Tere Bina Adhuri se Jindagi - 2 in Hindi Love Stories by Prashant books and stories PDF | तेरे बिना अधूरी सी ज़िंदगी - 2

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तेरे बिना अधूरी सी ज़िंदगी - 2

Chapter 5: पहली मुलाक़ात का असर

Siya की ज़िंदगी एक सीधी लकीर की तरह चल रही थी — कॉलेज, किताबें, कुछ सपने और थोड़ी सी तन्हाई। लेकिन एक शाम, वो अपने पसंदीदा कैफ़े में अकेली बैठी थी, जब किसी की नज़रें उसके दिल तक उतर गईं।

Aarav वहीँ कैफ़े के कोने में बैठा था। Siya को देखकर उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई। उसने Siya को पहले कभी नहीं देखा था, लेकिन न जाने क्यों उसका दिल एक पल को ठहर गया।

Siya अपने चाय के प्याले में खोई हुई थी, और तभी Aarav ने पहली बार उससे बात करने की सोची।

"Excuse me, क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ?" — Aarav ने विनम्रता से पूछा।

Siya ने उसकी तरफ़ देखा, कुछ पल सोचा, फिर सिर हिलाकर हाँ कह दिया।

कुछ देर की चुप्पी के बाद, Aarav ने मुस्कुराकर कहा —

> "आपकी आँखों में कोई बात है, जैसे कोई अधूरी कहानी छुपी हो।"



Siya थोड़ी चौक गई, फिर मुस्कुराकर बोली —

> "कहानी अधूरी नहीं, बस सुनने वाला अब तक नहीं मिला।"



तभी कैफ़े का दरवाज़ा खुला, और एक रौबदार शख़्स अंदर दाख़िल हुआ। काले सूट में, तेज़ निगाहें और चाल में ग़ज़ब का आत्मविश्वास — Mr. Prashant Singh।

Siya ने अचानक Aarav से माफ़ी माँगी और खड़ी हो गई। Aarav हैरान रह गया। Siya सीधा उस आदमी की तरफ़ बढ़ गई और हल्के से मुस्कुराकर बोली —

"आप देर हो गए Mr. Singh।"

Mr. Singh ने मुस्कराकर जवाब दिया —

> "ज़रा कुछ लोग थे जो रास्ते में सवाल ज़्यादा पूछ रहे थे, जवाब कम समझ रहे थे।"



Siya और Mr. Singh अब एक साथ बैठ चुके थे। Aarav वहीं कोने में रह गया, लेकिन अब उसकी नज़रों में कुछ और था — जिज्ञासा, बेचैनी और शायद थोड़ा सा डर भी।

Aarav धीरे-धीरे उठा और बाहर चला गया, लेकिन उसका दिल अब Siya के लिए धड़कने लगा था, और Singh के लिए सवालों से भरने लगा था।

उसे पहली बार लगा — ये सिर्फ़ पहली नज़र का प्यार नहीं, कोई और कहानी भी यहाँ लिखी जा रही है।

(जारी...)




Chapter 6: दिल की हलचल

कैफ़े से बाहर निकलते वक़्त Aarav का मन अशांत था। Siya की मुस्कान, उसकी आवाज़, और फिर अचानक उस आदमी — Mr. Singh — के लिए उसका बदलता रवैया, सब कुछ Aarav को भीतर से झकझोर गया था।

वो सड़कों पर यूँ ही चलने लगा, अपने ही ख़यालों में खोया हुआ।

> “कौन था वो आदमी? Siya उससे इतनी सहज कैसे हो गई?”
“और मैं... क्या मैं बस एक अजनबी रह जाऊँगा?”



वो खुद से सवाल करता रहा।

उधर, Mr. Singh और Siya की बातचीत कैफ़े के कोने में जारी थी। Singh की आँखों में गहराई थी, जैसे वो हर बात में कुछ छुपा रहा हो।

Mr. Singh मुस्कुराकर बोला —

> “Siya, तुम जानती हो, दुनिया को दिखाने के लिए मेरे पास बहुत कुछ है… लेकिन दिल दिखाने के लिए बहुत कम लोग।”



Siya ने हल्की मुस्कान के साथ कहा —

> “मैं आपको अब तक समझ नहीं पाई हूँ, Mr. Singh।”



Singh ने फिर शायरी में जवाब दिया —

> “मैं जालिम नहीं, बस हालातों का मारा हूँ,
दिल तो मेरा भी चाहता है मोहब्बत… पर मैं ख़ुद से ही हारा हूँ।”



Siya उसकी बातों से प्रभावित ज़रूर थी, लेकिन कहीं न कहीं उसकी मासूमियत Aarav की सादगी में भी खो चुकी थी।


---

उस रात Aarav ने Siya की सोशल मीडिया प्रोफाइल खंगाली। वहाँ उसे कुछ तस्वीरें दिखीं — जिनमें Siya और Mr. Singh एक ही इवेंट में थे। शायद यही कोई रिश्ता था, या कोई कड़ी, जिसे Aarav अब जोड़ने लगा था।

और यहीं से शुरू हुई उसकी खोज — Mr. Singh कौन है? Siya से उसका क्या रिश्ता है? और… क्या Aarav को अपनी जगह बनाने का कोई मौका मिलेगा?

(जारी...)


Chapter 7: परछाइयों के पीछे

Aarav अब बेबस आशिक़ नहीं रहा। उस रात के बाद उसके अंदर एक बेचैनी थी — जानने की, समझने की, और Siya तक पहुँचने की।

Mr. Singh कौन है? Siya उससे क्यों जुड़ी है? और क्या ये सब उतना ही सीधा है जितना दिख रहा है?

उसने अपनी यूनिवर्सिटी के कुछ सीनियर्स और कॉन्टैक्ट्स से पूछताछ शुरू की। और फिर धीरे-धीरे कुछ सच सामने आने लगे।

Singh कोई आम आदमी नहीं था।

उसका असली नाम Prashant Singh था।

उम्र 28-29, लेकिन शहर के नामी बिज़नेसमैन।

कई बड़ी पार्टियों और इवेंट्स में दिखने वाला चेहरा।

लेकिन सबसे खास बात — उसके नाम पर कई कानूनी सवाल खड़े थे। रियल एस्टेट, ब्लैक मनी, पॉलिटिकल कनेक्शन… और कुछ ऐसा जो काग़ज़ों में नहीं था, सिर्फ़ फुसफुसाहटों में था।


Aarav हैरान रह गया। Siya को क्या ये सब पता है?

उधर Siya भी परेशान थी।

Mr. Singh उसे पसंद तो था — उसकी शायरी, उसका अंदाज़, और वो रहस्यमयी गंभीरता। लेकिन Aarav की आँखों में उस दिन जो कुछ था, उसने Siya को भी सोचने पर मजबूर किया।


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एक शाम Siya अपनी किताबें लेकर उसी कैफ़े में पहुँची। Aarav पहले से ही वहाँ था।

“तुम फिर यहीं हो?” — Siya ने हँसकर पूछा।

“तुम्हें देखना आदत बन गई है।” — Aarav का जवाब धीमा था, लेकिन साफ़।

कुछ देर की चुप्पी के बाद Siya ने पूछा —
“तुम मुझे कुछ बताना चाहते हो, है ना?”

Aarav ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा —

> “तुम्हें Mr. Singh से बच कर रहना चाहिए... सब कुछ वैसा नहीं है जैसा दिखता है।”



Siya सन्न रह गई।

> “तुम किस हक़ से कह रहे हो ये सब?”



Aarav चुप रहा… क्योंकि वो खुद भी नहीं जानता था — मोहब्बत का हक़ कैसे माँगा जाता है।


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(जारी...)