एपिसोड 18 : “राख का सौदा – जब प्यार और श्राप एक हो गए”🌫️ 1. सौदे की शुरुआतरात के तीसरे पहर, दरभंगा की हवेली का हर दरवाज़ा धीरे-धीरे कराह रहा था।
आसमान में काले बादल ऐसे उमड़ रहे थे जैसे किसी की आख़िरी सांसें भारी हुई हों।अनामिका उस प्राचीन तख़्त के सामने बैठी थी जहाँ किताब रखी थी — “अधूरी किताब – भाग दो : राख का लेखक।”
उसकी उंगलियों पर खून सूख चुका था, लेकिन स्याही अब भी बह रही थी।“लिखो…”
वो फुसफुसाहट फिर आई — वही जिसे वो अब पहचानने लगी थी।“अगर मैं न लिखूँ तो क्या होगा?” अनामिका ने काँपते हुए पूछा।दीवारों से आवाज़ गूँजी —
“तो वह मिट जाएगा… जो तुझे वापस चाहता है।”आर्यन की परछाई धीरे-धीरे उसके सामने बनी।
उसकी आँखों में धुंध थी, लेकिन उनमें अब भी वही कोमलता थी जो अनामिका महसूस करती थी।“मत रुक,” आर्यन बोला, “इस किताब को खत्म कर दे… इसी में मेरी मुक्ति है।”अनामिका ने कलम फिर थामी, मगर उसके चेहरे पर डर नहीं, दृढ़ता थी।
“अगर ये कहानी मेरे खून से लिखनी है… तो ठीक है।”🕯️ 2. हवेली का रहस्यरमाकांत हवेली के बाहर टूटी दीवार के पीछे आसमान को देख रहा था।
“ई बार बात कुछ अउर बा,” उसने बड़बड़ाया, “किताब अब सिरिफ़ शाप नइखे… कुछ मांग रहल बा।”उसने साहस करके भीतर कदम रखा।
दीवारें अब साँस लेती हुई लग रहीं थीं, और हवा में राख नहीं, अजीब-सी नमी थी।तब अचानक उसे कोने में रखी वह धातु की पट्टिका दिखी — जिस पर पुराने अक्षरों में लिखा था:“कहानी तब खत्म होती है, जब कोई प्रेम आत्मा खुद को मिटा दे।”रमाकांत का चेहरा सफेद पड़ गया।
“मतलब… किताब तबही खत्म होई जब कोई अपना अस्तित्व छोड़ दे?”हवेली जैसे उसकी बात सुन रही थी।
दीवार से राख झरने लगी… और भीतर से स्वर आया —
“अब फैसला वक्त का नहीं… रूह का होगा।”🌒 3. आर्यन और अनामिकाअनामिका किताब के पन्ने पलट रही थी — हर पन्ने पर आर्यन की यादें थीं।
कॉलेज की लाइब्रेरी, वो बारिश वाले दिन, वो और आर्यन का झगड़ा, और फिर उसका ग़ायब होना।“तो तू तब से इसमें फँसा था?” उसने पूछा।आर्यन की परछाई करीब आई, “किताब ने मुझे इसलिए चुना क्योंकि मैंने तुझे धोखा नहीं दिया था। मैंने किताब की पहली रूह को बचाने की कोशिश की थी — तनिषा को।”अनामिका ने सन्न होकर कहा, “तनिषा?”“हाँ,” आर्यन बोला, “वो श्राप की पहली कड़ी थी। मैंने उसे लिखने से रोकना चाहा… लेकिन किताब ने मुझे कैद कर लिया।”अनामिका की आँखों में आँसू आ गए।
“तो अब तरीका क्या है इसे खत्म करने का?”आर्यन ने अपनी हथेली उसके सामने फैलाई —
“केवल एक सौदा… राख का सौदा। जहाँ एक रूह दूसरी को मुक्त करे।”अनामिका ने भारी साँस ली — “मैं तेरे लिए कुछ भी करूँगी।”🌘 4. तनिषा की परछाईअचानक हवेली के मुख्य कक्ष में नीली आग भड़क उठी।
तनिषा की परछाई धुएँ से बनी और दीवारों से उतर आई।“अनामिका…” उसकी आवाज़ में दर्द था, “तू यह सब छोड़ दे। किताब सिर्फ़ हक नहीं माँगती, वो आत्मा लेती है।”“लेकिन आर्यन!” अनामिका चीखी।
“आर्यन को बचाने के लिए तुझे अपनी पहचान मिटानी होगी। तब किताब बंद होगी,” तनिषा ने कहा।“तो तू चाहती है कि मैं मर जाऊँ?”तनिषा ने चुप रहकर सिर झुका लिया।
“मैं मरकर भी मुक्त नहीं हूँ। मैं चाहती हूँ तू हो जाए।”आर्यन ने कदम बढ़ाया, “नहीं, उसकी जगह मैं…।”किताब ज़ोर से बंद हो गई।
“सौदा एक का होता है! चुनो कौन राख बनेगा!”हवेली कांप उठी, मोमबत्तियाँ बुझ गईं, और धूल का तूफ़ान अनामिका के चारों ओर उठ खड़ा हुआ।🌑 5. राख का निर्णयअनामिका ने आँखें बंद कीं।
किताब ने उसके मन में हजारों आवाज़ें भरीं — डर, प्रेम, पछतावा।“अगर मैं नहीं रहूँ, तो शायद ये हवेली चैन पाए…”
उसने धीरे से कहा।आर्यन ने उसका चेहरा थामा — “मैं तुझे खो नहीं सकता।”लेकिन तभी तनिषा ने फुसफुसाया —
“कभी-कभी सच्चा प्रेम, छुड़ाना नहीं बल्कि छोड़ना होता है…”अनामिका की हथेली से खून की एक आख़िरी बूंद किताब पर गिरी।
किताब चमक उठी — उसके पन्नों पर आग फैल गई।“राख का सौदा पूरा हुआ।”आर्यन चिल्लाया, “नहीं!”
उसके चारों ओर रोशनी भभक उठी, और अनामिका का शरीर हवा में घुलने लगा।🔥 6. राख की मुक्तिजैसे ही आख़िरी राख का कण गिरा, हवेली की साँसें थम गईं।
दीवारें स्थिर हो गईं, हवा सामान्य।आर्यन ने चारों ओर देखा — किताब ज़मीन पर शांत पड़ी थी, उसका कवर अब राख-सा धूसर था।
वह झुका, किताब खोली —
पहला पन्ना खाली था, पर नीचे एक पंक्ति खुदी थी:“हर कहानी को एक लेखक नहीं, एक बलिदान चाहिए।”आर्यन की आँखों से आँसू गिरे।
“तू चली गई… लेकिन अब सब आज़ाद हैं।”तनिषा की परछाई रोशनी में बदल गई — “अब मैं भी मुक्त हूँ।”
उसने हवा में लहराते हुए कहा, “धन्यवाद, अनामिका।”हवेली धीरे-धीरे बिखरने लगी।
छत से राख की बारिश होती रही, लेकिन अब वह डरावनी नहीं थी — शांत थी, टिमटिमाते दीपों की तरह।🌕 7. अगला सवेरासुबह जब सूरज उगा, रमाकांत ने हवेली की जगह बस भूरे रंग की ज़मीन देखी।
वह फुसफुसाया, “आख़िर में कहानी खुद राख में मिल गई।”दूर सड़क पर एक पुराना पन्ना उड़ा —
उस पर किसी ने अपने हाथ से लिखा था:“कभी-कभी कहानी खत्म नहीं होती… बस लेखक बदल जाता है।”रमाकांत ने पन्ने को समेटकर जेब में रखा।
“शायद अगले जन्म में, कोई और इसे पढ़ेगा…”हवा में हल्की-सी महक थी — स्याही और फूलों की।
और दूर, सूरज की किरणों के बीच, किसी ने जैसे धीरे
से कहा —“राख फिर भी याद रखेगी नाम…”