दोनो प्रेम से भोजन करने लगे,,,। फिर अपने कक्ष में चले गए विश्राम करने,,, अब आगे,,,,
अपने कक्ष में ये दोनों चैन की निद्रा में थे आने वाले भयानक खतरे से अनजान,,इन दोनो को अंदाजा भी नहीं था की एक बहुत बड़ा संकट इनके ऊपर मंडरा रहा है।
अचानक तेज हवाएं चलने लगी फिर हवाओं ने तेज बारिश रूप ले लिया फिर बारिश से तूफान,,, चमक कर गड़गड़ाती हुई बिजली भी ऐसे गड़गड़ा रही थी मानो बिजली की बरसात हो रही हो,,,,सब अपने अपने घर में डर से दुबक कर बैठे थे।
तभी अचानक सब कुछ शांत हो गया। मौसम को ऐसे अचानक से बदलता देख सब हैरान थे। पूरी रात ऐसे ही गुजर गई,,।
सुबह 7 बजे
"ये क्या हो रहा है मौसम को,,, सारी रात तेज बारिश तूफान बिजली की गड़गड़ाहट और अभी देखो,, ऐसा माहौल है जैसे कुछ हुआ ही नहीं पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ" महारानी भयभीत होकर बोली।
"कुछ नही प्रिय,,,भयभीत होने की आवश्यकता नहीं,,, मौसम का कोई भरोसा नहीं कभी भी बदल सकता हैं" सत्यजय ने व्यंग तरह से मुस्कुराते हुए कहा।
लेकिन महारानी को उनका जवाब कुछ रास नहीं आया वो बोली "आप ठीक है ना ?"
"हमे क्या होगा प्रिए,,, हम ठीक है,,,बिलकुल ठीक,,,क्यों आपको नही लग रहे? हमारे साथ कक्ष में विश्राम करने चलिए ठीक लगने लगेंगे" उन्होंने कुटिल मुस्कान के साथ जबरदस्ती उनका हाथ पकड़ कर कहा।
महारानी को बहुत क्रोध आया और उन्हें अजीब घृणा होने लगी।
महसूस हुआ,,,जैसे ये उनके महराज नही कोई अजनबी हो जो उन्हे अपमानित कर रहा है। उन्होंने उनका हाथ घृणा से झटक दिया और उनके मुख पर बोली "क्षमा कीजिए,,,हमे नही जाना"
"क्याआआ,,,,👿😠तुमने हमें मना किया,,, हमें,,,हम राजा है,,,और राजा का हुक्म कोई नहीं टाल सकता,,,तुम पत्नी हो और अपने पति के आज्ञा का पालन करना तुम्हारा पहला कर्तव्य है" उन्होंने गुस्से में भड़कते हुए कहा। और फिर उनका हाथ कस कर पकड़ लिया।
"किंतु,,,महाराज रुकिए,,, छोड़िए हमे,,,महाराज सुनिए तो,,," पर सत्यजय ने उनकी कोई बात नहीं सुनी और जबरदस्ती उन्हे कक्ष में खींचते हुए लेकर आए और द्वार बंद कर दिया।
महारानी सूर्यलता पुरे दिन चीखती रही किंतु कोई नहीं आया उनकी सहायता के लिए दासी ने जब शाम को उस कक्ष में प्रवेश किया तो उन्हे महारानी का शव दिखा जो बिना वस्त्र के जमीन पर पड़ी थी ।
वो लोग ये देख कर डर 😫😱से चीख उठी,,,,उन्होंने उन्हे कपड़ो से ढक दिया,,,उनकी चीख सुनकर महाराज और बाकी सेवकों ने कक्ष में प्रवेश किया।
सब हैरानी ,दुख और डर के भाव से देख रहे थे,,किंतु महाराज सत्यजय के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे वहा मौजूद सभी ये देख अचंभित थे।
उस अनजान तूफान के बाद से राजा सत्यजय बहुत अधर्मी हो गया,,,जो राजा अपने प्रजा को सुख शांति प्रदान करता था। आज वो उन्हें दुख और पीड़ा प्रदान कर रहा है। अपने सैनिकों को भेज कर सभी के घर से उनके मेहनत से कमाए गए धन लूट रहे हैं।
दिन ब दिन उनका अहंकार बढ़ता ही जा रहा हैं । प्रजा की तो एक नही सुनते,,,जो आवाज उठाए उनके खिलाफ उन्हे स्वय मौत के घाट उतार देते हैं। आखिर एक ही रात में इतने क्रू केसे हो गए।
वही काली अंधेरी रात,,,वही स्थान,,,वही बरगद के वृक्ष के नीचे राजा सत्यजय बैठे तंत्र मंत्र कर रहे थे। उन्होंने अपने हाथ में वही खंजर लिया और अपने प्रिय घोड़ी घुनमून पर प्रहार कर दिया। घुनमुन जोर से हिनहिनाई,,,,और धम्म्म से बेसुध होकर गिर गई।
"हाहाहाहा,,,,देख लिया मूर्ख राजा,,,तुम जीत कर भी हार गए,,,बहुत मेहनत की थी ना मेरा अंत करने के लिए,,,पर तुम मूर्ख,,,तुमने मेरा आधा अधूरा जला शरीर यही छोड़ दिया,,,मेरा शरीर तो मर गया,,,किंतु मेरी आत्मा नही मरी,,,अब मैं तुम्हारे पुरे राज्य पर राज करूंगा,,, हा हा हा हा हा,,,,,," ये बोल सत्यजय,,,नही,,,कपाली की आत्मा भयानक हसी हंसने लगा।
सत्यजय ने यही तो बड़ी भूल कर दी थी। ऋषिवर ने कहा था की शरीर को गला हुआ न छोड़े उसे पूरी तरह जला कर गंगाजल को समर्पित कर दें। किंतु वो भूल गए और उनके इस भूल का परिणाम अब पुरे राज्य को भुगतना पड़ रहा है।😓😓
और अंत सत्यजय का बदलाव सबके लिए रहस्य बनकर रह गया। हमेशा हमेशा के लिए।
सीख: "कुछ भूल भूलकर भी नही करनी चाहिए अन्यथा उसका परिणाम जीवन देकर भी चुकाना पड़ सकता हैं।"
समाप्त__🙏