Dhumketu - 3 in Hindi Fiction Stories by mayur pokale books and stories PDF | धूमकेतू - 3

Featured Books
Categories
Share

धूमकेतू - 3

🌠 धूमकेतु – भाग 3: सच्चाई



चारों ओर सन्नाटा।
पुलिस की गाड़ियों की लाइटें अब भी टिमटिमा रही थीं। लोग अभी भी सदमे में थे।
अजय की मां चीख रही थीं—“अजय! अजय कहाँ गया?”

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

आकाश में काले बादलों के बीच से एक परछाई छलांगें लगाते हुए शहर से दूर निकल चुकी थी — अजय को लेकर।


---

धीरे-धीरे अजय को होश आता है।
उसकी पलकें भारी थीं, सिर में दर्द और शरीर थक चुका था।
आंखें खुली तो खुद को एक अजीब से बंद कमरे में पाया — चारों ओर धातु की दीवारें, बिना किसी खिड़की के।
अजय डर गया।

तभी एक गूंजती आवाज आई —
"घबराओ मत, तुम सुरक्षित हो।"

"क-कौन हो तुम?" अजय सहमते हुए बोला।

सामने की दीवार खिसकती है। उसमें से वही अजीब प्राणी निकलता है जिसने अजय को अगवा किया था।
अब उसकी शक्ल इंसानी थी, मगर आंखों में एक अलग ही चमक थी।
"मैं प्रोफेसर गांधी हूं," वो मुस्कराया।


---

"मुझे यहां क्यों लाए हो?" अजय चीख पड़ा।

प्रोफेसर गांधी गहरी सांस लेकर बोलता है —
"इस दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं, अजय। एक वो जो दुनिया को सुधारना चाहते हैं… और दूसरे, जो इस दुनिया को झुकाना चाहते हैं। मैं पहले टाइप में था — एक वैज्ञानिक, एक आविष्कारक। लेकिन जब दुनिया ने मेरी प्रतिभा को ठुकरा दिया, तो मैंने अपनी दिशा बदल दी। अब मेरा एक ही लक्ष्य है — इस दुनिया पर राज करना!"

अजय चौंका।
"तुम पागल हो गए हो!"

"नहीं," गांधी बोला, "मैं जाग गया हूं।"


---

"मुझे इससे क्या लेना?"

गांधी मुस्कराया,
"क्योंकि तुम भी अब मेरे जैसे हो। उस उल्कापिंड को याद है? जो तुमने उठाया था? उसमें छिपी शक्ति अब तुम्हारे अंदर है। जैसे मुझमें समाई थी।
अब सोचो — अगर हम दोनों साथ हों, तो क्या कर सकते हैं!"

"मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं दूंगा!" अजय गुस्से में बोला।

गांधी की आंखों में लाली दौड़ गई।
उसने हाथ उठाया, और लाल रंग की ऊर्जा की किरण अजय पर छोड़ी।
वो बीम अजय को उठाकर कमरे की छत फाड़ते हुए आकाश में ले गई।

अजय दर्द से चिल्लाया।

"अब भी वक्त है, शामिल हो जाओ मुझमें!" गांधी गरजा।

और फिर हाथ नीचे कर दिया।
अजय तेज़ी से नीचे गिरा और ज़मीन से टकराया। वो बेहोश नहीं हुआ, लेकिन बुरी तरह जख्मी हो गया।

गांधी उसके पास आया और कहा —
"तुम्हें नहीं पता कि मैं क्या हूं। तुम्हारी उम्र जितनी है, मेरा अनुभव उससे दोगुना। सोच लो। रात तक का समय है तुम्हारे पास।"

गांधी फिर अजय को उसी कमरे में बंद कर चला गया।


---

🌌 दूसरी ओर...

एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में दो वैज्ञानिक उस उल्कापिंड के टुकड़े का परीक्षण कर रहे थे।

"मिस्टर पाल," एक वैज्ञानिक बोला, "ये उल्कापिंड नहीं है। ये किसी एडवांस टेक्नोलॉजी का हिस्सा लगता है। शायद कोई वेपन… या इंटरडायमेंशनल एनर्जी सोर्स।"

पाल ने गंभीरता से कहा,
"तो क्या आप एलियंस की बात कर रहे हैं?"

"शायद।"
"अगर ऐसा है," पाल ने कहा, "तो वो चीजें खो चुकी हैं और अब उन्हें पता चल गया कि वो हमारे ग्रह पर हैं। हमें खतरा है।"

"हमें ये बात संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचानी होगी," वैज्ञानिक ने जोड़ा, "पूरी दुनिया को खतरा है।"


---

🌑 बंद कमरे में अजय...

कमरे में अंधेरा था। अजय कमजोर था, मगर मन में एक विचार कौंधा —
"अगर उस पत्थर से गांधी को शक्तियां मिली हैं, तो मुझमें भी वही शक्ति हो सकती है।"

उसने ध्यान केंद्रित किया।
गांधी जैसी छलांग मारने की कोशिश की।
पहले प्रयास में गिर पड़ा। फिर से कोशिश की…
और तीसरी बार में वो उछलकर छत को छू गया।

अब अजय जान गया था —
उसमें भी ताकत है।

उसने पूरी शक्ति से छलांग लगाई, छत को तोड़ा और बाहर आ गया।

बाहर सिर्फ वीराना था — एक सुनसान जगह, चारों ओर खामोशी।
वो वहां से निकल गया, बिना पीछे देखे।


---

🍽️ पुणे, एक रेस्टोरेंट

अजय अब एक शांत रेस्टोरेंट में बैठा था, खाना खा रहा था।
लेकिन दिमाग अब भी उसी घटना में उलझा था।

तभी एक 40 साल का अजनबी उसके सामने आकर बैठ गया।

"हेलो अजय," उसने मुस्कराते हुए कहा।

अजय चौंका,
"तुम मुझे जानते हो?"

"हाँ," वो बोला,
"मुझे पता है कि तुममें उल्कापिंड की शक्तियाँ आ गई हैं।"

अजय अब और भी चौक गया।
"तुम कौन हो?"

उस आदमी ने जेब से एक डिवाइस निकाला —
"इस डिवाइस से मुझे पता चला। और ये दूसरा डिवाइस तुम्हारे लिए है — इसे हाथ में पहनो। इससे प्रोफेसर गांधी या कोई और तुम्हें ट्रैक नहीं कर पाएगा।"

अजय को यकीन नहीं हुआ —
"तुम्हें कैसे पता कि मुझे प्रोफेसर ने अगवा किया था?"

वो आदमी बस मुस्कराया और बोला —
"अभी बहुत कुछ जानना बाकी है, अजय..."


---