Adakaar - 11 in Hindi Crime Stories by Amir Ali Daredia books and stories PDF | अदाकारा - 11

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अदाकारा - 11

*अदाकारा 11*

     बृजेश अपने रोज़ के टाइम के अनुसार ठीक डेढ़ बजे अपनी ड्यूटी पर पहुँच गया।

लेकिन पिछले रात को नींद ना आने की वजह से वो पूरी रात ठीक से सो नही पाया था इसीलिए उसकी आँखें लाल थीं।नींद की कमी के कारण उसकी पलकें भारी भारी सी लग रही थीं।

   जयसूर्या बृजेश के चेहरे को देखकर समझ गया कि आज शायद सर की नींद पुरी नही हुवी है। ओर इसलिए वो अपनी पलकों पर भारी पन महसूस कर रहे है।
उसने पूछा

"क्या बात है,साहब?आज रात नींद नहीं आ थी क्या?"

"हाँ जयसूर्या भाई।आपका अंदाज़ा बिलकुल सही है।"

"तो क्या मैं आपके लिए स्पेशल कॉफ़ी ले लाऊँ?"

"आप अंतर्यामी हैं भाई।आपने मेरे मन की बात समझ ली है।"

"मैं पाँच मिनट में आया।"

यह कहकर जयसूर्या कॉफ़ी लेने चला गया।

और बृजेश कल रात हुई उस सुनहरी यादों में खो गया जो कल रात उसके साथ गुजरी थी।

  .……. फ़ोन रिंग बजते ही उसकी नज़र फोन के स्क्रीन पर पड़ी 
 और जैसे ही शर्मिला का नाम स्क्रीन पर उसे दिखाई पड़ा उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।

     फ़ोन उठाकर उसने कान से लगाया।ओर उसके मुँह से मुश्किल से एक शब्द निकला।

"हैलो..."

जवाब में सामने से कोयल की चहचहाहट की तरह शर्मिला की मधुर आवाज़ उसके कानों में अमृत की तरह गूंज उठी।

"हैलो...अफ़सर।"

"हाँ...हाँ।"

बृजेश चौंक गया।

"क्या तुम्हें अभी भी नींद नहीं आ रही है?"

शर्मिला के सवाल से बृजेश का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। लेकिन अपनी आवाज़ पर काबू रखते हुए उसने कहा।

"मैं तुम्हारे फ़ेसबुक पर तुम्हारे क्लिप और फ़ोटो देख रहा था।और जब मुझे वहाँ से तुम्हारी जन्मतिथि मिली तो मैं तुम्हें शुभकामनाएँ देने से अपने आप को रोक नहीं पाया।"

"थैंक्यू।अगेइन अफ़सर।ओह नो सोरी सोरी।अफ़सर नहीं बृजेश।आई एम राइट बृजेश?लेकिन तुम इस तरह दूर से शुभकामनाएँ क्यों दे रहे हो?"

  ओह!यह तो शर्मिला की तरफ़ से एक खुल्लम खुला उसे जैसे निमंत्रण था।और बृजेश इतना नादान नहीं था कि उसे यह बात समझ ही न आई हो।वो कोई छोटा बच्चा थोड़े ही था।भरपूर जवान हो चुका था उसके अरमान उसके सीने मे मचलने लगे थे। कुछ क्षण तो उसे अइसा लगा जैसे उसका दिल पसलियाँ तोड़कर अभी बाहर निकल आएगा। पहले तो सीने में गहरी साँस भरी उसने।ओर मनमे निश्चय करते हुए वह बोला।

"ठीक हे तुम मुझे अपना पता सेंड कर दो तो मैं वहा आकर तुम्हें शुभकामनाएँ दूँगा।"

"ठीक है।मैं तेरा इंतज़ार करती हूं बृजेश।"

शर्मिला अब तुम पर से तु पर आ गई थी।और ये चीज़ बृजेश ने भी महसूस की।और वो ओर भी ज्यादा रोमांचित हो गया।


बृजेश माहडा मे रहता था। अपनी बाइक लेकर वो घर से निकल पड़ा।
और वो सात बंगला जे/पी रोड पर सुपर फ्लोरल बुटीक के पास आकर रुक गया।


इस वक्त रात के डेढ़ बज रहे थे।ओर बुटीक बंद था। बृजेश ने साइन बोर्ड पर लिखा नंबर डायल किया। नींद से भरी हुई और ऊबी हुई एक आवाज़ बृजेश को सुनाई दी।

"कौन है इतनी रातको?"

"पुलिस।"

बृजेश ने सपाट लहजे में कहा और इस शब्द का सही असर भी हुआ।

"क्या...क्या...क्या हुआ सर?"

दुकान में सो रहे दशरथ ने घबराहट में पूछा।

"दरवाज़ा खोलो, बहुत ज़रूरी काम है।"

बृजेश ने ऊँची आवाज़ में कहा।

दशरथ ने बिना एक पल भी गँवाए बुटीक का दरवाज़ा आंख मलते मलते खोल दिया। वह बृजेश को पहचानता था।हालाँकि वह थोड़ा नशे में था फिर भी उसने बाएँ हाथ से सलाम किया।

"क्या...क्या...क्या हुआ सर।"

"मुझे एक अच्छी गुलदस्ता दीजिए।"

बृजेश ने चेहरे पर हलकी सी मुस्कान के साथ कहा।

"अरे...क्या?आपको गुलदस्ता चाहिए सर? अपने तो मुझे डरा ही दिया सर।"

दशरथ ने चैन की साँस के भरते हुए कहा। और उसने बृजेश को गुलाबों से भरा एक गुलदस्ता दे दीया। गुलदस्ता के पैसे देने के बाद बृजेशने शर्मिला द्वारा भेजा गया एड्रेस अपने हाथ में पकड़े हुए मोबाइल पर पढ़ा।

   संभव रेसीडेंसी।

     ग्राउंड फ्लोर।

     ब्लॉक नंबर = 4।

बृजेश ने मोटरसाइकिल को फिर से किक मारी और सिर्फ़ दो मिनट में शर्मिला के दरवाज़े पर पहुँच गया।और घंटी बजाई। शर्मिला उसका ही इंतज़ार कर रही थी।उसने तुरंत दरवाज़ा खोला।और एक मनमोहक मुस्कान के साथ शर्मिला ने उसका स्वागत किया।

"स्वागत है। बृजेश। वेलकम।"

पारदर्शी गाउन में से शर्मिला के गोरे और मादक अंगों को देखकर बृजेश अभीसे मंत्रमुग्ध होने लगा।

वह शर्मिला के लिए लाया हुआ गुलदस्ता भी शर्मिला को देना भूल गया।और हैप्पी बर्थडे कहना भी भूल गया।जब वह प्यासी आँखों से शर्मिला के सुडौल शरीर को देख रहा था तो शर्मिलाने उसे शब्दों से जैसे जगाया।

"शायद यह गुलदस्ता मेरे लिए है?"

शर्मिला के सवाल ने बृजेश के ऊपर छाया हुआ जादू टूट गया और वह खुद अपने ऐसे व्यवहार से क्षोभ महसूस करने लगा।

"हाँ। हाँ।बिल्कुल यह तुम्हारे लिए है।"

"तुम्हारे नहीं बृजेश तेरे लिए कहो।"

शर्मिला ने मादक स्वर में कहा।और उसकी बातें सुनकर बृजेश की साँसें ओर तेज़ हो गईं। उसकी आवाज़ में कंपन था। शर्मिला की ओर हाथ बढ़ाते हुए वह बोला।

"जन्मदिन मुबारक हो शर्मी.."

*ला* अक्षर उसके गले में अटक सा गया लगा।

"शुक्रिया,बृजेश। मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम अभी इतनी रात को आओगे।"

शर्मिला के शब्दों से जैसे नशा टपक रहा था। और बृजेश भी उस नशे में बह रहा था।

"अगर तु खुद सामने से आकर बुलाएगी तो कौन खुद को रोकने की ताकत रखता है?"

शर्मिला ने गुलदस्ता मेज़ पर रख दीया।और अपने गाउन को अपने बदन से नीचे सरकाते हुए बुदबुदाई।

"तो अब कोनसा मुहरत देखना है?"

शर्मिला का अर्धनग्न शरीर बृजेश के सामने था।और अब बृजेश के लिए अपनी भावनाओं को रोकना मुश्किल हो रहा था। वो भी आगे बढ़ा और उसने शर्मिला के होंठों पर अपने होंठ रख दिए।,.......

"कॉफ़ी पीजिए,सर।"

जैसे ही जयसूर्या ने कॉफ़ी का प्याला मेज़ पर रखा,शर्मिला के साथ पिछली रात बिताए हुए नाज़ुक पल हवा में कपूर की तरह छु गए।

   (शर्मिला से शुरू हुआ यह प्यार बृजेश को कहाँ ले जाएगा?बृजेश का अब आगे क्या होगा?)