कमरे की पुरानी पेंडुलम घड़ियाँ अब भी एक साथ टन-टन बज रही थीं, मानो कोई अदृश्य शक्ति हर धड़कते पल की गिनती कर रही हो। बंद दरवाज़े के पीछे आर्यन, तारा, रिया, देव, कबीर और निशी एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे कोई दूसरा रास्ता न बचा हो।
“हमें यहाँ से निकलना ही होगा,” आर्यन ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ अब खुद में भरोसे से खाली थी।
“निकले कहाँ से?” कबीर चिढ़ते हुए बोला, “दरवाज़ा खुद ब खुद बंद हो गया है, खिड़की नहीं है, और छत पर चढ़ने की मेरी कोई इच्छा नहीं है… भूतों की छत से तो मेरी छत ही ठीक है!”
तारा ने कहा, “कबीर, ये समय मज़ाक का नहीं है।”
“मैं तो डर के मारे मज़ाक कर रहा हूँ,” कबीर बड़बड़ाया, “अंदर से पूरी आत्मा काँप रही है।”
देव अब पहले से थोड़ा बेहतर लग रहा था, लेकिन उसकी साँसें अब भी अनियमित थीं। रिया उसके पास बैठी थी, उसकी हथेली थामे।
"देव, हमें बताओ, इस हवेली के बारे में और क्या जानते हो?" रिया ने पूछा।
देव ने धीमे स्वर में कहना शुरू किया, “इस हवेली के नीचे एक तहखाना है, जो कभी खुला नहीं था। राजा देवनारायण वहीं छुपा करता था। कहते हैं, उसने वहाँ किसी आत्मा से सौदा किया था — अपनी रानी को वापस पाने के लिए।”
“किसी आत्मा से सौदा?” तारा ने हैरानी से पूछा।
“हाँ,” देव बोला, “लेकिन बदले में उसे एक कीमत चुकानी पड़ी — अपने पूरे वंश की।”
आर्यन ने कहा, “इसलिए ये हवेली शापित है…”
“और अब ये हमें अपना अगला हिस्सा बनाना चाहती है,” निशी ने धीरे से कहा। उसकी आँखें अब भर आई थीं।
सबकी निगाहें एक-दूसरे पर टिकी थीं। सन्नाटा ऐसा था कि हवेली की दीवारें भी सुन रही हों।
तभी अचानक कमरे की दीवार में हलचल हुई। नहीं, दीवार नहीं — दीवार पर टंगी तस्वीर। एक पल को वो तस्वीर हिलने लगी, जैसे उसके भीतर कोई साँस ले रहा हो।
“कोई उस पर हाथ न लगाए!” आर्यन चिल्लाया।
लेकिन तब तक कबीर, जो हमेशा चीज़ों को हल्के में लेता था, बोल पड़ा, “क्या यार, एक तस्वीर से डर गए? देखता हूँ कौन-सी कला है!”
और उसने तस्वीर को हाथ लगा दिया।
तस्वीर अपने आप फर्श पर गिर पड़ी। पीछे की दीवार में एक दरार खुल गई — और धीरे-धीरे एक गुप्त रास्ता सामने आया।
सबकी साँसे थम गईं।
“ये… गुप्त दरवाज़ा?” तारा की आँखें चौड़ी हो गईं।
“मुझे लगता है... ये वही तहखाना है,” देव ने कहा।
कबीर पीछे हट गया, “मुझे नहीं जाना... मेरा काम सिर्फ मज़ाक उड़ाना है, तहखाने में नहीं उतरना!”
“शायद ये हमारी निकासी का रास्ता भी हो सकता है,” आर्यन ने कहा। “या फिर इस सब के पीछे की असली सच्चाई वहीं छुपी हो।”
कुछ सेकंड तक सब चुप रहे।
फिर तारा बोली, “मैं आर्यन के साथ जाऊँगी।”
रिया ने देव का हाथ थामा, “हम भी चलेंगे। साथ हैं, तो डर भी कम लगता है।”
निशी ने कबीर की ओर देखा, “तुम?”
कबीर ने गहरी साँस ली, “ठीक है... लेकिन अगर कोई भूत मेरी नाक पकड़ ले तो दोष मत देना!”
सबने टॉर्च और मोबाइल की लाइट जलाई, और धीरे-धीरे उस दरार से होते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगे। रास्ता संकरा था, साँसें भारी थीं, और हर कदम पर फर्श ऐसे चरमराता जैसे चीख रहा हो।
नीचे पहुंचते ही सबको अजीब सी सर्दी का एहसास हुआ। यह सर्दी मौसम की नहीं थी — यह डर की ठंडी थी।
तहखाने में घुप्प अंधेरा था। लेकिन दीवारों पर बनीं रहस्यमयी चित्रकारी, और पुराने संस्कृत के मंत्र वहां अब भी उकेरे हुए थे।
“यहाँ... किसी ने कुछ किया है,” देव ने कहा। “यह... एक यज्ञ स्थल जैसा है।”
रिया की नज़र एक पुराने पीतल के बक्से पर गई। उसने धीरे-धीरे उसका ढक्कन खोला।
अंदर थीं कुछ पुरानी चिट्ठियाँ — खून से सनी हुईं।
तारा ने एक चिट्ठी उठाई और पढ़ना शुरू किया —
“जो भी इस रहस्य को खोलेगा, वह खुद उसका हिस्सा बन जाएगा। आत्माएँ वापस चाहती हैं... जो उनसे छीना गया था।”
“मतलब... हम ही वो ‘कीमत’ हैं?” निशी की आवाज़ काँप गई।
तभी तहखाने के कोने से धीमे-धीमे रुदन की आवाज़ आने लगी।
"कोई... रो रहा है?" रिया ने पूछा।
“लगता है कोई बच्चा है...” तारा बोली।
कबीर चिल्लाया, “बच्चा? अरे भूतिया हवेली में बच्चा कहाँ से आएगा? कहीं वो गुड़िया की बहन तो नहीं?”
“शांत रहो, कबीर,” आर्यन ने सख़्ती से कहा। “हमें देखना होगा।”
वे सब आवाज़ की दिशा में बढ़े। एक पतला सा दरवाज़ा था, जो खुद ही धीरे-धीरे खुल गया।
भीतर एक छोटी सी लड़की बैठी थी — सफेद कपड़े में, बाल बिखरे हुए, और उसका चेहरा... बिलकुल फीका।
उसने सबकी तरफ देखा, और एक डरावनी मुस्कान दी।
“तुम लोग… भी आ गए…” उसकी आवाज़ गूंजने लगी।
“तुम कौन हो?” रिया ने पूछा।
“मैं वही हूँ... जिसकी वजह से ये सब शुरू हुआ था…”
“क्या मतलब?” आर्यन ने पूछा।
“मैं रानी की आत्मा हूँ... और मैं अब भी अपने राजा का इंतज़ार कर रही हूँ…”
“राजा देवनारायण?” देव ने चौंक कर पूछा।
"हाँ... और तुम सब... मेरे रास्ते के काँटे हो..."
उसकी आँखें लाल हो गईं, और कमरा अचानक हिलने लगा।
आर्यन ने चिल्लाया, “सब भागो!”
वे सब भागते हुए तहखाने से बाहर निकले, तस्वीर वाले दरवाज़े से होकर फिर मुख्य हॉल में आए।
पीछे से लड़की की डरावनी हँसी गूंजती रही।
कबीर हाँफते हुए बोला, “भाई... मेरी पैंट भी थर-थर काँप रही है! अब मैं कभी मज़ाक नहीं करूँगा! मैं तो बाबा का भक्त बन जाऊँगा!”
निशी ने, पहली बार हँसते हुए कहा, “बाबा की ही कृपा से बच पाए हैं शायद।”
देव अब फिर गंभीर हो गया, “अब हमें यहाँ एक रात और नहीं रुकना चाहिए। हम इस हवेली की आत्मा को जगा चुके हैं। और अब... वो हमें छोड़ेगी नहीं।”
रिया उसकी तरफ बढ़ी, “अगर हमने इसे शुरू किया है... तो अब हमें इसे ख़त्म भी करना होगा।”