Fear of recession and the power of thinking in Hindi Motivational Stories by three sisters books and stories PDF | मंदी का डर और सोच की ताकत

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मंदी का डर और सोच की ताकत

मंदी का डर और सोच की ताकत 

सड़क के किनारे एक साधारण-सा आदमी समोसे बेचा करता था। उसकी ज़िंदगी बहुत सादी थी। न वह अख़बार पढ़ता था, न रेडियो सुनता था और न ही टेलीविज़न देखता था। वजह यह थी कि वह पढ़ा-लिखा नहीं था, कान से थोड़ी कम सुनता था और आँखें भी कमजोर थीं। मगर इन सब कमियों के बावजूद उसके अंदर एक गजब की सकारात्मक सोच और मेहनत की आदत थी।

वह रोज़ सुबह उठकर पूरी लगन से अपने चूल्हे पर आलू उबालता, मसाले तैयार करता और गरमा-गरम समोसे तलकर ग्राहकों को खिलाता। उसके समोसे की खुशबू दूर तक फैल जाती और राहगीर बिना चखे नहीं रह पाते। धीरे-धीरे उसकी बिक्री बढ़ी और मुनाफ़ा भी। उसने महसूस किया कि लोग उसके समोसे पसंद कर रहे हैं, इसलिए उसने और ज्यादा आलू खरीदना शुरू किया। पुराने चूल्हे की जगह बड़ा और मज़बूत चूल्हा भी ले आया। ग्राहकों को बेहतर सेवा देने के लिए उसने एक साइनबोर्ड भी लगवा दिया जिस पर लिखा था – “गरमा-गरम समोसे यहाँ मिलते हैं।”

उसकी मेहनत और लगन रंग ला रही थी। व्यापार तेजी से बढ़ रहा था। पैसे आने लगे तो उसने सोचा कि बेटे को पढ़ा-लिखा बनाना चाहिए ताकि उसका भविष्य और उज्ज्वल हो। बेटे ने कॉलेज जाकर बी.ए. की डिग्री हासिल की और फिर वापस लौटकर पिता के साथ दुकान संभालने आ गया।

यहीं से कहानी में एक मोड़ आता है।

बेटे ने आते ही पिता से कहा –
“पिताजी, क्या आपको मालूम है कि हालात बहुत खराब होने वाले हैं? एक बड़ी मंदी आने वाली है।”

पिता चौंक गया –
“मंदी? बेटा, मुझे तो कुछ पता नहीं। लेकिन तुम बताओ।”

बेटा गंभीर आवाज़ में बोला –
“अंतर्राष्ट्रीय हालात बिगड़ चुके हैं। देश के भीतर भी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। व्यापार, उद्योग सब प्रभावित होंगे। लोगों की जेब में पैसे कम होंगे और वे खर्च करना बंद कर देंगे। ऐसे में आपके समोसे कौन खरीदेगा? हमें सावधान रहना चाहिए।”

पिता ने सोचा कि बेटा पढ़ा-लिखा है। वह अख़बार पढ़ता है, रेडियो सुनता है और टीवी पर बहसें देखता है। इसलिए उसकी बात पर भरोसा करना चाहिए।

अगले ही दिन से उसने आलू कम खरीदने शुरू कर दिए। बड़ा चूल्हा अब आधा खाली रहने लगा। उसने अपना साइनबोर्ड भी हटा दिया। जोश और उत्साह के साथ काम करने वाला वह आदमी अब डर और संदेह से भर गया था। उसकी मुस्कान गायब हो गई, समोसे तलने की ऊर्जा कम हो गई।

परिणाम यह हुआ कि दुकान पर आने वाले ग्राहकों की तादाद घटने लगी। लोग समझ नहीं पाए कि पहले जैसी महक क्यों नहीं है, पहले जैसा स्वाद क्यों नहीं रहा। जिन ग्राहकों को ताज़गी और आत्मीयता खींचकर लाती थी, वे अब धीरे-धीरे दूर होने लगे। बिक्री गिरने लगी और मुनाफ़ा ठहर गया।

कुछ दिनों बाद पिता ने बेटे से कहा –
“तुम बिल्कुल सही थे। मंदी सचमुच आ गई है। अब ग्राहक कम हो गए हैं और हमारी बिक्री भी गिर चुकी है। शुक्र है कि तुमने वक़्त रहते मुझे सावधान कर दिया।”

लेकिन असली सवाल यह है कि क्या मंदी सचमुच आई थी?

दरअसल, असली मंदी बाहर की दुनिया में नहीं बल्कि उस आदमी की सोच में आ गई थी। जब तक वह सकारात्मक सोच के साथ काम करता रहा, व्यापार लगातार बढ़ता रहा। उसे दुनिया की नकारात्मक खबरों की परवाह नहीं थी। वह बस ग्राहकों को अच्छा स्वाद और प्यार से सेवा देने में लगा रहा। पर जैसे ही उसने डर को दिल में जगह दी, उसका आत्मविश्वास टूट गया और उसी के साथ व्यापार भी।

इस कहानी से सीख विचारों की ताकत – हमारी सोच ही हमारी असली पूँजी है। अगर सोच सकारात्मक है तो हालात चाहे जैसे हों, हम आगे बढ़ सकते हैं। डर सबसे बड़ी मंदी है – मंदी या संकट बाहर से नहीं आते, वे अंदर से पैदा होते हैं। अगर हम डर गए तो सफलता रुक जाएगी। अनुभव बनाम जानकारी – बेटे के पास किताबों और अखबारों की जानकारी थी, मगर पिता के पास अनुभव था। केवल नकारात्मक खबरों पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। ग्राहक विश्वास से जुड़ते हैं – जब तक दुकानदार जोश और विश्वास के साथ काम करता रहा, ग्राहक जुड़े रहे। जैसे ही उसका आत्मविश्वास टूटा, ग्राहक भी दूर हो गए। मीडिया से सावधानी – खबरें हमेशा सच का पूरा रूप नहीं दिखातीं। कई बार वे डर फैलाने का काम करती हैं। समझदारी यह है कि खबरें सुनकर घबराना नहीं, बल्कि वास्तविक हालात को समझना चाहिए। 

निष्कर्ष 

यह कहानी हमें बताती है कि ज़िंदगी में असली मंदी बाहर नहीं आती, बल्कि हमारे मन में जन्म लेती है। अगर हम आत्मविश्वास से भरे रहें, मेहनत करते रहें और ग्राहकों को बेहतर सेवा दें, तो हालात चाहे कितने ही कठिन क्यों न हों, सफलता मिलती रहेगी।

जो समोसे वाला आदमी डर के कारण पीछे हट गया, वही अगर पहले की तरह मेहनत और भरोसे के साथ काम करता, तो शायद उसका व्यापार और आगे बढ़ता। इसलिए ज़रूरी है कि हम परिस्थितियों से ज्यादा अपनी सोच पर विश्वास करें ।

सफलता हमेशा सकारात्मक सोच और निरंतर मेहनत से ही आती है।