अदाकारा 15*
शर्मिला ने फ़ोन रख दिया।और कुछ देर तक वह अपना सिर दोनों हथेलियों में पकड़े एकदम शून्य सी बैठी रही।
उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं।अपनी सहयोदर से मिलने से उसे कौन ओर कैसे रोक सकता हे?उसने मन बना लिया।और मन ही मन ठान लिया कि वह जाएगी।ज़रूर जाएगी। कोई भी ताकत उसे अपनी सगी बहन से मिलने से नहीं रोक सकती।
शर्मिलाने घड़ी देखी तो दोपहर के दो बज रहे थे।उसे जोरो की भूख भी लगी थी इसलिए उसने सबसे पहले स्विगी से अपनी पसंदीदा डिश फिश करी मँगवाई।और जब तक फिश करी आ जाए में नहाकर तरोताज़ा हो जाती हु।वैसा मनोमन सोचकर वह बाथरूम चली गई।और एक-एक करके उसने अपने कपडे उतारे और शॉवर चालू कर दिया।
और नहाते-नहाते वह अतीत के भूतकाल में खो गई.......
......."शर्मिला। यह तुम्हारे जन्मदिन का तोहफ़ा है।"
उसकी माँ मुनमुन ने उसके हाथ में एक खूबसूरत गुलाबी फ्रॉक थमा दी।गुलाबी रंग और फ्रॉक का सुंदर डिज़ाइन देखकर ग्यारह साल की शर्मिला बहुत खुश हुई।और
"शुक्रिया मम्मी।"
यह कहकर उसने अपनी माँ के गाल पर चुंबन किया और फ्रॉक लेकर अपने कमरे में दौड़ती हुई गई।तभी वहा उर्मिला अपने जन्मदिन पर मिली नीली फ्रॉक पहने शीशे के सामने खड़ी अपना सिर सहला रही थी।तभी शर्मिला बेडरूम में आई और उसकी नज़र उर्मिला की नीली फ्रॉक पर पड़ी।तब उसे उर्मिला की फ्रॉक उसकी गुलाबी फ्रॉक से ज़्यादा सुंदर लगी।
दोनों जुड़वाँ बहनें थीं लेकिन दोनों बहनों में ज़मीन-आसमान का अंतर था।उर्मिला जितनी शांत और सरल स्वभाव की थी शर्मिला उतनी ही ज़िद्दी और हठी थी।उसे हमेशा उर्मिला को मिलने वाली चीज़ें खुद को मिलने वाली चीज़ों से ज़्यादा पसंद आती थीं।और वह उसे किसी भी तरह से उर्मिला से छीन ही लेती थी।
उर्मिला की नीली फ्रॉक देखते ही वो उस फ्रॉक से आकर्षित हुई।उसने तुरंत वह फ्रॉक को हथियाने का मन बना लिया।
शर्मिला दोनों हाथ कमर पर रखते हुए उर्मिला के सामने खड़ी हो गई।और आँखें नचाते हुए बोली।
"ओह.हो.ए महारानी।आपने मेरी फ्रॉक क्यों पहनी?चलो इसे उतारो।और अपनी यह फ्रॉक पहन लो।"
यह कहते हुए उसने अपनी गुलाबी फ्रॉक उर्मिला की ओर फेंक दी।
"मुझे।यह मम्मीने मुझे दी हे शर्मी।"
उर्मिला ने हिचकिचाते हुए कहा।
"हाँ!तो?मम्मीने दी हे तो क्या हुआ?मुझे यह पसंद है इसलिए मैं ही इसे पहनूँगी समझी? चलो अब इसे जल्दी से उतारो।"..............
और वहाँ मानो कोई चिड़िया चहचहा रही हो, इस तरह शर्मिला की डोर बैल बज उठी
"ची ची ची”
दरवाज़े की घंटी चिड़िया जैसी आवाज़ के साथ बजने से वह भूतकाल से तुरंत वर्तमान में वापस आ गई।उसने तेजी से से शॉवर बंद कर दिया।और अपने गीले बदन पर गाउन पहनकर उसने दरवाज़ा खोला। तो स्विगी वाला अपना पार्सल लिए डोर पर खड़ा था। शर्मिलाने मुस्कुराते हुए
"शुक्रिया"
कहा और डिलीवरी बॉय के हाथ से पार्सल लेकर दरवाज़ा फिर से बंद कर दिया।फिर उसने पहले तौलिए से अपने कोमल बदन को पोंछा।और फिर से उसने अपना गाउन पहन लिया।और फिर मछीकरी को इंसाफ देने बैठ गई।उसने फ्रिज से स्प्राइट की एक छोटी बोतल भी निकाल ली।क्योंकि वह हमेशा मसालेदार स्पाइसी मछीकरी ही मँगवाती थी। फिर वह स्प्राइट के साथ मज़ा ले लेकर खाती जाती ओर पीती जाती ओर सिसकारियां करती जाती।
पेट भर खाने के बाद उसकी आँखे नींद के बोझ से भारी होने लग।रात में बिस्तर पर बृजेश के साथ की गई प्रणय क्रिडा की थकान।ओर खाना खाने के बाद खाने का नशा उसकी आँखों पर गहरा असर करने लगा था।उसकी पलकें भारी होने लगीं थी।इसलिए उसने अपने शरीर को बिस्तर पर फैला दिया। बिस्तर पर गिरते ही थोड़ी ही देर में वह गहरी नींद में डूब गई……
"शर्मी।ओ शर्मी।"
"क्या।क्या बात है?"
"इतनी दूर क्यों खड़ी हो?थोड़ा पास आओ।"
"उफ़।मुझे तुमसे दूर ही रहना अच्छा लगता है।"
"तुम ऐसा क्यों कह रही हो रानी?"
"मुझे।मुझे तुमसे डर लगता हे बिरजू।"
"अरे!मैं कोई शेर नहीं हूँ।जो तुम्हें खा जाऊँगा।"
"तू मुझे खा जाए उसका जरा भी डर नहीं हे।"
"तो फिर तुम किस बात से डरती हो?"
"तुम्हारी वर्दी से।तुम तो ठहरे आखिर पुलिस अफसर ना..........."
मेतो दीवानी हो गई।
प्यार मे तेरे खो गई।
शर्मिला का फ़ोन बजते ही शर्मिला की नींद उड़ गई।और बृजेश उसके सपनों से फुर्र हो गया।
(शर्मिला वर्दी से क्यों डरती थी?क्या वो उर्मिला से मिल पाएगी?पढ़ते रहिए)