Chapter 14: जब आँखें खुलीं
अस्पताल की मशीनों की बीप अब तेज़ हो रही थी।
Mr. Singh की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। कमरे में अंधेरा था, लेकिन उसकी आँखों में अब उजाले की ज़रूरत नहीं थी — उसके सीने में जो सवाल थे, वो हर रौशनी से तेज़ जल रहे थे।
उसने अपने चारों ओर देखा — कोई अपना नहीं था।
डॉक्टर पास आया, मुस्कुराया और बोला —
“आप वापिस आ गए, Mr. Singh… दुनिया ने आपको मरा हुआ मान लिया था।”
Singh ने आँखें बंद करते हुए धीमे से कहा —
> “मैं मरा नहीं था… बस मोहब्बत में अधूरा हो गया था।”
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🕯 Siya की बेचैनी
उधर Siya अब भी उसी पार्क में बैठती थी, जहाँ कभी Singh ने पहली बार उसके लिए शायरी पढ़ी थी।
वो हर रोज़ Aarav से दूर होती जा रही थी। अब उसे Aarav की आँखों में अफ़सोस दिखता था, लेकिन दिल में भरोसा नहीं बचा था।
> “मैंने जिससे भरोसा किया, उसी ने मेरी कहानी छीन ली…”
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📞 एक कॉल — जो सब बदल दे
अस्पताल में Singh ने अपनी कमजोरी के बावजूद फ़ोन उठाया।
उसने एक नंबर मिलाया — वो नंबर जिसे कभी सिर्फ़ ज़रूरत के वक़्त कॉल करता था।
“हमें मिलने की ज़रूरत है,” Singh ने कहा।
“सबसे पहले उस आदमी का नाम चाहिए जिसने धमाका करवाया…”
दूसरी तरफ से आवाज़ आई —
“नाम Aarav है।”
Singh चुप रहा…
फिर धीमे से बोला —
> “वो लड़का… Siya के पीछे-पीछे आया था।”
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😔 Singh का टूटा दिल
Singh अब व्हीलचेयर पर था।
उसने अस्पताल के बाहर का आसमान देखा और बुदबुदाया —
> “जिससे मोहब्बत की, उसी की आंखों में अब शक है...
और जिसने मुझसे नफ़रत की, उसी ने मेरी सांसें छीनी हैं…”
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🔥 एक फ़ैसला
Mr. Singh अब चुप नहीं रहेगा।
उसे Aarav से जवाब चाहिए।
उसे Siya से सच चाहिए।
और खुद से — सुकून चाहिए।
Chapter 15: वापसी
शहर के एक बड़े इवेंट में सब लोग हैरान थे — मीडिया, बिज़नेसमैन, पुराने दुश्मन… सब।
स्टेज पर अचानक रौशनी पड़ी।
और लोगों की साँसें थम गईं।
Mr. Prashant Singh... ज़िंदा थे।
काले सूट में, चेहरे पर वही पुरानी रौनक, लेकिन अब आँखों में ग़ुस्सा नहीं, एक गहरा सन्नाटा था।
माइक पर आते ही उन्होंने सिर्फ़ एक बात कही —
> “कभी-कभी मौत से लौटना जरूरी होता है…
ताकि कुछ ज़िंदा रिश्तों को दफ़न किया जा सके।”
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💔 Siya का टूटा दिल
Siya को Singh के ज़िंदा होने की ख़बर पार्टी से पहले ही मिल गई थी।
लेकिन वो Singh का सामना करने से डर रही थी।
क्यों?
क्योंकि Singh अब सिर्फ़ एक आशिक़ नहीं था — वो अब एक अधूरी मोहब्बत का गवाह भी था और एक ज़िंदा बदला भी।
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Chapter 16: सफ़ाई या सज़ा?
Aarav अब टूट चुका था।
वो Singh के सामने खड़ा था — न सफ़ाई देने आया था, न लड़ने।
उसने सिर झुकाकर बस इतना कहा —
> “मैंने सिर्फ़ Siya से प्यार किया… लेकिन उसे खो देने के डर ने मुझे अंधा बना दिया…”
Singh की आँखें स्थिर थीं।
वो चुपचाप Aarav के पास आया… और उसके कंधे पर हाथ रखा।
> “जिस दिन तू खुद से नफ़रत करने लगेगा, उसी दिन तुझे मेरी सज़ा मिल जाएगी।”
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Siya की चुप्पी
Singh और Siya आमने-सामने खड़े थे।
Siya ने कहा —
> “तुम ज़िंदा हो… लेकिन मैं वैसी नहीं रही जैसी तुमने छोड़ी थी।”
Singh मुस्कराया… और सिर्फ़ इतना कहा —
> “मुझे तुझसे मोहब्बत थी… और शायद अब भी है। लेकिन अब मेरा दिल सिर्फ़ सुकून चाहता है — तुझसे नहीं, तुझसे दूर होकर।”
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Chapter 17: अधूरा इख़्तेताम
एक सुबह Singh अकेले एक पहाड़ी मंदिर पर चढ़ रहा था।
उसके हाथ में वही डायरी थी — जिसमें Siya के लिए लिखी हर शायरी दर्ज थी।
उसने आखिरी पन्ने पर कुछ लिखा:
> “तुम मोहब्बत थीं… मैं ग़लत वक़्त में था।
मिल जाते अगर सही वक़्त पर… शायद कहानी कुछ और होती।”
वो डायरी मंदिर की आखिरी सीढ़ी पर रखकर पीछे मुड़ा…
...और वहाँ कोई खड़ा था।
उसका चेहरा दिखता नहीं… लेकिन आवाज़ आई —
> “Prashant Singh, अब तू ज़िंदा नहीं बचेगा।”
❖ समाप्त… या शायद नहीं।
क्या Singh फिर से मरा?
कौन था वो शख़्स?
Aarav? Siya? कोई पुराना दुश्मन?
या कोई जिसे अब तक हमने देखा ही नहीं...?