Ek safar tanha ...magar khash in Hindi Travel stories by kajal Thakur books and stories PDF | एक सफर तन्हा… मगर खास

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एक सफर तन्हा… मगर खास


सर्दियों की एक सुबह थी। सूरज की किरणें बादलों से आंख-मिचौली खेल रही थीं। अन्वी, जो हमेशा भीड़-भाड़ और शोर से घिरी रहती थी, इस बार अकेले सफर पर निकलने का मन बना चुकी थी। मोबाइल की नोटिफिकेशन और दिनभर की भागदौड़ से दूर — बस एक यात्रा, खुद के लिए।

उसने एक छोटा-सा बैग पैक किया, कैमरा उठाया और चल पड़ी — हिमाचल के एक अनजाने गांव 'झिरी' की ओर।

बस की खिड़की से बाहर देखते हुए उसे लगा जैसे हर पेड़, हर मोड़ उसे कुछ कह रहा हो। रास्ते में उसने खुद को दोबारा पढ़ा — वो किताब जो कभी अधूरी रह गई थी। पहली बार अकेले सफर करना डरावना जरूर था, पर उसी में एक अजीब-सी राहत भी थी।

जब वो झिरी पहुंची, तो वहां का शांत वातावरण, पहाड़ियों पर गिरती हल्की बर्फ, और बच्चों की मुस्कान — सब कुछ जादू जैसा था। वहाँ के लोगों ने उसे घर बुलाया, गरम-गरम रोटियाँ और सादा सा राजमा-चावल — लेकिन दिल से बना हुआ।

रात को लकड़ी की अलाव के पास बैठकर जब उसने आसमान की तरफ देखा — तो इतने सारे तारे पहली बार देखे थे। उसे महसूस हुआ कि वो खुद से कितना दूर हो गई थी। यही तो था असली 'सफर' — बाहर का नहीं, अंदर का।

कुछ दिन वहाँ बिता कर जब वो लौटी, तो वो अन्वी पहले जैसी नहीं थी। उसके चेहरे पर अब एक शांति थी, आंखों में चमक और मन में संतुलन।

कभी-कभी ज़िंदगी को समझने के लिए हमें बस थोड़ा दूर जाना पड़ता है — अकेले।

अब मैं इस कहानी को पार्ट्स में आगे बढ़ाऊँगी। ये रहा

Part 2:**"एक सफर तन्हा… मगर खास" –

Part 2

मन की घाटियाँ"

अन्वी जब वापस लौटी, तो शहर के शोर में उसका दिल अब अक्सर खो जाता था — झिरी की वादियाँ, वहाँ की ठंडी हवा, बच्चों की मासूम बातें… सब याद आता था।

वो अब पहले जैसी नहीं रही थी। उसे अब भीड़ में भी अकेलापन अच्छा लगने लगा था, क्योंकि उसने अकेले में सुकून ढूँढ लिया था।

एक दिन अपने कैमरे की तस्वीरें देखते हुए उसकी नज़र एक अजनबी की फोटो पर पड़ी — एक लड़का, जो झिरी के मंदिर के बाहर बैठा था, किताब पढ़ते हुए। उसके चेहरे पर वही शांति थी जो अन्वी अपने अंदर महसूस कर रही थी।

"कौन था वो?" — अन्वी के मन में सवाल उठे।

फिर उसने ठान लिया — उसे फिर झिरी जाना है।लेकिन इस बार सिर्फ अपने सुकून के लिए नहीं… बल्कि उस सवाल के जवाब के लिए।

"एक सफर तन्हा… मगर खास" –

Part 3

फिर वही मोड़

अन्वी फिर से उसी पहाड़ी रास्ते पर थी। इस बार उसका मन उलझा नहीं था, बल्कि शांत था — पर सवालों से भरा हुआ। वो लड़का कौन था? क्यों उसके चेहरे की शांति उसे खींच लाई? क्या ये सिर्फ आकर्षण था या कुछ अधूरा-सा जुड़ाव?

झिरी पहुँची तो सब कुछ वैसा ही था — वो छोटी दुकान, वहीं मंदिर की घंटियाँ, और पहाड़ियों पर धूप की वही नरम परछाईं।

पर वो लड़का नहीं था…

उसने वहीं बैठकर इंतज़ार किया — मंदिर की सीढ़ियों पर। तीन दिन बीत गए। हर सुबह वो चाय लेकर मंदिर आती, हर शाम वहीं बैठी रहती।

चौथे दिन, शाम ढल रही थी — जब किसी ने पीछे से कहा,"आप वही हो ना… उस दिन तस्वीर ले रही थीं?"

अन्वी ने पलटकर देखा — वो वहीं था। वही किताब, वही सादगी, वही आंखें।

"हां… मैं बस ऐसे ही घूमने आई थी," अन्वी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"आपके कैमरे में मेरी फोटो होगी… क्या मुझे मिल सकती है?"उसने पूछा।

"ज़रूर… पर बदले में एक बात बतानी होगी आपको," अन्वी ने कहा।

"क्या?""आप यहाँ रहते हैं या आप भी मुसाफिर हैं मेरी तरह?"

उसने मुस्कुराते हुए कहा,"मैं यहाँ रहता नहीं… लेकिन जब भी खुद से बिछड़ जाता हूँ, झिरी चला आता हूँ।"

अन्वी ने पहली बार किसी और को अपने जैसा महसूस किया।


तुम बोलो… Part 4 — प्यार की शुरुआत या दो आत्माओं की गहराई भरl


Kajal Thakur 😊