Darwaza: Waqt Ke Us Paar - 4 in Hindi Fiction Stories by Naina Khan books and stories PDF | दरवाज़ा: वक़्त के उस पार - 4

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दरवाज़ा: वक़्त के उस पार - 4

"दरवाज़ा: वक़्त के उस पार" मेरी कल्पना और अनुभव का संगम है — एक ऐसी दुनिया जहाँ हर दरवाज़ा एक इम्तिहान है, और हर किरदार अपने डर से लड़ता है।

मैं मानती हूँ कि कहानियाँ सिर्फ़ पढ़ी नहीं जातीं — वो महसूस की जाती हैं।

और अगर एक पाठक मेरी कहानी पढ़कर थोड़ी देर के लिए अपनी दुनिया भूल जाए… तो मेरा लेखन सफल हो गया।

 कहानी का आख़िरी अध्याय — जहाँ परतें खुलेंगी, और वो दरवाज़ा आख़िर क्यों बना, इसका राज़ सामने आएगा।

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*अध्याय 4: रहस्य का पर्दा*

_“हर दरवाज़ा किसी मंज़िल की तरफ़ नहीं जाता… कुछ दरवाज़े सिर्फ़ सबक देने के लिए होते हैं।”_

होटल के उस कमरे में लौटने के बाद सब कुछ शांत था। रिंसी मेरे सामने बैठी थी, लेकिन उसकी आँखों में अब डर नहीं था—बल्कि एक अजीब सी समझदारी थी। जैसे वो उस दुनिया को जान चुकी हो, जिसे कोई और समझ नहीं पाया।

मैंने उससे पूछा, "ये दरवाज़ा आख़िर है क्या?"

उसने धीमे स्वर में कहा, "ये दरवाज़ा एक वक़्त में बना था… जब इस पहाड़ी इलाके में एक औरत रहती थी। उसका नाम था *ज़ेहरा* । वो तांत्रिक नहीं थी, लेकिन लोग उसे वैसा मानते थे। उसकी एक ही ख्वाहिश थी—अपने खोए हुए बेटे को वापस लाना।"

"क्या हुआ उसके बेटे को?" मैंने पूछा।

"वो एक दिन इसी दरवाज़े के पार चला गया। ज़ेहरा ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वो चला गया… और फिर कभी नहीं लौटा। तब ज़ेहरा ने उस दरवाज़े को बंद करने की कसम खाई। लेकिन वो दरवाज़ा बंद नहीं हुआ—बल्कि एक जाल बन गया।"

रिंसी ने आगे बताया, "हर साल, पाँच लोग उस दरवाज़े की तरफ़ खिंचे चले आते हैं। जैसे कोई अदृश्य ताक़त उन्हें बुलाती है। और हर बार, वही कहानी दोहराई जाती है—ख़ूबसूरत नज़ारा, धोखा, और मौत।"

मैंने पूछा, "तो हम क्यों?"

"क्योंकि हम सबने ज़िंदगी में कुछ खोया है। वो दरवाज़ा उन्हीं को बुलाता है जो अंदर से अधूरे हैं। वो तुम्हारी कमज़ोरी को पहचानता है, और फिर उसे तुम्हारे ख़िलाफ़ खड़ा कर देता है।"

तभी होटल का मैनेजर फिर आया। लेकिन इस बार उसके हाथ में एक पुरानी किताब थी। उसने कहा, "ये ज़ेहरा की डायरी है। इसमें लिखा है—'अगर कोई अपने डर से जीत जाए, तो दरवाज़ा हमेशा के लिए बंद हो सकता है।'"

मैंने किताब खोली। उसमें एक आख़िरी पन्ना था, जिस पर लिखा था:

_"मेरा बेटा नहीं लौटा, लेकिन अगर कोई माँ अपने डर से लड़ जाए… तो शायद किसी और का बच्चा बच जाए।"_

मैंने उस पन्ने को पढ़ा, और समझ गई—ये दरवाज़ा सिर्फ़ एक रहस्य नहीं था, ये एक इम्तिहान था। एक ऐसा इम्तिहान जो हर साल दोहराया जाता था, जब तक कोई उसे पार न कर ले।

मैंने दरवाज़े की तरफ़ देखा। अब वो बंद था। और इस बार… हमेशा के लिए।

रिंसी ने कहा, "तुमने जो किया, उससे दरवाज़ा अब किसी को नहीं बुलाएगा।"

मैंने मुस्कुराकर कहा, "शायद अब ज़ेहरा को भी सुकून मिल गया।"

होटल की हवा अब हल्की लग रही थी। पहाड़ों की ख़ामोशी अब सुकून दे रही थी। और हम दोनों… उस दरवाज़े की कहानी को अपने दिल में लेकर, वापस ज़िंदगी की तरफ़ लौट चले।

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*समाप्त।*

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