Brij nagri ka aahan in Hindi Travel stories by kajal Thakur books and stories PDF | ब्रज नगरी का आह्वान

Featured Books
Categories
Share

ब्रज नगरी का आह्वान


सावन का महीना था। दिल्ली की भीड़-भाड़ से निकलकर आरव पहली बार कामां जाने का प्लान बना चुका था। सुना था कि यह जगह सिर्फ मंदिरों की वजह से नहीं, बल्कि अपने ब्रज के रस और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए भी जानी जाती है।

बस से उतरते ही उसने महसूस किया कि यहाँ की हवा अलग है—मीठी, शांत और किसी अनकहे भजन से भरी हुई। रास्ते में गोकुल चंदनी चौक, संकरी गलियाँ और हर मोड़ पर लगे "राधे-राधे" के जयकारे। हर कोई जैसे अजनबी नहीं बल्कि अपना था।

आरव सबसे पहले चौरासी खंभों वाले मंदिर पहुँचा। कहा जाता है कि यहाँ रात में दीपक अपने आप जल उठते हैं। पत्थरों की ठंडी दीवारों पर खड़े होकर उसने सोचा—क्या सच में यह सिर्फ एक मंदिर है या कोई जीवित इतिहास?

अगले दिन उसने कामां का किला देखा। ऊँचाई से पूरी ब्रज नगरी दिखाई दे रही थी। दूर तक फैली हरियाली, गायों की आवाज़ और मंदिरों की घंटियाँ—सब मिलकर एक ऐसा दृश्य बना रहे थे, जो किसी आधुनिक शहर में मिल ही नहीं सकता।

रास्ते में उसकी मुलाक़ात गोपाल बाबा नाम के एक वृद्ध से हुई। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा,

“बेटा, ब्रज सिर्फ देखने की जगह नहीं है, इसे महसूस करना पड़ता है। यहाँ हर पेड़, हर पत्थर राधा-कृष्ण की लीला का साक्षी है। यहाँ आकर लोग बदल जाते हैं।”

तीसरे दिन आरव मनगढ़ की ओर गया। वहाँ का सन्नाटा अजीब था, जैसे किसी ने समय को रोक दिया हो। कुछ तीर्थयात्री धूल में लोटते हुए भजन गा रहे थे। आरव को यह सब पहले अजीब लगा, लेकिन कुछ देर बाद वह खुद मंत्रमुग्ध होकर "राधे राधे" जपने लगा।

जब उसकी यात्रा का आख़िरी दिन आया, तो उसने महसूस किया कि यह सिर्फ एक ट्रिप नहीं थी। यह एक खिंचाव था—ब्रज का खिंचाव। जाते-जाते उसकी जेब में कोई महंगी चीज़ नहीं थी, लेकिन दिल में शांति और आँखों में वही राधा-कृष्ण की झलक थी।


ब्रज नगरी का आह्वान – भाग 2"

आरव अब कामां में अपने चौथे दिन पर था। सुबह-सुबह ही मंदिरों की घंटियों की आवाज़ और भजन की धुनों ने उसे जगा दिया। उसने तय किया कि आज वह भीड़-भाड़ से हटकर गोपीनाथ मंदिर और आसपास के गाँवों को देखेगा।

गाँव की पगडंडी पर चलते हुए उसे बच्चों की टोली मिली। वे मिट्टी से कान्हा की छोटी-छोटी मूर्तियाँ बना रहे थे। उनमें से एक बच्चा बोला,

“भैया, आप बाहर से आए हो न? यहाँ जब तक ‘राधे-राधे’ नहीं बोलोगे, कोई रास्ता नहीं बताएगा।”

आरव मुस्कराया और ज़ोर से बोला—“राधे-राधे!”तुरंत बच्चों ने हँसते हुए उसे मनगढ़ की ओर जाने वाला पुराना रास्ता दिखाया।

रास्ते में कच्ची झोपड़ियाँ, तुलसी के चौरे पर जलती दीपक की लौ और गोबर से लिपी हुई ज़मीन का ठंडा अहसास… सब कुछ उसे पुराने समय में खींच ले गया।

मनगढ़ पहुँचकर उसने देखा कि भक्त लोग चुपचाप बैठकर भजन कर रहे हैं। वहाँ के एक साधु ने उससे कहा:

“यहाँ हर धूल का कण आपको भीतर से साफ़ कर देता है। ब्रज में जो माँगा जाए, वह तभी मिलता है जब मन सच्चा हो।”

शाम को आरव वापस लौटा तो रास्ते में रंग-बिरंगे झूले दिखे। गाँव वाले सावन का मेला मना रहे थे। चारों ओर राधा-कृष्ण के गीत, मटकी फोड़ने की तैयारी और बच्चों की हँसी।

आरव ने सोचा—

“मैं यहाँ कुछ दिनों के लिए आया था, लेकिन अब यह जगह मुझे जाने नहीं दे रही। लगता है ब्रज का जादू सच में होता है।”

क्या तुम चाहते हो कि मैं भाग 3 लिखूँ जिसमें वह कामां से बरसाना तक की यात्रा करे और राधा रानी से जुड़ी कहानियाँ आएँ?

Kajal Thakur 😊