Mere hisse me sirf alwida aya in Hindi Anything by Aadi jain books and stories PDF | मेरे हिस्से में सिर्फ अलविदा आया

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मेरे हिस्से में सिर्फ अलविदा आया

🖤 "मेरे हिस्से में सिर्फ अलविदा आया"




कभी माँ की लोरी अधूरी रही,

कभी भाई की बातें जरूरी रही,

पर कोई भी ठहर न सका…

हर रिश्ता बस आते ही बिछड़ता गया।


कॉलेज की भीड़ में एक चेहरा था,

जो मेरी खामोशी को सुनता था,

जिसे मैंने दिल दिया था…

मगर किस्मत ने फिर से मुझे खाली कर दिया।


फिर आई वो…

एक मुस्कुराती हुई रौशनी — श्री।

उसने कहा, "चल, दोस्त बनते हैं",

और पहली बार मुझे लगा… शायद अब नहीं टूटूंगा।


पर फिर…

वो भी चली गई —

बिना कुछ कहे,

बिना किसी अलविदा के।


अब मैं हर रात तेरी हँसी में रोता हूँ,

तेरी बातों में जीता हूँ,

तेरे वॉइस नोट्स सुनकर…

खुद से कहता हूँ —

"मैं आज भी तुझे जी रहा हूँ,

पर मेरे हिस्से में सिर्फ अलविदा आया।"

आदित्य एक ऐसा लड़का था, जो हमेशा मुस्कुराने की कोशिश करता... पर हर बार उसकी मुस्कान अधूरी रह जाती थी।


उसका परिवार बहुत अच्छा था—पापा, दो बड़े भाई—लेकिन माँ नहीं थी। माँ तो तब ही चली गई थी जब आदित्य बहुत छोटा था। तबसे उसके जीवन में एक खालीपन हमेशा बना रहा।


पापा काम के सिलसिले में अक्सर बाहर रहते। बड़े भाई अपने-अपने काम में इतने व्यस्त थे कि उन्हें आदित्य के सवाल, उसकी चुप्पी, और उसका इंतज़ार कभी सुनाई नहीं दिया। बाकी परिवार—दादा-दादी, चाचा-चाची—ने जैसे उसे नज़रअंदाज़ करना ही सीख लिया था।


स्कूल में भी वही कहानी—ना दोस्त, ना कोई बात करने वाला। वो बस एक चेहरा बनकर रह गया था—भीड़ में भी अकेला।


फिर आया कॉलेज। सब कुछ बदलने की उम्मीद थी... लेकिन पहले दो साल कोई दोस्त नहीं बना। सब अंग्रेज़ी में बातें करते, जब आदित्य कुछ बोलने की कोशिश करता, तो उसका मज़ाक उड़ाते।

पर तीसरे साल, सब कुछ बदला जब उसकी नज़रें एक लड़की से मिलीं—आर्या।


आर्या भी चुप रहती थी, जैसे उसकी भी कोई कहानी हो। आदित्य को उसकी खामोशी में अपनापन लगा। हिम्मत कर उसने अपने दिल की बात कही... और दो-तीन दिन बाद, आर्या ने "हाँ" कह दिया।


आदित्य पहली बार खुद को किसी के लिए ज़रूरी महसूस कर रहा था।


आर्या उसकी बातें सुनती, उसका साथ देती। उसकी दुनिया में रौशनी भरने लगी थी...

लेकिन एक दिन... सब कुछ फिर से टूट गया।


आर्या के घरवालों को उनके रिश्ते का पता चल गया। बहुत हंगामा हुआ। और आर्या ने... चुपचाप कॉलेज बदल लिया।

ना एक अलविदा, ना कोई आखिरी मुलाक़ात।


आदित्य ने बहुत ढूंढा उसे... पर वो जैसे गायब हो गई।

उसके बाद हर दिन एक बोझ बन गया। हर रात, एक सज़ा।

कुछ महीनों बाद उसके बड़े भाई की शादी थी।

वो बस रस्म निभाने गया था, खुश तो वो कब का खो चुका था।


शादी में उसकी मुलाकात हुई एक चुलबुली लड़की से—श्री, उसकी भाभी की छोटी बहन।


श्री ने आते ही मुस्कुरा कर कहा,

“हाय! मैं श्री हूं… दोस्त बनाओगे?”


और बस वही एक मुस्कान, वही एक हाथ… आदित्य की ज़िंदगी में नयी रोशनी बन गया।


श्री ने उसे अपने सभी दोस्तों से मिलवाया। पहली बार आदित्य को लगा कि उसे भी अपनाया जा सकता है।

एक नया भरोसा दिल में जागा, जैसे कोई कह रहा हो, "अब सब ठीक होगा।"



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6 महीने बीत गए। आदित्य के दूसरे भाई की शादी हुई।

वहां फिर श्री से मुलाकात हुई।


इस बार श्री आई, मुस्कुराकर बोली—

“ओर मेरे हीरो! कैसा है? कितना पतला हो गया है! जिम जाया कर, बॉडी बना।”


आदित्य को उसकी बात दिल पे लग गई। अगले ही दिन से उसने जिम जॉइन कर लिया।

6 महीनों में उसने खुद को पूरी तरह बदल दिया।


धीरे-धीरे रोज़ की चैट्स, कॉल्स और बातें… एक अलग रिश्ता बनने लगा।

एक दिन आदित्य ने अपनी बॉडी की फोटो श्री को भेज दी।


श्री ने कहा—

“अरे मैंने तो मजाक किया था… तूने सच में बना ली! लड़का हो तो तेरे जैसा!

मुझे भी ज़िंदगी में ऐसा ही लड़का चाहिए… जो मेरी हर बात सुने।”


आदित्य पहली बार फिर से खुलकर मुस्कुराया।

उसे लगा शायद इस बार उसका प्यार हमेशा के लिए है।



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पर शायद ऊपरवाला उसकी हँसी देख नहीं पाया।


कुछ ही हफ्तों बाद श्री की तबीयत अचानक बहुत बिगड़ गई।

प्लेटलेट्स बहुत कम हो गई थीं… हॉस्पिटल ले जाया गया… और फिर…


श्री भी चली गई।


श्री की मौत के बाद सब कुछ जैसे थम गया।


आदित्य अब भी हर सुबह उठता है… लेकिन उसके दिन अब किसी के लिए नहीं होते।

वो अब भी ज़िंदा है… लेकिन किसी के बिना जीना क्या होता है, ये अब उसे अच्छे से समझ आ गया है।


श्री की भेजी गई आखिरी वॉइस मैसेज अब भी उसके मोबाइल में पड़ी है:


> “तू है ना मेरा हीरो… कभी हार मत मानना, ठीक है?”




आदित्य रोज़ वो मैसेज सुनता है…

और हर बार उसकी आँखें भीग जाती हैं।

कभी वो ज़ोर से रोता नहीं… बस तकिये में मुँह छुपाकर सिसकता है।


रात को नींद नहीं आती, और अगर आती भी है… तो सपनों में वही चेहरा दिखता है —

श्री हँसती हुई बोलती है, “ओर मेरे हीरो, तू रो क्यों रहा है?”

और आदित्य बस उसके गले लग जाता है…

फिर आँख खुलती है — और वो गले नहीं, एक खाली कमरे में अकेला होता है।


श्री की मौत के एक साल बाद, आदित्य ने एक छोटी-सी डायरी लिखी,

जिसके आखिरी पन्ने पर बस एक ही लाइन थी:


> "मैं हमेशा अकेला था… पर अब मैं अधूरा भी हूं।"





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अब वो किसी से मोहब्बत नहीं करता…

बस मंदिर के एक कोने में हर हफ्ते दो मोमबत्तियाँ जलाता है—

एक आर्या के लिए…

और एक श्री के लिए।



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और वहीं, हर बार उसकी मुस्कान आंसुओं में भीग जाती है।