Part 1: रूहों का रिश्ता
रूहें अगर किसी से बंध जाएं, तो वो जन्म की ज़रूरत नहीं समझतीं।ये कहानी है अन्वी और ऋद्विक की — जो पहली बार इस धरती पर नहीं मिले।
अन्वी, एक 22 साल की लड़की, जिसकी आंखों में सवाल थे — और दिल में एक अजीब सी तड़प। वो अक्सर सपनों में एक ऐसा लड़का देखती थी, जिसका चेहरा साफ़ नहीं दिखता था… मगर उसकी आंखों की गहराई में डूबती चली जाती थी।
हर सपने में वो लड़का कहता:
"मैं तुम्हें इस जन्म में ढूंढ लूंगा। अग्नि के बिना भी, मैं तुमसे सात फेरों का वादा करता हूं।"
अन्वी डर जाती, पर उस आवाज़ से मोह भी हो जाता।
ऋद्विक, एक 24 साल का पुरातत्त्व विभाग में काम करने वाला लड़का। उसे प्राचीन मंदिर, खंडहर और उनकी कहानियों में गहरी रुचि थी। एक दिन राजस्थान के एक उजड़े मंदिर में उसे एक टूटा हुआ शिलालेख मिला, जिस पर लिखा था:
"यहां दो आत्माएं अग्नि के बिना सात जन्मों की सौगंध खा चुकी हैं।अग्नि गवाह नहीं बनी, फिर भी ब्रह्मा ने उनका मिलन स्वीकारा।"
ऋद्विक के दिल में एक अजीब सा कंपन हुआ। उसने उस रात पहली बार किसी अनजान लड़की का सपना देखा — वही अन्वी थी।
Part 2: मुलाक़ात नहीं, पहचान हुई
किस्मत ने उन्हें एक कॉलेज वेबिनार में मिलाया। वो वेबिनार इतिहास पर था — लेकिन जो हुआ वो भविष्य का इतिहास बन गया।
जब अन्वी ने ऋद्विक को पहली बार देखा — वो चौंक गई। वही आंखें। वही कंपन।
ऋद्विक को भी लगा — वो उसे पहले से जानता है। उसने कहा:
"हम पहली बार मिल रहे हैं… या आख़िरी बार?"
Part 3: शादी… लेकिन अग्नि के बिना
उनके बीच प्यार फूटा नहीं, बहता रहा जैसे नदी अपने किनारे को ढूंढ रही हो।लेकिन जब शादी की बात आई, अन्वी ने एक शर्त रखी:
“हमारी शादी मंदिरों में, आग के सात फेरे नहीं होंगे।हम वहां शादी करेंगे जहां हमारी रूहें पहली बार जुड़ी थीं — उस टूटे हुए मंदिर में।”
सबने विरोध किया। समाज, रिश्तेदार, यहां तक कि पंडित भी। लेकिन वो दोनों अडिग रहे।
Part 4: सात वचनों की परछाई
टूटा हुआ मंदिर, रात का अंधेरा, चाँद की रोशनी और दो आत्माएं।
कोई पंडित नहीं, कोई घुंघरू नहीं, कोई शंख नहीं।
ऋद्विक ने हाथ पकड़कर कहा:
“मैं वचन देता हूं कि अगर मेरी रूह दोबारा जन्म ले, तो भी उसे सिर्फ़ तुम्हारी रूह ढूंढेगी।”
अन्वी ने मुस्कराकर उत्तर दिया:
“मैं वचन देती हूं कि इस जन्म के बाद, मुझे अग्नि नहीं चाहिए — बस तुम्हारी आंखों की गर्माहट ही काफ़ी है।”
Part 5: प्यार जो क़ानून से परे था
जब उन्होंने तस्वीरें पोस्ट कीं — दुनिया हैरान रह गई। किसी ने कहा ये ड्रामा है, किसी ने पागलपन।
पर कुछ ने कहा —
“शायद यही तो असली प्यार है — जहां रिवाज़ों की जगह रिश्ते निभाए जाते हैं।”
आज भी वो मंदिर अब "रूहों वाला मंदिर" कहलाता है। लोग वहां शादी करने नहीं, अपनी रूह को समझने जाते हैं।
💍 "सात जनम से पहले"
Part 6: पिछला जन्म याद आया...
उस रात, जब अन्वी और ऋद्विक ने उस उजड़े मंदिर में अग्नि के बिना एक-दूसरे को अपना जीवनसाथी माना — एक अनोखी ऊर्जा उनके चारों ओर फैल गई।
मंदिर की टूटी हुई दीवारों पर जैसे किसी ने दीपक जला दिए हों। हवा में गूंजा एक श्लोक — जो उन्होंने कभी पढ़ा नहीं था, पर फिर भी उन्हें समझ आया:
"युगों युगों से हम बंधे हैं, अग्नि नहीं, आत्मा ही साक्षी रही है।"
ऋद्विक कांपने लगा। उसकी आंखों में एक झलक उभरी — एक दूसरी दुनिया, एक दूसरा समय।अचानक अतीत की खिड़की खुली...
900 साल पहले, एक राज्य था — "वरुणगढ़", जहां एक राजकुमारी थी — अनविता और एक सैनिक था — ऋधवान।
अनविता को कभी राजमहल की सीमाएं रास नहीं आईं, और ऋधवान हमेशा युद्धों से भागता रहा, क्योंकि उसे रूहों का संगीत सुनाई देता था।
वो दोनों एक टूटे मंदिर में मिला करते थे। और वहां बिना किसी रिवाज के, उन्होंने अपनी आत्माएं एक-दूसरे को सौंप दी थीं।
लेकिन उस काल में ये स्वीकार नहीं था।
राजा ने सैनिक को मौत की सजा सुनाई और राजकुमारी को एक परदे में ज़िंदा दफना दिया गया।
मौत से पहले ऋधवान ने कहा था:
“अगर मेरी आत्मा सच्ची है, तो मैं हर जन्म में तुझे ढूंढ निकालूंगा — अग्नि के बिना, फेरों के बिना।”
Part 7: जब वर्तमान ने अतीत से हाथ मिलाया
अन्वी और ऋद्विक दोनों को एक साथ ही सब याद आ गया।
एक ही वक़्त में उन्होंने एक ही वाक्य कहा:
“हमने जन्मों पहले वादा किया था, और आज उसे पूरा किया।”
उनका रिश्ता अब सिर्फ़ शादी नहीं था।वो उन रूहों का पुनर्मिलन था — जो इंसानों के बनाये नियमों से परे था।
Part 8: दुनिया से अलग…
अब दोनों ने तय किया कि वो किसी समाज, किसी ढांचे में नहीं बंधेंगे।
उन्होंने शादी का कोई प्रमाणपत्र नहीं लिया।
कोई हल्दी, कोई मंडप, कोई संगीत नहीं था।बस एक मंदिर, एक वादा… और दो आत्माएं — जो सात जन्मों से पहले भी साथ थीं।
ये कहानी उन लोगों के लिए है जो सोचते हैं कि प्यार को साबित करने के लिए दुनिया की मंज़ूरी चाहिए।
कभी-कभी, प्यार खुद ही अपना ब्रह्मा होता है…