खामोश चेहरों के पीछे – पार्ट 3। छुपा हुआ सच
रात की स्याही इतनी गहरी थी कि चारों ओर घुप्प अंधेरा छाया हुआ था। हवा बिल्कुल थमी हुई थी, मानो कोई भी आवाज़ निकालने से डर रहा हो। चाँद की चमक बादलों के पीछे छिप गई थी, जिससे आकाश और भी डरावना लग रहा था। आँगन में रखी पुरानी लकड़ी की कुर्सी धीरे-धीरे हिल रही थी, मानो कोई उस पर बैठा हो। राघव एकदम स्थिर खड़ा था, उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन उसकी आँखें स्थिर थीं। उसकी निगाहें सामने खड़ी लड़की पर टिकी थीं — वही अंजलि, जो तीन साल पहले इस दुनिया से जा चुकी थी।
उसके चेहरे पर वही मासूम मुस्कान थी, पर उसकी आँखों में गहरी उदासी और कुछ अनकहे दर्द की परछाई भी थी। वह अब भी वैसी ही लग रही थी, जैसे कोई सपना जो टूट नहीं पाया हो। राघव की आवाज़ कांप रही थी, लेकिन उसने हिम्मत करके पूछा, “तुम यहाँ कैसे आई हो? तुम मर चुकी हो, लोग क्या कहते हैं?”
अंजलि की आवाज़ धीमी और गंभीर थी, “राघव… मेरी मौत कोई हादसा नहीं था। मैं मर नहीं पाई। मेरी कहानी अधूरी है, और तुम्हें सच जानना होगा।”
राघव का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसके होठ सूखे हो गए थे। वह धीरे से बोला, “क्या मतलब? वो तो ब्रेक फेल हो गया था, कार गिर गई…”
अंजलि ने उसकी बात बीच में काटते हुए कहा, “वो ब्रेक किसी ने काटा था। यह हादसा नहीं, हत्या थी। और तुम जानते हो कि ये किसने किया।”
राघव के होश उड़ गए। बारिश की उस रात की यादें उसकी आँखों के सामने घूमने लगीं — फिसलती कार, चीखती अंजलि, और वो भयावह खाई। उसने अपने दिल को संभालते हुए पूछा, “लेकिन अब ये सब क्यों? ये बात मुझे अब क्यों सुनानी है?”
अंजलि ने एक कदम आगे बढ़कर धीरे से कहा, “क्योंकि जिसने मुझे मारा था, वह अब तुम्हें खत्म करने आ रहा है। अगर तुमने सच नहीं जाना, तो अगला निशाना तुम ही हो।”
राघव का सारा शरीर ठंड से काँप उठा। वह पीछे हटना चाहता था, लेकिन उसके पैर ज़मीन में जकड़े हुए थे। तभी, आँगन के दरवाज़े पर एक परछाई आई। वह कोई इंसान था, काले कपड़ों में, चेहरे पर नकाब था, और हाथ में चमकती हुई लंबी चाकू की धार थी।
राघव का दिल धड़कने लगा, उसका मन घबराया। उसने देखा कि अंजलि की आँखें अचानक लाल हो गईं और वह उस नकाबपोश के सामने डट गई — “तुमने मेरी जान ली थी, अब तुम्हारी बारी है।”
हवा में एक तेज़ चीख गूँजी और दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया।
राघव वहीं खड़ा था, पसीने से भीग चुका था, लेकिन जब उसने चारों तरफ़ देखा तो ना अंजलि थी, ना वो नकाबपोश। सिर्फ़ ज़मीन पर खून की कुछ बूंदें और एक टूटी हुई चूड़ी पड़ी थी, वही चूड़ी जो अंजलि ने अपनी मौत वाली रात पहनी थी।
राघव ने कांपते हुए उसे उठाया, तभी कानों में धीमी फुसफुसाहट गूँजी — “कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, राघव… असली चेहरा अगली रात सामने आएगा।”
राघव के दिल में एक डर समा गया था, जो उसे कुछ कहने नहीं दे रहा था। उसकी सोच में केवल एक सवाल था — “असली चेहरा कौन? और क्या वह सच में वापस आ जाएगा?”
राघव ने अपने आप से कहा, “मुझे सच जानना होगा, चाहे कुछ भी हो जाए।” वह जानता था कि इस रहस्य के पीछे उसके और अंजलि दोनों की ज़िंदगियाँ दाँव पर लगी हैं।
आँखें बंद करके उसने अपने भीतर छिपे डर को समेटा और ठानी कि वह सच का सामना करेगा। इस बार खामोशी उसकी ताकत बनेगी, क्योंकि अब वह जान चुका था कि खामोश चेहरों के पीछे छुपा हुआ सच कितना खतरनाक हो सकता है।
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अगर आप चाहो तो मैं इसी अंदाज़ में पार्ट 4 नए अंदाज के साथ खत्म कर दिया है फॉलो और शेयर करो🙏🙏🙏