इधर महाराज रूद्र प्रताप सिंह अपने राजकाज में व्यस्त हो जाते हैं, अब उनका नगर में, और राज्य का भ्रमण पर आना जाना भी कम हो जाता है|
1 दिन वीर प्रताप सिंह महाराज रुद्र प्रताप सिंह से आज्ञा लेकर राज्य भ्रमण पर निकलते हैं, और अपने पूरे राज्य का भ्रमण करते हुए लगभग 2 महीने के उपरांत अपने नगर प्रतापगढ़ की ओर वापस लौटते हैं, उनके साथ में उनका प्यार बाज भी होता है, जिसका नाम पवन होता है|
लौटते समय उन्हें अंधेरा होने लगता है, वीर प्रताप सिंह अपना घोड़ा तेजी से दौडाते हुए चले जा रहे हैं, वे जल्द किसी गांव में रुकने की जगह को तलाशते हैं, लेकिन दूर दूर तक किसी इंसान तो क्या, किसी जंगली जानवर या परिंदा तक नजर नहीं आता है, वीर प्रताप अपने राज्य से दूर 2 दिन के फासले पर होते हैं|
तभी चलते चलते अंधेरा कफी घिर जाता है, वीर प्रताप को दूर किसी रोशनी का आभास होता है, वीर प्रताप सिंह तेजी से कुछ और बढ़ते हैं, और जल्द ही उस जगह पर पहुंच जाते हैं, वीर प्रताप सिंह अब एक किले के द्वार पर खड़े होते हैं, जैसे ही घोड़ा किले के सामने आकर रुकता है, गेट अपने आप खुल जाता है, वीर प्रताप सिंह देखते हैं, कि दरवाजे पर कोई भी दरबान या सैनिक नहीं है, तो वे घोड़े समेत अंदर आ जाते हैं|
अंदर आकर वीर प्रताप सिंह देखते हैं, कि किले के अंदर बहुत से अनेकों महल बने हुए हैं, जैसे कि एक अलग ही दुनिया बनी हुई हो, वीर प्रताप को बड़ा आश्चर्य होता है, और वीर प्रताप सिंह अब आगे बढ़कर देखते हैं, तो ऐसा लगता है, जैसे कि मेला लगा हुआ हो, हर तरफ दुकाने सजी हुई होती हैं, और दुकानों पर आश्चर्यजनक चीजें लगी और सजी होती है, मिठाइयों की दुकानों पर गजब गजब की मिठाई रखी होती हैं, वीर प्रताप सिंह सोचते हैं, कि किसी से बात की जाए|
तभी दूर से कुछ सिपाही आते हुए दिखाई देते हैं, सारे सिपाही पूरे मेले में फैल जाते हैं, और कुछ गेट पर तैनात हो जाते हैं, कुछ सिपाही वीर प्रताप सिंह के सामने आकर खड़े हो जाते हैं, तभी एक सिपाही आगे आकर कहता है:-
सिपाही:- प्रतापगढ़ के सेनापति, और छोटे युवराज, वीर प्रताप सिंह का, माया नगरी में स्वागत है|
वीर प्रताप सिंह:- तुम कौन हो सिपाही?
सिपाही:- मैं माया नगरी का सीपेसाल्हार हूं|
वीर प्रताप सिंह:- तुम्हारा नाम क्या है, और हमारा नाम कैसे जानते हो?
सीपेसाल्हार:- मेरा नाम तिमिर तरंग है, और आपके और आपके राज्य के बारे में तो, हमारे यहां का बच्चा-बच्चा जानता है, और आपको हमारी राजकुमारी, और होने वाली महारानी, रानी चंद्रनिशा जी ने आपको अपने महल में बुलाया है, आपको हमारे साथ चलना चाहिए|
वीर प्रताप सिंह चल पड़ते हैं, और 5 मिनट में ही वे राजमहल में होते हैं, सिंहासन पर चंद्रनिशा(राजकुमारी) बैठी हुई होती है, चंद्रनिशा वीर प्रताप सिंह का स्वागत करती है, और वीर प्रताप को बैठने के लिए आसन दिया जाता है, वीर प्रताप सिंह चंद्रनिशा से पूछते हैं:-
वीर प्रताप सिंह:- राजकुमारी, हमारे राज्य में हमने पहले कभी आपको और आपके शहर को नहीं देखा, और ना ही किसी मायापुरी का नाम ही सुना है, तो क्या आप हमें अपने बारे में कुछ बताना चाहेंगी, हम जानना चाहते हैं, आपके बारे में|
चंद्रनिशा:- आप थके हुए हैं, और भूखे भी, इसलिए खाना खाने के बाद हम बात करते हैं|
सारे लोग खाने के लिए आसन पर विराजमान हो जाते हैं, सारे लोग खाना- खाना शुरू करते हैं, किंतु प्रताप सिंह को संदेह होता है, तो वह थोड़ा भोजन अपने बाज को खिलाते हैं, और संदेह दूर होने पर खाना खाते हैं, खाना खाने के उपरांत, सारे लोग दरबार में इखट्टे होते हैं, चंद्रनिशा बताती है:-
चंद्रनिशा:- मैं हूं चंद्रनिशा, इस माया नगरी की रानी, और काली ताकतों की मालकिन, ये नगरी मैंने बसाई है, हजारों सालों की तपस्या के बाद, मुझे यह ताकत प्राप्त हुई है, पिछले महीने की पूर्ण चंद्र ग्रहण की रात को, और अब मैं चाहती हूँ, कि आप मुझसे शादी करें, जिससे कि हमारे मिलन से जो संतान उत्पन्न होगी, उसकी बली देकर, मैं इस संसार कि सारी काली ताकतों कि मालकिन बन जाउंगी, और पूरी दुनिया पर राज करूंगी, पूरी दुनिया पर हमारा राज होगा, पूरी दुनिया हमारी गुलाम होगी|
वीर प्रताप सिंह को अपने कानों पर विश्वास नहीं होता, कि जो अभी उन्होंने सुना, सच सुना, या फिर कोई उनका वहम है, लेकिन सच्चाई के रूप में चंद्रनिशा उनके सामने होती है, और शादी का खुला निमंत्रण देती दे रही होती है, वीर प्रताप सिंह सोचते हैं, कि अगर तू इंसान होती, तो बेशक तेरे जैसी सुंदरी से मैं शादी कर लेता, मगर क्या करूं, तू है भी तो एक शैतान|
चंद्रनिशा:- (हंसते हुए) सही सोचा, मैं शैतान का दूसरा रूप हूँ, लेकिन फिकर मत करो, तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचने दूंगी फिर मैं तुम्हें भी अपनी जितनी शक्तियों का स्वामी बना दूंगी, और फिर मैं भी तो तुम्हारी होंगी, हम दोनों ही इस दुनिया पर राज करेंगे|
वीर प्रताप सिंह:- क्या बात है, दिमाग भी पढ़ सकती हो|
चंदनिश:- माया नगरी में कौन, कब, क्या, कहता है, क्या सोचता है, मैं यही बैठे-बैठे सब कुछ देख और सुन सकती हूं, वीर प्रताप सिंह, हमसे शादी कर लो, और मजे करो|
वीर प्रताप सिंह:- मुझे मंजूर नहीं|
चंद्रनिश:- शादी तो तुम्हे करनी ही पड़ेगी, अगर नहीं, तो तुम यहाँ से कभी बाहर नहीं जा पाओगे, मेरी माया नगरी में कोई भी, मेरी मर्जी से आ सकता है, और मेरी मर्जी से जा सकता है, या तो तुम मुझसे शादी करोगे, या पूरी उम्र यही गुजारोगे, मेरी कैद में, और कभी भी यहां से नहीं निकल पाओगे, क्योंकि यह माया नगरी है, यहां के रास्ते हर पल के साथ बदलते रहते हैं, कोई मेरी मर्जी के खिलाफ यहाँ एक कदम भी नहीं रख सकता, अगर गलती से आया, तो कभी भी मेरी मर्जी के खिलाफ यहां से नहीं निकल पाएगा, हमेशा के लिए मेरा कैदी बन कर रहना होगा, हमेशा के लिए मेरा कैदी होगा, हमेशा हमेशा के लिए.........................