Adakaar - 31 in Hindi Crime Stories by Amir Ali Daredia books and stories PDF | अदाकारा - 31

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अदाकारा - 31

*अदाकारा 31*

"क्या हुआ था पार्किंग में शर्मिला?"
बृजेश ने तेज़ आवाज़ से पूछा।इस सवाल पर शर्मिला की साँसें भी तेज़ हो गईं।
"मुझे देखते ही वो दौड़ते हुए मेरे पास आया और कहने लगा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की।लेकिन मैंने उसे देखा तो अपने दोनों कान पकड़ कर मैने उससे माफ़ी माँगी। लेकिन फिरभी वो मुझ पर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा।और धमकी भरे लहजे में मुझसे कहा, 
"अपनी माफ़ी अपने पास रखो और अगर दोबारा यहाँ कदम रखा तो?*
*तो तुम क्या करोगे?*
अब मैंने भी उसे चुनौती दे दी।
तो फिर उसने और भी ज्यादा भड़कते हुवे कहा, 
*मैं तुम्हें खत्म कर दूँगा..."
यह कहकर शर्मिला ने अपना चेहरा दोनों हथेलियों में छिपा लिया और फिर से सुबक कर रोने लगी।
बृजेश का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। उसके मुँह से एक गंदी गाली निकल गई।
"उस बदमाश ने तुम्हें जान से मारने की धमकी दी थी?मैं उस साले की खाल खींच लूंगा।"
वह कुर्सी से उठा और शर्मिला का हाथ पकड़कर उसे भी उठाते हुए बोला।
"चलो,मुझे उस कमीने का घर दिखाओ।"
"शांत हो जाओ,बृजेश। शांत हो जाओ।"
बृजेश का गुस्सा शांत करने की कोशिश करते हुए शर्मिला बोली।
"मैंने उर्मिला से तीन साल पहले जो ब्रेकअप कर लिया था अभी मुश्किल से पैचअप किया है अब मैं अपने जीजा की वजह से उर्मी के साथ अपना रिश्ता दोबारा खराब नहीं करना चाहती।"
"लेकिन किसी को जान से मारने की धमकी देना एक गंभीर मामला है,शर्मी।इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।और कुछ नहीं तो एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।"
"मुझे इतना पता है कि जो गरजता है वो बरसता नहीं है।"
शर्मिला ने बेपरवाही से कहा।
लेकिन बृजेश चिंतित स्वर में बोला।
"और मेरा अनुभव है कि गुस्से में अंधा इंसान वो कर बैठता जो उसे नहीं करना चाहिए।हम उसे हल्के में नहीं ले सकते।"
कुछ देर सोचने के बाद शर्मिला बोली।
"तुम सही कह रहे हो,बृजेश। लेकिन मैं सावधान रहूँगी।"
"तुम कैसे सावधान रहोगे?"
बृजेश ने चिंतित स्वर में पूछा।
"मैं उसके सामने जाने से बचूँगी।उन्हें मेरा उनके घर जाना पसंद नहीं है तो में उनके घर से दूर रहूँगी।जब मुझे उर्मी से मिलना होगा मैं उसे बुला लूंगी बस।"
शर्मिला का यह विचार बृजेश को भी पसंद आया।
"ठीक है।ध्यान रहे तुम उससे दूर रहोगी ओके।"
शर्मिलाने कुर्सी से उठते हुए कहा।
"ओके।चलो अब चलते हैं।और बृजेश थैंक्यू सो मच।”
"अरे!तुम मुझे थैंक्यू क्यों कह रही हो?"
बृजेश ने कुर्सी से उठते हुए पूछा।
"जीजू की हरकतों से मेरा ह्रदय बहुत जल रही था।लेकिन तुम्हारे साथ और सधीयारे ने मुझे काफी तसल्ली दी।तुमसे बात करके मेरे मन को बहुत शांति मिली।अब ऐसा लग रहा है जैसे कुछ हुआ ही न हो।"
बृजेश ने शर्मिला का हाथ अपने हाथ में लिया और कहा।
"तुम कभी अपने आप को अकेला महसूस न करना।मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।"
"ओह!फिर से थैंक्यू बृजेश।"
यह कहकर शर्मिलाने अपनी कार का दरवाज़ा खोला। तो बृजेश बोला।
"मैं अपनी बाइक से तुम्हारे पीछे पीछे आता हु तुम्हें तुम्हारे घर तक छोड़ देता हूं।"
"ठीक है,तो हम घर जाकर साथ में ही खाना खाते है मैं फ़ायरबॉल से ऑर्डर कर देती हूं।"
और शर्मिला ने पिकनिक पॉइंट की तरफ़ गाड़ी दौड़ा दी।और बृजेश अपनी बाइक लेकर उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।
रात के ग्यारह बज रहे थे जब वे संभव रेजीडेंसी में शर्मिला के घर पहुँचे।
तभी फ़ायरबॉल से ऑर्डर किया हुआ फ्राइड राइस और सूप भी आ गया।शर्मिला और बृजेश ने धीरे-धीरे खाने को न्याय दीया।खाना खत्म करने के बाद शर्मिला ने कहा।
"बृजेश रेस्टोरेंट में तुमने कहा था कि तुम हमेशा मेरे साथ हो।इससे मुझे बहुत हिम्मत मिली है।लेकिन क्या तुम सच में ज़रूरत पड़ने पर मेरा साथ दोगे?"
बृजेश शर्मिला के सवाल से हैरान रह गया। शर्मिला की आँखों में झांकते हुए उसने कहा।
"क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है,शर्मिला?"
"मुझे तुम पर भरोसा है।लेकिन तुम।तुम तो सरकारी आदमी हो...."
"तो?"
शर्मिला को आगे बोलने से रोकते हुए उसने पूछा।शर्मिला मुस्कुराई और अपनी नाज़ुक कलाइयों को बृजेश के गले में लपेट लिया।
"तो...ओह?तुम एक पुलिस अधिकारी हो और मेरा मानना है कि अगर मैं कल तुमसे कुछ गैरकानूनी काम करवाना चाहूँ,तो क्या तुम करोगे?"
शर्मिला की यह बात सुनकर बृजेश चौंक गया।उसने एक ही झटके से शर्मिला की कलाईओ को अपनी गरदन से हटाते हुए कहा।
"क्या तुम्हें लगता कि मैं कोई गैरकानूनी काम करूँगा?और ऐसे काम में तुम्हारा में साथ भी दूँगा?"
बृजेश का इस तरह से भड़कना देखकर शर्मिला ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी।
"क्या तुम भी बृजेश?क्या तुम्हें चुटकुले भी समझ नहीं आते?"
कहते हुए उसने बृजेश की कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए।लेकिन गैरकानूनी काम का नाम सुनते ही बृजेश का मूड बिलकुल खराब हो चुका था उसने शर्मिला को रोकते हुए कहा।
"मैं जा रहा हूँ।फिर मिलेंगे।"
कहकर उसने एक झटके से दरवाज़ा खोला और बाहर निकल गया।

(क्या शर्मिला सचमुच चाहती थी कि बृजेश उस के लिए कुछ गैरकानूनी काम करे?या सच मे वो सिर्फ मज़ाक कर रही थी?अगला एपिसोड मे पढ़ें)