Kothi No. 13 in Hindi Horror Stories by Rakesh books and stories PDF | कोठी नंबर 13

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कोठी नंबर 13



दिल्ली के बाहरी इलाके में एक पुरानी कोठी थी। टूटी-फूटी खिड़कियाँ, सड़ी हुई दीवारें और चारों तरफ फैली जंगली घास। लोग उसे कोठी नंबर 13 कहते थे। गाँव वालों का मानना था कि वहाँ एक औरत की आत्मा भटकती है। कहते हैं, जो भी उस कोठी में गया, वो वापस पहले जैसा नहीं लौटा।

कॉलेज के चार दोस्त — राहुल, समीर, नेहा और पूजा — ने इस कोठी के बारे में सुना। राहुल सबसे ज़्यादा जिज्ञासु था। उसने मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "अरे भूत-वूत कुछ नहीं होता। ये सब अंधविश्वास है। अगर हिम्मत है तो आज रात हम सब वहाँ चलेंगे।"
नेहा डरते हुए बोली, "पागल हो गए हो क्या? लोग कहते हैं वहाँ से लौटना मुश्किल है।" लेकिन आखिरकार सबने ठान लिया कि रात बारह बजे वो उस कोठी में जाएंगे।

घड़ी ने बारह बजाए और चारों कोठी में दाखिल हुए। दरवाज़ा चरमराकर खुला और अंदर से एक सड़ी हुई बदबू और ठंडी हवा बाहर आई। ऐसा लगा मानो कोई कानों में फुसफुसा रहा हो — वापस जाओ... पूजा काँपते हुए बोली, "मुझे अच्छा नहीं लग रहा, चलो लौट चलते हैं।" राहुल हँसते हुए बोला, "डरना बंद करो, ये सब हवा और अंधेरा है।"

अंदर अंधेरा छाया था। टॉर्च की रोशनी पुराने फर्नीचर और मकड़ी के जालों पर पड़ी। अचानक ऊपर से किसी औरत के रोने की आवाज़ आई — "ह्ह्ह... आआआ..." सबके कदम रुक गए। दीवार पर रोशनी पड़ी तो उन्होंने देखा कि वहाँ एक परछाईं चल रही थी, मगर वहाँ कोई इंसान मौजूद नहीं था। समीर डर के मारे चीख पड़ा, "ये... ये क्या है? यहाँ सच में कुछ है!"

चारों डरते-डरते ऊपर गए। कमरे में घुप्प अंधेरा था। जैसे ही खिड़की से चाँदनी अंदर आई, सबकी आँखें फटी रह गईं। सामने एक औरत लाल साड़ी में खड़ी थी। उसके बाल बिखरे थे, चेहरा जला हुआ था और आँखों से खून बह रहा था। उसकी ठंडी आवाज़ गूंजी — "क्यों आए हो... मेरी मौत का तमाशा देखने?" पूजा जोर से चीख पड़ी और नेहा की आँखों में आँसू आ गए।

उस औरत की आत्मा बोली, "सालों पहले... इस कोठी में मेरी हत्या हुई थी। मेरे पति ने मुझे ज़िंदा जला दिया क्योंकि मैंने उसके काले धंधों का राज़ खोल दिया था। तब से मैं यहाँ कैद हूँ। जब तक मेरा कातिल सज़ा नहीं पाएगा... मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।"

चारों सहमे खड़े थे। नेहा डरते हुए बोली, "हम... हम आपकी मदद कैसे कर सकते हैं?" आवाज़ गूंजी, "सच सबके सामने लाओ..."

इतना कहते ही कमरे का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। टॉर्च झपकने लगी। सबने महसूस किया कि कोई ठंडी सांस उनकी गर्दन पर चल रही है। समीर घबराकर बोला, "वो... वो हमारे साथ यहीं है!" तभी दीवारों पर खून से लिखा दिखाई दिया — मेरा कातिल... ज़िंदा है!

अचानक दरवाज़ा अपने आप खुल गया और चारों वहाँ से भागे। सुबह होने पर उन्होंने गाँव के बुज़ुर्ग से पूछा। बुज़ुर्ग ने गहरी सांस लेकर कहा, "हाँ बेटा, उस औरत का पति आज भी ज़िंदा है। वो जेल में उम्रकैद की सज़ा काट रहा है। शायद इसी वजह से उसकी आत्मा अब भी इस कोठी में कैद है।"

आज भी लोग कहते हैं कि आधी रात को उस कोठी से औरत के रोने की आवाज़ आती है। कभी खिड़कियों में उसकी लाल साड़ी की झलक दिखाई देती है। जिसने भी उस कोठी में कदम रखा, वो ज़िंदगीभर उस रात को भूल नहीं पाया।

कहते हैं, डर सिर्फ अंधेरे में नहीं होता... डर उस सच में छिपा होता है, जिसे लोग छुपाने की कोशिश करते हैं।