बदलती दुनिया में हम
बचपन की वो गली, जहाँ हम खिलखिलाते थे, आज फिर भी वैसी ही है, पर उसमें खेलते बच्चे अब मोबाइल और टैबलेट की स्क्रीन में खोए हुए हैं। वक्त के साथ जो रिश्ते बनाए थे, वो भी धीरे-धीरे बदलने लगे। यही है बदलती दुनिया की सच्चाई, जहां हम भी बदलते जा रहे हैं।
रामलाल और मोहन दो अनमोल दोस्त थे। उनके बचपन की यादें अभी भी गाँव की मिट्टी में रची-बसी हैं। वे दोनों स्कूल से लेकर कॉलेज तक साथ-साथ पढ़े, खेलें, हंसे और रोए। वे बिना किसी डिजिटल डिवाइस के भी खुश थे। पेड़ की छांव में बैठकर बातें करना, नदी के किनारे जाकर मछली पकड़ना उनकी दिनचर्या थी।
लेकिन वक्त के साथ दुनिया तेजी से बदलने लगी। मोबाइल फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया ने उनके जीवन में प्रवेश किया। रामलाल ने पहली बार स्मार्टफोन खरीदा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसका हर पल सोशल मीडिया की दुनिया में व्यतीत होने लगा। वहीं मोहन, जो एक सामान्य किसान परिवार से था, उस बदलाव को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाया। उसकी सोच में अब भी पुरानी आदतें थीं, जो धीरे-धीरे टूट रही थीं।
दोनों की दोस्ती पर अब तकनीक की दीवारें आ गईं। रामलाल का ध्यान केवल ऑनलाइन लाइक्स और कमेंट्स पर था, जबकि मोहन को असली दुनिया के रिश्ते अधिक प्रिय थे। वे दोनों एक दूसरे से दूर होते गए, बात कम होने लगी, मुलाकातें न के बराबर हो गईं।
एक दिन मोहन ने महसूस किया कि यह दूरी दोनों के लिए हानिकारक है। उसने ठाना कि वह पुराने दिनों को वापस लाने की कोशिश करेगा। उसने रामलाल को फोन किया, लेकिन जवाब नहीं मिला। फिर भी वह हार नहीं माना। उसने रामलाल के घर जाकर उससे मिलने का निश्चय किया।
जब मोहन रामलाल के घर पहुंचा, तो उसने देखा कि रामलाल एक बड़े फोन स्क्रीन में खोया हुआ था। उसकी आंखें वर्चुअल दुनिया में डूबी थीं। मोहन ने उससे कहा, "भाई, हमें तुम्हारी असली दोस्ती की ज़रूरत है, न कि ये डिजिटल जुड़ाव।" रामलाल ने कुछ समझा नहीं, पर मोहन की बातें दिल तक पहुंचीं।
धीरे-धीरे दोनों ने फिर से दोस्ती निभानी शुरू की। उन्होंने मोबाइल का इस्तेमाल सीमित किया और पुरानी यादों को ताजा किया। वे फिर से एक साथ पेड़ पर चढ़े, नदी किनारे मछली पकड़ी, और बिना मोबाइल के एक दूसरे से जुड़े।
यह कहानी केवल रामलाल और मोहन की नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की है जो बदलती दुनिया में खुद को और अपने रिश्तों को बचाना चाहते हैं। तकनीक का सही इस्तेमाल हमें एक-दूसरे से जोड़ सकती है, पर अगर हम उसमें खो जाएं तो असली ज़िंदगी अधूरी रह जाएगी।
अंत में, बदलती दुनिया में हम भी बदलते हैं, पर हमें अपनी जड़ों को भूलना नहीं चाहिए। क्योंकि वही जड़ें हैं जो हमें ज़िंदा रखती हैं।
वो बचपन की सुनहरी यादें आज भी मेरे दिल में ताज़ा हैं, जब हम बिना किसी डिजिटल यंत्र के खुश थे। गाँव की मिट्टी की खुशबू, पेड़ों की छांव, और नदियों का कल-कल बहना हमारे जीवन का हिस्सा था। रामलाल और मैं बचपन के अनमोल दोस्त थे, जो साथ-साथ स्कूल जाते, खेलते, और बिना किसी फोन या इंटरनेट के भी एक-दूसरे के सबसे करीब थे। हमारी दोस्ती का आधार था सच्चाई, हँसी, और एक-दूसरे की陪
पर जैसे-जैसे साल बीते, दुनिया ने अपना रंग बदला। मोबाइल फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया ने हमारे जीवन में जगह बना ली। रामलाल ने नया स्मार्टफोन खरीदा, और उसकी हर शाम अब फोन की स्क्रीन तक सीमित हो गई। हम दोनों की बातें कम होने लगीं, मुलाकातें बंद हो गईं।
मेरे लिए वह बदलाव आसान नहीं था। मैं उस डिजिटल दुनिया के बीच खो नहीं पाता था, क्योंकि मेरी सोच अब भी सरल और वास्तविक रिश्तों की ओर थी। लेकिन रामलाल जैसे दोस्त तकनीक के जाल में उलझते गए। वे दोनों अब एक-दूसरे से दूर होते गए, पर दिल में दोस्ती की गर्माहट बनी रही।
एक दिन मैंने सोचा, क्या यह दूरी इतनी बढ़ जाएगी कि हम दोनों का वो अनमोल रिश्ता खत्म हो जाएगा? मैंने फोन किया, संदेश भेजे, पर रामलाल व्यस्त था। फिर मैंने ठाना कि मैं उसे मिलने जाऊंगा, और उसकी आंखें खोलूंगा कि असली जिंदगी डिजिटल दुनिया से कहीं ज्यादा खूबसूरत है।
जब मैं उसके घर पहुंचा, तो देखा वह एक बड़े फोन स्क्रीन में गुम था। मैंने उसकी तरफ देखा और कहा, "भाई, हम वो दोस्त हैं जो एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। ये स्क्रीन हमारी दोस्ती को खत्म नहीं कर सकती। चलो, फिर से वही पुराने दिन याद करें, जब हम बिना किसी तकनीक के खुश थे।"
रामलाल ने मेरी बातें सुनी, और शायद उसे भी एहसास हुआ कि हमने अपनी जड़ें खोनी शुरू कर दी हैं। वह थोड़ा मुस्कुराया, और हम दोनों ने ठाना कि हम अपनी दोस्ती को फिर से जीएंगे।
यही है बदलती दुनिया में हम — बदलते वक्त के साथ, पर अपनी असली पहचान को नहीं भूलने वाले। दुनिया चाहे कितनी भी बदल जाए, रिश्तों की अहमियत हमेशा कायम रहेगी।