Shaapit Haweli ka Rahashy - 2 in Hindi Spiritual Stories by Sai Sesya books and stories PDF | शापित हवेली का रहस्य - 2

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शापित हवेली का रहस्य - 2

दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ, और एक तेज़ चीख हवेली की दीवारों से टकराकर गूंज उठी। लालटेन की लौ बुझ चुकी थी, और कमरे में अब सिर्फ़ स्याह अंधेरा था।

रिया दीवार के पास सिमटी खड़ी थी, उसकी साँसें तेज़ हो चुकी थीं। "किसने चीखा?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।

"मैं नहीं था," कबीर की घबराई हुई आवाज़ आई। "किसी और की थी..."

"दरवाज़ा खोलो!" निशी ने घबराते हुए कहा। वो तेजी से दरवाज़ा खींचने लगी, लेकिन वो जैसे किसी अदृश्य ताक़त से जड़ा हुआ था — टस से मस नहीं हो रहा था।

आर्यन ने ज़मीन से गिरी हुई लालटेन उठाई और उसकी माचिस जलाने की कोशिश की। हाथ काँप रहे थे, लेकिन किसी तरह उसने लौ जला ही ली। कमरा हल्की सी पीली रोशनी से रोशन हुआ।

देव, जो अब भी शांत था, दीवार पर बने पुराने निशानों को गौर से देख रहा था।

“ये… ये खून के निशान लग रहे हैं,” उसने कहा।

सबकी नज़रें वहाँ चली गईं — दीवार पर खुरच-खुरच कर कुछ लिखा गया था, जो धुंधले खून से अब भी चमक रहा था:

"वो लौट आया है..."

तारा ने धीरे से पढ़ा। “कौन?”

रिया बुदबुदाई, “ये मज़ाक नहीं हो सकता… ना ही ये कोई पुराना निशान है… ये ताज़ा खून है।”

कबीर की हँसी पूरी तरह गायब हो चुकी थी। “भाई, चलो यहाँ से नीचे चलते हैं। ये जगह नॉर्मल नहीं है।”

आर्यन ने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की। इस बार उसे थोड़ा झटका दिया और दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया — बिना किसी रुकावट के।

“अब खुल कैसे गया?” तारा ने पूछा, डर और हैरानी साथ-साथ उसके चेहरे पर थे।

“शायद जो चाहता था कि हम पढ़ें... उसने पढ़वा दिया,” देव ने कहा। उसकी आँखें अब और गंभीर थीं।

नीचे लौटने पर, सबने तय किया कि अब मज़ाक का वक़्त नहीं है। अब उन्हें समझदारी से सोचना होगा।

रिया ने कहा, “हमें एक कमरा चुनकर एकसाथ रहना चाहिए। अलग-अलग होकर कुछ उल्टा-पुल्टा हुआ तो... कोई नहीं बचेगा।”

कबीर ने रिया की बात से सहमति जताई, “हाँ हाँ, मैं तो किसी के भी साथ सोने को तैयार हूँ। कोई भी चलेगा — आर्यन, देव, दीवार, भूत... बस अकेले नहीं।”

“मैं रिया और तारा के साथ हूँ,” निशी बोली।

“तो मैं कबीर और देव के साथ रहूँगा,” आर्यन ने कहा। "ठीक है, एक ही हॉल में सबकी मैट्रेस बिछा लेते हैं, ताकि कोई अकेला न रहे।"

देव ने कुछ नहीं कहा, लेकिन वो पूरी तरह चुप नहीं था — उसकी आँखें हर कोने का अध्ययन कर रही थीं। वो इस हवेली से कुछ छुपा नहीं पा रहा था।

कुछ देर बाद सब लोग हॉल में आ गए। कुछ मोमबत्तियाँ जला दी गईं, और बैग से निकाले हुए स्लीपिंग बैग्स बिछा दिए गए।

लेकिन हवा में कुछ अजीब था। जैसे हवेली को यह पसंद नहीं आया हो कि उसके मेहमान इतनी आसानी से फिर से सहज हो गए।

“क्या तुम्हें लगता है ये सच में शापित है?” तारा ने धीमे से आर्यन से पूछा।

आर्यन ने कहा, “पहले मुझे लगता था कि ये सब बनावटी कहानियाँ हैं, लेकिन अब... अब मुझे समझ नहीं आ रहा।”

“क्या कोई अंदर है हमारे अलावा?” उसने फिर पूछा।

आर्यन ने चुपचाप ‘हाँ’ में सिर हिलाया।

उसने आगे कुछ नहीं कहा। लेकिन उसकी पकड़ तारा के हाथ पर कस गई।

कई मिनटों तक कोई नहीं बोला।

तभी अचानक कबीर चिल्ला पड़ा, “मेरा फोन...! मेरा फोन कहीं चला गया!”

"कब तक तू मज़ाक करेगा!" निशी ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में भी अब हँसी नहीं थी।

"नहीं सच में! मैंने अपने तकिए के नीचे रखा था, अभी था… अब नहीं है।" कबीर पूरी तरह घबरा गया था।

देव बोला, “किसी ने ले लिया है। कोई इंसान नहीं... कोई और।”

“कोई और?” तारा ने पूछा, “तुम्हें कैसे पता?”

देव की आँखें बुझी-बुझी थीं, जैसे वो अतीत की किसी छाया से लड़ रहा हो।

“क्योंकि मैं पहले भी इस हवेली में आ चुका हूँ…”

सन्नाटा छा गया।

“क्या?” रिया चौंकी। “कब?”

“चार साल पहले,” देव बोला। “मेरे कज़िन्स ने एक पार्टी रखी थी। सब यहीं आए थे... ठीक ऐसे ही। लेकिन मैं ही अकेला बचा…”

तारा ने धीमे स्वर में पूछा, “बाकी...?”

देव की आँखों में आँसू चमक उठे। “कभी नहीं मिले। और उस रात... मैंने वही आवाज़ें सुनी थीं, वही दरवाज़े... वही चीखें... और वही खून।”

अब किसी को नींद नहीं आ रही थी।

अचानक हवेली की सीढ़ियाँ चरमराईं।

सबकी साँसें थम गईं।

एक काली छाया दीवार से होकर गुज़री।

कोई दिखा नहीं — लेकिन सबने महसूस किया।

“वो आ गया है,” देव बुदबुदाया।

कबीर ने कहा, “कौन? कौन आ गया है?”

देव ने जवाब नहीं दिया। उसने पास रखी टॉर्च उठाई और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया।

“रुको!” आर्यन चिल्लाया।

लेकिन देव नहीं रुका।

रिया पीछे दौड़ी, “देव प्लीज़, अकेले मत जाओ!”

पर वो अब तक गायब हो चुका था।

ऊपर, हवेली के सबसे आखिरी कमरे से एक बहुत धीमी, पर डरावनी हँसी गूंजी।

रिया की चीख गूंजी — “वो अंदर है!”

आर्यन, कबीर और तारा फौरन ऊपर की ओर दौड़े। निशी काँपती रही, वो बस मोमबत्ती को थामे खड़ी थी।

कमरे का दरवाज़ा बंद था।

लेकिन नीचे दीवार पर खून से लिखा था:

“जो यहाँ आता है, वो लौटता नहीं।”