घड़ीसाज़ का तोहफ़ा
गाँव के एक कोने में, पुरानी पथरीली सड़क पर एक छोटी-सी दुकान थी। बाहर से देखने पर दुकान साधारण लगती थी—मिट्टी की दीवारें, लकड़ी का दरवाज़ा और एक छोटा-सा साइनबोर्ड जिस पर लिखा था: “इलायस – घड़ीसाज़।”
लेकिन जैसे ही कोई अंदर कदम रखता, उसे लगता मानो वह किसी और ही दुनिया में आ गया हो।
दुकान की दीवारों पर सैकड़ों घड़ियाँ टंगी थीं। कोई लंबी और भारी, जो गहरी आवाज़ में घंटा बजाती थी। कोई छोटी और नाजुक, जिसमें सुनहरी सुइयाँ चमकती थीं। कहीं कोयल घड़ी थी, जो हर घंटे पर अपने छोटे-से दरवाज़े से निकलकर “कूकू” करती। और कहीं ऐसी पॉकेट वॉच थी, जिसे देखकर लगता था जैसे वह किसी राजा-महाराजा की हो।
यह सब घड़ियाँ एक साथ टिक-टिक करतीं, जैसे किसी अदृश्य ताल पर नृत्य कर रही हों।
इस जादुई दुकान का मालिक था—इलायस, गाँव का बुज़ुर्ग घड़ीसाज़। उसके सफ़ेद बाल और दाढ़ी समय की धूप-छाँव की गवाही देते थे। लेकिन उसकी आँखों में अब भी वही चमक थी, जो किसी जिज्ञासु बच्चे की होती है। गाँववाले कहते थे कि इलायस घड़ियों को सिर्फ़ ठीक नहीं करता, बल्कि उनमें नई जान डाल देता है।
छोटी लड़की और टूटी हुई घड़ी
एक ठंडी शाम, जब सूरज ढलकर आसमान को सुनहरी-लाल रंग से भर रहा था, दुकान का दरवाज़ा हौले से खुला। अंदर आई एक छोटी लड़की, शायद दस-ग्यारह साल की। उसके कपड़े साधारण थे, लेकिन आँखों में उम्मीद और चिंता दोनों झलक रहे थे।
उसके हाथों में एक पुरानी पॉकेट वॉच थी। घड़ी का शीशा टूटा हुआ था, और उसकी सुइयाँ आधी रात पर रुक गई थीं।
लड़की ने धीरे से कहा,
“ये मेरे दादाजी ने मुझे दी थी… लेकिन अब ये चलती ही नहीं।”
इलायस ने घड़ी उसके हाथों से ली। उसने उसे ऐसे पकड़ा जैसे कोई डॉक्टर किसी मरीज़ को पकड़ता है। कान से लगाकर सुना, फिर पीछे का ढक्कन खोला। अंदर के गियर जंग खा चुके थे, और स्प्रिंग लगभग खत्म हो चुकी थी।
वह गंभीर स्वर में बोला,
“यह घड़ी बहुत सालों का बोझ उठाकर आई है। लेकिन कभी-कभी समय को भी थोड़ी मदद की ज़रूरत होती है।”
लड़की ने चुपचाप सिर हिला दिया।
रात भर की मेहनत
इलायस ने अपनी छोटी-सी मेज़ पर दीपक जलाया और काम शुरू किया। उसके औज़ार बेहद बारीक थे—नन्हें स्क्रू-ड्राइवर, चिमटी, और महीन ब्रश। उसकी झुर्रियों भरी उँगलियाँ धीमी लेकिन निपुणता से चल रही थीं।
लड़की पास ही बैठकर देखती रही। दीवारों पर लटकी घड़ियों की टिक-टिक मानो उसके दादाजी की यादों को और ज़्यादा जगा रही थी।
वक़्त बीतता गया। बाहर रात उतर आई, हवा में ठंडक बढ़ गई। लेकिन इलायस की दुकान के भीतर दीपक की रोशनी और घड़ियों की टिक-टिक गर्माहट बनाए हुए थी।
कभी इलायस गियर को तेल से साफ़ करता, कभी स्प्रिंग को धीरे-धीरे खींचकर सीधा करता। उसकी आँखें बेहद ध्यान से हर हिस्से का निरीक्षण करतीं। लड़की को लग रहा था जैसे वह कोई घड़ीसाज़ नहीं, बल्कि कोई जादूगर है जो टूटी हुई चीज़ों में जान फूंक देता है।
आख़िरकार, घंटों बाद, इलायस ने घड़ी को बंद किया और धीरे से चाबी घुमाई।
पहले एक धीमी-सी टिक की आवाज़ आई… फिर दूसरी… और जल्द ही घड़ी ने नियमित और मज़बूत धड़कन शुरू कर दी।
एक सीख
लड़की की आँखें खुशी से चमक उठीं।
“धन्यवाद! आपने इसे फिर से ज़िंदा कर दिया।”
इलायस मुस्कुराया, लेकिन घड़ी तुरंत नहीं लौटाई। उसने उसे अपने कान से लगाया और कुछ क्षण ध्यान से सुना। फिर बोला—
“यह अब तुम्हारे लिए चल रही है। लेकिन याद रखना, बच्ची… घड़ी अपने लिए समय नहीं रखती। वह उस इंसान के लिए चलती है जो उसे पहनता है। तुम्हें भी अपने पलों का ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि वे किसी भी गियर या स्प्रिंग से ज़्यादा कीमती हैं।”
लड़की चुपचाप सुनती रही। उसे ऐसा लगा जैसे यह सिर्फ़ एक घड़ी नहीं, बल्कि उसके दादाजी का प्यार और यादें भी उसमें बसी हैं।
इलायस ने घड़ी उसके हाथ में रख दी। लड़की ने उसे सीने से लगा लिया, मानो उसने खोया हुआ खज़ाना वापस पा लिया हो।
समय की आवाज़
जैसे ही लड़की दुकान से बाहर निकली, एक अजीब-सी घटना घटी।
दीवारों पर टंगी सारी घड़ियाँ एक साथ बजने लगीं। कोयल घड़ी ने गीत गाया, दादाजी वाली घड़ियों ने गहरे स्वर में घंटा बजाया, और छोटी घड़ियों ने एक साथ टिक-टिक करना शुरू कर दिया।
वो क्षण ऐसा था मानो पूरा समय स्वयं नई शुरुआत का स्वागत कर रहा हो।
लड़की ने मुड़कर एक बार इलायस की ओर देखा। बुज़ुर्ग घड़ीसाज़ शांत मुस्कान लिए खड़ा था, जैसे वह जानता हो कि उसने न सिर्फ़ एक घड़ी को ठीक किया, बल्कि एक दिल को भी सुकून दिया है।
उपसंहार
उस रात के बाद, लड़की रोज़ अपनी पॉकेट वॉच साथ रखती। जब भी वह टिक-टिक सुनती, उसे अपने दादाजी की कहानियाँ और इलायस के शब्द याद आते—
“समय तुम्हारे पास सबसे बड़ा खज़ाना है। उसे सँभालना सीखो।”
इलायस की दुकान वैसी ही रही—घड़ियों से भरी, टिक-टिक करती, और हर आने वाले को यह एहसास दिलाती कि समय सिर्फ़ सुइयों की चाल नहीं, बल्कि हमारी ज़िंदगी की धड़कन है।
संदेश
“घड़ीसाज़ का तोहफ़ा” सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि यह हमें यह सिखाती है कि:
घड़ी केवल समय नहीं दिखाती, वह हमें हर पल की अहमियत याद दिलाती है। यादें, रिश्ते और पल किसी भी वस्तु से कहीं अधिक कीमती होते हैं। और सबसे बड़ी बात—टूटा हुआ समय भी फिर से चल सकता है, अगर उसे सही देखभाल और प्यार मिले।