🌘 एपिसोड 25 : “परछाई का पुनर्जन्म”
1. दिल्ली की लाइब्रेरी – वो स्याही जो सांस लेती थी
दिल्ली यूनिवर्सिटी की पुरानी लाइब्रेरी में हल्की-सी ठंडक थी।
काँच की खिड़कियों पर धूल की परतें और बीच में अकेली अदिति राठौर —
कंधे पर किताबों का बैग, और आँखों में अनजानी बेचैनी।
उसने “अधूरी किताब – अंतिम अध्याय” को फिर खोला।
पहला पन्ना खाली था, बस कोने में एक वाक्य खुद उभर रहा था —
> “कहानी वहीं लौटती है, जहाँ स्याही पहली बार बहती है…”
अदिति ने पन्ना पलटा —
और अचानक टेबल पर रखा लैम्प अपने आप जल उठा।
लाइट की पीली किरण में धूल के कण ऐसे तैरने लगे जैसे किसी पुरानी याद की रूह।
“क्या कोई है यहाँ?” उसने धीरे से पुकारा।
एक हल्की पुरुष आवाज़ गूँजी —
> “तुम लौट आई हो, अदिति…”
वह चौंक गई। “कौन?”
> “मैं हूँ — वो स्याही, जो कभी तुम्हारे दादा ने ज़िंदा की थी।”
वह ठिठक गई।
“विक्रम राठौर…” उसने फुसफुसाया।
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2. परछाई का परिचय
लाइब्रेरी की दीवार पर छाया बनने लगी —
धीरे-धीरे उस छाया ने मानवीय रूप लिया।
वही नीली आभा, वही पुराना चेहरा — विक्रम राठौर।
“तुम मर चुके थे…”
“मैं कभी जिया ही नहीं,” विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा।
“मैं तो वो शब्द हूँ जो हर पीढ़ी को लिखता है।”
अदिति पीछे हट गई,
“मुझे नहीं पता तुम क्या चाहते हो।”
“बस वही जो अधूरा रह गया,” विक्रम बोला,
“मेरी कहानी पूरी करो, और मैं तुम्हें सच्चाई दूँगा —
कि क्यों हर लेखक मेरी स्याही में खो जाता है।”
अदिति ने किताब बंद करने की कोशिश की,
पर पन्ने अपने आप खुलने लगे।
हर पन्ने पर किसी महिला का चेहरा उभर रहा था —
अनामिका, आर्या, मीरा… और अब अदिति।
> “ये क्या है?”
“वो जो हर युग में मेरी किताब को छूने की गलती करता है,”
विक्रम की आवाज़ अब ठंडी और भारी थी।
“हर लेखक मेरा हिस्सा बन जाता है।”
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3. हवेली की वापसी
रात को अदिति राठौर विला पहुँची।
उसी हवेली के सामने खड़ी थी जहाँ उसके दादा की कहानी खत्म हुई थी।
गेट जंग खाया हुआ था, पर जैसे ही उसने उसे छुआ —
गेट खुद खुल गया।
अंदर वही नीली रोशनी, वही स्याही की गंध।
उसने धीरे से कहा, “दादा, मैं आ गई…”
हवा में फुसफुसाहट उठी —
> “स्वागत है, कहानी की नई लेखिका।”
सीढ़ियों पर उसके कदमों की आहट के साथ,
पेंटिंग्स फिर से ज़िंदा हो उठीं।
मीरा की आँखें चमक रही थीं,
अनामिका मुस्कुरा रही थी,
और आर्या के होंठों पर सिर्फ़ एक शब्द था —
> “भागो।”
अदिति ने सिर झटक दिया।
“नहीं… अब मैं भागूँगी नहीं। मैं जानना चाहती हूँ कि ये स्याही क्या चाहती है।”
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4. टाइपराइटर की फुसफुसाहट
टेबल पर वही पुराना टाइपराइटर रखा था।
अब उस पर नई चाबी उभरी थी — “A.R.”
वो हिचकते हुए बैठी, और उँगलियाँ कीबोर्ड पर रखीं।
टक… टक… टक…
शब्द अपने आप बनने लगे —
> “लेखक नहीं लिखता… स्याही लिखती है।”
“और जो स्याही को छू ले, वो अमर हो जाता है।”
अदिति ने डरते हुए हाथ पीछे खींचा।
पर तभी उसके कलाई पर नीले निशान उभर आए —
जैसे स्याही उसकी नसों में बह रही हो।
वह चिल्लाई — “रुको! मैं नहीं लिखना चाहती!”
दीवार से विक्रम की रूह उभरी —
“अब तुम चाहो या ना चाहो,
कहानी ने तुम्हें चुन लिया है।”
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5. पुनर्जन्म की सच्चाई
विक्रम ने कहा,
“तुम सोचती हो मैं लेखक था? नहीं।
मैं भी किसी और के लिखे शब्दों का परिणाम था।
कभी ‘सौ साल पहले’ एक और लेखक ने ये किताब शुरू की थी,
और मेरी आत्मा उसमें समा गई।”
अदिति की आँखों में भय तैर गया।
“मतलब… ये किताब समय से भी पुरानी है?”
“हाँ,” विक्रम बोला,
“और अब ये तुझमें ज़िंदा रहेगी।”
अचानक हवेली की दीवारों पर नीली स्याही फैलने लगी।
हर ईंट, हर तस्वीर — सब लिखे जाने लगे जैसे हवेली खुद किताब बन गई हो।
मीरा की आवाज़ गूँजी,
> “अदिति! ये तुम्हें भी बाँध देगा — जैसे हमें बाँधा था!”
अदिति ने काँपते हुए कहा,
“तो इसे खत्म कैसे करूँ?”
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6. आग और स्याही का मिलन
वह भागकर हवेली के नीचे के तहखाने में पहुँची।
वहाँ एक पुराना लालटेन पड़ा था — अब भी तेल से भरा।
उसने किताब खोली और कहा —
“अगर ये स्याही ज़िंदा है, तो इसे आग से मरना ही होगा।”
विक्रम की चीख गूँजी,
“नहीं! ऐसा मत करना!
अगर ये किताब जली — तो पूरा राठौर वंश राख बन जाएगा!”
अदिति रुकी — पर सिर्फ़ एक पल के लिए।
फिर उसने लालटेन पलटा और आग किताब पर गिरा दी।
किताब जलने लगी,
पर आग नीली थी — धुएँ जैसी नहीं, स्याही जैसी।
विक्रम की रूह दर्द से तड़प उठी,
“अदिति! तुम नहीं समझती… मैं तुम्हारा दादा नहीं, तुम्हारा भविष्य हूँ!”
अदिति चिल्लाई,
“फिर ये भविष्य अब खत्म होगा!”
आग हवेली की दीवारों में समा गई।
हर पेंटिंग धुएँ में घुली, हर रूह रोशनी बनकर उड़ गई।
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7. अंतिम विराम
सुबह दरभंगा की दिशा में सूरज उगा।
दिल्ली की हवेली अब सिर्फ़ राख थी —
बस बीच में एक पिघली हुई टाइपराइटर की चाबी बची थी — “A.R.”
अदिति बाहर निकली, उसके हाथों पर अब कोई निशान नहीं था।
लेकिन ज़मीन पर स्याही से लिखा था —
> “हर कहानी खत्म नहीं होती… वो बस रूप बदलती है।”
वह पीछे मुड़ी, हवेली गायब हो चुकी थी।
बस हवा में एक मीठी-सी स्याही की खुशबू तैर रही थी।
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8. तीन महीने बाद
दिल्ली की नई बुकस्टोर “लिटरेरी मिराज” में एक बेस्टसेलर किताब रखी थी —
“अधूरी किताब – पुनर्जन्म”
लेखक का नाम — अदिति राठौर।
लोग कहते हैं, वो अब कहीं नज़र नहीं आती।
पर कभी-कभी, जब कोई वो किताब पढ़ता है,
तो पीछे के पन्ने से धीमी आवाज़ आती है —
> “टक… टक… टक…”
और पन्ने के नीचे एक लाइन चमकती है —
> “कहानी ज़िंदा है।”
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🌑 एपिसोड 25 का अंत
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🔮 Next Hook — एपिसोड 26 की झलक:
> “जब स्याही का पुनर्जन्म हुआ,
तो क्या उसने सच में कहानी को आज़ाद किया —
या बस नया लेखक अपने जाल में बाँध लिया?”