अंधेरे की चुनौती
आसमान में गरजती बिजली और धरती का काँपना, दोनों मिलकर जैसे पूरे गाँव को दहला रहे थे.
कबीर और शहवार आमने- सामने खडे थे उस“ असली अंधेरे” के, जिसकी परछाई अब हर कोने को निगल रही थी.
अंधेरा गूंजती आवाज में बोला—
कबीर, तू बहादुर है. तेरे पास तलवार है, तेरे पास हिम्मत है. लेकिन तेरे पास दिल भी है. और दिल. सबसे बडी कमजोरी है।
कबीर ने तलवार कसकर पकडी और गरजा—
कमजोरी नहीं. यही दिल मेरी ताकत है. मोहब्बत मेरी ढाल है, और इसी मोहब्बत से मैं तुझे हराऊँगा।
शहवार की आँखों से आँसू बह निकले.
कबीर. ये इम्तिहान आसान नहीं होगा. किताब में साफ लिखा है— मोहब्बत और गाँव दोनों साथ नहीं बच सकते. हमें चुनाव करना होगा।
दृश्य दो — गाँववालों की दुविधा
गाँव के लोग दूर खडे कांप रहे थे.
एक बुजुर्ग ने बाकी लोगों से कहा—
अगर कबीर मोहब्बत चुनता है, तो गाँव जल जाएगा.
अगर गाँव चुनता है, तो मोहब्बत टूट जाएगी.
तो फिर वो करेगा क्या?
औरतें दुआएँ कर रही थीं.
बच्चे कबीर और शहवार का नाम पुकार रहे थे.
गाँव का हर इंसान उस वक्त उनकी मोहब्बत और किस्मत का गवाह था.
दृश्य तीन — अंधेरे की चाल
अंधेरे ने जमीन पर हाथ मारा.
तुरंत गाँव में आग लग गई.
घर जलने लगे, लोग चीखने लगे.
अंधेरा हँसकर बोला—
देखा कबीर? गाँव जल रहा है.
तू चाहे तो शहवार की जान बचा ले, लेकिन तेरे गाँव के बच्चे राख हो जाएँगे।
कबीर ने गुस्से में तलवार उठाई और दौडकर वार किया, मगर उसका वार हवा में समा गया.
अंधेरा हँस पडा—
तलवार से अंधेरे को कोई नहीं काट सकता.
अंधेरे को हराने के लिए रोशनी चाहिए. और रोशनी सिर्फ तेरी मोहब्बत से आएगी।
शहवार ने काँपती आवाज में कहा—
मतलब. अगर मैं अपनी जान दे दूँ, तो ये अंधेरा खत्म हो सकता है।
दृश्य चार — कबीर की जिद
कबीर चीख पडा—
नहीं! ऐसा मत कहना शहवार! तेरी जान मेरी जिन्दगी है. अगर तूने अपनी जान दे दी तो मेरी सांसें रुक जाएँगी.
तेरे बिना मैं कुछ नहीं।
शहवार की आँखों में आँसू तैर गए.
कबीर. लेकिन अगर मैंने बलिदान नहीं दिया तो ये पूरा गाँव खाक हो जाएगा.
क्या हम इतने स्वार्थी हो सकते हैं?
कबीर ने उसका चेहरा पकडकर कहा—
मैं तुझसे वादा करता हूँ, शहवार.
तू जिंदा भी रहेगी, और गाँव भी बचेगा.
मैं कोई न कोई रास्ता जरूर निकालूँगा।
दृश्य पाँच — किताब की आखिरी पंक्तियाँ
शहवार ने काँपते हाथों से किताब का आखिरी पन्ना खोला.
उसमें लिखा था—
अंधेरे को रोशनी से हराने के लिए दो दिलों की मोहब्बत को आग से गुजरना होगा.
लेकिन सावधान. अगर मोहब्बत कमजोर पडी तो दोनों दिल हमेशा के लिए अलग हो जाएँगे।
कबीर और शहवार ने एक- दूसरे की आँखों में देखा.
ये वो पल था जहाँ मोहब्बत भी थी, डर भी, और मौत की आहट भी.
दृश्य छह — अग्निपरीक्षा
अंधेरे ने दोनों को घेर लिया.
चारों तरफ आग की दीवार खडी हो गई.
कबीर ने शहवार का हाथ पकडा और उसे आग में घुसा दिया.
दोनों की चीखें गूँज उठीं.
कबीर की तलवार लाल होकर चमकने लगी.
शहवार का माथा जगमगा उठा.
गाँव वाले रोने लगे—
हे भगवान! हमारी रक्षा करो!
अचानक आग में से सुनहरी रोशनी फूट पडी.
वो इतनी तेज थी कि अंधेरे ने चीख मार दी.
आह! ये मोहब्बत की ताकत. मुझे जला रही है!
दृश्य सात — अंतिम वार
कबीर ने पूरी ताकत से तलवार घुमाई.
शहवार ने आँखें बंद कर लीं और अपने दिल की धडकन को कबीर के हाथों में सौंप दिया.
रोशनी की लहर निकली और सीधे अंधेरे के दिल में जा लगी.
अंधेरे ने दहाड मारी—
नहीं. ये नहीं हो सकता! सदियों का श्राप. एक मोहब्बत के आगे हार रहा है?
उसकी परछाई बिखर गई.
आसमान साफ हो गया.
गाँव की आग बुझ गई.
गाँव वाले खुशी से चिल्ला उठे—
कबीर जिंदाबाद! शहवार जिंदाबाद! मोहब्बत जिंदाबाद!
दृश्य आठ — नया संकट
लेकिन जैसे ही सबको लगा कि अंधेरा हार गया.
तभी ताज अचानक हवा में उठा और जमीन पर गिर पडा.
ताज से काली धूल निकली और किताब अपने आप जल गई.
उस धूल ने शहवार को घेर लिया.
कबीर घबराकर चिल्लाया—
शहवार! नहीं!
शहवार दर्द से चीख पडी—
कबीर. मुझे बचा. ये अंधेरा मुझे खींच रहा है!
कबीर ने उसे कसकर पकड लिया, लेकिन धूल इतनी ताकतवर थी कि उसका शरीर धीरे- धीरे गायब होने लगा.
दृश्य नौ — कबीर की कसमें
कबीर रो पडा.
नहीं! तू मुझे छोडकर कहीं नहीं जाएगी.
मैं तुझे इस अंधेरे में खोने नहीं दूँगा.
तेरी साँसें मेरी साँसें हैं।
शहवार ने कमजोर मुस्कान दी.
कबीर. अगर मैं खो भी गई. तो मेरी मोहब्बत हमेशा तेरे साथ रहेगी.
याद रखना, सच्चा प्यार कभी खत्म नहीं होता।
कबीर की आँखों में खून उतर आया.
नहीं! मैं अपनी शहवार को इस अंधेरे से छीनकर वापस लाऊँगा.
चाहे इसके लिए मुझे फिर से पूरी दुनिया से लडना पडे।
दृश्य दस — सस्पेंस
और अचानक. शहवार का पूरा शरीर उस धूल में समा गया.
कबीर ने उसकी आखिरी चीख सुनी और जमीन पर घुटनों के बल गिर पडा.
गाँववाले सन्न रह गए.
कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था.
कबीर ने मुट्ठी बाँध ली.
ये जंग अभी खत्म नहीं हुई है.
मैं शहवार को वापस लाकर ही दम लूँगा।
उसकी आँखों में आग थी.
उसकी तलवार फिर से चमकने लगी.
अंत का सवाल
लेकिन अब सवाल ये है—
क्या कबीर सच में शहवार को उस अंधेरे से वापस ला पाएगा?
क्या मोहब्बत की ताकत फिर से जीत पाएगी?
या ये अंधेरा इस बार सबकुछ निगल जाएगा?
To be continued. सुनते रहिए Pocket FM.
विरह की आग
कबीर का दिल ऐसा टुटा था मानो कोई तलवार सीधे उसके सीने में घुसी हो. शहवार की चीख, उसका नाम, वह धूल जो उसकी रूई- सी रगों में समा गई—सब कुछ उसके कानों में गूँज रहा था. गाँव शांत था, पर अंदर से भूकंप थम नहीं रहा था. लोग चारों तरफ इकट्ठा थे, सबकी आँखों में रोता हुआ आश्चर्य और टूटती हुई उम्मीद थी. कुछ लोग सहम कर मुस्करा भी रहे थे—शायद किसी चमत्कार की आस में—पर कबीर के लिए हर मुस्कान घावों पर नमक छिडकने जैसी थी.
उसने शहवार को देखा—वह रहस्यमयी काली धूल में लिपटी हुई थी, उसकी आंखें अर्ध- खुली, पर भीतर कुछ अदृश्य ऊर्जा लगातार खींच रही थी. मंदिर की किताब अब राख बन चुकी थी; ताज चकनाचूर था. पर जिस क्षण शहवार धूल में समाई, कोई सूक्ष्म सी आवाज गूँजी—ऐसी आवाज जो केवल कबीर की आत्मा तक पहुँचती थी—“ वादा निभाना।
कबीर ने उठकर चिल्लाया—“ मैं उसे वापस लाऊँगा. चाहे दुनिया ही क्यों न झुक जाए! उसकी आवाज में ऐसा आग्रह था कि आस- पास खडे लोग कांप उठे. उसने अपने शरीर पर जो चोटें थीं, उन सबको झटक कर उठाया, तलवार को फिर से थाम लिया और कसम खा ली—“ मैं उसे हर हाल में छुडाकर लाऊँगा, चाहे मुझे दस जन्म जिएँ।
दृश्य दो — पुरानी सीख और नए साथी
कबीर ने सबसे पहले गाँव के बुजुर्ग साधु को बुलाया—वही जिसने पहले किताब के रहस्यों की चेतावनियाँ दी थीं. साधु ने आँखें बंद कर के कबीर के सिर पर हाथ रखा और धीमी स्वर में कहा—“ कबीर, जफर की राख ने उस अँधेरे को जन्म दिया जो हमारे पुरखे सदियों से रोके बैठे थे. पर याद रख—राख से उठे अँधेरे का स्रोत सिर्फ खून और जादू नहीं है; वहाँ एक और कडी है—काल का एक पुराना राजा जिसकी आत्मा अभी तक बाँधी गई है. तुम्हें उसे ढूँढना होगा—उसके अंग- खंड हर जगह बिखरे हुए हैं. जहाँ- जहाँ वे मिले, वहीँ उसका हिस्सा जागेगा और शहवार को अंदर खींचेगा।
कबीर ने प्रश्न भरी नजर से पूछा—“ कहाँ ढूँढूँगा मैं उसे? कैसे जाऊँगा इतनी गहरी जगह तक? साधु ने एक परचा, एक मानचित्र और एक शापित मोहरे जैसा छोटा ताबीज दिया—“ ये तेरे मार्गदर्शन के लिए है. पर एक और बात समझ ले—तू अकेला नहीं जा सकता. अँधेरे के सामने इंसान की ताकत न के बराबर है. साथी चुन—उनमें से कुछ तो तेरे पुराने दुश्मन भी हो सकते हैं, और कुछ ऐसे जो खुद में खामोश नायक हैं।
कबीर ने निश्चय के साथ कहा—“ जो भी खतरा आए, मैं उसे सामना करूँगा. मुझे साथी चाहिए—पर वो सिर्फ मोहरे नहीं बनने चाहिए, बल्कि वो समझें कि यह लडाई सिर्फ तलवार की नहीं, आत्मा की है। साधु ने सिर हिलाया और एक- एक कर तीन नाम कहे—रंगीला बाजार का पुराने जख्मी योद्धा मंसूर, जंगल का तंग- सीला शिकारी रहमान और नदी के पार से आईं एक रहस्यमयी महिला, निमा, जो भले लगती थी पर उसके अतीत में भी कई सवाल थे.
कबीर ने उन सबको बुलाया—मंसूर जिसकी आंखों में वीरता और पछतावे का मिश्रण था; रहमान जो चुपके से सीखने वाला, तेज- तर्रार तीरंदाज; और निमा, जिसकी चाल और वाणी में स्याही- सी गंभीरता थी पर उसकी आँखों में आधी दया छिपी थी. सभी ने कबीर की बात सुनी और एक- एक कर उनका हाथ थामा—क्योंकि शहवार सिर्फ कबीर की नहीं, पूरे गाँव की थी.
दृश्य तीन — पहला निशान: खंडित मीनार
मानचित्र में पहली निशानी एक पुरानी खंडित मीनार की तरफ ले गई—जगह जहां पर कहा जाता था कि बादल पहले कभी रुकते थे और लोहे के शुतुरमुर्गों ने रास्ता दिखाया था. मंसूर ने कहा—“ वहाँ के पास कुछ असाधारण शक्ति का पता चला है. जब मैं जवान था, मैंने सुना था कि जो भी वहां रात में चिराग जलाता है, उसे पुरानी आवाज सुनाई देती है। कबीर ने कहा—“ अब हमें ही वह आवाज सुननी होगी।
जंगल के घने रास्तों, कांटे और उमस भरे पलों के बीच उनकी टोली पहुंची. मीनार टूटी- फूटी, जर्जर थी पर उसके नीचले हिस्से में संकेतित पत्थर पर प्राचीन अक्षर उकेरे थे. रहमान ने तीर से एक पत्थर की व्यवस्था बदलकर देखा—तुरंत वहां से एक सिरक उठा—एक चमकीला टुकडा—एक अंगूठी जैसी छोटी चीज—जो जैसे ही हवा में आई, चुंबकीय तरह से निमा की छाती से चिपक गई. निमा के हाथ थोडा- सा कंपकंपाये. उसने कहा—“ यह मेरा नहीं है. यह किसी और का टुकडा है. पर इसे छूते ही मेरे अंदर एक उलझन सी जग उठी।
अचानक आस- पास की हवा सख्त हो गई और जमीन में हल्की- सी कम्पन हुई. मीनार के अंदर से एक स्वर आया—पुष्ट, पुराना और ठंडा—“ यह केवल आरंभ है. जो टूटे पार्ट्स मिलेंगे, वही मेरा पूरा रूप देंगे. तुम चाहे जितने मजबूत हो, पर अगर तुम्हारा मन डिगा तो यह तुम्हें भी ले जाएगा। कबीर ने तलवार उठाकर कहा—“ हम डर कर पीछे नहीं हटेंगे। और गहराई से, उनके हृदय में ठान था—हर टूटे टुकडे को इकट्ठा कर के वह अँधेरे का स्रोत नष्ट करेगा.
दृश्य चार — ताकतों की फासले और उलझनों का जाल
कई दिनों की यात्राओं में उन्हें छोटे—छोटे कंकाल, धातु के टूटे गहने, एक जडी- बूटी से बने संकेत और एक काली वहशी मिट्टी का बर्तन मिला—हर एक में अँधेरे की एक झलक थी: कभी उन पर काली लकीरें, कभी चिलचिलाती ठंडी हवा. पर हर बार जब ये टुकडे एकत्र होते, किसी स्थान पर जबरदस्त हलचल होती और आसपास के पेड सूखने लगते—अर्थात् अँधेरे की शक्ति धीरे- धीरे जाग रही थी.
रात के एक छोर पर, जब सब शिविर में सो रहे थे, मंसूर और रहमान के बीच एक पुरानी शत्रुता उभर आई. मंसूर ने कहा—“ तू फिर उसी दिन की तरह पीछे हट रहा था, रहमान—जहाँ तूने मेरे साथ धोखा किया था। रहमान ने कडवे कटु शब्दों में पलट कर कहा—“ और तू वही गलती दोहरा रहा है कि तू अकेले ही सब कुछ कर लेगा। कबीर ने बीच में आकर कहा—“ अब समय नहीं है पुराने घावों को उघाडने का. हमारी लडाई एकजुटता माँगती है। निमा ने चुपके से हस्त दिया—“ हमारी असल दुश्मन बाहर है; भीतर के छल से कोई फायदा नहीं। थोडी शांति तो आई पर दल के अंदर के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं थे—क्योंकि अँधेरा केवल बाहरी लडाई नहीं, आंतरिक संदेह भी जगा रहा था.
दृश्य पाँच — घाटी का काला तालाब
नक्शे ने उनका अगला कदम एक काली घाटी की ओर निर्देशित किया—जहां बीच में एक तालाब था; पानी का रंग ऐसा काला कि उसमें चेहरा झलकता ही नहीं. पुरानी कहानियाँ कहती थीं कि उस तालाब में झाँक कर जो अपनी असली छवि देखता है, उसकी आत्मा पर प्रश्न चढते हैं. कबीर ने तय किया—“ जो भी सत्य इस तालाब में छिपा है, हमें उसे देखना होगा।
तालाब के किनारे पहुंचते ही हर किसी की परछाई सामान्य से अलग दिखी—कबीर की परछाई उसके हाथों में शहवार की परछाई पकडाए दिखी; मंसूर के हाथ में उसका बचपन का चेहरा; रहमान के सामने उसका खोया हुआ भाई. निमा की आँखें भर आईं—उसने कबूल किया कि वह किसी पुराने बन्धन से आई थी; उसका संबंध किसी राजवंश से था, उसी राजवंश से जिसमें शहवार की जडें थीं. तालाब ने सबके भीतर के खामोश भय और लज्जा को बाहर कर दिया—पर कबीर ने उन सभी को संभाला और कहा—“ अँधेरे की असल चाल यह है कि वह हमें हमारे भीतर के डर से लडवाए. हम जिता नहीं, अगर हम खुद से हार गए।
तालाब के बीचों- बीच एक पत्थर उभरा—उस पर उकेरे थे कुछ शब्द जो तब तक किसी ने पढे ही नहीं थे—पर जब कबीर ने उसे छुआ, एक छोटी लौ सी निकली—वही लौ जिसने शहवार को बचाते समय चमक दिखाई थी. वह लौ धीरे- धीरे बढ कर एक पुराने दंडक वृक्ष की जडों के पास गिरी; जहां से जमीनी धातु का एक और टुकडा उभरा—यह टुकडा पहले मिल चुके हिस्से से मिलकर एक और संकेत जैसा बना—और जैसे ही यह जोड खिंचा, दूर कहीं से एक पुराना स्वर उठा—“ एक और टुकडा मिला।
दृश्य छह — बलिदान की तैयारी और खंडित विश्वास
जैसे—जैसे आइटम इकट्ठे होते, अँधेरे की हदें कम नहीं हो रही थीं; बल्कि वह और चालाक हो रहा था. कबीर ने समझा कि अब उसे कुछ और करना होगा—एक ऐसा कार्य जो सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि प्रेम और संतुलन से होगा. उसने अपने साथियों को बुलाकर कहा—“ हमें एक अनुष्ठान करना होगा—एक ऐसा अनुष्ठान जो शहवार के अँधेरे से जुडे टुकडों को खोखला कर दे. पर यह अनुष्ठान बलिदान मांगता है—कुछ छोटा, कुछ बडा—पर महत्त्वपूर्ण।
सबने पूछा—“ कौन देगा बलिदान? मंसूर ने कहा—“ मैं दे दूँगा। रहमान बोला—“ नहीं—मैं पहले दे चुका हूँ जो दे सकता था। निमा ने चौंक कर देखा—उसका चेहरा सफेद हो गया—“ मेरे अंदर की पहचान ने मुझे यह सिखाया है—यदि कोई बलिदान देना है, तो वह सिर्फ कबीर की मोहब्बत नहीं हो सकती; यह टीम की भी होनी चाहिए। पर कबीर ने ठान लिया—“ यह बलिदान व्यक्तिगत नहीं होगा; यह हमारी आत्माओं का प्रतिबिंब होगा. हम सभी अपनी- अपनी चीजें इस अनुष्ठान में रखेंगे—कोई एक नहीं. क्योंकि अगर प्यार की लौ लोगों के बीच है तो वही हमारी असली रोशनी है।
दृश्य सात — ग्रैंड अनुष्ठान
वही रात, ऊँचे पहाड की चोटी पर जहाँ हवा मानो घंटों बोल कर चली जाती थी, सबने मिलकर अनुष्ठान की तैयारी की. चारों ओर पेडों की पत्तियाँ सरसराती थीं. मंसूर ने अपने वयोबन्धन से कुछ खून दिया—उसका प्रतीक; रहमान ने अपनी आखिरी तीर का औजार; निमा ने राजवंश की एक खोई हुई कडी; और कबीर ने शहवार की एक छोटी- सी माला, उसकी यादों का प्रतीक, जो उसने हमेशा पहन रखी थी. इन सब चीजों को एक गोल घेरे में रखा गया और किताब से निकले संकेतों के अनुरूप मंत्र बोले गए—साधु की गूँजती आवाज भी साथ थी.
जैसे ही अंतिम मंत्र कहा गया, धरती हिली और आसमान से तेज रोशनी निकली—परंतु उसी समय अँधेरे ने जोर से हमला किया. काली छाया घनी होकर आसमान से उतर आई. उसकी गरज इतनी तेज थी कि सब थर्राने लगे. पर ठीक उस क्षण, उन सभी की दुआ और कबीर की अनुग्रहित मोहब्बत ने मिलकर एक द्वंद्व चलाई—रौशनी की एक लहर निकली, अँधेरे के शरीर में धँसती गई और टुकडों को ढीला कर दिया. उन टुकडों में से एक—वही जो शहवार के भीतर सिमटा हुआ था—हल्का- सा अलग होकर बाहर निकला और हवा में उड गया. कबीर ने उसे देखा—उसका स्वर घबराया—“ शहवार!
दृश्य आठ — अंतिम धक्का और उम्मीद
टुकडा हवा में उड कर उस जगह पर जा गिरा जहाँ कुछ दिन पहले खंडित ताज बना था—पर अचानक उडी धूल से एक आवाज निकली—“ तुमने शायद मेरा एक भाग निकाल लिया, पर पूरा मैं अभी भी रहूँगा। अँधेरे की दहाड ने सभी को हिला दिया. पर कबीर ने अपनी पूरी ताकत जुटा ली—उसने शहवार की माला पकडी और जोर से उसे अपनी छाती से लगाया. तू मेरी रूह में है, वह बोला, और मैं तुझे अकेला नहीं छोडूँगा।
वहां से कहानी का रास्ता खुलता है—शहवार का पहला टुकडा निकल चुका है; पर बाकी टुकडे दुनिया के कोनों में बिखरे हैं. अँधेरे की परतें अभी टूटती नहीं दिख रही—वह और गहरा हो चुका है, और उसका असली मुखौटा अभी सामने नहीं आया. पर एक बात स्पष्ट थी—कबीर ने रास्ता शुरू कर दिया था. उसकी आँखों में अब केवल एक लक्ष्य था—शहवार को वापस लाना.
To be continued.
दृश्य एक — शहर की चमक और पहला कदम
कबीर ने उस दिन सुबह सूरज के पहले किरणों में कदम रखा, जैसे उसका हर कदम एक नई दास्तान लिख रहा हो. पीछे रह गई थी वह धूल, वह जंगल, वह युद्ध और वह शहवार. पर आगे उसका नया मुकाम था — शहर.
शहर का नाम था — जफरपुर. यहाँ का हर कोना दौलत और ताकत से भरा था. बुलंद इमारतें, गगनचुंबी टावर, चमचमाती सडकें और लग्जरी कारों की कतारें — जैसे यह जगह सोने के पिंजरे का खुद का अक्स थी.
कबीर ने शहर के बीचों- बीच खडे अपने काले बुलेट से देखा. हवा उसकी जाँघों को चीर रही थी, और उसका चेहरा ठंडी मुस्कान से चमक रहा था.
अब शुरू होती है नई जंग, उसने खुद से कहा.
शहर में कदम रखते ही उसका स्वागत एक अलग दुनिया ने किया—जहाँ पैसा, शोहरत और ताकत ही कानून थे. एक भव्य होटल के सामने, जहाँ लाल कालीन बिछा था और सिक्योरिटी गार्ड खडे थे, कबीर ने प्रवेश किया. होटल का नाम था“ सोनिका पैलेस” — शहर की सबसे महंगी जगह.
होटल का लובי जैसे किसी राजमहल का अक्स था. सोने की झुमरियां, संगमरमर के फर्श, और बडे- बडे क्रिस्टल के चश्मों से सजी दीवारें — हर चीज कबीर की नजर में इस नई दुनिया की ताकत का प्रतीक थी.
दृश्य दो — दौलत और शोहरत का पहला स्वाद
कबीर का स्वागत होटल के मालिक ने व्यक्तिगत तौर पर किया. मालिक, एक सफेद सूट में सज- धज कर खडा था, उसका नाम था राजवीर मल्होत्रा — शहर का सबसे बडा व्यापारी और रहस्यवादी शख्स. उसने कबीर को गले लगाया.
कबीर भाई, आपका इंतजार था. आपने जो किया है, वो सिर्फ बहादुरी नहीं, इतिहास है।
कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया—
मैं यहाँ सिर्फ दौलत के लिए नहीं आया. मैं यहाँ शहवार के लिए आया हूँ. और दौलत मेरे रास्ते में सहारा है।
राजवीर ने आँखों में चमक के साथ कहा—
तो फिर आपको सोने के पिंजरे का दरवाजा खोलना होगा. लेकिन याद रखिए, हर दरवाजा अपनी कीमत मांगता है।
कबीर होटल के सबसे ऊपरी मंजिल पर पहुँच गया. वहाँ से पूरा शहर चमक रहा था—लाइटों का समंदर, लाल- पीले- नीले रंग की झिलमिलाहट, जैसे यह शहर खुद एक जीवित पिंजरा हो.
दृश्य तीन — दुश्मन का इशारा
जैसे ही कबीर शहर में अपनी पहचान बना रहा था, उसे पता चला कि कोई उसकी हर चाल पर नजर रख रहा है. एक अंधेरे कमरे में, जहाँ शहर की रौशनी भी मुश्किल से पहुँचती थी, एक अनजान शख्स ने फोन पर कहा—
कबीर जिंदा है. और वो शहर में है. हमें उसे रोकना होगा।
कबीर के दुश्मन कौन थे, इसका अभी तक पता नहीं था. पर एक बात तय थी—शहर में उसकी मोहब्बत और ताकत दोनों का इम्तिहान होने वाला था.
दृश्य चार — शोहरत का जाल
कबीर ने शहर में अपनी ताकत साबित करने के लिए एक बडा कदम उठाया—उसने एक भव्य गाला पार्टी का आयोजन किया. पार्टी में शहर के सबसे बडे उद्योगपति, नेता, फिल्म स्टार और मीडिया वाले शामिल थे.
गाला हॉल गोल्डन और कांच की सजावट से भरा हुआ था. वहाँ लगी एक विशाल स्क्रीन पर कबीर के कारनामों की झलकियां चल रही थीं—जंगल की लडाई, खजाने की खोज और शहवार के साथ उसकी मोहब्बत की दास्तान.
पार्टी में हर कोई उसकी तारीफ कर रहा था—लेकिन पीछे से निगाहें उसे परख रही थीं.
दृश्य पाँच — मोहब्बत का इशारा
पार्टी में कबीर ने अचानक शहवार का नाम लिया. हॉल में एक सन्नाटा छा गया.
मेरी दौलत, मेरी ताकत. मेरी मोहब्बत शहवार के बिना अधूरी है।
कबीर की आवाज गूंजी, और सबकी आँखें उस पर टिक गईं. यह न सिर्फ एक बयान था, बल्कि एक चुनौती भी—क्योंकि शहवार अभी भी अंधेरे में बंद थी.
दृश्य छह — नया खतरा
पार्टी के बाद कबीर को पता चला कि उसके शहर में कदम रखते ही उसके दुश्मन सक्रिय हो गए हैं. शहर के एक कोने में एक गुप्त बैठक हो रही थी—जहाँ उस अंधेरे की परछाई में बैठा कोई शख्स कबीर की योजनाओं को रोकने की साजिश रच रहा था.
कबीर को एहसास था—शहर की दौलत और शोहरत के बीच उसे एक नई जंग लडनी होगी. यह जंग न सिर्फ ताकत की होगी, बल्कि मोहब्बत और विश्वास की भी होगी.
दृश्य सात — फैसला
कबीर ने तय किया—“ शहर में दौलत और शोहरत के साथ, मैं शहवार को बचाने का रास्ता ढूँढूँगा.
मुझे शहर की चमक में उसके लिए अंधेरा तोडना होगा।
शहर की रात में कबीर ने अपनी तलवार उठाई और कहा—
यह जंग मेरी आखिरी जंग होगी. और मैं इसे जीतूँगा—चाहे कीमत कुछ भी हो।
दृश्य एक — शहर का पहला कदम
कबीर ने गहरी सांस ली. जफरपुर का गेट उसके सामने था — सुनहरी कडियों और महल जैसी बनावट में, जैसे यह शहर खुद एक पिंजरा हो. उसके भीतर हलचल थी. पीछे रह चुकी थी वह जंगल, वह खजाना, वह लडाई. अब सामने था एक नया रणक्षेत्र — एक शहर जहाँ दौलत, शोहरत और साजिश का हर कदम जकडन की तरह था.
काले बुलेट पर बैठा कबीर तलवार की नोक महसूस कर रहा था. उसकी आँखों में ठंडी आग थी. उसने खुद से कहा—
अब मेरी असली जंग शुरू होगी. और इसका नाम मोहब्बत होगा।
शहर की हवा में दौलत की महक थी. हर कोना, हर सडक एक कहानी कह रही थी — सत्ता, पैसा और ताकत की. कबीर ने महसूस किया कि जफरपुर केवल एक शहर नहीं, बल्कि एक जाल है.
दृश्य दो — दौलत का स्वागत
कबीर होटल“ सोनिका पैलेस” के विशाल लाबी में पहुँचा. वहाँ सोने और संगमरमर की सजावट ने उसका स्वागत किया. लाबी में खडे होटल मालिक, राजवीर मल्होत्रा, सफेद सूट में, आत्मविश्वास से भरे थे. उन्होंने कबीर को गले लगाया.
कबीर भाई, आपका इंतजार था, राजवीर ने कहा.
यहां दौलत सिर्फ पैसा नहीं, पहचान है।
कबीर ने ठंडी मुस्कान दी—
मेरी पहचान मेरी मोहब्बत है. और मैं इसे वापस लाने आया हूँ।
राजवीर ने कहा—
तो तुम्हें सोने के पिंजरे का दरवाजा खोलना होगा. पर याद रखो, हर दरवाजा अपनी कीमत मांगता है।
कबीर ने सिर हिलाया—
मैं इसकी कीमत चुका दूँगा।
दृश्य तीन — शहर में कदम
कबीर ने जफरपुर की गलियों में कदम रखा. यहाँ की हवाएँ दौलत की कहानी बुन रही थीं. शहर के लोग उसकी चर्चा कर रहे थे — ‘सोने का बादशाह कबीर’।
लेकिन कबीर को पता था कि दौलत केवल एक शुरुआत है. असली लडाई मोहब्बत और विश्वास की होगी.
दृश्य चार — पहला प्रदर्शन
कबीर ने शहर में अपनी ताकत दिखाने के लिए एक भव्य गाला पार्टी का आयोजन किया. इसमें शहर के सबसे बडे उद्योगपति, नेता, फिल्म स्टार और मीडिया शामिल थे.
गाला हॉल गोल्डन लाइट्स से जगमगा रहा था. दीवारों पर कबीर की तस्वीरें लगी थीं — जंगल की लडाई, खजाने की खोज, और शहवार के साथ उसकी मोहब्बत.
कबीर ने भाषण दिया—
मेरी दौलत, मेरी ताकत. मेरी मोहब्बत — सब शहवार के लिए है. और मैं इस मोहब्बत को दुनिया के सामने साबित करूँगा।
दृश्य पाँच — दुश्मनों की साजिश
पार्टी के बाद कबीर को पता चला कि उसके दुश्मन सक्रिय हो गए हैं. एक अंधेरी कोठरी में, एक पुराने कारोबारी और अंधेरे खलनायक ने कहा—
कबीर जिंदा है. और वह सोने के पिंजरे में प्रवेश करने वाला है. हमें उसे रोकना होगा।
कबीर के दिल में चेतावनी बज उठी. शहर केवल दौलत का मैदान नहीं था, यह एक जाल था.
दृश्य छह — मोहब्बत का इशारा
कबीर ने कहा—
शहवार मेरी ताकत है, और मैं उसे अंधेरे से छुडाऊँगा।
यह बयान शहर में हलचल पैदा कर गया. लोग उसे ‘सोने का बादशाह’ कहना शुरू कर दिए. लेकिन कबीर को पता था कि यह मोहब्बत उसकी सबसे बडी चुनौती है.
दृश्य सात — गुप्त कमरा
कबीर को सूचना मिली कि सोनिका पैलेस के तहखाने में एक गुप्त कमरा है — जिसमें दौलत, जवाहरात और एक अंधेरे का रहस्य है.
कबीर ने तय किया—
मैं इसे ढूँढूँगा।
लेकिन यह सफर आसान नहीं था.
दृश्य आठ — दुश्मनों का हमला
जैसे- जैसे कबीर तहखाने की ओर बढा, दुश्मन सक्रिय हो गए. रात के अंधेरे में एक हमले ने उसे घेर लिया. तलवारें चमकीं, गोलियाँ बरसीं—कबीर ने सबका सामना किया.
यह लडाई केवल ताकत की नहीं थी, यह मोहब्बत की जंग थी.
दृश्य नौ — शोहरत का जाल
कबीर ने दौलत और शोहरत के बीच संतुलन बना लिया. उसका नाम शहर में हर जगह गूँजने लगा. लेकिन दुश्मन पीछे से उसकी चाल को रोकने की कोशिश में थे.
दृश्य दस — अंतिम फैसला
कबीर ने कहा—
मैं दौलत और शोहरत दोनों को अपने नाम करूँगा, पर शहवार को खोने नहीं दूँगा. यही मेरी आखिरी जंग है।
उसने अपनी तलवार उठाई और कहा—
अब यह जंग मोहब्बत और विश्वास की होगी।
दृश्य एक — लौटना अपने शहर में
कबीर की काली रोल्स- रॉयस शहर की सीमा पर आकर रुक गई. चारों तरफ चमकती इमारतें, ऊँची- ऊँची गगनचुंबी इमारतें और सोने की झिलमिल रोशनी. जफरपुर के लोग उत्सुकता से उसकी कार की ओर देख रहे थे.
कबीर ने अपनी कार का शीशा नीचे किया, गहरी सांस ली और मुस्कुराया. उसके होंठों पर एक ठंडी पर सजीव मुस्कान थी. उसने खुद से कहा—
मैं लौट आया हूँ. अब सब देखेंगे कि सच्ची दौलत और शोहरत क्या होती है।
दृश्य दो — बंगले की शान
कबीर का बंगला जफरपुर का सबसे बडा महल था. चारों तरफ सुनहरा गेट, शाही दरवाजे और पत्थर की मूर्तियाँ. भीतर, फर्श से लेकर छत तक क्रिस्टल chandeliers थे. दीवारों पर अंतरराष्ट्रीय कलाकारों की पेंटिंग्स.
नौकर- चाकर हर ओर तैयार थे. एक नौकर ने कबीर की बेल्ट पर झुककर कहा—
साहब, आपका स्वागत है. आपके कमरे में आपकी पसंद का नाश्ता तैयार है।
कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया—
चलो, मुझे मेरा शहर दिखाना है।
दृश्य तीन — दौलत और शोहरत
कबीर का बंगला केवल घर नहीं, एक लक्जरी का प्रतीक था. उसमें महंगे फर्नीचर — इटालियन सोफा, फ्रेंच कांच की मेजें, और सोने के सजे- धजे कमरे थे. हर कमरे में अलग कहानी थी. एक कमरे में antique collection, दूसरे में imported crockery, और एक कमरे में rare jewellery display।
कबीर ने शहवार से कहा—
यह सब हमारी मेहनत का फल है. लेकिन यह सिर्फ शुरुआत है।
दृश्य चार — गाडियों की शोभा
बंगले के बाहर कबीर की कारों का गरम- गर्म कलेक्शन खडा था — रोल्स रॉयस, फेरारी, लैम्बॉर्गिनी, मर्सिडीज — हर गाडी अपनी कहानी कह रही थी. नौकरों ने लाल कालीन बिछाई थी, और लोग कैमरे लेकर तस्वीरें ले रहे थे.
शहवार ने हैरानी से कहा—
कबीर, यह सब सपना सा लग रहा है।
कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा—
ये सपना नहीं, हकीकत है. और मैं इसे और बडा बनाने वाला हूँ।
दृश्य पाँच — शक्ति और साजिश
कबीर के लौटने की खबर शहर में आग की तरह फैल गई. लोगों के बीच चर्चाएँ थीं—
कबीर ने जंगल की लडाई जीत ली, खजाना पाया और अब लौट आया है।
क्या यह सच है कि कबीर के पास दौलत और ताकत का सारा खेल है?
एक अंधेरी कोठरी में, कबीर के दुश्मन अपनी योजना बना रहे थे.
कबीर ने जीत हासिल कर ली, लेकिन यह जंग अभी खत्म नहीं हुई. हमें उसे हराना होगा, एक शख्स ने कहा.
दृश्य छह — ड्रामाई संवाद
कबीर और शहवार बंगले की छत पर खडे थे, शहर की चमक देखते हुए.
कबीर: शहवार, यह दौलत और शोहरत सिर्फ हमारे प्यार की ताकत है।
शहवार: और यही ताकत हमें किसी भी साजिश से लडने की हिम्मत देगी।
कबीर: हम इस शहर का नक्शा बदल देंगे. ‘सोने का पिंजरा’ हमारा नाम होगा।
दृश्य सात — अगला कदम
लेकिन कबीर और शहवार दोनों जानते थे कि उनकी असली जंग अब शुरू होने वाली है. यह सिर्फ दौलत और शोहरत की नहीं, विश्वास और मोहब्बत की जंग होगी.
कहानी यहीं से आगे बढेगी — जहाँ उनका सामना होगा एक नए दुश्मन, एक बडी साजिश और ‘सोने का पिंजरा’ के असली रहस्य से.
दृश्य एक — शहर में सनसनी
कबीर का नाम अब जफरपुर में आग की तरह फैल चुका था. शहर के लोग उसकी वापसी और बंगले की शान की चर्चा कर रहे थे. अखबारों में उसकी तस्वीरें छप रही थीं — जंगल की लडाई, खजाने की खोज, और शहवार के साथ उसकी मोहब्बत.
कबीर अब शहर का बादशाह है, लोग कह रहे थे.
पर क्या वह इस ताकत और दौलत को संभाल पाएगा? एक अन्य आवाज ने सवाल किया.
दृश्य दो — बंगले में साजिश
कबीर का बंगला एक शाही महल बन चुका था. लेकिन वहाँ, पीछे के कमरों में कुछ लोग अपनी योजनाओं में व्यस्त थे.
एक अंधेरे कमरे में, दुश्मन कबीर की ताकत को खतरे में डालने की साजिश रच रहे थे.
कबीर को हराना होगा, इससे पहले कि वह पूरी तरह अपना किला बना ले, एक शख्स ने कहा.
दृश्य तीन — कबीर और शहवार की योजना
कबीर और शहवार बंगले की छत पर खडे थे. शहर की रोशनी उनके चारों ओर बिखरी थी.
कबीर: शहवार, अब हमें अपनी ताकत और मोहब्बत दोनों को बचाना होगा।
शहवार: मैं तेरे साथ हर जंग में लडूंगी।
कबीर: तो फिर तैयार हो जाओ. हमारी असली जंग अब शुरू होती है।
दृश्य चार — पहला हमला
अचानक, बंगले के बाहर धमाका हुआ. सुरक्षा कर्मचारियों ने अलर्ट बजाया. कबीर ने शहवार को सुरक्षित कमरे में भेजा और खुद तलवार लेकर बाहर दौडा.
तलवारों की खनक, गोलियों की आवाज और चीखें—यह सब एक भयंकर सीन बन गया.
दृश्य पाँच — जीत और रहस्य
कबीर ने दुश्मनों को हरा दिया, लेकिन तहखाने में एक गुप्त दस्तावेज मिला — जिसमें लिखा था—
सोने का पिंजरा सिर्फ दौलत नहीं, बल्कि विश्वास और मोहब्बत का खेल है।
कबीर ने शहवार को देखते हुए कहा—
हम जीत तो गए. लेकिन अब असली कहानी शुरू होती है।
दृश्य छह — नए रहस्य का आगाज
शहवार ने प्रश्न किया—
कबीर, इसका मतलब क्या है?
कबीर ने गंभीर स्वर में कहा—
इसका मतलब है कि हमारी सबसे बडी लडाई अभी बाकी है. ‘सोने का पिंजरा’ की असली चुनौती अभी सामने है।
आने वाली जंग
कहानी यहीं खत्म नहीं होती. यह जंग मोहब्बत, दौलत और विश्वास की होगी.