Sisakati Wafa: Ek Adhuri Mohabbat ki Mukmmal Dastan - 2 in Hindi Philosophy by Babul haq ansari books and stories PDF | सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 2

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सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 2

 Rachna: Babul haq ansari

 भाग - 2.........


धर्मशाला के बाहर की घंटी बजी तो आयशा का दिल एक पल को थम-सा गया।

"कौन होगा सुबह-सुबह...?"
मीनू ने पर्दा हटाकर बाहर झाँका — एक डाकिया था।

"डाकिया...? आज भी कोई चिट्ठी लिखता है क्या...?" मीनू चौंकी।

आयशा दौड़ती हुई आई —
उसके हाथ काँप रहे थे…
डाकिया ने बिना कुछ कहे एक सफ़ेद लिफाफा थमाया, और चला गया।

लिफाफे पर सिर्फ तीन शब्द लिखे थे —
"माफ़ कर देना…"

आयशा ने कांपते हाथों से लिफाफा खोला।
भीतर सिर्फ एक पन्ना था —
आर्यन की लि*आयशा,

मैं तुम्हारे लायक नहीं रहा…
तुम्हारी मासूमियत के सामने मेरी ज़िंदगी की हकीकतें शर्मिंदा हैं।

जब वक़्त और हालात मेरा साथ नहीं दे रहे,
तो मैं तुम्हें अपने साथ कैसे बाँध लूँ?

लेकिन अगर मोहब्बत दुआ बन सके,
तो हर सुबह तुम्हारी हँसी की सलामती की दुआ करता रहूँगा…*



चिट्ठी के नीचे एक पुरानी तस्वीर थी —
दोनों एक घाट पर बैठे थे, आर्यन के हाथ में गिटार था, आयशा हँस रही थी…

वही हँसी अब आयशा की आँखों से बह रही थी।

मीनू ने चिट्ठी पढ़ी और आयशा के कंधे पर हाथ रखा —
"अब क्या करेगी तू…?"

आयशा ने आँखें बंद कीं और बोली —
"अब…
अब मैं उस शहर लौटूँगी जहाँ हमने ख़्वाब देखे थे…
क्योंकि कुछ मोहब्बतें पूरी नहीं होतीं — लेकिन अधूरी रहकर भी ज़िंदा रहती हैं…"

और प्लेटफार्म नंबर 6 पर बनारस जाने वाली ट्रेन फिर से सीटी दे चुकी थी…


प्लेटफार्म नंबर 6 पर ट्रेन की सीटी जैसे अतीत को फिर से जगा रही थी।  
आयशा ने एक गहरी साँस ली, ग़म को आँखों में बंद किया और धीमे क़दमों से डिब्बे की ओर बढ़ गई।  

ट्रेन की खिड़की से बाहर झाँकते हुए उसे बनारस की गलियाँ, घाट, और वो अधूरी धुनें याद आने लगीं…  
जो आर्यन ने कभी गिटार पर छेड़ी थीं — और अधूरी छोड़ दी थीं।

स्टेशन से उतरकर उसने सीधा *'संकट मोचन घाट'* की ओर रुख़ किया।  
घाट पर वही पुरानी चायवाली अम्मा अब भी बैठी थी।  
उसे देखते ही अम्मा मुस्कराई, जैसे कोई इंतज़ार अब खत्म हो गया हो।  

"बहुत दिन बाद आई बिटिया?"  
"हाँ अम्मा… बहुत कुछ पीछे छूट गया था… सो वापस लेने आई हूँ।"  

अम्मा ने उसकी तरफ़ गौर से देखा —  
"कुछ चीज़ें वापस नहीं मिलतीं बेटा, बस उनसे मिलने की जगहें रह जाती हैं।"  

आयशा घाट के एक कोने पर जाकर बैठ गई —  
जहाँ वो और आर्यन कभी गिटार बजाया करते थे।  
पानी की लहरें जैसे आज भी वो धुनें अपने साथ बहा रही थीं।

उसी वक़्त एक लड़का सामने आकर खड़ा हुआ —  
हाथ में गिटार, आंखों में सवाल…

"आप… आयशा हैं?"  
आयशा ने चौंककर देखा — लड़का बिल्कुल आर्यन जैसा नहीं था,  
लेकिन उसकी आँखों में वही बेचैनी थी।

"मैं आर्यन का छोटा भाई हूँ… आदित्य।"  
"आर्यन के जाने के बाद आपकी बहुत तलाश की हमने… ये गिटार… आपकी चिट्ठियाँ… सब कुछ मेरे पास है।"

आयशा ने नज़रें झुका लीं, जैसे वक़्त फिर पलटने लगा हो।

"क्या… मैं एक धुन सुना सकता हूँ?"  
"आर्यन अधूरी छोड़ गया था… शायद मैं उसे पूरा कर पाऊँ।"

आयशा ने धीरे से सिर हिलाया।  
गिटार की धुन घाट पर गूंजने लगी —  
वही धुन… जो अधूरी थी,  
अब जैसे फिर से साँस ले रही थी।

और आयशा की आँखों से फिर वही हँसी बहने लगी —  
जो एक दौर में आर्यन को सबसे प्यारी लगती थी।

(.........जारी है........... )