Bandhan - 29 in Hindi Fiction Stories by Maya Hanchate books and stories PDF | बंधन (उलझे रिश्तों का) - भाग 29

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बंधन (उलझे रिश्तों का) - भाग 29

रीकैप 

पिछले चैप्टर में हम पढ़ते हैं कि सभी लोग नवरात्रि की तैयारी करना शुरू कर देते हैं। वनराज और शिवाय एक दूसरे से बात कर ही रहे थे कि तभी  वह दुर्गा आती है।  प्रणय के साथ फ्लर्ट  करती है।। रुचिता और  वनराज  ,अपनी कुछ स्पेशल ममेंट्स एक दूसरे के साथ बिताते हैं। 

अब आगे



कपाड़िया हाउस में 

इस वक्त मोहिनी जी भी नवरात्रि की तैयारी कर रही थी वह भी बहुत ही भागते दौड़ते हुए ।

इस वक्त कपाड़िया हाउस हमेशा की तरह सुनसान और बेजान  नहीं था आज कपाड़िया हाउस में हलचल थी। 

मोहिनी जी ने इस वक्त मल्टी कलर की चमकीली साड़ी  , गुजराती स्टाइल में साड़ी पहनी हुई थी। 

हाथों में ढेर सारी चूड़ियां मांग में सिंदूर माथे पर बिंदिया पैरों में मोटी सी पायल गले में बड़ा सा मंगलसूत्र चेहरे पर नवरात्रि का नूर। इस वक्त पूरा कपाड़िया हाउस दुल्हन की तरह सज रहा था। आज मोहिनी जी रोज़ से कुछ अलग ही दिखा रही थी आज उनके चेहरे पर एक खुशी थी। 

वह खुशी से अपना सारा काम कर ही रही थी कि तभी उनके कानों में एक रौबदार आवाज सुनाई पड़ती है। तमारूम कम हाजी पूर्ण थायुम नाथी,में थोड़ा दिवस मेट घरानी बाहर गया तुम आलस्य बनी ga'i che, बहू। 
(तुम्हारा काम अब तक पूरा नहीं हुआ है मैं कुछ दिन घर से बाहर क्या गई तुम आलसी बन गई हो बहू)

उसे औरत की बात सुनकर मोहिनी जी पहले अपने सर पर पल्लू लेती है और उनके पैर छूकर बोली जय श्री कृष्णा बा 

यह औरत शेखर जी की मां तेजस जी की पत्नी उर्मिला कपाड़िया है। उनके चेहरे पर उम्र होने के बावजूद भी एक घमंड बरकरार है। उर्मिला जी इस वक्त गुजराती तरीके से पीली साड़ी पहनी हुई है उसे पर उन्होंने खुद को सोने के गहनों से लद लिया है‌। माथे पर ना हीं बड़ी ना ही छोटी लाल बिंदी चेहरे पर मेकअप। एक हाथ में गुजराती परस।

वह इस वक्त टिपिकल गुजराती लग रही थी। 

मोहिनी जी के पैर छूते ही उर्मिला जी उन्हें आशीर्वाद देती है सदा सुहागन रहो। 

उसके बाद नाक मुंह से कर कर बोलता है अब तक तैयारी क्यों नहीं हुई है। इतनी देर से तुम क्या की या। यह सब छोड़ो पहले यह बताओ कि मारो डीकारू क्या चे, ते हाजी जाग्यू नाती? (मेरा बेटा कहां है अभी तक उठा नहीं बड़े प्यार से बोलता है)

तभी उर्मिला जी के पीछे से एक आवाज आती है हम अहम हो इस बा।(मैं इधर हू बा)

शेखर जी की आवाज सुनकर उर्मिला जी पीछे पलटी है और अपने बेटे को देखकर उसके गले लगाते हुए बोली मैंने तुम्हें बहुत बहुत याद किया हमारा डीकारू।

शेखर जी मुस्कुराते हुए बोले तमे केम छो बा मजमा।माने काहू के तमारी सफर केवी cālīi थी।(आप कैसी हो मां आपका सफर मजे में गया अपने सफ़र में क्या-क्या किया)

उर्मिला जी शेखर जी से मुस्कुराते हुए जवाब देती है एकदम मजा मा ।

तभी मोहिनी जी शेखर जी और उर्मिला जी के लिए पानी और चाय लाती है। 

और उन्हें उनके हाथों में दे देती है। 

और वही सर झुका कर खड़ी हो जाती है। 

उर्मिला जी उने देखकर बोली एट लो खड़ी ना हो तुम्हारा काम करो ।
(ऐसे ही खड़ी मत रहो अपना काम करो)

जिस पर शेखर जी भी अपनी मां के साथ देते हुए बोले हां बीवी जाइए आप अपना काम कीजिए इस वक्त उनके मुंह से चाशनी टपक रही थी।

उन दोनों की बात सुनकर मोहिनी  जी अपना सर हम हिला कर 
वहां से चली जाती है। 

उसके बाद शेखर जी और उर्मिला जी एक दूसरे से बात करते हैं। उर्मिला जी शेखर जी से अपनी पोता पोती के बारे में पूछती है।

शेखर जी उर्मिला जी से बोलते तमय के बताओ बा‌ एक से बिजनेस के अलावा कुछ सोचता नहीं है दूसरा बिजनेस के अलावा सब कुछ सोच लेता है और तीसरा उसे तो ना बिजनेस सोचता है ना कुछ और। 

उर्मिला जी मुस्कुराते हुए बोली अभी वह बच्चे हैं उनके खेलने कूदने के दिन ही है।

बा आपकी वजह से ही तीनों बच्चे बिगड़ गए हैं। 

तभी एक लड़की भाग कर उर्मिला जी के गले लगाते हुए बोली आई मिस यू बा आई मिस यू ।

यह लड़की दिखने में बहुत प्यारी मासूम सी है गोरा रंग काली आंखें सिल्की बाल दुबली पतली सी लड़की। इस वक्त उसे लड़की ने प्यारा सा इंडो वेस्टर्न सूट पहना है। 

उर्मिला जी उसे लड़की को गले लगाते हुए बोली तमे केम छो। 

वह लड़की बोली मस्त मजा मा बा ।

आपने मेरे लिए क्या-क्या गिफ्ट लाए हैं बा 

तभी शेखर जी उसे लड़की की तरफ देखते हुए बोले साची आपको बा की पहले पैरों को छूना चाहिए।

साची जो अब तक उर्मिला जी से मिलकर इतनी खुश थी वह शेखर जी की आवाज सुनकर हंसना बंद कर देती है और उनकी तरफ देखती है उसके बाद वह उर्मिला जी की पैर छूकर आशीर्वाद लेती है। 

लेकिन वह एक बार भी शेखर जी की तरफ नहीं देखती है। 

क्योंकि वह शेखर जी की अपनी मां के प्रति व्यवहार जानती है जिसकी वजह से वह जितना हो सके उतना शेखर जी से दूर रहती है। 

साची शेखर जी को बिना एक्सप्रेशन के साथ ग्रीट करती है उसके बाद वह उर्मिला जी से बात करना शुरू कर देती है। 

शेखर जी को यह बात दिल में चुभती   है पर वह कुछ नहीं कहते हैं। (शेखर जी को हमेशा से लगता है कि सांची उनसे इसलिए बात नहीं करती है क्योंकि मोहिनी जी और कपड़ियास ने उनकी बेटी के कान भर दिए हैं इसलिए वह और भी ज्यादा कपाड़िया और मोहिनी जी से नफरत करते हैं। 

तभी मोहिनी जी हाल में आती है जहां सोफे पर शेखर जी उर्मिला जी और सांची बैठे हुए हैं। 

मोहिनी जी उर्मिला जि उर्मिला जी से बोलती हैं बा मैंने सारा काम खत्म कर दिया है बस आप कश्यप के पापा माता रानी की मूर्ति लाना और उन्हें स्थापना करने की बाकी है। 

उर्मिला जी मोहिनी जी के बाद पर हमें गर्दन हिला देती है। 

मोहिनी जी सांची को देखते हुए बोली बच्चा आपके लिए ब्रेकफास्ट बना दिया गया है तो आप ब्रेकफास्ट करने चलो। 

साची बोलती है मां आज मैं भी नवरात्र का व्रत रखा है। 

उसकी बात सुनकर उर्मिला जी शेखर जी और मोहिनी जी हैरान होकर देखते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि उनकी बेटी को भूख बर्दाश्त नहीं होता है वह थोड़ी देर भूख बर्दाश्त कर ले तो रोना शुरू कर देती है। 

उर्मिला जी बोली ना  बच्चा थारी व्रत रखने की कई जरूरत नहीं है। 

मोहिनी जीबी उर्मिला जी की बात पर हामी भरती है। 

पर साची नहीं मानती है। मोहिनी जी और उर्मिला जी बहुत ही सांची को मनाने की कोशिश करते हैं कि वह व्रत ना रखें पर सांची नहीं मानती है।

उर्मिला जी शेखर जी से बोलती है तमे ही समझा इस छोकरी ने । 

शेखर जी सांची को समझाने वाले थे कि सांची बोलती है बात खत्म भा और मां मैं तो व्रत रखूंगी इतना बोलकर वहां से चली जाती है। 

शेखर जी की बातें उनके मन में ही रह जाती है। 

उर्मिला जी एक तरफ अपने बेटे को देखते हैं और दूसरी तरफ अपनी पोती को उसके बाद वह घूर  कर मोहिनी जी को देखते हुए बोली क्या पट्टी पढ़ाई है तुमने मेरी पोती को जो वह ठीक से अपने बाप  से बात भी नहीं करती है। 

उर्मिला जी की बात सुनकर मोहिनी जी घबराते हुए बोली वह मैंने कुछ भी नहीं कहा है। 

शेखर जी सास बहू का ड्रामा नहीं देखना चाहते थे इसलिए वह मोहिनी जी से बोलते हैं अपने बेटों को बुलाओ , मुझे जल्दी से माता रानी को लेने जाना है। 

शेखर जी के बाद पर मोहिनी जी अपना सर हिला देती है। 

कपाड़िया मेंशन में 

आरोही दरवाजे से ही बच्चों से बोलती है कि नवरात्रि क्यों सेलिब्रेट करते हैं उने बताती है। 

आरोही को यु दरवाजे पर खड़े होकर बात करते देखा खुशी जी बोली अंदर आओ बेटा , दरवाजे पर क्यों खड़ी हो। 

आरोही अंदर आते हुए बोली सत श्री अकाल दादी ।

इतना बोल कर वह उन  से आशीर्वाद लेती है उसके बाद वह शिवाय के पास जाकर उसे गुड मॉर्निंग विश करती है शिवाय भी उसे रिप्लाई देता है। 

उसके बाद बच्चों के पास जाती है और उन लोगों से भी गुड मॉर्निंग विश करती है। 

इशिता जी बोली सही समय पर आयु आरोही अभी नाश्ता लगा रही थी चलो तुम भी नाश्ता कर लो। 

आरोही बोलती है नहीं आंटी मैं नाश्ता करने के लिए नहीं आई हूं वह तो मां ने कहा है कि आज से नवरात्रि शुरू होने वाली है तो मैं आकर भाभी और पालकी की मदद कर दू।

इशिता जी उसकी बात सुनकर मुस्कुराती है और बोलती है मदद तो बाद में कर  लेना पहले नाश्ता करो। उनको बार-बार यू रिक्वेस्ट करता देखकर आरोही बोलती है ठीक है और डाइनिंग टेबल के पास बैठ जाती है। 

आरोही डाइनिंग टेबल पर देखती है तो वह देखती है कि आज नाश्ते में टिपिकल गुजराती खाना बना हुआ है जैसे खाखरा ,फाफड़ा जलेबी , खांडवी थेपला और ढोकला ।

टिपिकल गुजराती फूड देखकर आर्य संवि और आरोही का मुंह बन जाता है क्योंकि उन्हें तो सुबह नाश्ते में पराठे खाने की आदत है या यह कह सकते हैं कि पराठे उनके फेवरेट है। 

इशिता जी जब देखती है कि आरोही आर्य और संवि खाने को देकर मुंह बना रहे तो वह पूछती है क्या हुआ है ऐसे क्यों देख रहे हो। 

तीनों एक साथ पूछते हैं क्या खाने में पराठे नहीं है। 

उन तीनों को एक साथ ऐसे पूछते देखकर वह तीनों पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर सबको देखते हैं उसके बाद वह तीनों और सब लोग एक दूसरे के साथ हंसने लगते हैं सिवाय शिवाय वनराज के। 

इशिता जी बोलती है आज के लिए तुम लोग यह खा लो मैं तुम्हारे लिए कल पराठे जरूर बना दूंगी। 

तीनों मन मार कर चुपचाप से गुजराती खाना एंजॉय करते हैं।
 (डियर रीडर अगर आप सब को लग रहा होगा कि मैं यहां गुजराती खाने का बुराई कर रही हूं तो ऐसा नहीं है और  मैं इसकी बुराई नहीं कर रही हूं इसकी बुराई नहीं कर रही हो उल्टा मुझे तो गुजराती खाना अच्छा लगता है पर क्या करें हमें स्टोरी को ट्रैक पर लाने के लिए कुछ अलग करना पड़ता है अगर इससे किसी को दिल में चोट पहुंचे आई एम सो सॉरी) 

शिवाय को नाष्टा ना करते देखकर खुशी  जी पूछती है कि शिवाय तुम नाश्ता  क्यों नहीं कर रहे हो।। 

शिवाय जवाब देता है आप जानती हो ना हर साल में भी आपके साथ व्रत रखता हूं। (शिवाय इन सब बातों पर नहीं मानता है पर वह अपने परिवार से प्यार करता है इसी वजह से वह वह हर चीज करता है जो उसके परिवार को खुशी दे) 

वनराज शिवाय से बोलता है चलो लेट हो रहा है वहां जाने में भी टाइम लगेगा। 

वनराज और शिवाय की बात सुनकर आर्य वनराज से पूछता है बड़े पापा आप लोग कहां जा रहे हो। 

आर्य की बात सुनकर वनराज जवाब देता है माता रानी को लाने के लिए। 

आर्य बड़े मासूमियत से पूछता है क्या मैं भी आ सकता हूं। 



वनराज कुछ बोलता उससे पहले ही शिवाय बोलता है नहीं बच्चा आप नहीं आ सकते हो वह जगह बहुत दूर है और वह बहुत भीड़ होती है। 

आर्य शिवाय की बात बिना सवाल की यही मान जाता है। 

आरोही अपने मन में सोचती है कि थैंक गॉड इसने(शिवाय) ले  जाने से मना कर दिया है। नहीं तो मेरा यहां आना वेस्ट हो जाता था) आरोही या मदद करने के लिए नहीं बल्कि बच्चों के साथ टाइम स्पेंड करने आई थी क्योंकि जब से उसने बच्चों को देखा है तब से उसके दिल में अजीब सी फिलिंग्स ने जगा ली है अब वह क्या है बस वही जाने।

उसके बाद शिवाय वनराज मूर्ति लाने के लिए निकल जाते हैं।

नाश्ता करने के बाद बच्चे खेलने लगते हैं और आरोही पूजा की तैयारी करने में सबकी मदद करने लगती है।

बीच-बीच में वह बच्चों के साथ खेलना बातें करना भी कर रही थी वह अपने आप से बच्चों को दूर एक पल के लिए भी नहीं कर रही थी और बच्चे भी उसे एक पल के लिए दूर नहीं हो रहे थे।

जब वनराज और शिवाय मूर्ति लेने के लिए पहुंचते हैं तो वहां बहुत सारे माता रानी की अलग-अलग भेस में मूर्ति बनाई हुई थी।

दोनों मूर्ति उसकी लाइन में जाकर एक-एक मूर्ति को बड़ी बारीकी से देख रहे थे।

तभी वह लोग एक आदमी से टकरा जाते हैं। 

जैसे ही वनराज और शिवाय सामने खड़े आदमी को देखते हैं तो वह उसे देखते ही रह जाते हैं। 

सामने खड़ा आदमी भी शिवाय और वनराज को देखते ही रहते हैं

क्या होगा उर्मिला जी के आने के बाद। 
क्या सांची कभी बात कर पाएगी ठीक से शेखर जी से।

वह आदमी कौन है जिसे शिवाय और वनराज टकराया। 
कब आएगी बच्चों का सच सबके सामने।

क्या नया मोड़ लाने वाला है जाने के लिए पढ़िए अगला चैप्टर।
थैंक यू चैप्टर पढ़ने के लिए। 
रिव्यू ओर कमेंट देना मत भूलेगा।