राधा एक शांत स्वभाव की लड़की थी, जो हर सोमवार पास के पुराने शिव मंदिर में जाया करती थी। मंदिर पहाड़ी पर था, जहाँ तक पहुँचने के लिए कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती थीं। उसे वहाँ की शांति, घंटियों की ध्वनि और हवा का ठंडा स्पर्श बहुत पसंद था।
एक दिन, जब वह मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी, तभी अचानक उसका पैर फिसला। वह गिरने ही वाली थी कि पीछे से एक हाथ ने उसे संभाल लिया। वह हाथ अर्जुन का था—एक लड़का जो गाँव में नया आया था और पहली बार मंदिर जा रहा था।
“ध्यान से चलो, इतनी जल्दी क्या है?” अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा।राधा थोड़ी शर्माई और धीरे से बोली, “थोड़ा ध्यान नहीं रहा।”
दोनों साथ-साथ सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। मंदिर पहुँचकर उन्होंने आरती में भाग लिया। घंटियों की आवाज़, दीपक की लौ और मंत्रों का स्वर—उस पल में दोनों को एक अनजाना सा अपनापन महसूस हुआ।
इसके बाद हर सोमवार, अर्जुन भी मंदिर आने लगा। कभी वह राधा के लिए जल लाता, कभी प्रसाद। राधा को समझ नहीं आ रहा था कि यह केवल मंदिर का संयोग है या कुछ और।
एक दिन, बारिश हो रही थी। राधा मंदिर में फँसी हुई थी। तभी अर्जुन छाता लेकर आया। उसने कहा,“शायद भगवान भी चाहते हैं कि मैं तुम्हारे साथ रहूँ।”
राधा मुस्कुरा दी। मंदिर की घंटियों के बीच उस दिन उन्होंने एक-दूसरे से अपनी भावनाएँ कबूल कीं।
वह पुराना शिव मंदिर उनकी प्रेम कहानी की गवाह बन गया। बाद में उनकी शादी भी उसी मंदिर में हुई।
अध्याय 1: मंदिर की पहली मुलाक़ात
सुबह का समय था। हल्की-हल्की धूप मंदिर की सीढ़ियों पर पड़ रही थी। राधा ने अपने दुपट्टे से माथा ढक लिया और हाथ में पूजा की थाली थामे हुए ऊपर की ओर बढ़ रही थी। मंदिर गाँव के किनारे एक ऊँची पहाड़ी पर बना था, जिसके चारों ओर घने पेड़ और शांति का वातावरण था।
राधा हमेशा की तरह मंत्र बुदबुदाते हुए चल रही थी कि अचानक उसका पैर काई लगी सीढ़ी पर फिसल गया।वह लगभग गिर ही जाती, पर किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।“सावधान!”—एक गहरी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।
राधा ने देखा—एक लंबा, शांत चेहरे वाला युवक था।“थ...थैंक यू,” उसने धीमे से कहा।“कोई बात नहीं, पर इतनी जल्दी क्यों?” उसने हल्की मुस्कान के साथ पूछा।“जल्दी नहीं, आदत है। सीढ़ियाँ गिनते-गिनते ही चढ़ती हूँ,” राधा ने जवाब दिया।
दोनों साथ-साथ ऊपर पहुँचे। पहली बार किसी अनजान के साथ मंदिर की घंटियों ने उनका स्वागत किया।
अध्याय 2: हर सोमवार का संयोग
उस दिन के बाद, जब भी राधा सोमवार को मंदिर जाती, अर्जुन पहले से वहाँ होता। कभी वह जल चढ़ा रहा होता, कभी दीपक जला रहा होता।
एक सुबह, उसने हल्के मज़ाक में कहा,“लगता है भोलेनाथ चाहते हैं हम हर हफ़्ते मिलें।”राधा ने मुस्कुराकर जवाब दिया,“शायद यह उनका आशीर्वाद है।”
धीरे-धीरे वे बातें करने लगे। गाँव की गलियों, मंदिर के त्योहारों और अपने सपनों पर चर्चा करते। मंदिर की सीढ़ियाँ अब उनके लिए सिर्फ पूजा का रास्ता नहीं, बल्कि मुलाक़ात का स्थान बन चुकी थीं।
अध्याय 3: बारिश और इज़हार
एक सोमवार, अचानक तेज़ बारिश होने लगी। राधा मंदिर में ही रुक गई। वह भीग चुकी थी और सोच रही थी कि नीचे कैसे जाएगी। तभी उसने देखा—अर्जुन छाता लेकर खड़ा था।
“चलो, मैं छोड़ देता हूँ,” उसने कहा।राधा ने झिझकते हुए पूछा,“तुम्हें इतनी तकलीफ़ क्यों कर रहे हो?”अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा,“क्योंकि मैं चाहता हूँ कि तुम्हें कभी तकलीफ़ न हो। शायद भगवान भी यही चाहते हैं।”
राधा ने उसकी आँखों में देखा। वहाँ सच्चाई थी।उस दिन मंदिर की घंटियाँ उनके इज़हार की गवाह बनीं।अध्याय 4: मंदिर बना उनका संगम
कुछ महीनों बाद, जब दोनों परिवार राज़ी हुए, उनकी शादी भी उसी मंदिर में हुई। वही सीढ़ियाँ, वही घंटियाँ, वही दीपक—सब कुछ गवाह
Kajal Thakur 😊