सोमन जब छोटा था ।तब से उसमें कई कला का आविर्भाव बहता था । सब उसका बखान कर थकता ।गांव की शेरी गलि मे सब जगह उसकी ही बोल बाला रहती ।स्कुल से आते ही मम्मी उसको खिलाकर अपने भावी का भाग्य बेटे में देखती ।और पिता का प्यार उस पर नेह बरसाता रहता । एक परिवार भावना सब जन मन में सभ्यता की मर्यादा सिखा रहे । संयुक्त परिवार सब उसके बारे में उससे पीछे धकेलने का प्रयास करते रहते ।एक दिन वह एकांत स्थल में जा कर अपने बारे में सोच ने लगे ," अरे मेरा तो कोई अच्छा नहीं देखता, मैं बर्बाद होकर सहते रहुगा"। प्यार वाली भी अपनी स्नेह लिला सोमन पर बरसाती दिखती और कहती ,"ए जमाना और वक्त तो अपने रहते ही चलता रहेगा ।और सोमन सदा अप ने हमें गांव के लोग में लुटाते रहे ।पढ़ कर उस कुछ नहीं पाएगा ।" इसी तरह उसका जीवन चलता रहा और जीवन के कई गहन छूपे रहस्य को खोजता रहता ।
एक दिन वह मित्र के संग धूमने जाते ,तो कोई मंदिर जाकर बैठते और उसके भावी के बारे में सोच में रहते ।मित्र के संग बैठे तो उसने एक तरू देखा ।उस के जड़ में उधर दिखाती रहती ,उसने मित्र को कहा ,"ए तरू फूलने फलने के लिए कितना ही बल करें लेकिन विकास नहीं कर सकता क्योंकि उसके जड़ को कोरी खाते किडे कभी विकसित नहीं होने देते ।" मित्र ने कहा ," ऐसी सोच मन में दबाव भरती है ।"
सोमन ने कहा " ए बात सही मगर आपके जीवन में जब को खा कर पलती जीवांत दिखाएं बीना खोखले होकर तरू की तरह गिर पड़ते हैं ।" दोनों हंस कर वहां से वापिस धर आता है । की सालों के बाद सोमन वहीं का वही था ,तब मित्र ने बताया ," तेरी तरु वाली बात तेरे लिए खरी निकली। सोमन अब हताश दिखने लगा । अध्ययन का कोई महत्व न रहा और दिन स्थिति में कोई सहारा न मिला ।और उसकी कला ही कला रहेगी ।कभी व्यक्त नहीं हुई। और उसकी सभी आशा अरमान मन की मन में रह गई। अब वह अपने काज में भी सेन से जीने नहीं पाते ।सब लोग उसको हरकर उसका होकर उसकी जड़ों को समाप्त करने लगा ।और वह तन मन से दुर्बल बनकर अपने बारे में बहता वक्त की निर्थकता में समाते रहा । वह अकेले रह गया ।मां भी चल बसी और बहना ससुराल चली गई ।यह गए एक मात्र सोमन सोमन का सुखी दाम्पत्य भी नहीं चला नौकरी के अभाव में वह भी उसको छोड़कर ससुराल चली गई । लेकिन आज के मिडिया संसार में वह साहित्य मय बन कर रहते ,मगर, सब लोग उसको नेस्तनाबूद कर उसकी मजा लूटते रहते।तब एक दिन मां के वृक्ष उछेर का महत्व समझ गया ।और अपने खेति काज में व्यस्त रहने लगा । पटल साहित्य में आर-पार होकर वह एक तरू के छांय में बैठकर उसके पड़ोस विकृत जनों का तमाशा देखते रहते ।और सोचते " इस गांव और कुटुंब वालों ने मेरी और मेरे सम्मान की समझ भी नहीं। मैं तो ए सहकर मेरे जीवन की कर्मशील ता की मजा लेते विपरित जन को देखकर सहने में " जब वह पैड से सिख लेते फल से उभरे सब विपरित जन जंजेर कर फल खाते तो सहते ही रहना । तब से उस सोमन तरू से गुरु की तरह सिख लेते रहा।
ले.
कहानी गद्य लधु कथा
मनजीभाई कालुभाई मनरव मु बोरला ता तलाजा