भाग 1
मुंबई की चकाचौंध भरी दुनिया में एक नाम ऐसा था जो खुद ही चमक का पर्याय बन चुका था— आदित्य मेहरा। आदित्य सिर्फ़ एक टीवी एक्टर नहीं, बल्कि करोड़ों दिलों की धड़कन था। उसकी गहरी आँखें, बेदाग़ मुस्कान, और शानदार व्यक्तित्व उसे लड़कियों का सबसे पसंदीदा हीरो बनाता था। स्क्रीन पर आते ही मानो जादू सा हो जाता, और लाखों फैंस अपनी नज़रें उससे हटा नहीं पाते थे।
आदित्य की ज़िंदगी बाहर से किसी परीकथा से कम नहीं थी। वह एक अमीर और प्रतिष्ठित परिवार से था। उसके पिता ने अपने बेटे के लिए एक विशाल साम्राज्य छोड़ा था, जिसका आदित्य अकेला वारिस था। उसे कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं हुई। उसका आलीशान बंगला, महंगी गाड़ियाँ, और नौकर-चाकर का रेला—सब कुछ एक शाही ज़िंदगी का हिस्सा था।
रात के ग्यारह बजे थे और आदित्य अपने शूटिंग पैकअप के बाद घर आया। गाड़ी से उतरते ही उसे किचन की लाइट जलती दिखी। वह मुस्कुराया, जानता था कि कौन इंतज़ार कर रहा होगा। वह सीधे किचन में गया। उसकी दूसरी माँ, मृणालिनी, गरमागरम खाना परोसने की तैयारी कर रही थीं।
"क्या माँ, तुम अभी तक सोई नहीं? तुम्हें पता है मैं देर-सवेर हो ही जाता हूँ," आदित्य ने प्यार से कहा, अपनी माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए।
मृणालिनी ने मुड़कर ममता भरी मुस्कान दी, "अरे बेटा, तुझे भूख लगी होगी। जब तक मेरा लाल घर न आ जाए और खाना न खा ले , तब तक एक मां को नींद कहां आई से आएगी।"
तभी बुआ भी चाय का कप लेकर किचन में आईं। "क्या मृणालिनी भाभी, तुमने इसे इतना सर पर चढ़ा रखा है। कब बड़ा होगा यह? इतना तो इसे काम की थकान नहीं होती, जितना अपनी माँ की चिंता करता है।" बुआ ने भी मुस्कुराते हुए कहा।
आदित्य ने हँसते हुए बुआ को गले लगा लिया। "अरे बुआ, तुम्हें क्या पता। मेरी माँ मेरी ताक़त है।"
मृणालिनी ने उसे खाने के लिए बैठाया। आदित्य की सगी माँ की मौत उसके बचपन में ही हो गई थी, लेकिन मृणालिनी ने उसे कभी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी थी। आदित्य अक्सर मृणालिनी के पास आकर अपनी बचपन की यादें साझा करता, कभी-कभी अपनी सगी माँ को याद करके भावुक हो जाता और मृणालिनी उसे उतनी ही ममता से संभालती थी। घर में दादी थीं, बुआ और उनके पति भी थे। दादी रोज़ सुबह उसे माथे पर चुंबन देतीं और बुआ की बच्चियां, उसकी दो छोटी कज़िन, पूरे घर में उसके पीछे-पीछे घूमती रहती थीं। वे सब उसे बेपनाह प्यार करते थे, और आदित्य की दुनिया पूरी तरह संतुलित और खुशहाल है।
लेकिन इस आदर्श तस्वीर में एक अजीब सा दाग था—उसकी शादियां। परिवार चाहता था कि आदित्य शादी कर ले और वंश आगे बढ़ाए। कई बार उसकी सगाई तय हुई, लड़कियाँ भी खूबसूरत और अच्छी पृष्ठभूमि वाली होती थीं, लेकिन हर बार कुछ न कुछ ऐसा होता कि शादी टूट जाती। या तो लड़की खुद ही कोई अजीबोगरीब बहाना बनाकर सगाई तोड़ देती, या फिर कोई छोटी-मोटी दुर्घटना हो जाती—जैसे किसी की तबीयत खराब होना, मामूली एक्सीडेंट, या परिवार में अचानक कोई संकट आ जाना। आदित्य भी अब इन चीज़ों का आदी हो चुका था, उसने मान लिया था कि ये बस उसकी बदकिस्मती है।