Samunder ke us Paar - 4 in Hindi Fiction Stories by Neha kariyaal books and stories PDF | समुंद्र के उस पार - 4

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समुंद्र के उस पार - 4

मुझे जानना है आगे क्या हुआ..." इस पर रवि मुस्कराते हुए कहता है, "तृषा, थोड़ा सबर रखो... परोफेसर थक गए होंगे। तृषा थोड़ी जिद्दी थी वो एक छोटी बच्ची के जैसी लग रही थी। 
रवि ने कहा बाकी की कहानी कल सुनेंगे।"
तृषा कुछ कहने ही वाली होती है, लेकिन प्रोफेसर नैनी स्वयं हस्तक्षेप करते हैं, मैं थोड़ा थक गया हूँ और अब मुझे आराम करना चाहिए,  पर"हाँ, मैं कल सब बताऊँगा। कहानी वहीं से शुरू होगी जहाँ आज रोकी है।"

तृषा और रवि फिर होस्टल लौटने के लिए अध्ययन कक्ष से बाहर निकलते हैं। जैसे ही वे कुछ दूर निकलते हैं, तृषा को याद आता है - "ओह!
वो किताब तो मैं अंदर ही भूल गई!" वह रवि से कहकर तुरंत अंदर लौटती है। 
कक्ष में कोई नहीं था, 
जैसे ही वह किताब उठाती है, उसके भीतर से एक पुराना, पीला-सा नक्शा नीच गिर जाता है। 

तृषा चौंककर उसे उठाती है - "ये नकशा कहाँ से आया? मैंने जब किताब पढ़ी थी, तब तो यो इसमें नहीं था..." उसी क्षण, पीछे से प्रोफेसर नैनी की शांत आवाज आती है- "मैंने ही रखा है ... तम्हारे लिए।" 
मैंने तुम्हारे अंदर एक जुनून देखा सच तक पहुंचने का,  कुछ कर दिखाने का और इसीलिए, मैंने ये नक्शा तुम्हारी किताब में रख दिया। 


तृषा हैरान हो जाती है। प्रोफेसर कहते हैं "तुम वहाँ जाना चाहती हो ना? उस टापू पर... अपने सपने के लिए... अपने गाँव के लोगों के लिए। ये नक्शा तुम्हारी मदद करेगा। वहाँ पहुँचने मैं, और सच को पहचानने में।" 
तृषा बहुत खुश हुई उसने प्रोफेसर नैनी को धन्यवाद कहा,
लेकिन वह कुछ सोचने लगी, तभी प्रोफेसर ने कहा होस्टल नहीं जाना, कुछ समय बाद अंधेरा होने वाला है।
तृषा झट से कहती है, अरे नहीं, मैं तो भूल ही गई थी। 
वह प्रोफेसर से विदा लेती है।
बाहर रवि उसका इंतजार कर रहा था। वो तृषा को देखने अंदर जाने ही वाला था कि सामने से तृषा आती दिखाई दी। क्या बात है तृषा, तुम तो बहुत खुश लग रही हो।
रवि ने पूछा, 
तृषा ने मुस्कुरा कर कहा, हां, क्योंकि मुझे इतना अच्छा दोस्त जो मिला है। रवि ने कहा अच्छी जी ये बात है। तृषा रवि से कहती है, अगर तुम नहीं होते, तो मैं कभी प्रोफेसर नैनी को नहीं ढूंढ पाती और मेरे सवाल हमेशा सवाल ही रहते जाते। रवि तृषा से कहता है, ऐसा नहीं होता, तुम बहुत जिज्ञासु लड़की हो और तुम्हें एक दिन तुम्हारी मंजिल जरूर मिलेगी। अब तो मैं भी हूँ तुम्हारे साथ,।
तृषा हां, कहती है।
रवि - चलो अब होस्टल चले। 

वापस लौटते हुए उन्हें शाम हो चुकी थी। 
तृषा और रवि अपने-अपने हॉस्टल लौट जाते हैं। रात को अपना सारा काम निपटाने के बाद, तृषा खिड़की के पास खड़ी सोच रही थी - 
"क्या मै  कोई सपना देख रही हूँ या सच मे कुछ बदल सकती हूँ?"
उसके मन मे  कई सवाल थे, पर शरीर थक चुका था। थोड़ी ही देर में वो नींद की आगोश में चली जाती है।

अगली सुबह, तृषा जल्दी जल्दी अपना काम खत्म करके तैयार होकर कॉलेज पहुंचती है। कुछ समय वो पुस्तकालय में बिताती है और उसके बाद तृषा बाहर रवि का इंतज़ार करती है।
रवि समय पर आ जाता है वह तृषा से पूछता है कि तैयार हो,  जिस पर तृषा बोलती है, हां, और फिर दोनों प्रोफेसर नैनी के घर के लिए निकल पड़ते हैं।

प्रोफेसर के घर पहुंचने पर, रवि उनकी पत्नी से पूछता है कि प्रोफेसर कहां हैं , तो सामने से जबाव आता है। 
आज तो वह बगीचे में है।

वे दोनों बगीचे  की ओर चले जाते हैं बगीचे में बहुत सुन्दर और अलग अलग तरह के फूल खिले थे तितलियां फूलों पर मंडरा रही थी, और चिड़ियों की चहचहाहट पूरे बगीचे में गूंज रही थी।

तृषा उत्सुकता से कहती है, देखो ना रवि कितना सुंदर फूल है। रवि मुस्कुरा कर कहता है यहां सभी फूल बहुत सुन्दर है।

वहीं प्रोफेसर नैनी बगीचे में टहल रहे थे। जैसे ही तृषा और रवि वहाँ पहुंचे, प्रोफेसर ने मुस्कराकर कहा, "आओ बच्चों, बैठो।" 

वे तीनों बगीचे में पड़ी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। तृषा ने पूछा प्रोफेसर आपने कितना सुंदर बगीचा बना रखा है। ये तो एक अलग ही दुनिया है जहां आप रहते हो।
प्रोफेसर मुस्कुरा कर कहते हैं... मुझे प्रकृति से बहुत लगाव है और इसीलिए मैंने शहर से दूर अपनी छोटी सी दुनिया बसा ली, जहां शोर नहीं सिर्फ शान्ति है।
 

तृषा मुस्कुराई...
लेकिन तृषा का मन अब और नहीं ठहर पा रहा था, वह जल्दी से कहती है "प्रोफेसर, अब तो बताइए... आगे कया हुआ था?"

प्रोफेसर नैनी एक गहरी सांस लेते हैं और बोलना शुरू करते हैं
"एक रात जब वो लोग आराम कर रहे थे, तभी उन्हें जंगल से कुछ अजीब आवाजें सुनाई देने लगीं। पहले तो वे सब घबरा गए, लेकिन फिर तय किया कि उन्हें जाकर देखना चाहिए कि ये आवाजें किसकी हैं। 

जब वे अपने तंबू से बाहर निकलते हैं, तो जंगल में थोड़ी दूर चलने पर उन्हें कुछ हलचल दिखाई दी। साथ ही एक रोशनी थी जो जंगल को रोशन कर रही थी। 

वे उस रोशनी की ओर बढ़े। वो रोशनी पेड़ो के पीछे से आ रही थी। उन्होंने देखा कुछ लोग आदिवासी - अपने देवता की पूजा कर रहते थे। वो सब बहुत ही रहस्यमय और अलग लग रह थे। "
वे अपनी ही संस्कृति, अपनी ही भाषा में कोई लोक नृत्य और गीत गा रहे थे।

टीम के सभी लोग छुप कर देख रहे थे।

जंगल की वह रहस्यमयी रात धीरे-धीरे और भी गहराने लगी थी। कबीले के लोग अपने देवता की पूजा में लीन थे — लेकिन तभी, जंगल की झाड़ियों में कुछ हलचल हुई।

वो कोई और नहीं, खोजी टीम के सदस्य थे — जो प्रोफेसर नैनी और उनकी टीम को खोजने टापू पर आए थे।
जब उन्होंने दूर से कुछ लोगों को पूजा करते देखा तो वे पहले डर गए, लेकिन फिर उनमें से एक सदस्य धीरे से बोला,
“ये शायद आदिवासी कबीला है… 

तभी उनकी नज़र एक परछाई पर पड़ी जो बाकी लोगों से अलग लग रही थी — थोड़ा अलग कपड़े, थोड़ा अलग हावभाव… और चेहरा — वो चेहरा जो उन्हें तस्वीरों में देखा था।

“प्रोफेसर नैनी!”
टीम के एक सदस्य की आवाज़ निकली — हैरानी और खुशी से भरी हुई।

कबीले वालों ने उस आवाज़ की ओर देखा। माहौल अचानक ठहर सा गया।

प्रोफेसर नैनी ने भी उनकी ओर देखा… कुछ पल लगे उन्हें पहचानने में… फिर उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा,
“तुम लोग… आखिर आ ही गए।”

थोड़ी ही देर में कबीले के कुछ योद्धा खोजी टीम के लोगों को घेर लेते हैं।
उनके हावभाव मे डर, क्रोध और सतरकता झलक रही थी।
वे आदिवासी उन्हें घसीटते हुए अपने मुखिया के पास ले जाते हैं।

मुखिया की आँखें गहरी थीं- अनुभव और चेतावनी से भरी। उसने गंभीर स्वर में अपनी ही भाषा में कुछ पूछाः  शायद "कौन हो तुम लोग? और हमारे पवित्र वन में क्यों आए हो?" 

टीम के प्रमुख ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "हम वैज्ञानिक हैं। हम अपनी टीम को ढूंढने आए हैं -
जो कई साल पहले यहां आए थी और फिर कभी लौटे नहीं।"
वे सब ये बता तो रहे थे, लेकिन किसी को भी एक दूसरे की बात समझ नहीं आ रही थी।

मुखिया कुछ क्षण शांत रहा। फिर उसने अपने कबीले की भाषा में कुछ कहा – जो शायद आदेश था।

तभी एक हलचल हुई, और भीड़ के पीछे से एक जाना-पहचाना चेहरा बाहर आया। प्रोफेसर नैनी।
उनकी आँखों में हैरानी थी और साथ ही चिंता भी। "तुम लोग यहां क्यों आए?...

तुम्हें नहीं आना चाहिए था।" टीम के लोग भावुक हो उठे। "हम सब तुम्हें ही खोज रहे थे, सर... हमने मान लिया था कि आप..."

मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी "मैं जीवित हूँ...
मैंने काबिले के मुखिया को सारी बात समझाई, कि वे लोग यहां नुकसान पहुंचाने नहीं आए।
बल्कि वे तो हमारी टीम की तलाश में आए हैं।

मेरे समझाने के बाद मुखिया की आँखें अब नरम पड़ चुकी थीं- शायद वो समझ चुका था कि ये लोग खतरा नहीं हैं।

मुखिया अपने लोगों को आदेश देता है कि वे उन लोगों का ध्यान रखें और खाने के लिए भोजन दे।
क्योंकि अब वह उनके अतिथि थे। 

जब सब काबिले वाले सो चुके थे। मैं खोजी टीम के तम्बू में गया। वे लोग भी जागे हुए थे।

लेकिन मेरी आँखों में चिंता थी।
मैंने उन सब से कहा... आखिर तुम लोग यहां क्यों आए हो तभी एक सदस्य बोलता है, सर हम सब तो आपको ढूंढने आए थे।

तभी उनमें से एक कहता है, जब हम आपको अपनी साथ लेकर लौटेंगे, तो सब बहुत खुश होंगे।

 थोड़ी देर शान्त रहने के बाद मैंने उन लोगों के साथ वापस लौटने से मना कर दिया। उन्होंने कहा आप क्यों नहीं जाना चाहते? 
तब मैंने उन्हें बताया कि अब मैं इन्हीं में से एक हूँ और ये मौनद्वीप मेरी भी जिम्मेदारी है।
मुझे बाहर की दुनिया से कुछ नहीं चाहिए। 
मैं अपना बचा हुआ जीवन इसी काबिले में व्यतित करूंगा।

सुबह होते ही तुम सब भी वापस शहर लौट जाना।
और सबको कहे देना कि हमारी टीम तूफान में कहीं गुम हो गई।

लेकिन "अब जब तुम आ ही गए हो, तो तुम्हें एक वादा करना होगा..." टीम ने एक स्वर में कहा "जो भी कहिए सर।" 
"इस जगह का रहस्य... इस टापू का सच... कभी किसी को मत बताना। क्योंकि अगर यह बाहर की दुनिया तक पहुंच गया, तो ये स्वर्ग नहीं बचेगा।"

क्या वे लोग वापस लौटेंगे?
आगे का रहस्य?

आगे...