भाग 2 – शिक्षा और RSS से जुड़ाव
प्रस्तावना
नरेंद्र मोदी का जीवन केवल एक साधारण विद्यार्थी या संघर्षशील बालक का जीवन नहीं था, बल्कि यह उस यात्रा की नींव थी, जिसने उन्हें राष्ट्र के सर्वोच्च पद तक पहुँचाया। बचपन की कठिनाइयों और वडनगर के अनुभवों के बाद, उनकी किशोरावस्था और शिक्षा का दौर उनके व्यक्तित्व में नई दिशा लाया। इसी समय उनके जीवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का प्रवेश हुआ, जिसने उनके भीतर अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और संगठन कौशल की जड़ें गहरी कीं।
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शिक्षा का प्रारंभिक दौर
नरेंद्र मोदी की प्राथमिक शिक्षा वडनगर के स्थानीय विद्यालय में हुई। उनके शिक्षक बताते हैं कि वे पढ़ाई में रुचि रखते थे लेकिन औपचारिक शिक्षा से अधिक उन्हें व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव की खोज रहती थी। वे किताबें केवल पाठ्यक्रम की नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और प्रेरणादायी व्यक्तित्वों की जीवनी पढ़ते थे।
कक्षा में वे शांत और अनुशासित माने जाते थे, लेकिन जब नाटक, वाद-विवाद या भाषण की बात आती, तो उनकी आवाज़ और जोश सबको आकर्षित कर लेता।
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किशोरावस्था और जिज्ञासा
जैसे-जैसे नरेंद्र मोदी किशोरावस्था की ओर बढ़े, उनके भीतर देश और समाज के लिए कुछ करने की इच्छा और प्रबल होती गई। वे दोस्तों से अलग सोचते थे। जहाँ अन्य बच्चे नौकरी, धंधे या घर की जिम्मेदारियों तक सीमित रहते, वहीं मोदी देश की स्थिति और भविष्य पर विचार करते।
इस समय उनकी जिज्ञासा उन्हें अनेक स्थानों पर ले गई। वे साधु-संतों से मिलते, भक्ति और योग में रुचि लेते और समाज की समस्याओं पर ध्यान देते। वे छोटी उम्र से ही आत्म-अनुशासन और आत्म-संयम के आदी हो चुके थे।
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RSS से परिचय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नरेंद्र मोदी का परिचय लगभग 8 वर्ष की उम्र में हुआ। वे अपने मोहल्ले में आयोजित शाखा में जाते थे। वहाँ लाठी चलाना, सूर्यनमस्कार करना, देशभक्ति के गीत गाना और अनुशासन सिखाया जाता था।
RSS की शाखा ने मोदी के जीवन में गहरा असर डाला। वहाँ उन्होंने सीखा कि –
समाज सेवा का अर्थ केवल भाषण देना नहीं, बल्कि धरातल पर काम करना है।
अनुशासन किसी भी संगठन की रीढ़ है।
राष्ट्रभक्ति केवल भाव नहीं, बल्कि कर्म है।
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पढ़ाई और संघ का संतुलन
स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ मोदी नियमित रूप से RSS की गतिविधियों में भाग लेने लगे। यह कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि परिवार को उनकी पढ़ाई और दुकान में मदद दोनों की अपेक्षा रहती थी। लेकिन नरेंद्र मोदी ने समय का संतुलन करना सीख लिया।
सुबह घर के काम, दिन में स्कूल और शाम को RSS शाखा – यही उनका दिनचर्या बन गया। इस दौरान उनकी नेतृत्व क्षमता और संगठनात्मक कौशल खुलकर सामने आने लगा।
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NCC और सामाजिक गतिविधियाँ
स्कूल में नरेंद्र मोदी ने NCC (National Cadet Corps) में भी भाग लिया। NCC में उन्हें अनुशासन, वर्दी और देशप्रेम का सीधा अनुभव मिला। वे परेड, ड्रिल और सामूहिक कार्यक्रमों में आगे रहते।
इसके अलावा वे सामाजिक गतिविधियों जैसे – सफाई अभियान, जरूरतमंदों की मदद, पानी बचाने और पौधारोपण जैसे कार्यों में भी सक्रिय रहे। यह सब उनके भीतर सेवा-भाव और नेतृत्व का बीज बो रहा था।
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युवावस्था और संन्यास की तलाश
किशोरावस्था के बाद नरेंद्र मोदी के मन में एक गहरा प्रश्न उठने लगा – “जीवन का असली उद्देश्य क्या है?”
उन्होंने 17-18 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और देश के कई हिस्सों की यात्रा की। वे हिमालय के साधु-संन्यासियों के बीच गए, रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ में समय बिताया, और साधना की तलाश की।
हालाँकि यह जीवन लंबा नहीं चला, लेकिन इसने उन्हें यह एहसास कराया कि उनका मार्ग आध्यात्मिक संन्यास नहीं बल्कि समाज सेवा है। वे लौटकर RSS में पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में जुड़ गए।
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संघ प्रचारक के रूप में जीवन
RSS में नरेंद्र मोदी ने प्रचारक के रूप में काम शुरू किया। प्रचारक का जीवन बहुत कठिन होता है –
साधारण कपड़े
कोई निजी संपत्ति नहीं
अल्प साधनों में रहना
संगठन के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहना
मोदी ने इसे पूरे मन से अपनाया। वे साइकिल या बस से गाँव-गाँव जाते, लोगों से मिलते, उन्हें संगठित करते और राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास करते।
इस दौरान उन्होंने छोटे-छोटे काम किए – दीवारों पर नारे लिखना, कार्यक्रम आयोजित करना, युवाओं को जोड़ना। यही छोटे-छोटे अनुभव आगे चलकर बड़े चुनाव अभियानों में उनकी सबसे बड़ी ताकत बने।
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अध्ययन और विचारधारा का विकास
RSS में रहते हुए नरेंद्र मोदी ने बहुत पढ़ाई की। वे राजनीति, इतिहास, अर्थशास्त्र और संस्कृति पर लगातार किताबें पढ़ते। विवेकानंद, महात्मा गांधी और सरदार पटेल उनके आदर्श थे।
वे मानते थे कि भारत की ताकत उसकी संस्कृति और युवा शक्ति में है। इसलिए उन्होंने युवाओं को राष्ट्र निर्माण में जोड़ने का संकल्प लिया।
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कठिनाइयाँ और पारिवारिक जीवन से दूरी
RSS में पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनने का मतलब था परिवार से दूरी। मोदी का विवाह कम उम्र में हो गया था (जसोदाबेन से), लेकिन उन्होंने गृहस्थ जीवन के बजाय राष्ट्र सेवा का मार्ग चुना। यह फैसला आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने इसे अपनी आत्म-प्रतिज्ञा माना।