Dagabaz Viasat - 4 in Hindi Thriller by Meenakshi Gupta mini books and stories PDF | दगाबाज विरासत - भाग 4

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दगाबाज विरासत - भाग 4

दगाबाज विरासत भाग 4 


आदित्य मेहरा की अचानक मौत की खबर ने देश भर में सनसनी फैला दी थी। आदित्य मेहरा अपनी फीमेल फैंस के बीच में बहुत फेमस था और हर शहर में उसके बहुत दीवाने थे । दिल्ली में अपने दफ़्तर में बैठे एसीपी विक्रम आहूजा ने भी टीवी पर चल रही बहसों को देखा। विक्रम दिखने में भले ही आम आदमी जैसे लगते थे, पर उनका दिमाग़ किसी बाज़ से भी तेज़ था। उनकी खामोश निगाहें और शांत स्वभाव अक्सर लोगों को धोखा दे जाता था, लेकिन जो उन्हें जानते थे, वे पहचानते थे कि विक्रम का अंदाज़ा शायद ही कभी गलत होता है। उनके रिकॉर्ड में कई ऐसे पेचीदा केस थे जिन्हें उन्होंने सुलझाया था, जब दूसरे पुलिसवाले हार मान चुके थे।
जैसे ही आदित्य की मौत की ख़बर दिल्ली पहुँची, विक्रम को उनके एक जूनियर ने उनके पुराने केस की याद दिलाई।
"सर, आपको याद है वो 'शहंशाह' वाला डबल मर्डर केस, जहाँ सब मान चुके थे कि ये आत्महत्या है, पर आपने कैसे उसकी परतें खोली थीं?" हवलदार रमेश ने विक्रम के सामने चाय रखते हुए कहा। "ये आदित्य मेहरा का केस भी कुछ वैसा ही लग रहा है। इतनी छोटी उम्र में, वो भी ऐसे... ठीक नहीं लग रहा।"
विक्रम ने धीमी आवाज़ में कहा, "रमेश, ऐसे हाई-प्रोफाइल केस अक्सर सतह पर कुछ और दिखते हैं, पर असलियत कुछ और होती है। और जब लगातार 'हादसे' हों, तो मेरी सिक्सथ सेंस कहती है, कुछ तो गड़बड़ है।" उन्होंने आदित्य मेहरा के केस की फ़ाइल मंगवाई। फ़ाइल पर सरसरी निगाह डालते ही विक्रम की भौंहें थोड़ी सिकुड़ गईं। लगातार दुर्घटनाएँ, हर बार बाल-बाल बचना, और फिर अचानक पूल में मौत। यह सब उन्हें एक सामान्य दुर्घटना नहीं लग रहा था।
अगले ही दिन, एसीपी विक्रम आहूजा मुंबई पहुँच गए। उन्होंने सबसे पहले क्राइम सीन—आदित्य के बंगले और ख़ासकर स्विमिंग पूल—का दौरा किया। पूल के पास एक बिजली के तार में हल्की सी खराबी मिली थी, जिसे दुर्घटना  का कारण बताया गया था। लेकिन विक्रम की पैनी नज़र ने कुछ और देखा। उन्होंने आसपास के पेड़ों, दीवार और पूल के उपकरण का बारीकी से मुआयना किया। उन्होंने फॉरेंसिक टीम को कुछ और सैंपल लेने के निर्देश दिए।
इसके बाद, विक्रम आदित्य के परिवार से मिले। घर में अब भी मातम छाया हुआ था। मृणालिनी, दादी, बुआ और बुआ के पति सब गहरे सदमे में थे। विक्रम ने उनसे बेहद संवेदनशीलता से बात की। उन्होंने परिवार के सदस्यों के चेहरों को ध्यान से पढ़ा, उनकी आवाज़ में छिपी भावना को समझने की कोशिश की। मृणालिनी रोते हुए बार-बार यही कह रही थीं कि यह सब "ग्रहों का दोष" था। दादी चुपचाप बैठी थीं, और बुआ तथा उनके पति भी सदमे में थे। आदित्य की दो छोटी कज़िन, जो हमेशा उसके पीछे रहती थीं, अब गुमसुम कोने में बैठी थीं, उनकी मासूम आँखें मामा की मौत को समझ नहीं पा रही थीं।
विक्रम ने परिवार के हर सदस्य के बयान दर्ज किए। उन्होंने आदित्य की पिछली दुर्घटनाओं के बारे में भी पूछा,  सभी ने उन्हें सामान्य घटना  कहकर टाल दिया।  आदित्य के परिवार में सभी बहुत दुखी थे। लेकिन विक्रम का दिमाग़ सवालों के जवाब ढूंढ रहा था: क्या ये वाकई सिर्फ़  दुर्घटनाएँ थीं? या कोई था जो पर्दे के पीछे से सब कुछ चला रहा था?