वो गांव जो नक्शे में नहीं है"
(एक भटकी हुई रात… जो कभी ख़त्म नहीं हुई)
रात के ठीक 8:47 पर, मोबाइल का नेटवर्क चला गया।
आकाश और समीर को समझ नहीं आया कि जिस पहाड़ी रास्ते पर अभी तक सिग्नल आ रहा था, वहां अचानक सब बंद कैसे हो गया।
“भाई ये रास्ता... अजीब नहीं लग रहा?”
आकाश ने टोर्च ऑन करते हुए कहा।
चारों तरफ घना जंगल, हवा नहीं — पर पत्ते हिल रहे थे। और पगडंडी सीढ़ियों जैसी नीचे उतर रही थी… खुद-ब-खुद।
“चल यार, वापस चलते हैं,” समीर ने कहा।
लेकिन जब पीछे मुड़े, तो जिस रास्ते से आए थे — वहां सिर्फ काली मिट्टी और घास थी। रास्ता जैसे निगल गया हो।
वो दोनों कांपते हुए नीचे की ओर बढ़े। नीचे उतरते ही सामने एक छोटा-सा गांव नजर आया — लकड़ी के घर, बिना बिजली के जलती ढिबरियाँ, और सन्नाटा इतना कि सांस की आवाज़ भी भारी लगे।
> “गांव तो है, पर नक्शे में क्यों नहीं?”
आकाश ने Google Maps फिर से खोला।
स्क्रिन ब्लैंक। सिर्फ एक लाइन:
"Location Not Found."
जैसे ही गांव के पहले घर के पास पहुँचे, एक बूढ़ा आदमी लकड़ी की कुर्सी पर बैठा था — आँखें बंद, पर जैसे उनकी हर हरकत को देख रहा हो।
“बाबा, ये कौन-सा गांव है?”
बूढ़ा चुप रहा।
“हम रास्ता भटक गए हैं, बाहर जाने का रास्ता…?”
बूढ़े ने एक उंगली उठाई — "सुबह का इंतज़ार करो। रात को कोई बाहर नहीं जाता।"
---
🌑 गांव की पहली रात
गांव के लोगों ने उन्हें एक पुराना कमरा दे दिया।
कमरे में दो खाटें, एक मिट्टी की दीवार, और छत पर उलटी लटकी एक जली हुई तस्वीर।
“ये तस्वीर उलटी क्यों है?”
समीर ने पूछा।
“और इस पर आग के निशान…?”
लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था।
रात 12:00 बजते ही गांव में सब दरवाज़े बंद हो गए।
सन्नाटा ऐसा कि अपनी धड़कनें तक डर जाएं।
“आकाश… ये देख...”
समीर ने खिड़की से बाहर इशारा किया।
बाहर गांव के लोग चल रहे थे — मगर अजीब बात ये थी कि उनके कदम जमीन से ऊपर थे।
हर एक 3 इंच हवा में चल रहा था।
और उनकी गर्दनें…
180 डिग्री पीछे मुड़ी हुई थीं।
---
🕳️ अगली सुबह
सुबह होते ही सब सामान्य दिखा। लोग हँसते, खेतों में काम करते, बच्चे खेलते।
आकाश और समीर ने जल्दी से अपना बैग उठाया और निकलने लगे।
“रास्ता कौन-सी दिशा में है?”
गांव के एक लड़के ने मुस्कराते हुए कहा:
“अरे, अब आप हमारे ही तो हैं... बाहर कैसा रास्ता?”
GPS फिर से खोला — अब स्क्रिन पर कुछ लिखा था:
> “Welcome to Vanrah – Population: 0”
(Updated: Today)
“ये क्या... ज़ीरो?”
“पर लोग तो हैं यहां...?”
आकाश कांपते हुए स्क्रीन को देख रहा था।
---
⚰️ गांव का सच
गांव के बुज़ुर्गों से धीरे-धीरे एक सच सामने आया —
ये गांव 1971 में जलकर राख हो गया था।
एक हादसे में पूरे गांव के लोग मारे गए थे। लेकिन उनकी आत्माएँ वहीं अटक गईं।
हर कुछ सालों में कोई ट्रैवलर गलती से इस गांव में पहुँच जाता है... और फिर लौट नहीं पाता।
समीर ने जब एक पुरानी झोपड़ी में दिवार पर खुदा नाम देखा —
उस पर लिखा था:
> “समीर और आकाश – आए: 2025 – गये नहीं”
उनकी तस्वीरें वहाँ पहले से थीं — जली हुई, उलटी लटकी हुई।
---
❗ अंत – या एक नई शुरुआत?
अब दोनों बाहर निकलने की हर कोशिश कर चुके हैं।
हर रास्ता फिर उसी गांव की ओर लौट आता है।
Google Maps अब हर बार एक ही लाइन दिखाता है:
> “You are here forever.”
और अब…
गांव के बाहर दो नए लड़कों को टोर्च की रोशनी में नीचे उतरते देखा गया है…
---
❓क्या आप उस गांव तक पहुँचेंगे?
या क्या आप भी उसी नक्शे में खो जाएंगे... जो कभी बना ही नहीं?
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अगर ये कहानी पसंद आई, तो बताइए —
इसमें दूसरा भाग भी बनाया जाए क्या?
या इसी तरह की एक और और भी डार्क कहानी लिखूं?
(एक भटकी हुई रात… जो कभी ख़त्म नहीं हुई)
रात के ठीक 8:47 पर, मोबाइल का नेटवर्क चला गया।
आकाश और समीर को समझ नहीं आया कि जिस पहाड़ी रास्ते पर अभी तक सिग्नल आ रहा था, वहां अचानक सब बंद कैसे हो गया।
“भाई ये रास्ता... अजीब नहीं लग रहा?”
आकाश ने टोर्च ऑन करते हुए कहा।
चारों तरफ घना जंगल, हवा नहीं — पर पत्ते हिल रहे थे। और पगडंडी सीढ़ियों जैसी नीचे उतर रही थी… खुद-ब-खुद।
“चल यार, वापस चलते हैं,” समीर ने कहा।
लेकिन जब पीछे मुड़े, तो जिस रास्ते से आए थे — वहां सिर्फ काली मिट्टी और घास थी। रास्ता जैसे निगल गया हो।
वो दोनों कांपते हुए नीचे की ओर बढ़े। नीचे उतरते ही सामने एक छोटा-सा गांव नजर आया — लकड़ी के घर, बिना बिजली के जलती ढिबरियाँ, और सन्नाटा इतना कि सांस की आवाज़ भी भारी लगे।
> “गांव तो है, पर नक्शे में क्यों नहीं?”
आकाश ने Google Maps फिर से खोला।
स्क्रिन ब्लैंक। सिर्फ एक लाइन:
"Location Not Found."
जैसे ही गांव के पहले घर के पास पहुँचे, एक बूढ़ा आदमी लकड़ी की कुर्सी पर बैठा था — आँखें बंद, पर जैसे उनकी हर हरकत को देख रहा हो।
“बाबा, ये कौन-सा गांव है?”
बूढ़ा चुप रहा।
“हम रास्ता भटक गए हैं, बाहर जाने का रास्ता…?”
बूढ़े ने एक उंगली उठाई — "सुबह का इंतज़ार करो। रात को कोई बाहर नहीं जाता।"
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🌑 गांव की पहली रात
गांव के लोगों ने उन्हें एक पुराना कमरा दे दिया।
कमरे में दो खाटें, एक मिट्टी की दीवार, और छत पर उलटी लटकी एक जली हुई तस्वीर।
“ये तस्वीर उलटी क्यों है?”
समीर ने पूछा।
“और इस पर आग के निशान…?”
लेकिन जवाब किसी के पास नहीं था।
रात 12:00 बजते ही गांव में सब दरवाज़े बंद हो गए।
सन्नाटा ऐसा कि अपनी धड़कनें तक डर जाएं।
“आकाश… ये देख...”
समीर ने खिड़की से बाहर इशारा किया।
बाहर गांव के लोग चल रहे थे — मगर अजीब बात ये थी कि उनके कदम जमीन से ऊपर थे।
हर एक 3 इंच हवा में चल रहा था।
और उनकी गर्दनें…
180 डिग्री पीछे मुड़ी हुई थीं।
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🕳️ अगली सुबह
सुबह होते ही सब सामान्य दिखा। लोग हँसते, खेतों में काम करते, बच्चे खेलते।
आकाश और समीर ने जल्दी से अपना बैग उठाया और निकलने लगे।
“रास्ता कौन-सी दिशा में है?”
गांव के एक लड़के ने मुस्कराते हुए कहा:
“अरे, अब आप हमारे ही तो हैं... बाहर कैसा रास्ता?”
GPS फिर से खोला — अब स्क्रिन पर कुछ लिखा था:
> “Welcome to Vanrah – Population: 0”
(Updated: Today)
“ये क्या... ज़ीरो?”
“पर लोग तो हैं यहां...?”
आकाश कांपते हुए स्क्रीन को देख रहा था।
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⚰️ गांव का सच
गांव के बुज़ुर्गों से धीरे-धीरे एक सच सामने आया —
ये गांव 1971 में जलकर राख हो गया था।
एक हादसे में पूरे गांव के लोग मारे गए थे। लेकिन उनकी आत्माएँ वहीं अटक गईं।
हर कुछ सालों में कोई ट्रैवलर गलती से इस गांव में पहुँच जाता है... और फिर लौट नहीं पाता।
समीर ने जब एक पुरानी झोपड़ी में दिवार पर खुदा नाम देखा —
उस पर लिखा था:
> “समीर और आकाश – आए: 2025 – गये नहीं”
उनकी तस्वीरें वहाँ पहले से थीं — जली हुई, उलटी लटकी हुई।
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❗ अंत – या एक नई शुरुआत?
अब दोनों बाहर निकलने की हर कोशिश कर चुके हैं।
हर रास्ता फिर उसी गांव की ओर लौट आता है।
Google Maps अब हर बार एक ही लाइन दिखाता है:
> “You are here forever.”
और अब…
गांव के बाहर दो नए लड़कों को टोर्च की रोशनी में नीचे उतरते देखा गया है…