)
तो आ ही गया कबीर! मैंने सोचा था तू डरकर अपनी दौलत के महल में छुपा रहेगा।
कबीर( गंभीर स्वर में)
डर? कबीर नाम सुनते ही लोग डरते हैं, आरव. मैं अपनी मोहब्बत और अपने शहर को बचाने आया हूँ।
आरव( हँसते हुए)
तेरी मोहब्बत? ओह, वो मासूम शहवार? क्या तुझे लगता है वो तेरी दौलत के पिंजरे में हमेशा वफादार रहेगी? भूल मत, शहवार मेरी कैद में है. और तेरे एक गलत कदम पर उसकी साँसें थम सकती हैं।
कबीर की आँखों की नसें तन गईं. उसने तलवार और मजबूती से पकडी.
कबीर( गर्जते हुए)
अगर शहवार को छूने की कोशिश भी की, तो मैं तुझे उसी वक्त खाक कर दूँगा।
दृश्य अडतीस — तलवार और गोलियों की टकराहट
गेट के भीतर दोनों की सेनाएँ भिड गईं. गोलियों की आवाज, तलवारों की खनक और चीखें हवेली के चारों ओर गूँज उठीं.
कबीर तलवार से दुश्मनों को चीरता हुआ आरव की तरफ बढता गया. उसकी हर वार में आग थी.
आरव भी पीछे हटने वाला नहीं था. उसने तलवार लहराई और दोनों की तलवारें हवा में भिडीं.
आरव:
तेरी ताकत तेरी तलवार है, कबीर. लेकिन मेरी ताकत है चालाकी और धोखा।
कबीर( जोरदार वार करते हुए)
धोखा वही देता है जिसके पास सच का सामना करने की हिम्मत नहीं होती।
दोनों की तलवारें टकराईं और चिंगारियाँ छिटक पडीं. चारों तरफ लडाई और शोर था, लेकिन कमरे के बीचों- बीच ये दो शेर एक- दूसरे को निगाहों से चीर रहे थे.
दृश्य उनतालीस — शहवार का नाम
लडाई के बीच अचानक आरव ने रुककर कहा—
आरव( जहर घोलते हुए)
जानता है कबीर, शहवार अब तेरा नाम रोकर नहीं लेती. उसने मेरे सामने तेरी वफादारी पर सवाल उठाए हैं।
कबीर का चेहरा तमतमा उठा.
कबीर:
झूठ मत बोल आरव! शहवार का दिल सिर्फ मेरा है।
आरव( हँसते हुए)
तो फिर उसकी आँखों का डर देख ले. जब मैंने उसका नाम लिया तो उसने काँपते हुए कहा—' कबीर मुझे बचा नहीं पाएगा। हा हा हा!
कबीर का खून खौल उठा. उसने जोर से तलवार चलाई और आरव को पीछे धकेल दिया.
कबीर( चिल्लाकर)
अगर तेरी जुबान से शहवार का नाम फिर निकला तो वो तेरा आखिरी लफ्ज होगा!
दृश्य चालीस — वेरिका की एंट्री
लडाई के बीच अचानक हवेली की सीढियों से एक और आवाज गूँजी.
वेरिका हाथ में पिस्तौल लिए उतर रही थी. उसकी आँखें आँसुओं से भीगी थीं, लेकिन उनमें हिम्मत की चमक थी.
वेरिका:
बस करो! इस जंग में सिर्फ दौलत और ताकत नहीं, मेरी मोहब्बत भी दबी हुई है. आरव, तूने मुझे धोखा दिया. और कबीर, तूने मुझे सच कभी बताया नहीं. अब ये फैसला मैं करूँगी!
कबीर और आरव दोनों उसकी तरफ मुडे.
आरव( धीमे स्वर में, नकली मुस्कान के साथ)
तो आखिरकार तूने भी हथियार उठा लिया, वेरिका. क्या अब अपने भाई के लिए मुझे गोली मार देगी?
वेरिका( गुस्से से काँपते हुए)
नहीं आरव, मैं तेरे लिए गोली नहीं मारूँगी. तेरे लिए पूरा जंग का मैदान जलाकर राख कर दूँगी!
उसने हवा में गोली चलाई. शोर एक पल को थम गया.
दृश्य इकतालीस — गुप्त सच का खुलासा
अचानक, हवेली के तहखाने से जंजीरों की आवाज आई. सबकी निगाहें उस ओर मुडीं.
गुर्गों को गिराते हुए एक कैदी- सा शख्स बाहर आया—चेहरा खून और धूल से भरा हुआ.
वो था शहवार का भाई, आरहान.
आरहान( कमजोर लेकिन तेज आवाज में)
कबीर! वेरिका! सावधान रहो. ये लडाई सिर्फ आरव से नहीं है. इसके पीछे कोई और है. कोई और बडा दुश्मन जो' सोने का पिंजरा' चाहता है!
कमरा सन्नाटे में डूब गया.
आरव की आँखों में हल्की घबराहट तैर गई.
कबीर( भौंहें चढाकर)
कौन है वो?
आरहान गिरते- पडते बोला—
वो. नकाबपोश है. और आरव भी उसके हाथों का सिर्फ एक मोहरा है।
दृश्य बयालीस — नई जंग की नींव
कबीर और वेरिका स्तब्ध रह गए. आरव का चेहरा गुस्से से भर गया.
आरव( गरजते हुए)
चुप रह कमीने! तुझे जिंदा नहीं छोडूँगा।
लेकिन कबीर बीच में आ गया और तलवार उसकी गर्दन पर रख दी.
कबीर:
अब खेल बदल चुका है, आरव. अब ये जंग सिर्फ तेरे और मेरे बीच नहीं रही. अब हमें उस असली दुश्मन तक पहुँचना है. जो' सोने का पिंजरा' के पीछे है।
आरव ने तलवार नीचे की और हल्की हँसी के साथ बोला—
तो ठीक है, कबीर. अब तू और मैं दोनों उसी नकाबपोश के सामने खडे होंगे. लेकिन याद रख, जंग चाहे बाहर की हो या अंदर की. आखिरी जीत मेरी होगी।
दृश्य तैंतालीस — अधूरा क्लाइमेक्स
शहवार की चीख तहखाने से गूँजी—
कबीर!
सबके चेहरे उस ओर मुडे.
कबीर का दिल तेजी से धडकने लगा.
आरव मुस्कुराया और बोला—
लगता है हमारी रानी तुम्हारा नाम पुकार रही है. लेकिन कब तक. ये अभी देखना है।
मोमबत्तियाँ बुझ गईं. हवेली अंधेरे में डूब गई.
और कहानी एक नए तूफान की दहलीज पर खडी हो गई.
यहाँ से असली सस्पेंस खुलता है—
शहवार अब भी कैद में है.
आरहान ने असली दुश्मन का इशारा कर दिया है.
आरव और कबीर दुश्मन होने के बावजूद अब एक ही नकाबपोश से भिड सकते हैं.
अगला हिस्सा
अंधेरी हवेली में मोमबत्तियाँ बुझ चुकी थीं. चारों तरफ सिर्फ सन्नाटा और टूटते कदमों की आहट.
कबीर तलवार थामे आगे बढा, लेकिन तभी तहखाने से फिर शहवार की चीख आई—
कबीर. मुझे बचाओ!
कबीर सीढियों की ओर दौडा, पर दरवाजा अचानक अपने आप बंद हो गया. लोहे की सलाखें गिर गईं.
आरव की आँखों में अजीब- सी मुस्कान थी.
आरव:
देखा कबीर? तेरी मोहब्बत तुझसे हाथ बढाकर भी दूर रह गई. यही है असली खेल—' सोने का पिंजरा'
वेरिका काँपती आवाज में बोली—
लेकिन ये दरवाजा किसने बंद किया? तेरे लोगों ने?
आरव का चेहरा गंभीर हो गया.
आरव:
नहीं. ये मेरे लोग नहीं कर सकते।
तभी दीवारों पर परछाइयाँ हिलने लगीं. एक नकाबपोश शख्स धीरे- धीरे अंधेरे से बाहर आया. उसका चेहरा काले नकाब में छुपा था, और उसकी आवाज गूँज उठी—
नकाबपोश:
सोचा था जंग सिर्फ दौलत की है? नहीं. ये खेल मोहब्बत और विश्वास को तोडने का है।
कबीर ने तलवार उसकी ओर तानी.
कबीर:
कौन है तू? और शहवार को कहाँ छुपा रखा है?
नकाबपोश ठंडी हँसी हँसा.
नकाबपोश:
शहवार वहीं है जहाँ उसे होना चाहिए. पिंजरे में. लेकिन सवाल ये है, कबीर—क्या तू उस पिंजरे तक पहुँच भी पाएगा?
आरहान चिल्लाया—
कबीर! यही असली दुश्मन है. यही वो है जिसने आरव को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया।
कमरे में तनाव और गहरा हो गया.
वेरिका ने काँपते हुए पूछा—
लेकिन क्यों? आखिर' सोने का पिंजरा' की असली ताकत क्या है? और शहवार इस खेल में क्यों फँसी?
नकाबपोश ने धीरे से हाथ उठाया, और उसकी हथेली पर सुनहरा चिह्न चमक उठा.
नकाबपोश:
जब तक ये चिह्न मेरे पास है. न दौलत तेरे पास होगी, न मोहब्बत।
कबीर, वेरिका और आरव तीनों हैरान निगाहों से उस रहस्यमय शख्स को देख रहे थे.
सवाल हवा में तैर रहे थे—
नकाबपोश कौन है?
और' सोने का पिंजरा' का सच क्या है?
अंधेरा और गहरा हो गया. और कहानी एक नए रहस्य की दहलीज पर अटक गई.
कौन है नकाबपोश? शहवार Kiss हाल में है? सोने का पिंजरा' का असली रहस्य क्या है? किसका होगा अंत और किसकी होगी जीत?
Matrubharti To Be Continued.