कबीर की आँखें अनायास ही छत की झूमर पर टिक गईं. चमचमाती रोशनी में भी उसे धुएँ और बारूद की गंध महसूस हो रही थी. उसकी उँगलियाँ कांटे पर जमी रह गईं. नाश्ते का स्वाद गले में अटक गया.
समीर ने झिझकते हुए पूछा,
साहब. सब ठीक तो है? आप बहुत गहरी सोच में खोए हुए लग रहे हैं।
कबीर ने धीरे से सिर घुमाया. उसकी नजरें समीर की आँखों में गडीं, मानो वह उन आँखों के पीछे छुपा कोई राज पढ लेना चाहता हो.
समीर, उस रात. फैक्ट्री में गोली चली थी. लेकिन आज तक किसी ने ये नहीं बताया कि वो गोली आखिर किसे लगी थी. पुलिस कहती है कि मामला साफ है, लेकिन मुझे लगता है सच कहीं और छिपा है।
समीर ने पलभर के लिए नजरें झुका लीं.
साहब, हो सकता है गोली बस हवा में चली हो. चेतावनी के लिए।
कबीर ठंडी मुस्कान हंसा.
तुम मुझे ये समझाना चाहते हो कि दुश्मन इतना बडा खेल रचेगा और गोली हवा में चला देगा? नहीं समीर. वो वार जानलेवा था. सवाल ये है कि गोली खाकर जिंदा बचा कौन. और किसे बचाने के लिए ये रहस्य छुपाया जा रहा है।
उसकी आवाज में शक और गुस्से की तल्खी घुली थी. तभी नूरा हॉल में दाखिल हुई. उसके चेहरे पर रातभर की बेचैनी साफ झलक रही थी.
कबीर. वह बोली, तुम्हें शक है न. कि ब्लैक शैडो ने सिर्फ दुश्मनी में नहीं, बल्कि किसी अपने के जरिए हमला कराया है?
कबीर ने गहरी सांस भरी.
हाँ, नूरा. खेल अब खुलकर सामने आ रहा है. और मुझे लग रहा है कि इस महल की दीवारों के भीतर ही वो राज छिपा है, जो मेरे बाप की मौत से लेकर मेरी जिंदगी तक का नक्शा बना रहा है।
नूरा की आँखों में डर तैर आया.
अगर सच में गद्दार हमारे बीच है. तो अगली गोली नकली नहीं होगी, कबीर।
कबीर ने प्लेट पर रखा कांटा उठाया और मेज पर जोर से बजाया.
तो मुझे भी इस जंग को नकली नहीं रहने देना है. अब चाहे कोई अपना हो या पराया. ब्लैक शैडो का चेहरा सामने आएगा ही.
हॉल की दीवारों पर गूँजते उसके शब्दों के बीच अचानक बाहर से गोली चलने की आवाज आई.
गार्ड्स की चीखें और भागते कदमों की आहट ने पूरे महल में हडकंप मचा दिया.
कबीर ने तुरंत अपनी कुर्सी से छलांग लगाई,
युद्ध अब मेरे दरवाजे तक आ चुका है.
बाहर से आती गोलियों की तडतडाहट ने पलभर में ही महल का सन्नाटा चकनाचूर कर दिया. गार्ड्स की चीखें, भागते सैनिकों की गूंज और टूटते कांच की आवाजें हॉल में धडकते दिल की तरह टकरा रही थीं.
कबीर ने नूरा की ओर एक कडा इशारा किया,
तुम अंदर ही रहो, दरवाजे बंद कर लो. अब जो भी होगा, मैं खुद देखूंगा।
लेकिन नूरा ने उसकी बांह पकड ली.
कबीर, अकेले मत जाओ. अगर ये हमला महल के अंदर तक घुस आया है, तो गद्दार यहीं कहीं है. बाहर से आया दुश्मन इतनी आसानी से दरवाजे तक नहीं पहुँच सकता।
कबीर के चेहरे पर तनाव की लकीरें गहरी हो गईं. उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि ठंडी तैयारी थी.
तो फिर और भी जरूरी है कि मैं बाहर जाऊँ. दुश्मन चाहे बाहर हो या अंदर, मेरी जंग अब अधूरी नहीं रहेगी।
समीर तुरंत पीछे हटकर बोला,
साहब, मैं आपके साथ चलता हूँ।
कबीर ने उसे घूरा,
नहीं समीर. अगर कोई अपना ही गद्दार है, तो मुझे तुम्हारी वफादारी भी परखनी होगी. यहीं रुको।
ये सुनकर समीर का चेहरा उतर गया. उसकी आँखों में अजीब- सी चमक थी—क्या वह वाकई वफादार था या इस मुखौटे के पीछे कोई और चेहरा छिपा था?
कबीर दरवाजे की ओर बढा ही था कि एक और गोली की आवाज गूंजी—इस बार बहुत करीब से. दीवार के कोने पर लगी पेंटिंग के शीशे चकनाचूर हो गए.
कबीर ने झटपट मेज के नीचे से पिस्तौल निकाली और दरवाजा धकेलकर बाहर निकल गया. बरामदे में धुआँ और अफरा- तफरी फैली हुई थी. गार्ड्स एक- दूसरे पर चिल्ला रहे थे, लेकिन असली दुश्मन कहीं दिखाई नहीं दे रहा था.
तभी छत से आती ठंडी हवा में एक परछाई हिली. कबीर ने फौरन ट्रिगर दबाया—
धाँय!
गोलियों की गूँज ने अंधेरे को चीर दिया. परछाई गायब हो गई. केवल दीवार पर छिटकते टुकडे और बारूद की महक बची.
नूरा पीछे से चिल्लाई,
कबीर! कौन था वो?
कबीर की नजरें अब भी छत और दीवारों पर दौड रही थीं. उसकी साँसें तेज थीं, लेकिन आँखें स्थिर.
ब्लैक शैडो. या उसका भेजा हुआ कोई काला साया. लेकिन अब साफ हो गया है—ये जंग बाहर से नहीं, भीतर से खेली जा रही है।
वह कुछ कदम आगे बढा और टूटी खिडकी के पास झुककर जमीन पर पडे खून के छींटे देखे.
देखो नूरा. गोली लगी है. सवाल ये है—किसे?
नूरा ने काँपते स्वर में पूछा,
तो क्या. ब्लैक शैडो के आदमी घायल होकर भागे हैं? या. कोई अपना ही?
कबीर ने खून की लकीर को उंगलियों से छुआ, फिर होंठ भींच लिए.
सच चाहे जो हो. इस बार खून ने रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है. गद्दार अब बच नहीं पाएगा।
बरामदे की अंधेरी सीढियों से अचानक भारी बूटों की आवाज गूंजी—जैसे कोई छुपकर उतर रहा हो.
कबीर ने पिस्तौल कसी, उसकी आवाज पूरे महल में गूंज गई:
रुक जाओ! वरना अगली गोली सीधे सीने को चीर देगी।
सीढियों के अंधेरे में एक साया ठिठक गया. उसकी परछाई कांप रही थी.
कबीर ने उंगली ट्रिगर पर और कस दी.
नाम बताओ. कौन हो तुम?
— और तभी उस साए ने धीमी आवाज में कुछ कहा, जो नूरा तक भी साफ नहीं पहुँचा.
कबीर की आँखें फैल गईं.
ये नाम. असंभव है।
अगले ही पल वह साया रोशनी में आया और उसके चेहरे को देखकर कबीर के पैरों तले जमीन खिसक गई.
कबीर के सामने खडे साए का चेहरा जैसे किसी भयानक झटके ने खोल दिया हो—पर वह चेहरा किसी परिचित का था. नूरा की सांसें रुकीं, और हॉल के बीचोंबीच खुन- सा खामोशी छा गई. वहीँ, वही आँखें—वो हाव- भाव—समीर की पहचान पर कोई शक होना असंभव था.
समीर—बिलकुल वही छोटा सा समीर जो कबीर के साथ बचपन से खडा रहा था, वही जो लम्बे किस्सों में अपनी वफादार दास्तानों का हवाला देता था—उसके होंठ कांप रहे थे, लेकिन उसके चेहरे पर अब कोई बचाव नहीं, सिर्फ बेचैनी और शर्म थी.
कबीर की आवाज भीतर से आती लहर की तरह ठंडी थी. समीर? ये क्या है—तुम? उसने सवाल नहीं पूछा, बल्कि उँगलियों में कसकर पिस्तौल थामे हुए, हर शब्द में कटुता घोल दी.
समीर ने धीरे से सिर झुकाया. उसकी आँखों में कुछ अलग ही संघर्ष झलक रहा था—डर, पछतावा और एक अनकही मजबूरी. वह शब्दों को जोडने से पहले गहरी साँस लेने लगा. साहब. मैं—” उसकी आवाज टूट पडी. मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन्होंने. उनको पकडा हुआ था।
नूरा ने हाय- हाय करती आवाज निकाली, किसने पकडा? किसने समीर को ऐसा कराया?
कबीर ने कदम बढा कर समीर की तरफ बढने की कोशिश की, पर उसके पैर ज्यों के त्यों खडे थे—थोडी सी समझदारी की हिफाजत और बहुत सारा भय. समीर ने हाथों से अपने चेहरे पर आए आंसू पोंछे और अकड कर कहा, ब्लैक शैडो ने मेरी माँ और छोटी बहन को बंधक बना लिया था. अगर मैंने उनकी बात मानी नहीं, तो. उन्हें मार डालने की धमकी दी गई थी. मैंने सोचा था कि मैं कुछ छोटा- सा काम कर रहा हूँ—इंतहान लेना. सबको डराना—लेकिन वे तो बडी चाल चली चुके थे।
कबीर की आँखों में आक्रोश उबल उठा—नूरा के होंठ सफेद हो आए. महल की दीवारें, जिन पर सोने जैसा तेज चमकता था, अचानक जैसे पत्थर की ठंडक बन गईं. कबीर ने कडे स्वर में कहा, तो तुम बल्ड- नाजायज को बहाना बना कर उनका साथ देने लगा? तुमने हमारे घर के बीच में गोलीबारी करवा दी—लोगों को खतरे में डाला—और अब बहाने मैं नहीं मानूँगा।
समीर ने हाथ उठाकर विनती की मुद्रा बनाई, उसकी आवाज अब बेहद छोटी थी, कबीर साहब, सुनिए—मैंने कभी भी आपके या महल के खिलाफ जानबूझ कर कोई योजना नहीं बनाई. मैंने उन लोगों को सिर्फ जानकारी दी—थोडी सी. और जब मेरी माँ की जान पर संकट आया, तो मैंने सोचा था कि मैं खुद सब कुछ बदल कर लूँगा. मैंने ब्लैक शैडो के पास जाकर कहा कि मैं उन्हें धोखा दूँगा—लेकिन वे बहुत चालाक निकले. उन्होंने मेरे पैरों के नीचे जमीन ही निकाल ली।
कबीर का चेहरा कठोर हुआ. उसके भीतर कुछ भी नरम पडने की जगह नहीं छोड रहा था. पर उसकी आवाज में अब सवाल नहीं, आदेश था. तुम्हें बंधक बना कर रखा गया—ठीक है. पर तुमने जो किया, उसकी सजा भी तो होगी. अब बताओ—ब्लैक शैडो ने किसे निर्देश दिया था? किसने गोली चलाई थी उस रात फैक्ट्री में? और अभी किसका खून हॉल में गिरा है?
समीर की आँखों में दर्द की लकीरें और गहरी हो गईं. वह जमीन की ओर ताकता हुआ बोला, वो रात. मैं वहीं था जब गोली चली. मैं ने देखा था—किसी ने छुप कर निशाना लगाया और फिर गोली चली. लेकिन मैं नहीं जानता था कि किसे लगी. मैं केवल इतना ही जानता था कि वे मुझे कहते थे कि ‘एक साया सब कुछ ठीक कर देगा’। और आज. आज भी मैंने वहीं साया भेजा था—पर मुझे भरोसा था कि चोट सिर्फ दिखाने तक सीमित रहेगी. मुझे नहीं पता था कि कोई सच्चे में घायल हो जाएगा।
नूरा ने उँगलियाँ मुँह के पास दबा लीं. तो क्या तुमने सच में किसी को मार डाला है? उसकी आवाज कंप रही थी.
समीर ने अनमनी तरह सिर हिलाया, नहीं—मारना मेरा मकसद नहीं था. मगर कोई यहाँ घायल हुआ है—और मेरा खून भी वहाँ मिला है। उसने झट से कबीर की ओर देखा, मैं खुद वहाँ गया था—और मुझे लगा कि घायलों में से एक की चीख ब्लैक शैडो के आदमी की तरह नहीं थी—वो चीख. बिलकुल अलग थी।
कबीर का चेहरा जैसे पिघलते हुए लहू से ढक गया हो. उसका अंदरूनी संकेत—वह धडकन जो उसे सही और गलत की आखिरी रेखा दिखाती थी—अब और भी तेज हो उठा. उसने हॉल के दूसरे किनारे की तरफ कदम बढाया और टूटी हुई खिडकी के पास कराहती हुई एक चिट्ठी पाई—वह अभी तक आधी खुली थी. कबीर ने उसे उठाया और पढने की कोशिश की—कागज पर धुँधली स्याही के कुछ शब्द उभर कर सामने आए: —हमें चाहिए था कि तुम विश्वास कर लो. नहीं तो उन्हें मार देंगे—माँ, और छोटी मीना।
कबीर ने चिह्नों को बार- बार देखा. समीर की माँ और बहन का नाम—मीना—उसने कभी सुना था. गुस्से और बुझते हुए दर्द ने उसी क्षण उसकी सोच को हिला दिया. नूरा ने धीरे से पूछा, कहां रखा है वे लोग? किसने उन्हें पकड रखा है?
समीर की आँखें और भी ज्यादा धुँधलाने लगीं. एक जगह. एक गोदाम जिसमें पुराने खिलौने और मशीनरी रखी जाती है—फैक्ट्री के पुराने हिस्से में. पर वहाँ पहुँचने के लिए हमें ब्लैक शैडो की ही रजामंदी चाहिए थी. मैंने कहा था कि मैं कुछ सूचना दूँगा, और इसके बदले उन्होंने. उन्होंने माँ और मीना की जान के बदले हमें सुरक्षित रहने का भरोसा दिया।
कबीर ने पिस्तौल अपनी कमर पर रखा और ठंडी धडकन के साथ कहा, ठीक है. तुम झूठ बोल भी रहे हो या सच बता रहे हो—मैं जान जाऊँगा. पर एक बात जो तुम समझो—यदि तुमने मेरे घर के किसी सदस्य की जान को खतरे में डाला है, तो तुम्हारे लिए उस गलती की भरपाई आसान नहीं होगी।
समीर ने सिर झुकाकर कहा, मैं जानता हूँ साहब. मैं परन्तु—” उसकी आवाज फिर टूट गई. मैंने सोचा था कि मैं खुद ही इस जोखिम को खत्म कर दूँगा. पर ब्लैक शैडो ने मेरे ऊपर इतना दबाव बना दिया कि मैं. मैं फँस गया।
कबीर ने एक पल के लिए आँखें बंद कीं. फिर अचानक उसका ध्यान किसी आवाज पर गया—हॉल के बाहर से हल्की- सी खट- पट की आवाज आ रही थी, जैसे कोई जल्दी- जल्दी कदम उठाकर किसी को ले जा रहा हो. वह आवाज इतनी टेढी- मेढी थी कि किसी भी दिशा की ओर संकेत कर सकती थी. कबीर ने नूरा को देखा—उसकी आँखों में अब सिर्फ एक ही संकेत था—करो या मरो का जज्बा.
समीर, कबीर ने आहिस्ता से कहा, तुम मेरी बेटी—या परिवार—किसी को भी छल कर नहीं बचा सकते. पर तुम मदद कर सकते हो—हमें वह गोदाम बताओ और वहां किसने रेड लगाई होगी, ये बताओ. अगर तुम सच बोलोगे और साथ दोगे, तो तुम्हारी माँ और मीना की जिन्दगी बच सकती है. पर झूठ निकला तो—मैं खुद तुम्हें ऐसा सबक दूँगा कि तुम्हारी आत्मा भी दुम हिलाएगी।
समीर ने सरेंडर कर दिया—उसके व्यक्तित्व के हर टुकडे में अब सिर फोड देने वाला पछतावा था. वह बोला, ठीक है. पर मैं आपसे एक वादा चाहता हूँ—यदि मैं सच बता दूँ और माँ- बेटी को बचा लिया गया, तो आप मुझे माफ कर दें. और अगर मैंने कुछ गलत किया—तो मुझे जिस हद तक सजा देनी होगी, वही करिएगा।
कबीर ने उसकी ओर एक कठिन निगाह डाली. फिर अचानक उसके चेहरे पर कोई नरमाई आई—ना कि सहानुभूति, बल्कि एक कुचक्र की तरह जिनमें इंसानियत के कुछ निशान भी होते हैं. ठीक है, उसने कहा, पर तुम्हें स्थानीय सुरक्षा- टीम के सामने अपना सब कुछ बयां करना होगा. और किसी भी पल हम पर धोखा हुआ तो परिणाम तुम्हारे लिए भयावह होंगे।
समीर ने सिर हिलाया और हाथ जोडकर बोला, मैं तैयार हूँ।
कबीर ने आदेश दिया कि महल के सभी दरवाजे सील कर दिए जाएँ और दो लोगों को—वरिष्ठ गार्ड अली और नूरा के भरोसेमंद साथी—को समीर के साथ भेज दिया जाए ताकि वह गोदाम तक ले जाए. खुद कबीर दो अन्य सिपाहियों के साथ निकला—उसकी चाल अब तेज और लक्षित थी. नूरा ने भी पीछे- पीछे कदम बढाए, उसकी आँखों में संयम और डर दोनों झलक रहे थे.
जब वे फैक्ट्री के पुराने हिस्से की ओर बढे, तो वहाँ का दृश्य कुछ ऐसा था—जैसे समय ने उसे भूला दिया हो. पुरानी मशीनरी, टूटे हुए खिलौने, और धूल के परतों में कुछ अजीब- सी चिल्लाहटें संभाल कर रखी हुई थीं. समीर कुछ हिचकोले खाते हुए आगे बढा, लेकिन हर कदम पर उसकी पीठ पर जैसे कालिख जमती जा रही थी.
दरवाजे के पास पहुँच कर उसने धीरे से कहा, इन दरवाजों के पीछे ही है. पर सतर्क रहिए—वहाँ बाहर से नहीं, अंदर से ही कई नक्शे तैयार किए गए हैं। उसने चाभी निकालने की कोशिश की—पर हाथ काँप रहे थे. नूरा ने उसे पकडकर चाभी ले ली और धीमे से ताले खोल दिए.
दरवाजा खुला और अंदर से एक धुँधला- सा रोशनी का चिह्न बाहर निकला—जैसे कोई गुमनाम आत्मा शोर मचाते हुए रो रही हो. अंदर झाँकते ही एक शर्मनाक दृश्य ने सभी को झकझोर कर रख दिया—माँ और छोटी मीना बंधी हुई थीं, उनके चेहरे थके हुए और आँखों में आंसू थमे हुए थे. पर उनके साथ एक और चीज ने कबीर की रूह में आग लगा दी—उनके पास एक कागज रखा हुआ था जिस पर उसी हाथ से लिखा संदेश था जो हॉल में मिली चिट्ठी से मेल खाता था.
कबीर ने बिना वक्त गवाए दौड लगाई—उसने बँधी हुई माँ को धीरे से छुडाया और मीना को उठाया. माँ नीची आवाज में रो पडी—“ कबीर बेटा. वे उधम मचाने वाले थे, वे कह रहे थे कि अगर तुमने नहीं माना तो हमें मार देंगे। मीना ने कांपते हुए कबीर की ओर देखा—उसकी आँखों में अब डर से ज्यादा एक आशा जगी थी.
कबीर ने समीर की ओर देखा. समीर का चेहरा अब तिल- तिल कर जल रहा था—पंचहाथी पछतावे के साथ. उसकी माँ ने समीर की ओर देखा और उसे गले लगा लिया—उसका चेहरा आँसूओं से नम था, पर उसने कहा, बेटा, हमारी जान बच गई. बस यही महत्वपूर्ण है।
कबीर के मन में एक सवाल गूंज रहा था—सच का सत्य? क्या समीर वाकई ब्लैक शैडो का बंदा था या फिर किसी बडी साजिश का शिकार? उसकी आँखों में अब अगला कदम साफ था—ब्लैक शैडो को अब केवल डराने की बात नहीं रही; अब उसे हर रेखा के पीछे झांकना होगा, हर जुबान का संगीत सुनना होगा, और खुद को तैयार करना होगा उस वक्त के लिए जब सत्य का मुखौटा पूरी तरह गिरेगा.
हवा ने अचानक जोर से सीटी बजाई—और वहीं, फैक्ट्री की सरदर्दी में कहीं दूर से एक और गोली की गूँज सुनाई दी. कबीर ने पिस्तौल कसा, और उसकी आँखों में अब केवल एक ही बात थी—“ यह खत्म नहीं हुआ. अभी तो शुरुआत है।
गोदाम के अंदर अब सन्नाटा था. हवा में अब भी बारूद और तेल की गंध तैर रही थी. मशीनों के जंग लगे हिस्से, टूटी- फूटी लकडियाँ और आधी बुझी लालटेनें उस जगह को और भी भुतहा बना रही थीं. कबीर ने अपनी पिस्तौल को कमर पर लगाया और गहरी सांस ली. माँ और मीना दोनों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था, लेकिन उसके मन का बोझ जरा भी हल्का नहीं हुआ था.
नूरा उसके पास खडी थी, उसकी आँखों में राहत थी पर चिंता की लकीरें और भी गहरी हो गई थीं.
कबीर, उसने धीमे स्वर में कहा, अब तो साफ है कि ब्लैक शैडो सिर्फ बाहर से हमला नहीं कर रहा. उसके लोग हमारे बीच हैं. समीर की मजबूरी सच भी हो सकती है, लेकिन ये भी संभव है कि उसने आधा सच बताया हो. हमें अभी भी नहीं पता उस रात फैक्ट्री में किसे गोली लगी थी।
कबीर ने जमीन पर पडे खून के धब्बों की ओर देखा. उनका रंग सूखकर गहरा काला पड गया था.
हाँ नूरा, वह बोला, ये खून मेरी रातों की नींद ले गया है. किसी अपने पर गोली चली थी. पर नाम क्यों छुपाया गया? कौन है जिसे बचाने के लिए इतना बडा रहस्य रखा गया?
समीर उस वक्त दरवाजे के पास खडा था. उसकी आँखें शर्म और अपराधबोध से भरी थीं. उसने काँपते हुए कहा,
साहब, मैंने जितना जाना था सब बता दिया है. लेकिन सच ये भी है कि मैंने कभी उस चेहरे को साफ- साफ नहीं देखा. बस इतना जानता हूँ कि जो घायल हुआ. वो हमारे ही करीब का इंसान था. तभी तो ब्लैक शैडो ने मुझसे कहा—‘ये तुम्हारे ही घर का मामला है। ’”
कबीर की मुट्ठियाँ कस गईं.
अगर घर के भीतर कोई गोली खाकर जिंदा है, तो वो सामने क्यों नहीं आया? कौन है जो इस खेल में परछाई बनकर जी रहा है?
उसी समय बाहर से एक गार्ड भागता हुआ आया.
साहब! उसने घबराई हुई आवाज में कहा, महल के पास जंगल की ओर धुआँ उठ रहा है. और गाडियाँ तेज रफ्तार से अंदर- बाहर जा रही हैं. लगता है कोई गुप्त बैठक हो रही है।
कबीर ने तुरंत आदेश दिया,
नूरा, माँ और मीना को सुरक्षित महल पहुँचाओ. समीर को भी निगरानी में रखो. मैं जंगल की ओर जा रहा हूँ. अगर इस बार मुझे सुराग नहीं मिला, तो शायद कभी नहीं मिलेगा।
नूरा ने विरोध करना चाहा, कबीर, अकेले मत जाओ—”
लेकिन कबीर ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
ये लडाई अब मेरी आत्मा की बन चुकी है. मुझे इस धुंध को अकेले चीरना होगा।
जंगल की राह अँधेरी थी. चाँद बादलों के पीछे छिपा हुआ था, और हवाओं में सीटी बजाने की आवाज गूँज रही थी. कबीर धीरे- धीरे कदम बढा रहा था. उसकी पिस्तौल हमेशा की तरह उसके हाथ में कसकर पकडी थी.
जंगल के भीतर पहुँचकर उसने देखा—कुछ गाडियाँ टिमटिमाती हेडलाइट्स के साथ खडी थीं. चारों ओर नकाबपोश आदमी हथियारों के साथ खडे थे. बीच में एक लंबा आदमी खडा था, जिसका चेहरा आधा नकाब से ढका हुआ था.
कबीर ने अपने आप से फुसफुसाया,
तो ये है. ब्लैक शैडो का असली खेल।
वह धीरे से पेडों के बीच छुपकर आगे बढा. तभी उस नकाबपोश आदमी ने ऊँची आवाज में कहा,
आज का काम अधूरा रह गया. गोली चली, लेकिन निशाना अधूरा रहा. हमें उस चेहरे को खत्म करना ही होगा—वह चेहरा जिसने हमारी सालों की मेहनत पर सवाल खडा कर दिया है।
दूसरा आदमी बोला,
मालिक, लेकिन क्या वो जिंदा है? हमें तो सिर्फ खून ही मिला था।
नकाबपोश की आवाज और गहरी हो गई,
हाँ, वो जिंदा है. और जब तक वो जिंदा है, हमारा राज सुरक्षित नहीं. याद रखो—वो इंसान अगर सच बोल गया तो हमारी सारी चालें खत्म हो जाएँगी. इसलिए अगली बार गोली नहीं, मौत होनी चाहिए।
कबीर का दिल धडक उठा. तो ये सच है. कोई जिंदा है. और उसी के कारण ये पूरा खेल खेला जा रहा है.
लेकिन सबसे बडा सवाल था—वो इंसान कौन है?
तभी अचानक किसी टहनी पर कबीर का पैर पडा और आवाज हुई. नकाबपोशों ने तुरंत हथियार तान दिए.
कौन है वहाँ?
कबीर ने खुद को छुपाने की कोशिश की, लेकिन देर हो चुकी थी. गोलियों की बौछार पेडों की ओर बढी. उसने फुर्ती से झुककर जवाबी फायर किया. धाँय- धाँय की गूंज से पूरा जंगल थर्रा गया.
कुछ नकाबपोश गिर पडे, बाकी छुपकर गोलियाँ चलाने लगे. कबीर ने पेडों का सहारा लिया और धीरे- धीरे आगे बढता रहा. उसकी हर चाल सोच- समझकर थी, लेकिन दुश्मन की संख्या ज्यादा थी.
तभी उसने देखा—वही नकाबपोश लीडर गाडी में बैठने की कोशिश कर रहा है. कबीर ने निशाना साधा, लेकिन तभी एक और आदमी उसके सामने आ खडा हुआ. दोनों की आँखें मिलीं, और कबीर ठिठक गया.
वह चेहरा. बहुत परिचित था.
कबीर की सांसें अटक गईं.
ये. असंभव है।
वह चेहरा वही था, जिसने कभी उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर कसम खाई थी कि वे हमेशा एक- दूसरे की ढाल बनेंगे.
उसका नाम कबीर की जुबान पर आते- आते रुक गया.
उसके होंठों से सिर्फ इतना निकला,
तुम.
नकाबपोश लीडर गाडी लेकर भाग गया. बाकी लोग जंगल में बिखर गए. कबीर और वह परिचित चेहरा आमने- सामने खडे रह गए.
कबीर ने कांपती आवाज में पूछा,
बताओ. उस रात फैक्ट्री में गोली किसे लगी थी? और तुमने मेरा साथ छोडकर ब्लैक शैडो का हाथ क्यों थामा?
वह आदमी चुप रहा. उसकी आँखों में अजीब- सी चमक थी. फिर उसने धीमे स्वर में कहा,
कबीर. कुछ सच ऐसे होते हैं, जिन्हें जानकर तुम खुद अपनी जिंदगी से नफरत करने लगोगे. गोली किसे लगी, ये राज तुम्हें तब पता चलेगा जब तुम इस जंगल से जिंदा निकल पाओगे।
इतना कहकर वह धुएँ में गायब हो गया.
कबीर अकेला खडा रह गया. उसके चारों ओर सिर्फ टूटी टहनियाँ, गिरे हुए नकाबपोशों की लाशें और जलते इंजन की गंध थी.
उसके दिल में सवाल और भी गहरे हो गए.
कौन है वो शख्स? क्यों उसने ब्लैक शैडो का साथ चुना? और सबसे बडा सवाल—गोली आखिर किसे लगी थी?
कबीर ने मुट्ठियाँ भींचीं और कसम खाई,
अब ये जंग सिर्फ ब्लैक शैडो से नहीं है. ये जंग मेरे अपने से भी है. और मैं सच को सामने लाकर ही दम लूँगा।
वह महल की ओर लौट पडा. लेकिन उसके हर कदम के साथ ये रहस्य और भी गहरा हो चुका था.
इस सीन का अंत यहाँ होता है.
अब पूरा माहौल इस मोड पर है कि:
एक. ब्लैक शैडो ने स्वीकार किया कि कोई जिंदा है जिसे खत्म करना जरूरी है.
दो. कबीर ने जंगल में अपने ही किसी पुराने साथी को देखा, जो अब दुश्मन बन चुका है.
तीन. फैक्ट्री वाली गोली का रहस्य अब और भी उलझ गया है.
फैक्ट्री की दीवारों पर अब भी धुएँ की काली परत चिपकी हुई थी. बाहर पुलिस की गाडियों की लाल- नीली लाइटें अँधेरे को चीर रही थीं. अफरा- तफरी थम चुकी थी, लेकिन हवा में गनपाउडर की गंध अब भी तैर रही थी.
अरमान, कमिश्नर की भारी आवाज के साथ खडा रहा. उसकी आँखें तेज रोशनी के बावजूद धुँधली होती जा रही थीं, जैसे कोई सवाल अंदर से उसे काट रहा हो.
गोली किसे लगी? उसके शब्द कानों में गूँजते रहे.
कबीर ने छाती पर हाथ रखा था. होंठों पर अजीब सी मुस्कान, लेकिन उस मुस्कान के पीछे लहू रिसता हुआ. उसकी शर्ट धीरे- धीरे लाल होती जा रही थी.
लगता है मौत. वह बुदबुदाया, लेकिन वाक्य अधूरा छोड दिया.
जेविका चीख पडी, कबीर!
वह झुककर उसके पास गई, उसके माथे पर हाथ रखा. आँखों से आँसू गिरते रहे, लेकिन कबीर की हथेली काँपते हुए उसके गाल को छूने लगी.
डरो मत. ये खेल अभी खत्म नहीं हुआ. उसकी आवाज धीमी और टूटी हुई थी.
cut टू – कैमरा पुलिसकर्मियों पर जाता है, जो फैक्ट्री के अंधेरे हिस्से की ओर भाग रहे हैं.
वहाँ टूटी मशीनों और गिरे बैरल्स के पीछे एक छाया हिली. धुएँ में से सिर्फ आँखें चमकीं – ठंडी, नुकीली, जैसे शिकार को देख रही हों.
अरमान तुरंत सतर्क हुआ. सर्च करो! कोई भी कोना खाली मत छोडना।
जेविका ने काँपते हाथों से कबीर का सिर अपनी गोद में रखा. हम यहाँ क्यों आए थे? तुमने कहा था सच तक पहुँचेंगे, लेकिन ये. उसकी आवाज टूट गई.
कबीर ने गहरी सांस ली. सच कभी सस्ता नहीं मिलता, जेविका. और ये तो बस पहला किस्त है.
उसकी नजरें छत की तरफ उठीं, जहाँ एक पुराना, आधा टूटा कैमरा टिमटिमा रहा था.
cut टू – कैमरे का एंगल.
स्क्रीन झिलमिलाती है. कैमरे के पीछे एक कंट्रोल Room दिखाई देता है. वहाँ बैठा है ब्लैक शैडो—चेहरा अब भी नकाब के पीछे. उसकी उँगलियाँ कंप्यूटर कीबोर्ड पर नाच रही थीं.
तो तुमने पहला वार झेल लिया, कबीर. वह बुदबुदाया. देखते हैं, कितनी देर तक साँस ले पाते हो।
सिस्टम पर एक बटन दबाया गया. अचानक फैक्ट्री की छत से स्पॉटलाइट जल उठी और पूरी बिल्डिंग सफेद रोशनी में नहा गई.
सब पुलिसवाले ठिठक गए.
अरमान ने दाँत भींचे. ये खेल हमारे सामने खेला जा रहा है।
cut टू – अचानक मशीनरी के बीच से एक और धमाका हुआ.
जेविका चीखते हुए कबीर पर झुक गई. धूल और चिंगारियों के बीच एक रहस्यमयी आकृति भागती नजर आई—लंबा कोट, चेहरे पर मास्क.
अरमान ने पिस्तौल निकाली. फायर!
लेकिन जैसे ही गोलियाँ चलीं, वह आकृति धुएँ में गायब हो गई.
कबीर ने दर्द के बीच हँसते हुए कहा, वो चाहता है कि हम सोचें. कि हम जीत नहीं सकते. लेकिन असली खेल अभी बाकी है।
जेविका ने गुस्से से कहा, तुम्हें क्या लग रहा है, मैं तुम्हें मरने दूँगी? नहीं कबीर! अगर इस शहर की हर गली खून माँगेगी, तो मैं भी खून बहाऊँगी. लेकिन तुम्हें बचाऊँगी।
उसकी आँखों में आँसू नहीं, आग थी.
cut टू – स्लो मोशन.
पुलिसवाले कबीर को स्ट्रेचर पर रखते हैं. रोशनी की चमक में उसका चेहरा फीका पडता है, लेकिन होंठों पर हल्की मुस्कान बनी रहती है.
अरमान पीछे मुडकर फैक्ट्री की दीवारों की ओर देखता है, जैसे वहाँ अब भी कोई खडा हो.
ड्रामेटिक म्यूजिक.
ब्लैक शैडो स्क्रीन पर फिर दिखाई देता है—इस बार नजदीक से.
ये तो बस शुरुआत है. असली राज बाहर आने में अभी बहुत वक्त है. और जब सच सामने आएगा. तो इस खेल में कोई मासूम नहीं बचेगा।
कैमरा धीरे- धीरे ब्लैक में फेड होता है.
स्क्रीन पर टेक्स्ट: To Be Continued.
महल की रात कभी इतनी ठंडी नहीं लगी थी जितनी उस रात लगी. कबीर की साँसें पीछे- पीछे चलती रहीं, जैसे हर सांस के साथ कोई पुराना किस्सा उसका पीछा कर रहा हो. खिडकी से बाहर फैले बगिया के पेडों की परछाइयां दीवार पर अजीब- सी लकीरें बना रही थीं—उन लकीरों में किसी ने उसके बचपन की हँसी और बाप की चुप्पी को एक साथ पिरो रखा था.
जेविका की चुप्पी अब जोरदार बयानी बन चुकी थी; उसका चेहरा उस वक्त पिघला नहीं, बल्कि कठोर हो चला था. नूरा ने महल के हर कमरे की तलाशी के निर्देश दिए, पर हर दरवाजे के पीछे उसे वही खालीपन मिला—एक खालीपन जिसमें किसी ने जानबूझकर साजिश की आवाज दबा रखी हो.
उस रात, कबीर ने अकेले महल के तहखाने की ओर कदम बढाए. तहखाना ठंडा और गीला था; दीवारें जैसे किसी ने पुराने राजों की आवाजें दबा कर रख दी हों. वहाँ उसे कुछ और खुलासे मिले—पुरानी फाइलें, कुछ फोटो जिनमें अरमान के चेहरे पर थकान साफ थी, और एक पुरानी ऑडियो- टेप जिसका कवर पीला पड चुका था. कबीर ने पीछे से आवाज सुनी—“ तू अब भी इन सबको खोज लेता है? आवाज गहरी थी, पर पहचाने में अटपटी.
टेप प्लेयर में जैसे ही रील घुमी, हवा में एक टूटे हुए वादे की गूँज फैली: जब सच बाहर आएगा तो सोने का पिंजरा चटक कर झर जाएगा। कबीर की हड्डियाँ ठंडी हो गईं. उस वाक्य में कहीं न कहीं एक पुराना घाव खुल गया—क्या यह पिंजरा कभी सच में सोना था, या सिर्फ एक चमकदार जाल?
अगले दिन महल के सामने अचानक एक अजनबी रिपोर्टर आ धमका. उसने कैमरे की तरफ मुस्कुराकर कहा, लोग जानना चाहते हैं—कबीर विराज सच छुपा रहे हैं या बचा रहे हैं? भीड के सवालों का स्वर तेज हुआ. पर कबीर के अंदर जो उबाल था, वह बाहर नहीं दिखा. वह जानता था कि मीडिया सवालों से राज नहीं खुलेगा; राज उन नामों में छिपा था जिनके सामने लोग अक्सर दोस्त बन जाते हैं और फिर मौत का बहाना बन जाते हैं.
रात के बाद, जब महल फिर सूना हुआ, कबीर ने उन फोटो में छुपे पैरों के निशान गिने—एक तस्वीर में अरमान के साथ एक अजनबी खिंचा हुआ था, और उसी के पीछे एक कागज था जिस पर लिखा था: नाम बताओ तो सब सुलझ जाएगा। पर नाम अधूरा था—जैसे किसी ने जानबूझ कर स्याही छुपा दी हो.
कबीर के मन में अब एकी नहीं, कईं आवाजें उठ रही थीं—हर आवाज एक अलग सवाल छोड जाती थी. उस गूँज के बीच उसने अगले दिन रात को एक Meeting का बुलावा रखा—महल के कुछ भरोसेमंद लोगों के साथ. पर वह जानता था कि जिस पर वह भरोसा करेगा, वही शायद अगला सवाल बनकर सामने आ जाएगा.
और फिर, सन्नाटे में एक चिट्ठी मिली—बिना डाक, बिना नाम के: अगर तुम सच जानना चाहते हो तो सोने के पिंजरे को तोडो। कबीर ने चिट्ठी को हाथ में लेते हुए महसूस किया कि पिंजरा सिर्फ एक इमारत नहीं—यह एक व्यवस्था है, एक नसीब, और शायद एक बहुत पुरानी साजिश का नाम.
अब सवालों की कतार खडी हो गई थी—तीन- चार हलके से संकेत जो किसी बडी कुंडली की तरह जुडे थे. कबीर ने गहरी सांस ली और अपने आप से कहा—“ ये शुरुआत है।
एक. क्या सोने का पिंजरा सच में विरासत है या वही जाल जिसमें लोग फंस चुके हैं?
दो. फैक्ट्री में गोली किसे लगी थी — और उस छुपाए गए नाम के पीछे कौन- सा रिश्ता दबा हुआ है?
तीन. क्या समीर केवल मजबूर था, या कोई और नाम उसकी मजबूरी के साथ खेल रहा है?
चार. अरमान के पुराने फोटो में जो अजनबी है—क्या वही खोपडी के पीछे की कडी है?
पाँच. कौन भेज रहा है उन रहस्यमयी चिट्ठियों को — और उनका उद्देश्य क्या है?
छह. अगर पिंजरा टूटेगा तो कौन चमकेगा — सच या खून?
पुरानी अलमारी से मिला एक खत, जिस पर धुंधले अक्षर थे—“ मैं लौटूँगा। रीना ने कांपते हाथों से पढा. यह उसके पिता की लिखावट थी, जो बरसों पहले गायब हो गए थे. सवाल अब था—क्या वो जीवित हैं, या सिर्फ परछाई लौटने वाली है?