Ichchhadhari Sherni ka Badla - 7 in Hindi Horror Stories by Vijay Sharma Erry books and stories PDF | इच्छाधारी शेरनी का बदला - भाग 7

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इच्छाधारी शेरनी का बदला - भाग 7

इच्छाधारी शेरनी का बदला – भाग 7

✍️ लेखक – विजय शर्मा एरी


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गाँव की सीमा के पास अँधेरा उतर चुका था। पेड़ों की छायाएँ जमीन पर लम्बी होती जा रही थीं और एक अजीब-सी खामोशी पूरे वातावरण में फैली थी। चारों ओर ऐसा लगता था मानो जंगल खुद साँस रोककर किसी घटना की प्रतीक्षा कर रहा हो।

शिकारी दल के अब सिर्फ नौ सदस्य बचे थे। पहले छह शिकारी शेरनी के प्रकोप का शिकार हो चुके थे। अब सबके चेहरों पर भय की गहरी रेखाएँ थीं। वे बार-बार एक-दूसरे की ओर देखते और फुसफुसाकर कहते—

पहला शिकारी (काँपती आवाज़ में):
“यकीन मानो, ये शेरनी इंसान नहीं है… ये तो कोई मायावी शक्ति है। हमारे सारे हथियार बेकार हो रहे हैं।”

दूसरा शिकारी:
“डरने से क्या होगा? अगर हम ऐसे ही काँपते रहे तो अगले शिकार हम ही होंगे। हमें योजना बनानी होगी।”

तीसरा शिकारी (गुस्से में):
“काफी हो गया ये डर का खेल। आज रात हम उसे फँसाएँगे, चाहे इसके लिए अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े।”


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शेरनी की योजना

उधर शेरनी, जो इच्छाधारी थी, जान चुकी थी कि ये लोग अब खुलकर उसका सामना करने की योजना बना रहे हैं। उसने अपनी शक्तियों का उपयोग कर जंगल के गहरे हिस्से में एक भ्रमजाल रच दिया।

वह कभी हिरणी का रूप धर लेती, कभी युवती का। उसकी आँखों में आग थी—
“तुमने मेरे साथी शेर का खून किया है। अब मैं तुम्हें एक-एक करके उसी पीड़ा से गुज़ारूँगी।”


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रात का पहरा

रात के बारह बजे शिकारी दल ने आग जलाकर पहरा लगाना शुरू किया। पर हवा इतनी ठंडी थी कि उनके हाथ काँपने लगे। अचानक दूर से बाँसुरी की धुन सुनाई दी—एक उदास, भयानक धुन।

चौथा शिकारी (सिहरकर):
“ये आवाज़… कौन बजा रहा है?”

वे चारों दिशाओं में देखने लगे। तभी एक पेड़ के पीछे से सफेद वस्त्रों में लिपटी एक युवती दिखाई दी। उसके बाल खुले थे, चेहरा धुँधलके में चमक रहा था।

पाँचवाँ शिकारी:
“कौन हो तुम?”

युवती ने कोई उत्तर नहीं दिया, बस धीरे-धीरे पास आने लगी। अचानक उसकी आँखें लाल हो उठीं और देखते ही देखते उसका शरीर बदलकर एक विशाल शेरनी का रूप धारण कर गया।


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सातवें शिकार की कहानी

शिकारी घबरा गए। एक ने बंदूक उठाकर गोली चलाई, पर गोली शेरनी के शरीर में समाने से पहले ही हवा में घुल गई।

शेरनी (गरजते हुए):
“अब तुम्हारी बारी है…”

वह झपटकर सातवें शिकारी पर टूट पड़ी। उसकी दहाड़ से जंगल काँप उठा। शिकारी बचने की कोशिश करता रहा, पर कुछ ही पलों में उसका अंत हो गया।

बाकी शिकारी चीखते हुए भाग खड़े हुए, लेकिन शेरनी का इरादा साफ था—
“जितना भाग सकते हो भागो… पर मेरे क्रोध से कोई बच नहीं सकता।”


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भय का साया

अब आठ शिकारी जीवित थे, पर उनके दिलों में मौत का साया गहरा चुका था। हर तरफ से उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे शेरनी की आँखें उन्हें देख रही हों।

छठा शिकारी:
“अगर हमें बचना है तो गाँव लौटना होगा। इस जंगल में रहना मौत को न्योता देना है।”

सातवाँ शिकारी:
“नहीं! अगर गाँव गए तो लोग हमें कायर समझेंगे। हमें शेरनी को यहीं मारना होगा।”

पर उनके भीतर हिम्मत से ज्यादा डर था। वे जानते थे—
हर रात एक नया शिकारी मौत का शिकार बनेगा।


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👉 अगले भाग में:
शेरनी अपने अगले शिकार को फँसाने के लिए गाँव के मेले का सहारा लेती है। अब इंसानी भीड़ में उसका बदला कैसे जारी रहेगा?


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