पिछली कहानी में हमने पढा़ कि लावन्या, लक्षिता और अनिशा अपनी क्लास में जाती है तभी उनकी प्रोफेसर आकर बताती हैं कि सभी बच्चों को इस ट्रिप पर जाना जरुरी हैं।
अब आगे..........
लावन्या, लक्षिता और अनिशा भी अपना नाम उस ट्रिप पर जाने के लिए लिखवा देती हैं। प्रोफेसर सबको बताती है कि उनको परसो ही निकलना है ट्रिप पर। फिर प्रोफेसर क्लास से चली जाती हैं। लावन्या और लक्षिता अभी भी कही खोई-खोई सी लग रही थीं। अनिशा उनसे एक बार फिर इसका कारण पूछती है तो भी वे कुछ नहीं बोलती हैं। यह देख अनिशा को उन दोनों पर शक होता हैं। अनिशा उन दोनों की ऐसी हालत देखकर कुछ सोचती हैं और फिर अपनी जगह से उठकर क्लास के बाहर जानी वाली होती हैं। कि तभी वो अपनी क्लास की एक लड़की से टकरा जाती हैं।
वो लड़की अनिशा से सॉरी बोलते हुए जाने लगती है कि तभी अनिशा बोलती हैं- प्रीती, सुन मुझे कुछ पूछना था तुझसे।
(प्रीती क्लास की सबसे होनहार लड़की है स्वभाव से सरल व चंचल)
प्रीती- हाँ बोलो अनिशा क्या पूछना था तुम्हें मुझसे??अनिशा प्रीती को एक कोने में ले जाती हैं।
अनिशा- प्रीती, तुम सब पिछली बार जब रिहासपुर ट्रिप पर गये थे तब तुम्हारे साथ कोई हादसा हुआ था क्या???
प्रीती कुछ सोचती है फिर बोलती हैं- नहीं, हमारे साथ ऐसा कोई हादसा नहीं हुआ था पर......
तभी अनिशा बोलती हैं- पर क्या????
प्रीती- पर जब हम ट्रिप से लौट रहे थे तभी हमारी बस का टायर पंक्चर हो गया जिसकी वजह से हमारी बस का बेलैंस बिगड़ जाता है और बस जाकर एक पेड़ से टकरा गई और बंद हो गई। हम लोग वहां से शाम के समय निकले थे पर बस के ठीक होने का इंतजार करते करते आधी रात हो गई थी। और हमारे पास खाने को भी कुछ नहीं था तो हम किसी ढाबे की तलाश में चले गए। काफी देर ढूंढने का बाद हमें एक पुराना सा ढाबा दिखा जहां पर एक वृद्ध पति-पत्नी थे। हम उस ढाबे पर गए और कुछ खाने का ऑर्डर दिया और उन्होंने हम सबके लिए खाना परोसा। हम सब लोग खाना खा रहे थे कि तभी लावन्या और लक्षिता बोली कि वे दोनों वॉशरूम जाकर आती है और वे दोनों ढाबे के पीछे चली गई। हम सबने खाना खाया तब तक सुबह होने में कुछ ही समय बचा था। हम लोग उन दोनों का इंतजार करने लगे तभी बस ड्राइवर ने आकर बताया कि बस ठीक हो गई है। हम सब जाकर बस में बैठे पर लावन्या और लक्षिता अभी तक नहीं आई थी। तो हमने सर को बोला तो सर और 2-3 स्टाफ उनको ढूंढने के लिए जाने लगे की तभी वे दोनों जंगल की तरफ से भागती हुई आई और बस में बैठ गई। उन दोनों के हाथों पैरों व चेहरे पर से खून बह रहा था और वे दोनों काफी डरी हुई सी लग रही थी। और बस यहीं कहे जा रही थी कि यहाँ से जल्दी चलो। वे दोनों काफी ज्यादा ड़री हुई थी। हमने उन दोनों से कई बार पूछा कि क्या हुआ हैं उन दोनों के साथ पर वे दोनों कुछ नहीं बोली। हमने उनके शरीर पर लगे खून को साफ किया और दवाई लगाकर पट्टी की। वे दोनों पूरे रास्ते छुप ही थी और बार-बार एक कागज को देखे जा रही थी।
अनिशा- तुम लोगों ने देखा नहीं की वो कागज किस चीज का था या उस पर क्या लिखा हुआ था?
प्रीती- नहीं।
ये कहकर प्रीती वहाँ से चली जाती हैं पर अनिशा अभी भी वहीं खडी़ कुछ सोच रही थी।।।।।।