ललित का मन अंदर ही अंदर सुलग रहा था। उसके विचार बेकाबू होकर अजीब-अजीब शक्लें लेने लगे।
"सब कुछ बर्बाद कर दूंगा। किसी को भी नहीं छोड़ूंगा। जहाँ भी जाऊँगा, वहाँ बस मेरा ही राज होगा। किसी की बात नहीं सुनूंगा। हर किसी की चुगली करूंगा। क्योंकि बिना चुगली किए मुझे चैन नहीं मिलता। जब तक यहाँ की बात वहाँ तक नहीं पहुँचती, मेरा कलेजा मुँह को आता है। मेरे दिल को राहत नहीं मिलती। मैं बावन बावन हो जाता हूँ... बावन बावन हो जाता हूँ मैं।"
ये ख्याल बार-बार ललित के मन में घूमने लगे। वह अपनी कुर्सी पर बेचैनी से बैठा हुआ था, लेकिन उसका गुस्सा और बड़बड़ाहट थमने का नाम नहीं ले रहे थे। जैसे ही उसे ये ख्याल आया, उसकी नजर अपने ऑफिस के बाहर पड़ी। हमाल अपनी धुन में बैग्स उठाकर गाड़ी में लाद रहे थे, लेकिन ललित की आंखें कहीं और थीं।
"हां, वो शख्स... वो किस चोरी की बात कर रहा था? मेरे होते हुए किसकी इतनी हिम्मत हो गई कि चोरी करे? मैं देखूंगा, चुगली करूंगा और उसे नौकरी से बाहर फेंकवा दूंगा। ठिकरी में मैंने एक से बढ़कर एक चोरियों को पकड़ा है। ये लोग मुझे बेवकूफ समझते हैं क्या?"
उसने गुस्से में झटके से अपना मोबाइल उठाया और कैबिन का दरवाजा धड़ाम से बंद कर बाहर निकल आया। उसकी चाल में तेजी थी, लेकिन मन में ज्वालामुखी सुलग रहा था। चारों तरफ नजर दौड़ाने पर उसने देखा कि हमाल अभी भी काम में जुटे हुए थे। किसी की भी चालाकी ललित की निगाहों से बच नहीं सकती थी।
तभी उसके दिमाग में शरद का ख्याल कौंधा।
"वो कामचोर शरद... मैंने उसे कब का सैंपल लेने भेजा था। अब तक लौटा नहीं। कहीं वही तो कुछ गड़बड़ नहीं कर रहा? मुझे ही देखना होगा कि वो अब तक चैंबर के अंदर क्या कर रहा है।"
ललित की सोच और गुस्सा एक साथ उबाल मार रहे थे। वह सीढ़ियां चढ़ने लगा। हर कदम के साथ उसकी झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी।
उसने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा, "मुझे सब पर नजर रखनी होगी। इन लोगों में से कोई भी ईमानदार नहीं है। मैं ही हूँ जो इस कोल्ड स्टोरेज को संभाल रहा हूँ। ठिकरी में मैंने हर एक गड़बड़ी को ठीक किया था। यहां भी ऐसा ही करूंगा।"
सीढ़ियां चढ़ते हुए उसने अपनी तीखी नाक को गुस्से में और भी सिकोड़ लिया। उसके पैर अब "C-4 चैंबर" की ओर बढ़ रहे थे।
"अगर शरद ने कोई गड़बड़ की है तो इस बार मैं उसे नहीं छोड़ूंगा।" उसने ठान लिया।
जैसे ही वह चैंबर के दरवाजे के पास पहुंचा, उसे अंदर से हलकी-हलकी आवाजें सुनाई देने लगीं। उसका माथा ठनक गया। उसने एक गहरी सांस ली और दरवाजे का हैंडल घुमाया। दरवाजा धीरे-धीरे चरमराते हुए खुला।
ललित ने जैसे ही चैंबर का दरवाजा खोला, अंदर का दृश्य देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। सामने शरद एक बड़े से बैग पर आराम से बैठा हुआ था। उसके हाथ में मूंगफली थी, जिसे वह बड़े इत्मीनान से खा रहा था। बैग के कोने में एक बड़ा सा चीरा लगा हुआ था।
शरद ने ललित को देखते ही मुस्कुरा दिया, मानो उसने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो। उसकी मुस्कान में शरारत और बेशर्मी दोनों थीं। ललित को इस बात का एहसास हो चुका था कि यह पहली बार नहीं हो रहा था। वह बैग से मूंगफली निकालकर खाने का सिलसिला काफी समय से चल रहा था।
ललित गुस्से से कांपते हुए शरद की ओर बढ़ा। "ये क्या कर रहे हो तुम, शरद?" उसने दांत पीसते हुए कहा।
शरद ने अपनी मूंगफली का आखिरी टुकड़ा मुंह में डालते हुए लापरवाही से जवाब दिया, "अरे ललित भाई, कुछ खास नहीं। बस ये मूंगफली खाकर आ ही रहा था। आज सुबह से नाश्ता भी नही किया मैंने, सोचा यही खा लूं। वैसे भी, ये मूंगफलियां तो यहां बेकार ही पड़ी थीं।"
ललित का चेहरा लाल हो गया। उसकी नाक फड़कने लगी, और उसने गुस्से से शरद की ओर इशारा करते हुए कहा, "तुम्हें शर्म नहीं आती? ये क्या हरकत है? यहां चोरी कर रहे हो, और ऊपर से इतनी बेशर्मी!"
शरद ने मुस्कुराते हुए अपनी जगह से उठकर बैग को फिर से बंद करने की कोशिश की, लेकिन उसमें लगी चीर को सही से बांधने की बजाय उसने उसे और भी खराब कर दिया। "देखो ललित भाई, चोरी-वोरी कुछ नहीं हैं। खामखा मेरा दिमाग खराब मत करो। मैं तो बस थोड़ा मूंगफली खा रहा था। वैसे भी, इतने सारे बैग्स में से कुछ मूंगफली गायब हो जाए तो कौन गिनने वाला है?"
ललित की आंखों में गुस्से की लपटें भड़क रही थीं। वह अपनी बातों को ठहराने के लिए शब्द ढूंढ रहा था, लेकिन शरद की लापरवाही ने उसे पूरी तरह से हैरान कर दिया।
"तुम्हें लगता है कि यहां जो हो रहा है, वो किसी को पता नहीं चलेगा? मैं सब देख रहा हूं, शरद! तुम किसी काम के नही हो। एक नंबर के गधे हो , बेवकूफ कही के!"
शरद ने इस बार ठहाका लगाकर हंसते हुए कहा, "ललित भाई, आप भी ना... छोटी-छोटी बातों पर इतना नाराज हो जाते हैं। चलो, मैं जा रहा हूं। मूंगफली खा ली, अब और क्या करना?"
ललित उसके चेहरे को देखता ही रह गया। वह कुछ बोलने ही वाला था कि शरद ने बड़े आराम से बैग के छिलकों को फेंका और एक फिल्मी गाना गुनगुनाते हुए चैंबर से बाहर निकल गया। "जहाँ तेरी ये नजर है, मेरी जाँ मुझे खबर है..."
ललित उसकी यह हरकत देखकर सन्न रह गया। उसकी मुट्ठियां गुस्से से भिंच गईं, और आंखें शरद की पीठ पर टिकी रहीं। शरद के कदमों की आवाजें धीमी हो चुकी थीं, लेकिन ललित का गुस्सा अब भी चरम पर था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि शरद की इस बेशर्मी और लापरवाही पर वह क्या करे।
ललित वहीं खड़ा रह गया। उसकी नजरें अब भी उस दिशा में थीं, जिधर शरद गुनगुनाते हुए चला गया था। उसका गुस्सा अब उबाल मार रहा था, लेकिन उसकी बेबसी भी उसके गुस्से से टकरा रही थी। उसकी आंखें चौड़ी थीं, माथे पर पसीने की महीन लकीरें उभर आई थीं, और भीतर जैसे सवालों का तूफान उमड़ने लगा था।
"कैसे-कैसे कामचोर लोग भरे पड़े हैं इस कोल्ड स्टोरेज में!" उसने अपने आप से बुदबुदाया। "जिसे देखो, बस निकम्मा, नालायक और कामचोर है। ये लोग समझते क्या हैं खुद को? ठिकरी में ऐसा कुछ भी नहीं था। वहां सब मेरी कही बातों को पत्थर की लकीर मानते थे। वहां का मालिक भी... बस मेरी ही सुनता था। लेकिन यहां? यहां तो सारे गधे भरे हुए हैं।"
उसके हाथों ने गुस्से में झटके से हवा में इशारे किए, मानो वह अपने विचारों को बल देकर हवा में फेंक देना चाहता हो। उसकी सोच अब और भी गहराई में डूबने लगी।
"ये शरद... ये तो खुद को राजा समझता है! मूंगफली खाकर मुझसे तर्क कर रहा था। मेरे सामने बेशर्मी से हंस रहा था। मैं खड़ा हूं यहां का पूरा सिस्टम संभालने के लिए, और ये लोग मुझे मूर्ख समझते हैं। इन सबकी हालत सुधार दूंगा।"
उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी। हर सोच के साथ उसकी आवाज तेज होती जा रही थी। वह खुद को कोसने लगा। "सच में, यहां हर कोई गधा है। बस मैं ही हूं जो इस कोल्ड स्टोरेज को चलाने लायक हूं। मैं ही हूं जो सब समझता हूं। मैं ही हूं जो हर चीज को सुधार सकता हूं। और ये गधे...! बावन बावन हो गया सब!"
क्या ललित का गुस्सा उसे मुसीबत में डाल देगा, या सच सामने लाने में मदद करेगा? क्या शरद की लापरवाही महज़ संयोग है, या इसके पीछे कोई साजिश छिपी है? क्या कोल्ड स्टोरेज में चोरी हो रही है, या यह सिर्फ ललित का भ्रम है? और सबसे अहम—क्या वह सचमुच इस खेल को बदल सकता है, या खुद ही फंस जाएगा?
जारी है.......