दरवाज़ा: वक़्त के उस पार
लेखिका: Naina Khan
पाँच दोस्त, पाँच ज़िंदगियाँ, और एक पहाड़ी होटल जहाँ वक़्त ठहरता नहीं — बदल जाता है।
सालों बाद मिले ये दोस्त एक रहस्यमयी दरवाज़े की ओर खिंचते चले जाते हैं, जो दिखता है सुकून का लेकिन ले जाता है इम्तिहान की दुनिया में। दरवाज़े के उस पार एक अलग ही दुनिया है — जहाँ हर ख़ूबसूरत चीज़ धीरे-धीरे डर में बदलती है, और हर क़दम एक नई सज़ा बन जाता है।
जब एक दोस्त लौटती है, उसकी आँखों में पाँच महीने की लड़ाई की कहानी होती है — जबकि बाहर सिर्फ़ पाँच मिनट गुज़रे हैं। अब एक लेखिका, अपनी साड़ी का पल्लू थामे, उस दरवाज़े के पीछे की सच्चाई जानने निकलती है।
क्या वो अपने दोस्तों को बचा पाएगी?
क्या वक़्त का ये जाल टूटेगा?
और आख़िर ये दरवाज़ा बना क्यों?
"दरवाज़ा: वक़्त के उस पार" एक रहस्यमयी, भावनात्मक और कल्पनाओं से भरी कहानी है जो आपको वक़्त, डर और दोस्ती के सबसे गहरे मोड़ों तक ले जाएगी।
अध्याय 3: वक़्त का जाल
“वो दरवाज़ा सिर्फ़ एक रास्ता नहीं था… वो वक़्त का शिकंजा था, जो हर मुसाफ़िर को उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी से लड़वाता है।”
मैंने दरवाज़े की तरफ़ देखा। वो अब भी खुला था, लेकिन उस पार की दुनिया अब वैसी नहीं थी जैसी पहले दिखी थी। धुंध गहरी हो चुकी थी, और हवा में एक अजीब सी सरसराहट थी—जैसे कोई साँसें ले रहा हो, लेकिन दिखाई नहीं दे रहा।
रिंसी ने मेरा हाथ थामा। "अगर तुम अंदर गई, तो तुम्हें खुद से लड़ना होगा। वहाँ कोई हथियार काम नहीं आता, सिर्फ़ हिम्मत बचाती है।"
मैंने एक गहरी साँस ली, अपनी साड़ी का पल्लू कसकर थामा, और दरवाज़े के उस पार क़दम रख दिया।
पहला क़दम रखते ही सब कुछ बदल गया। ज़मीन जैसे काँप उठी, और मेरे चारों तरफ़ का दृश्य धुंधला हो गया। अब मैं अकेली थी। रिंसी कहीं नहीं थी। दरवाज़ा भी ग़ायब हो चुका था।
मैंने आगे बढ़ना शुरू किया। रास्ता पत्थरों से भरा था, और हर पत्थर पर कुछ लिखा था—जैसे किसी की आख़िरी दुआ।
"माँ को कहना मैं लौट नहीं पाया..."
"वो झरना ज़हर था..."
"वक़्त ने मुझे धोखा दिया..."
मैंने पढ़ते-पढ़ते एक तालाब देखा। पानी शांत था, लेकिन उसमें मेरा अक्स नहीं दिख रहा था। तभी एक आवाज़ आई—"तुम्हें क्या लगता है, तुम बच जाओगी?"
मैं चौंकी। सामने एक परछाई थी। उसका चेहरा नहीं दिख रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ मेरे अंदर गूंज रही थी।
"तुम्हारे दोस्त अपनी सबसे बड़ी कमज़ोरी के सामने हार गए। आरव को अपनी जिज्ञासा ले डूबी, दानिश को उसका घमंड, मेहर को उसकी लालच। अब तुम्हारी बारी है।"
"मेरी कमज़ोरी?" मैंने पूछा।
"तुम्हारा डर। तुम हमेशा दूसरों को बचाती रही, लेकिन खुद को कभी नहीं देखा। अब देखो, क्या तुम खुद को बचा सकती हो?"
अचानक तालाब का पानी उबलने लगा। उसमें से हाथ निकलने लगे—जैसे वो मुझे खींचना चाहते हों। मैं पीछे हटी, लेकिन रास्ता बंद हो चुका था।
तभी मुझे याद आया—रिंसी ने कहा था, "डर दिखाया तो तुम भी वहीं रह जाओगी..."
मैंने आँखें बंद कीं, और एक बात दोहराई:
"मैं अकेली नहीं लौटी हूँ... मैं सबको लेकर जाऊँगी..."
आँखें खोलीं तो तालाब शांत था। परछाई ग़ायब हो चुकी थी। और सामने एक रास्ता खुल गया था—एक गुफा की तरफ़।
मैंने क़दम बढ़ाया। अब मुझे समझ आ गया था—ये दुनिया हर किसी को उसकी सबसे गहरी दरार से तोड़ती है। लेकिन अगर कोई उस दरार को भर दे... तो शायद रास्ता मिल जाए।
गुफा के अंदर एक पत्थर पर कुछ लिखा था:
"जो अपने डर से जीत गया, वही दरवाज़ा बंद कर सकता है।"
मैंने पत्थर को छुआ। एक तेज़ रोशनी फैली। और अचानक मैं फिर होटल के उस कमरे में थी। रिंसी मेरे सामने थी, लेकिन अब उसकी आँखों में सुकून था।
"तुमने रास्ता खोल दिया," उसने कहा।
"नहीं," मैंने मुस्कुराकर कहा, "मैंने डर को बंद किया।"
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अगले और आख़िरी अध्याय में:
अध्याय 4: रहस्य का पर्दा – जहाँ दरवाज़े की असली कहानी सामने आएगी, और ये पता चलेगा कि वो दुनिया बनी कैसे… और क्यों।
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