माया और राहुल – Part 2 (अंतिम भाग)
“कुछ रिश्ते मिलते नहीं... पर वो छूटते भी नहीं।”
रिश्तों की उम्र क्या होती है? कभी कुछ महीने, कभी कुछ साल… और कभी एक पल में ही सब कुछ हमेशा के लिए बदल जाता है।
राहुल की चुप्पी अब माया की ज़िंदगी में आदत बन चुकी थी। एक वक्त था जब हर छोटी-बड़ी बात वो उसी से साझा करती थी — ऑफिस की टेंशन हो या कॉल ड्रॉप का गुस्सा। लेकिन अब उनके बीच न तो बातचीत बची थी, न ही उम्मीद।
एक शाम, जब माया अपने कमरे में चुपचाप बैठी थी, उसकी मां ने आकर धीरे से कहा,
“एक लड़का देखा है मैंने… अच्छा घर है, नौकरी भी बढ़िया है, तुझसे मिलने आ रहे हैं इस रविवार।”
माया चौंकी।
“मम्मी! आपने मुझसे पूछे बिना सब फिक्स भी कर दिया?”
मां ने लंबी सांस ली —
“तू पिछले एक साल से एक जगह अटक गई है, माया। और वो लड़का... कुछ बोलता ही नहीं। हम और कितना इंतज़ार करें?”
माया कुछ नहीं बोली। वो जानती थी मां गलत नहीं कह रही थीं। राहुल का कोई जवाब नहीं आ रहा था। न कॉल, न मैसेज। बस “Online” की एक टिमटिमाती लकीर हर रात उसकी उम्मीदों को और कमजोर कर रही थी।
रविवार आया। लड़के वाले आए। लड़का शालीन, पढ़ा-लिखा और समझदार था। उसने माया से सीधे बात की —
“अगर आप अभी शादी के लिए तैयार नहीं हैं, तो मैं समझ सकता हूं। पर अगर आप चाहें, तो हम थोड़ा वक्त ले सकते हैं एक-दूसरे को जानने के लिए।”
माया ने पहली बार किसी अजनबी में समझदारी देखी। फिर भी, उसका दिल तो कहीं और अटका था।
कुछ हफ्तों बाद सगाई हो गई। माया चुपचाप सब करती रही — अंगूठी पहनाई, हल्की सी मुस्कान दी, और फिर अपने कमरे में जाकर घंटों तक पुरानी चैट्स पढ़ती रही।
राहुल अब भी चुप था।
वो चाहती थी, बस एक बार... एक बार वो कह दे कि "रुक जाओ, माया!"
पर कुछ नहीं हुआ।
शादी की तैयारियाँ शुरू हो गईं। कार्ड बंटने लगे, मेहंदी की रात पास आ गई। लेकिन माया अब भी हर रात अपने मोबाइल की स्क्रीन पर बस वही देखती —
“Rahul — Last seen 3 hours ago”
शादी से ठीक एक दिन पहले, रात के 11 बज रहे थे। कमरे में मेहंदी की खुशबू थी और आंखों में नींद नहीं।
तभी फ़ोन बजा।
“Rahul Calling...”
दिल धड़क उठा। कांपते हाथों से कॉल उठाया।
“हैलो…” माया की आवाज़ थरथरा रही थी।
राहुल की आवाज़ बहुत धीमी थी —
“माया…”
एक पल की चुप्पी। फिर राहुल बोला —
“मुझे माफ़ कर देना... मैं बोल नहीं पाया। डरता रहा कि कहीं फिर से सब बिगड़ न जाए। और जब हिम्मत की, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”
माया की आँखों से आंसू बह निकले।
“मैं इंतज़ार करती रही, राहुल। हर पल। तुम बस एक बार कहते… मैं रुक जाती।”
“मैं जानता हूं…” राहुल की आवाज़ भीग गई थी, “पर अब… मैं सिर्फ दुआ कर सकता हूं कि तू खुश रहे। बहुत खुश।”
माया ने धीमे से पूछा —
“क्या तुम अब भी मुझसे प्यार करते हो?”
राहुल ने हल्के से हँसते हुए कहा —
“प्यार तो आज भी उतना ही है… पर अब वो सिर्फ तेरी दुआओं में जीने वाला प्यार है।”
फिर एक आखिरी बात बोली —
“कल जब तू मंडप में बैठे… थोड़ा मुस्कुराना ज़रूर। ताकि मैं खुद से कह सकूं कि तू खुश है… और मैंने सही किया तुझे जाने देकर।”
लाइन कट गई।
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अगले दिन माया दुल्हन बनी आईने के सामने बैठी थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, और आँखों में एक सुकून — जैसे किसी बंद किताब को आखिरी बार पढ़कर रख दिया हो।
पीछे से मां ने आकर पूछा —
“तैयार हो, बेटा?”
माया ने खुद को आईने में देखा, और हल्के से मुस्कुराकर कहा —
“हां… अब मैं तैयार हूं। किसी के साथ एक नई ज़िंदगी शुरू करने के लिए… और किसी को हमेशा दिल में जिंदा रखने के लिए।”
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(समाप्त)
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आप जैसे पाठक ही इस सफ़र को ख़ास बनाते हैं। 🌸
-डिम्पल लिम्बाचिया 🌸