डायरी -
10 अगस्त 2025
* सबसे हिल मिल चालिए *
कभी किसी प्रसंग में किसी ने मुझसे कहा था जीवन में कुछ बातें,कुछ स्थितियां ऐसी होती है जिन पर किसी का वश नहीं होता हैं।उन्हें होना होता है,तो होती ही हैं,जीवन में जो घटित होना होता है,वह घटित होता ही है,आप कुछ कर नहीं सकते,असहाय रहते हैं।
उस समय मुझे यह भाग्यवादी विचार लगा था। फिर सामना हुआ गोस्वामी तुलसीदास के इस दोहे से -
तुलसी जसि भवतब्यता, तैसी मिलइ सहाइ।
आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ।।
रामचरित मानस,बाल कांड- 159(ख)
गोस्वामी जी कहते हैं कि जैसी होनहार होती है, वैसी ही सहायता मिल जाती है। या तो वह आप ही उसके पास आती है या उसको वहाँ ले जाती है
मेरे विचार से यहां महात्मा तुलसीदास जी का आशय यह है कि जो होनहार होता है,वह होता है जब वह होता है तब उसी के अनुरूप परिस्थितियां बन जाती हैं,मिल जाती हैं।
ऐसा कैसे हो जाता है?
एक दिन हमारे यहां कुछ मित्र बैठे थे,ऐसे ही बिंदुओं पर ,कुछ अन्य विषयों पर बे सिर पैर की गप्पें चल रही थीं।एक मित्र, ऐसा लग रहा था कि यादों में खोए हैं।
अकस्मात बोले "मैं स्नातक के बाद स्नातकोत्तर और विधि स्नातक दोनों में एक साथ पढ़ना चाहता था।उस समय ऐसा नियम था भी।दो प्रवेश फार्म भरे,मुझे दोनों में प्रवेश मिल गया।बड़ी प्रसन्नता हुई।अब जब फीस जमा कराने की बारी आई तो फीस क्लर्क ने कहा कि आप को दोनों में प्रवेश नहीं मिल सकता , आप किसी एक में ही फीस जमा करा सकते हैं।मैने कहा, कल तो एक विद्यार्थी ने दोनों में फीस जमा की है।उन्होंने कहा फिर आप प्रिंसीपल साहब से मिल लीजिए।मैं प्रिंसीपल साहब के पास गया,अपनी बात रखी।उन्होंने कहा, देखिए आप अच्छे विद्यार्थी हैं। मेरी सलाह है, आप एम ए में प्रवेश लीजिए; अच्छे अंकों से पास हो जाएंगे फिर तुरंत प्रोफेसर (सहायक प्राध्यापक )बन जाएंगे। दोनों में प्रवेश लेंगे तो ध्यान बंटेगा, इससे दोनों में औसत अंक आएंगे, जो किसी काम के नहीं।मैंने कुछ कहना चाहा, तो वे बोले, मेरा अनुभव आपसे अधिक है,मैं सही सलाह दे रहा हूँ।अस्तु मुझे एम ए की फीस जमा करानी पड़ी। चाहते हुए भी दोनों में प्रवेश नहीं ले सका।"
मुझे उनसे सहानुभूति हो आयी ।मैने कहा कोई बात नहीं, जो होता है,अच्छा ही होता है।वे बड़े विश्वास पूर्वक बोले- सो तो है।
दूसरे मित्र जो काफी देर से मंद स्मिति में सब सुन रहे थे,बोले मेरे साथ भाई साहब से बिल्कुल उलट हुआ।
सो कैसे?
बोले, बहुत कम लोगों के साथ ऐसा होता है कि उन्हें स्वयं की शादी स्वयं तय करने का अवसर मिले,पर मुझे मिला था ;फिर भी मेरी शादी वहां हो गयी जहां मैं नहीं चाहता था।
ऐसा कैसे?क्या किसी ने आपकी संप्रभुता में हस्तक्षेप कर दिया था?
नहीं नहीं।शादी मैंने ही तय की थी।
फिर ऐसा कैसे हो गया ?
(हँसते हुए)बस,"गई गिरा मति फेर।"
मैं जोर से हँसा।...."सुनो सभी मित्रो, घर की बात घर में ही रहनी चाहिए।अन्यथा आज घर पहुँचते ही भैया जी की खैर नहीं।"
एक जोरदार ठहाका।
वस्तुत: महापुरुषों ने अपने जो गहरे अनुभव हमें सीख देने के लिए किसी कथा में पिरोए हैं उनसे हम में से ही बहुतों को,अपने जीवन में दो चार होना पड़ा है।
देखते हैं कि बाबा तुलसी जैसा ही एक कथन कुछ कुछ कबीर साहेब का भी है। होनहार क्यों होता है? कबीर कारण भी बताते हैं और निवारण भी -
"कछु करनी कछु करम गति, कछू पुरबला लेख।
देखो भाग कबीर का, लेख से भया अलेख॥"
संत कबीर कहते हैं कि जीवन में जो कुछ भी होता है, उसके पीछे कुछ कारण होते हैं।पहला कारण हैं हमारे कर्म(करनी)। वर्तमान में हम जो भी अच्छे,बुरे कर्म कर रहे हैं उनका फल हमें यथासमय (तत्क्षण)मिल रहा होता है।दूसरा है करम गति ।मतलब यह कि कुछ कर्मों का फल तुरंत मिल जाता है(करनी), जबकि कुछ का थोड़ा बाद में;यह कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है;यही करम गति है।तीसरा कारण होता है पुरबला लेख।इसे ही भाग्य या प्रारब्ध कहा जाता है।आशय यह कि कुछ बातें भाग्य से होती हैं,अर्थात हमारे पिछले जन्मों के कर्मों का फल होती हैं।
सार यह कि जीवन में जो कुछ भी होता है, सब एक प्रक्रिया के तहत होता है।इसलिए जीवन में हमें अपना कर्म आचरण और व्यवहार सोच समझकर ही करना चाहिए, जो प्रारब्ध है, उसे स्वीकार करना चाहिए इसके लिए हममें धैर्य और सहनशीलता आवश्यक है।
अगली पंक्ति में कबीर जो कहते हैं वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। "देखो भाग कबीर का, लेख से भया अलेख" अर्थात कबीर के भाग्य को देखो, जो भाग्य में लिखा था, वह भाग्य से परे हो गया।
यहाँ "लेख" का अर्थ है प्रारब्ध या भाग्य, और "अलेख" का अर्थ है जो लिखा था वह हट गया ।स्पष्ट है कि कबीर की तरह ही कोई भी अपने सत्कर्मों और ज्ञान से अपने भाग्य को भी बदल सकता है।
महापुरुषों के ऐसे विचार प्रथम दृष्टया भले ही भाग्यवादी विचार लगें पर यह एक ओर मानव मन को सांत्वना देते हैं ,नैराश्य से उबारते हैं उससे आगे,कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास तो स्पष्ट रूप में कहते हैं -
"तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।
सबसे हिल मिलि चालिए, नदी नाव संजोग॥"
यही बात अब्दुल रहीम खानखाना अपने ढंग से कुछ इस प्रकार कहते हैं -
"रहिमन या संसार में, सब सो मिलिया धाइ।
ना जानैं केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ।।"
मानव जीवन दुर्लभ है।बहुत छोटा है।अस्तु शुभ ही करणीय है,अशुभ त्याज्य।
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Dr. R. B. Bhandarkar, D. Litt.Indian Broadcasting serviceDeputy Director General, Doordarshan (Rtd.)Sr. Journalist