नागमणि – भाग 7✍️ लेखक – विजय शर्मा एरीप्रस्तावनाप्रिय पाठकों, ;नागमणि श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हमने देखा कि किस प्रकार गाँव के मासूम लोग एक रहस्यमयी गुफ़ा और नाग-नागिन की रक्षा में छुपी हुई मणि के जाल में उलझते चले गए। कई रहस्य खुल चुके हैं, लेकिन असली सत्य अभी भी अंधकार की परतों में छुपा है। अब बारी है उस अध्याय की, जहाँ डर, विश्वासघात और आस्था एक-दूसरे से टकराएँगे।भाग – 7 : "गुफ़ा का रहस्य"रात का सन्नाटा पूरे जंगल में छाया हुआ था। हल्की-हल्की ठंडी हवा पेड़ों की शाखाओं से टकरा रही थी। गुफ़ा के सामने गाँव के कुछ लोग पहरा दे रहे थे। सबके मन में एक ही सवाल था—क्या नागमणि सचमुच चमत्कारी है, या यह सिर्फ़ अंधविश्वास?गुरुजी ने सभी को समझाया—“बेटा, नागमणि शक्ति का प्रतीक है। यह किसी को वरदान देती है तो किसी के लिए अभिशाप भी बन सकती है। लोभ अगर हावी हो जाए तो यह मणि मौत बन जाती है।”इसी बीच अचानक गुफ़ा के भीतर से तेज़ फुफकार सुनाई दी। सबकी रूह काँप उठी। दीवारों पर छायाएँ हिलने लगीं।रहस्यमयी छायागाँव का नौजवान अर्जुन साहस जुटाकर आगे बढ़ा। मशाल हाथ में थी, और उसकी आँखों में जिज्ञासा भी।“अगर हम डरते ही रहेंगे तो सच कैसे सामने आएगा?” – अर्जुन ने कहा।गुफ़ा के भीतर उसने देखा—दीवार पर एक काले नाग की छाया थी, मगर वहाँ नाग नहीं था! यह देखकर अर्जुन सिहर उठा।गुरुजी बोले, “यह छाया मणि की शक्ति है। यह सिर्फ़ चुने हुए इंसान को दिखाई देती है।”लोभ की परीक्षागाँव का एक आदमी, भीखू, जिसे हमेशा धन की भूख रहती थी, धीरे-धीरे चुपके से गुफ़ा की ओर बढ़ा। उसके मन में लालच जाग उठा—“अगर मैं मणि पा लूँ तो सारा गाँव मेरे आगे झुकेगा। मुझे राजा की तरह सम्मान मिलेगा।”भीखू ने जैसे ही गुफ़ा के अंदर प्रवेश किया, उसकी आँखें मणि की चमक से चौंधिया गईं। वह हाथ बढ़ाने ही वाला था कि अचानक ज़मीन हिली और उसके चारों ओर साँपों का घेरा बन गया।भीखू चीख पड़ा—“बचाओ…!”गुरुजी शांत स्वर में बोले—“लोभ से प्रेरित इंसान को नागमणि कभी स्वीकार नहीं करती। यह सिर्फ़ त्यागी को मिलती है।”भीखू ज़मीन पर गिर पड़ा, और साँप धीरे-धीरे अंधेरे में ग़ायब हो गए। भीखू का लोभ वहीं समाप्त हो चुका था।प्रेम और बलिदानइसी बीच, गाँव की लड़की राधा ने अर्जुन का हाथ थामते हुए कहा—“तुम्हें इस गुफ़ा में क्यों भेजा जा रहा है? क्यों हर बार बलिदान तुम ही दो?”अर्जुन मुस्कराया, “क्योंकि मणि के लिए बलिदान ही असली कसौटी है। अगर मेरी क़ुर्बानी से गाँव बचता है, तो यह सौदा बुरा नहीं।”उसकी बात सुनकर राधा की आँखें नम हो गईं। उसने धीरे से कहा—“अगर तुम गए… तो मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी।”नाग-नागिन का प्रकट होनाअचानक गुफ़ा के भीतर से भयानक गड़गड़ाहट हुई। ज़मीन फटने लगी और उसी दरार से दो विशाल आकृतियाँ निकलीं—एक नाग और एक नागिन। उनकी आँखें अंगारे की तरह जल रही थीं।नाग ने गहरी आवाज़ में कहा—“कौन है जो हमारी मणि को छूना चाहता है?”गाँव के लोग डर से पीछे हट गए। गुरुजी ने हाथ जोड़कर कहा—“हे नागराज, हम आपके शत्रु नहीं हैं। गाँव पर संकट आया है, हमें आपकी कृपा चाहिए।”नागिन ने अर्जुन की ओर देखा और बोली—“यह युवक पवित्र हृदय का है। पर क्या यह त्याग करने को तैयार है?”अर्जुन ने बिना झिझके उत्तर दिया—“हाँ! अगर मेरी जान देकर गाँव बच सकता है, तो मैं तैयार हूँ।”नागमणि का प्रकाशजैसे ही अर्जुन ने यह कहा, गुफ़ा अचानक सुनहरी रोशनी से जगमगाने लगी। नाग-नागिन के चेहरे पर क्रोध की जगह संतोष दिखाई देने लगा।नाग बोला—“त्यागी इंसान ही इस मणि का अधिकारी होता है। आज से यह नागमणि गाँव की रक्षा करेगी।”फिर नागमणि धीरे-धीरे अर्जुन की हथेली पर आकर टिक गई। उसकी चमक ने पूरे गाँव को रोशन कर दिया।अंत नहीं, शुरुआतगाँव वाले ख़ुशी से झूम उठे। भीखू जो पहले लोभ में अंधा था, अर्जुन के चरणों में गिर पड़ा—“मुझे माफ़ कर दो। मैंने स्वार्थ में आकर ग़लती की।”अर्जुन ने उसे उठाया और कहा—“अब से यह मणि पूरे गाँव की है। किसी एक की नहीं। हमें इसे मिलकर सँभालना होगा।”गुरुजी ने गहरी साँस लेते हुए कहा—“याद रखो, नागमणि सिर्फ़ रोशनी ही नहीं देती, यह इंसान की अंतरात्मा को भी परखती है। इसका अगला अध्याय अब तुम सबके कर्म लिखेंगे।”गुफ़ा की गूंजती आवाज़ों में एक अनजाना रहस्य अभी भी छिपा था। अर्जुन जानता था—यह कहानी यहाँ खत्म नहीं हुई, बल्कि अब असली परीक्षा शुरू हुई है।✒️ प्रमाणपत्र (Parmanpatra)मैं, विजय शर्मा एरी, अजनाला, अमृतसर, पंजाब, यह घोषित करता हूँ कि “नागमणि – भाग 7” मेरी मौलिक रचना है। यह पूर्णतः मेरी कल्पना और लेखन पर आधारित है। बिना अनुमति के इसका किसी भी रूप में प्रकाशन या पुनर्प्रकाशन वर्जित है।✍️ लेखक: विजय शर्मा एरी📍 अजनाला, अमृतसर, पंजाब – 143102