लघु उपन्यास यशस्विनी अध्याय 18: किताबों में रखे गुलाब और प्रेम का अंकुरण
किशोरावस्था के प्रेम में केवल और केवल भावनाएं होती हैं,जैसे हृदय किसी की बस एक मुस्कुराहट देख लेने पर सारे जहाँ की खुशियां मिल जाने की कल्पना कर लेता है।किताब के पन्ने में दबे हुए गुलाब के फूल इस तरह सहेज कर रखे जाते हैं जैसे इश्क में ताजमहल जैसी कोई बेजोड़ चीज मिल गई हो। प्रेम पत्र लिखने की कोशिश में कुछ एक प्रेमियों के द्वारा न जाने 200 पेज की कॉपियों के कितने पन्ने फाड़कर फेंक दिए जाते हैं।इनमें बस किसी में एक शब्द तो किसी में दो या तीन शब्द ही लिखे होते हैं और कभी-कभी तो सारी रात बीतने पर भी एक लाइन पूरी नहीं हो पाती है। यशस्विनी को अपने स्कूल के दिनों की याद आई जब स्कूल में हिंदी के शिक्षक सुबोध सर ने एक लड़की को प्रेम पत्र के साथ पकड़ा था। यह प्रेम पत्र वह जिसे देना चाहती थी, उसे हस्तगत नहीं हो पाया था। कॉपी जांचने समय सर की दृष्टि इस पर पड़ गई।बड़ी समझदारी के साथ उसका सार्वजनिक वाचन कर उस लड़की को शर्मिंदा करने के बदले उन्होंने बच्ची को अलग से बुलाकर बातचीत की। बाद में उस लड़की ने बताया कि सर ने उससे एक ही वाक्य कहा- बेटी, जब तुम किसी को इस तरह की बातें लिखो तो मन में बस एक ही बात का विचार कर लेना,अगर इसे एक पोस्टर बनाकर शहर की सार्वजनिक जगहों पर टांग दिया जाए तो इसे देखकर पढ़ने वालों की क्या प्रतिक्रिया होगी। अब तुम खुद सोचो जिस चीज को तुम सबके सामने कह नहीं सकती हो, तो क्या वह चीज तुम्हारे लिए वास्तव में हितकर होगी?
इस घटना का विवरण प्राप्त होने के बाद यशस्विनी के मन में कभी-कभी इस तरह के खयालात उठते भी थे तो अब हमेशा के लिए गायब हो गए।…... इन बातों को याद कर यशस्विनी मुस्कुरा उठी।….एक बार स्कूल में एक नए लड़के के दाखिला होने पर साथ पढ़ने वाली लड़कियों ने उसे छेड़ा,"अब शायद यह लड़का तुम्हें पसंद आ जाए.. । " इस पर 11वीं कक्षा की यशस्विनी ने जवाब दिया, "क्यों भला? मैं इसे लेकर ऐसा क्यों सोचूँ? यह तो पूरा किताबी कीड़ा है।"
इस पर प्रिया ने यशस्विनी को छेड़ते हुए कहा, "अरे नहीं यशी,तुम नहीं जानती। जब तुम किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए खड़ी होती हो तो यह पढ़ाकू महाराज एकटक तुम्हारी ओर देखते रहते हैं।"
"अरे, तो इसमें कौन सी नई बात है"
"नई बात इसलिए है यशस्विनी कि यह महाशय और लोगों के उत्तर देने के समय ऐसा नहीं करते।"
"धत, ऐसा कहती हुई यशस्विनी शरमा गई थी।"
यशस्विनी के मन में भी उस लड़के के प्रति कोमल भावनाएं जगने लगी। वह सोचने लगी, कितनी जल्दी यह लड़का मैथ्स के प्रॉब्लम सॉल्व कर लेता है…..लेकिन इस प्रेम कहानी का अंत बहुत जल्द हो गया जब वैलेंटाइन डे के दिन उस लड़के ने रिसेस में जाकर रिनी मैडम को एक सुर्ख़ गुलाब का फूल भेंट कर दिया।लेकिन आकर्षक व युवा रिनी मैडम का रिएक्शन आशा के विपरीत था, जब उसने कहा- थैंक यू बेटा, गॉड ब्लेस यू।
उस दिन दो दिल टूटे थे। यशस्विनी का उस लड़के की तथाकथित चीटिंग के प्रति और दूसरा उस लड़के का अपनी फेवरेट टीचर के प्रति। यशस्विनी वर्तमान काल में लौट आई।…... कल भी वैलेंटाइन डे है और श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में कल ही उसे प्रार्थना सभा में विशेष व्याख्यान देना है।
आज श्री कृष्ण प्रेमालय स्कूल में योग के कार्यक्रम का आयोजन है।आज वैलेंटाइन डे भी है। यशस्विनी सोचने लगी, पश्चिमी संस्कृति और विवरण के अनुसार यह संत वैलेंटाइन द्वारा प्रेम को बढ़ावा देने के लिए किए गए त्याग और बलिदान को लेकर मनाया जाता है। इस दिन युवा अपने प्रेम का प्रदर्शन करते हैं। इस दिन को अपनी तरह से मनाने वाले लोग भी अपनी जगह सही हैं।बस इस दिवस को लेकर कुछ लोगों द्वारा प्रेम का फूहड़ प्रदर्शन उसे खटकता है…. यह दिन क्या, किसी भी दिवस- दिन में कोई भौंडा प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से कभी नहीं होना चाहिए।…..अगर कुछ लोग ऐसा करते हैं तो वे वहां गलत हैं।मर्यादापूर्ण ढंग से रहने घूमने और फिरने की सबको स्वतंत्रता है।
वह सोचने लगी, हमारी संस्कृति में प्रेम की अवधारणा सांसारिक प्रेम से अलग विस्तृत है।यह एक व्यक्ति से शुरू होकर सृष्टि के कण-कण व ब्रह्मांड की परिधि तक जाता है।इसमें उदारता है, इसमें संकीर्णता नहीं है। इसमें सांसारिक और दैहिक प्रेम के बदले आत्मिक तत्व है। यहां प्रेम के लिए कोई एक दिन तय नहीं है बल्कि हर दिन…. हर पल प्रेममय है। स्वयं भगवान कृष्ण प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक हैं। यहां प्रेम अपने परिवार, समाज, राष्ट्र से लेकर बढ़ते-बढ़ते पूरी वसुधा और इसमें रहने वाले प्रत्येक चराचर प्राणी तक हो जाता है।
उसे याद आया, कॉलेज में उसकी सहेली सीमा ने वैलेंटाइन डे के दिन उसे छेड़ते हुए कहा था, "क्यों यशी, क्या तुम्हारे जीवन में किसी राज का आना नहीं हुआ है?"
यशस्विनी ने कहा, "नहीं सीमा, न मैं सिमरन हूं, न मेरे जीवन में ऐसा प्रसंग कभी आएगा कि कोई राज किसी चलती ट्रेन में दरवाजे पर खड़ा होकर अपना हाथ आगे बढ़ाएगा और मुझसे चढ़ने के लिए कहेगा और मैं दौड़कर पायदान से होते हुए बोगी में पहुंच जाऊंगी और इस राज के गले लग जाऊंगी…..।"
सीमा," यशस्विनी,तो क्या तुम्हारा क्रश उस विवेक पर नहीं है, जिसके साथ तुम लायब्रेरी में बैठकर नोट्स वगैरह बनाती रहती हो।"
" अरे नहीं बाबा क्रश जैसी कोई बात नहीं है।वह पढ़ाकू है और महत्वाकांक्षी भी। अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ना चाहता है इसलिए मैं भावनात्मक रूप से किसी के भी साथ इतना आगे नहीं बढ़ना चाहती हूं…. विवेक के साथ भी नहीं…. बस हम अच्छे दोस्त हैं।"
यशस्विनी को विवेक अच्छा तो लगता था, जैसे उसका धीर गंभीर होना, शांत स्वभाव का होना, तार्किक होना, उसके द्वारा महिलाओं का सम्मान करना, बढ़कर किसी भी व्यक्ति की मदद करना ….लेकिन वह आत्मकेंद्रित युवक था... उसके जीवन में पहला और अंतिम प्यार उसका कैरियर ही है, ऐसा उसका अनुमान था, इसलिए उसे पसंद करने के बाद भी वह दूसरे एंगल से नहीं सोचना चाहती थी…….
(क्रमशः)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय