प्रतापगढ़ एक प्रगतिशील राज्य था| यहां के राजा महाराजा रूद्र प्रताप सिंह बड़े ही न्यायप्रिय राजा थे| प्रतापगढ़ में कभी भी किसी के साथ अन्याय नहीं हुआ, सभी को न्याय मिला, कभी भी किसी को किसी भी वस्तु की जरूरत होती तो उसे जल्दी ही वह वस्तु उपलब्ध करा दी जाती या राजदरवार से उपलब्ध करा दी जाती| ताकि किसी को किसी भी तरह की कोई तकलीफ न हो| सभी लोगों को अपनी बात कहने का हक प्राप्त था, राजदरबार मे सभी लोगों को अपनी बात रखने का हक था, अगर कभी कोई नियम या कानून बनाई जाती, तो सभी की राय ली जाती और सर्व समिति से ही कोई भी नियम या कानून लागू किया जाता|
और महाराज रूद्र प्रताप स्वयं हर रोज भेष बदलकर राज्य का भ्रमण करते और राज्य की स्थिति का जायजा लेते, ताकि अगर कोई बात उन तक लोगों की ना पहुंच पा रही हो, तो वे खुद उस तक पहुंचे|
रुद्र प्रताप सिंह लोगों से मिलते, उनसे बातें करते, राज्य के बारे में, राज्य की कार्य व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त करते, और तो और स्वयं राजा यानी कि खुद के बारे में लोगों की राय जानते, ताकि उनसे स्वयं से अगर कोई गलती होती या कुछ गलत हो रहा हो, तो उसे खुद ठीक कर सके|
महाराज रुद्र प्रताप सिंह के मंत्री का नाम वीर प्रताप सिंह था, जो कि उनके खुद के छोटे भाई होते थे, महाराज की अनुपस्थिति में सारा कार्यभार वही भली प्रकार संभालते थे, आसपास के सभी राज्यों के राजाओं से रूद्र प्रताप सिंह मैत्री संबंध रखते थे, सभी के साथ रूद्र प्रताप अपने भाई के जैसा ही व्यवहार करते थे|
कभी भी किसी के साथ किसी भी प्रकार की दुश्मनी नहीं, अगर कभी किसी बात में किसी वजह से मनमुटाव हुआ, तो बातचीत के द्वारा उसका हल निकाल लिया जाता, इसी वजह से कभी कोई बाहरी राजा उन पर आक्रमण करने की सोचता भी नहीं, अगर कभी कोई गलती से या फिर ऐसी गलती कर भी देता, तो उसे आसपास के सभी राजाओं से टकराना पड़ता, और अपनी हार का सामना करना पड़ता, और फिर कभी भी भूल कर उस राज्य की ओर मुंह करके भी नहीं देखता था|
एक दिन महाराज रूद्र प्रताप सिंह राज्य में भ्रमण के बारे में योजना बनाई, और अपने छोटे भाई यानी कि सेनापति वीर प्रताप सिंह को बुलाया:-
रूद्र प्रताप सिंह:- वीर प्रताप हम किसी कार्य से राज्य के बाहर जा रहे हैं, और हमें आने में थोड़ा वक्त भी लग सकता है, इसलिए जब तक हम नहीं आ जाते, तबतक आप को राज्य का कार्यभार संभालना होगा, और इस बीच अगर कोई घटना घटित होती है, तो हमें पंछी द्वारा संदेश भेजवा दीजिएगा|
वीर प्रताप सिंह:- लेकिन महाराज.......
रुद्र प्रताप सिंह:- साफ-साफ कहो वीर सिंह, अगर कोई परेशानी हो तो....
वीर प्रताप सिंह:- जी नहीं महाराज, परेशानी तो नहीं है, लेकिन एक सवाल.......
रूद्र प्रताप सिंह:- पूछो|
वीर प्रताप सिंह:- भाई शाह अभी कुछ दिन पहले ही तो कहीं गए थे, तब भी बिना कुछ बताए, और इस बार भी बिना कुछ बताये, जाने का कोई तो कारण होगा, अगर कहीं आप को किसी वक्त हमारी जरूरत पड़ने लगी, आप किसी परेशानी में फंस गए तो हमें कैसे पता चलेगा? और वैसे भी, आपका यूं अकेले कहीं जाना ठीक नहीं, आपको किसी को तो अपने साथ ले जाना चाहिए|
रुद्र प्रताप सिंह:- तो आप यह जानना चाहते हो, कि हम कहां जा रहे हैं? और क्यों जा रहे हैं? चिंता ना करो हम किसी से जंग लड़ने नहीं जा रहे हैं|
वीर प्रताप सिंह:- वो तो हमें मालूम है भाई शाह, कि आप कहां जा रहे हैं, हम तो बस यूं ही आपकी सुरक्षा के लिहाज से पूछने लगे|
रूद्र प्रताप सिंह:- आखिर तुम जो भी कहना चाहते हो, खुल कर कहो...
वीर प्रताप सिंह:- भाई शाह हम चाहते हैं, कि इस बार हम भी आपके साथ राज्य भ्रमण के लिए जाएं, अगर आपकी आज्ञा हो तो|
रूद्र प्रताप सिंह:- (हंसते हुए) यह तो वही बात हो गई, नेकी और पूछ पूछ.....
वीर प्रताप सिंह:- हम समझे नहीं भाई शाह|
रूद्र प्रताप सिंह:- अरे हम भी तो यही चाहते हैं, कि आप भी कहीं राज्य में भ्रमण करके आया करें, मगर आपने हमसे कभी कहा ही नहीं|
वीर प्रताप सिंह:- यानी कि हम चल सकते हैं आपके साथ|
रूद्र प्रताप सिंह:- इसमें भी कोई पूछने वाली बात है|
और उसके बाद दोनों ही भाई अपने राज्य का कार्यभार अपने खास मित्र और अपने सेनानायक को सौंपकर तथा अपने गुरु जी के सानिध्य में छोड़कर राज्य भ्रमण के लिए निकल जाते हैं| दोनों भाई कई दिनों तक व्यापारी के रूप में घूमते रहते हैं|
लगभग 1 महीने के उपरांत जब दोनों भाई वापस अपने राज्य के लिए लौटते हैं, तो रास्ते में उन्हें जोरों की प्यास लगी होती है, और उस दिन और दिनों के मुकाबले गर्मी भी कुछ अधिक होती है, उनके पास पीने का पानी भी खत्म हो जाता है, और उनके घोडे भी गर्मी से बेहाल हो जाते हैं, और थके हुए भी मालूम होते हैं|
वीर प्रताप सिंह:- भाई साहब क्या आपके पास पीने के लिए कुछ पानी होगा? हमारे पास सारा पानी समाप्त हो चुका है, और बड़ी जोरों की प्यास लगी है|
रूद्र प्रताप सिंह:- नहीं वीर सिंह, हमारे पास भी पानी समाप्त हो चुका है, और लगता नहीं कि इस रेगिस्तान जैसे जंगल में कहीं पानी मिलेगा|
वीर प्रताप सिंह:- भाई साहब, इस तरीके से तो हम अपने राज्य पहुंचने से रहे|
रूद्र प्रताप सिंह:- चिंता ना करो वीर प्रताप, आगे चलकर 10 किमी की दूरी पर चंदनपुर नामक एक गांव है, हमें वहां पर पानी अवश्य मिल जाएगा|
लगभग 25 मिनट चलने के बाद दोनों भाई उस गांव में पहुंचते हैं, गांव के बाहर एक मिट्टी का कच्चा घर बना होता है, जिसका दरवाजा लकड़ियों का बना होता है, घर के ऊपर छत पर छप्पर पड़ा होता है, दोनों भाई उस घर के सामने आकर रुकते हैं, अपने घोड़ों को घर के सामने पेड़ों के सहारे बांध देते हैं, और घर के दरवाजे पर आ जाते हैं|
क्रमश.......