Ichchhadhari Sherni ka Badla - 5,6 in Hindi Horror Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | इच्छाधारी शेरनी का बदला - भाग 5,6

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इच्छाधारी शेरनी का बदला - भाग 5,6

ठीक है 🙏
अब मैं आपको “इच्छाधारी शेरनी का बदला” का भाग 5 और भाग 6 अलग-अलग और विस्तार से (काफी रोमांच और डरावनी झलकियों के साथ) लिखकर देता हूँ।


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🐅 इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 5

जंगल की वह भयावह रात गुज़र चुकी थी। सात शिकारी अब मौत के घाट उतर चुके थे।
बाकी पाँच शिकारी अपने गाँव लौट आए। उनके दिलों में खौफ बैठ गया था।

सरदार ने उन्हें पुराने कुएँ के पास बुलाया और बोला –
“डरो मत! अभी सब खत्म नहीं हुआ है। हम चाहें तो शहर छोड़कर भाग सकते हैं, पर याद रखो—अगर शेरनी इच्छाधारी है, तो वह दुनिया के किसी भी कोने तक पहुँच जाएगी। हमें उसका सामना करना ही होगा।”

पर चारों शिकारी डर से काँप रहे थे। उनमें से एक, जिसका नाम हरनाम था, बोला –
“सरदार, अब बस करो। मैंने अपनी आँखों से देखा है, वो किसी औरत के रूप में हमारे सामने आई थी। उसकी आँखों में खून की आग थी। हमें यहाँ से भाग जाना चाहिए।”

दूसरे ने भी हामी भरी –
“हाँ भाई, अब ये मौत से खेलना मूर्खता होगी।”

सरदार ने गुस्से में दाँत पीसे –
“कायरों! तुम सब शेर कहे जाने लायक नहीं। याद रखो, अगर हम भागे तो वो एक-एक कर हमें कहीं भी मार डालेगी। बेहतर है उसका सामना यहीं जंगल में किया जाए।”


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उधर शेरनी…
वह अब इंसानी रूप धारण कर गाँव में घूम रही थी। उसने अपनी पहचान बदल ली थी। सिर पर घूँघट, हाथ में कलश और मासूम आँखों वाली युवती।
गाँव वाले उसे पहचान न सके।

वह चुपचाप पाँचों शिकारियों की टोह लेने लगी।


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अगली रात।
हरनाम शराब के नशे में डगमगाता हुआ अपने घर से बाहर निकला। उसने सोचा, शायद नशे में उसका डर कम हो जाएगा।
परंतु रास्ते में उसे वही युवती मिली।

युवती ने मुस्कुराकर कहा –
“इतनी रात गए कहाँ जा रहे हो?”

हरनाम ने शराब भरी आँखों से उसे देखा –
“तुम कौन हो?”

युवती धीरे से बोली –
“मैं वही हूँ… जिसकी आँखों में तुम्हारी मौत लिखी है।”

अगले ही पल युवती की आँखें लाल हो गईं। उसका चेहरा विकराल रूप में बदल गया। शेरनी ने छलांग लगाई और अपने पंजों से हरनाम का गला फाड़ दिया।

उसकी चीख रात की खामोशी को चीर गई।
अब आठ शिकारी मारे जा चुके थे।


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बाकी चार शिकारी जब यह खबर सुने तो उनकी हालत और भी खराब हो गई।
एक ने कहा –
“अब तो सरदार भी हमें नहीं बचा पाएगा। वह शेरनी हमारी आत्माओं तक का पीछा करेगी।”

सरदार ने दहाड़ लगाई –
“बस! अब जो भागेगा, वही सबसे पहले मरेगा। अगर जीना चाहते हो तो मेरे साथ रहो। आज रात हम उसके लिए जाल बिछाएँगे। चाहे कुछ भी हो, अब या तो हम जिंदा रहेंगे… या वो।”

शेरनी पास ही पेड़ पर बैठी उनकी बातें सुन रही थी। उसकी आँखें अंगारों की तरह चमक रही थीं।
वह धीमे स्वर में फुसफुसाई –
“अब तुम्हारे खून से ही मेरा प्रतिशोध पूरा होगा…”

भाग 5 समाप्त।


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🐅 इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 6

रात का सन्नाटा। जंगल में घुप्प अंधेरा, केवल दूर कहीं उल्लू की आवाज़।
चार शिकारी सरदार के साथ निकल पड़े। उन्होंने मशालें, बंदूकें और लोहे के फंदे तैयार किए।

सरदार ने सबको आदेश दिया –
“याद रखो, ये आखिरी दाँव है। अगर आज रात हम उसे पकड़ पाए, तो सब ठीक होगा। नहीं तो कल सुबह तक हमारी लाशें ही मिलेंगी।”

चारों शिकारी सहम गए।


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उन्होंने जंगल के बीच एक बड़ा गड्ढा खोदा और उस पर पत्ते व मिट्टी डालकर जाल बनाया।
सरदार बोला –
“वो चाहे कितनी भी चालाक क्यों न हो, इस बार मेरे जाल से नहीं बचेगी।”


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लेकिन शेरनी दूर से सब देख रही थी। उसकी आँखों में चालाकी थी।
वह धीरे-धीरे एक सुंदर युवती बनकर सामने आई।

शिकारियों ने चौंककर देखा –
“वो… वो औरत है!”

सरदार गरजा –
“मत भूलो, यही उसकी असली चाल है। संभलकर रहो!”

युवती ने मासूम आवाज़ में कहा –
“तुम लोग मुझसे क्यों डरते हो? मैं तो बस एक भटकती औरत हूँ।”

एक शिकारी उसकी बातों में आकर आगे बढ़ा। तभी शेरनी ने अचानक अपना रूप बदला और पंजों से उसका शरीर चीर डाला।

तीनों शिकारी दहशत से काँप उठे।
“भागो… ये मौत है!”


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लेकिन भागना इतना आसान कहाँ था।
शेरनी बिजली-सी तेज़ी से दूसरे शिकारी पर टूटी और उसकी गर्दन तोड़ दी।
अब केवल दो शिकारी और सरदार बचे थे।

सरदार ने बंदूक तानकर गोली चलाई। गोली शेरनी के कंधे को छूकर निकली। उसकी दहाड़ से पूरा जंगल काँप उठा।

शेरनी ने सरदार की ओर देखा और बोली –
“तुम्हें बचने का मौका दूँगी नहीं। तुम सबने मेरे साथी को गोलियों से छलनी किया था। अब तुम्हारे खून से धरती लाल होगी।”

उसने छलांग लगाई और तीसरे शिकारी को जमीन पर पटक दिया। उसके पंजों ने उसकी छाती भेद दी।

अब सिर्फ़ सरदार और एक शिकारी बाकी थे।

सरदार पसीने से तर-बतर था।
“नहीं… ये नहीं हो सकता… हम शिकारी हैं… मौत से खेलते हैं। पर ये… ये इंसान नहीं, भूत है।”

शेरनी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। उसकी आँखों में रक्तिम ज्वाला थी।
“भूत नहीं… न्याय हूँ मैं। तुम्हारे पाप का परिणाम।”

चाँद की रोशनी में उसकी छाया लंबी होकर जमीन पर फैली और उसकी दहाड़ से जंगल थर्रा उठा।

भाग 6 समाप्त।


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