कहानी का नाम: "वीणू: एक भाई की छाया"
यह कहानी अवंती और उसके दत्तक भाई वीणू के निश्छल प्रेम और अटूट बंधन की है। अवंती एक होनहार और संस्कारी लड़की है, जो जीवन की एक भयानक त्रासदी से गुजरती है — बलात्कार और माता-पिता की मृत्यु। वह टूट जाती है, लेकिन उसका भाई वीणू उसकी ढाल बनकर खड़ा रहता है। अपने भाई के समर्थन और स्नेह से अवंती फिर से खड़ी होती है, अन्याय के खिलाफ लड़ती है और अपने दोषियों को सज़ा दिलाती है। आज वह एक प्रसिद्ध क्रिमिनल लॉयर है और वीणू अंतरराष्ट्रीय कराटे खिलाड़ी। यह कहानी भाई-बहन के निश्छल प्रेम और साहस की मिसाल है।
अवंती एक प्यारी, चंचल और मासूम सी लड़की थी। उसकी आँखों में चमक थी और मुस्कान में एक अलग जादू। उसके पिता राकेश एक किसान थे और माँ अवनि एक साधारण गृहिणी। जब राकेश और अवनि की शादी हुई, दो साल बाद उनके घर लक्ष्मी के रूप में अवंती का जन्म हुआ।
अवंतिका बचपन से ही समझदार, सुंदर और कला में निपुण थी। नृत्य, चित्रकारी और पढ़ाई में उसकी गहरी रुचि थी। पर उसकी एक छोटी सी ख्वाहिश थी — उसे एक छोटा भाई चाहिए था। मगर परिवार की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वे एक और बच्चे का खर्च उठा सकें।
एक दिन, पूरा परिवार गाँव के प्राचीन माँ दुर्गा मंदिर गया। पूजा के बाद अवंती की नजर मंदिर के पीछे कोने में रोते हुए एक छोटे बालक पर पड़ी। वह अकेला था। अवंती दौड़कर अपने माता-पिता को बुलाकर लाई। उन्होंने गाँव में बहुत खोजबीन की, लेकिन बच्चे के माता-पिता का कुछ पता नहीं चला। माँ दुर्गा का प्रसाद समझकर राकेश और अवनि ने उस बच्चे को अपना लिया और उसका नाम रखा — वीणू।
दो साल बाद, परिवार शहर आ गया। राकेश ने एक छोटा सा होटल खोला जो धीरे-धीरे चल पड़ा। वे मानते थे कि यह सब माँ दुर्गा की कृपा थी।
समय बीतता गया। अवंती अब 15 साल की हो चुकी थी और स्कूल के डांस कॉम्पिटिशन में भाग लेने लगी थी। साथ ही घर पर बच्चों को स्केचिंग सिखाने भी लगी। वहीं वीणू की पढ़ाई में रुचि कम थी, लेकिन कराटे में वह निपुण हो गया था। आठ साल की उम्र से ही वह प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगा था।
जब अवंती 18 की हुई, उसने ठान लिया कि वह लॉ की पढ़ाई करेगी। उसकी लगन रंग लाई और वह एक कुशल लॉ ग्रैजुएट बन गई। पर उसकी 22वीं सालगिरह की रात कुछ ऐसा हुआ जिसने सब कुछ बदल दिया।
कॉलेज से लौटते वक्त कुछ दरिंदों ने उसका बलात्कार कर दिया और एक सुनसान गली में फेंक दिया। जब देर रात तक वह घर नहीं पहुँची, तो उसके पिता ने उसे ढूँढना शुरू किया और उसी गली में उसे पाया — खून से लथपथ, कांपती हुई, एक कोने में सिसकती।
घर आते ही राकेश ने अपनी पत्नी से कहा, “हम बर्बाद हो गए अवनि। हमारी बेटी के साथ... बहुत गलत हुआ।”
उसी रात अवंती, राकेश और अवनि — तीनों ने ज़हर खा लिया। सुबह तक माँ-बाप दुनिया छोड़ चुके थे, पर अवंती बच गई।
अब वह एक ज़िंदा लाश सी बन गई थी। बस एक ही सहारा था उसका — वीणू। वह हर पल उसका साथ देता, उसे दुलारता, खाना खिलाता, बाल सँवारता, और रात को उसके पास बैठ कर कहानियाँ सुनाता।
एक दिन वीणू ने कहा, “दीदी, आप कब तक डरती रहेंगी? क्या आप सिर्फ अपने लिए नहीं, उन हजारों लड़कियों के लिए नहीं लड़ेंगी जो इस दर्द से गुजरती हैं?”
अवंती की आँखों में फिर एक चमक आई। उसने पुलिस में केस दर्ज करवाया। लेकिन आरोपी एक MLA का बेटा था, और दो दिन में केस रफा-दफा हो गया।
लेकिन अवंती ने हार नहीं मानी। वह अपने भाई से कराटे सीखने लगी और हाई कोर्ट में खुद केस लड़ने का निर्णय लिया। जब केस अपने अंतिम चरण में था, MLA के गुंडों ने उसे घेर लिया — लेकिन इस बार अवंती कमजोर नहीं थी। उसने मुकाबला किया — पूरे आत्मबल से।
अंततः, अदालत ने सभी आरोपियों को फाँसी की सज़ा सुनाई, MLA को पाँच साल की कैद और बीस लाख का मुआवज़ा देने का आदेश दिया।
आज अवंती देश की जानी-मानी क्रिमिनल लॉयर है। वह पीड़ितों को न्याय दिलाती है। और वीणू? वह एक इंटरनेशनल कराटे चैंपियन बन चुका है।
अवंती अक्सर कहती है:
“हर बहन को अगर वीणू जैसा भाई मिले — तो कोई दर्द उसे तोड़ नहीं सकता।”
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