लेखक: अंकु
शाम की हल्की धूप खिड़की से कमरे में बिखर रही थी। अंकित, जो हर रोज़ कॉलेज से लौटते ही डायरी लेकर बैठ जाता था, आज भी उसी कुर्सी पर बैठा था… पर आज उसकी कलम नहीं चल रही थी। उसकी आँखें एक नाम पर अटक गई थीं – “चहर”।
ये कहानी शुरू होती है उस दिन से जब कॉलेज का पहला दिन था। भीड़ में सब कुछ नया था – क्लास, टीचर्स, दोस्त और वो भी… चहर। हल्की गुलाबी ड्रेस में जब उसने पहली बार क्लास में कदम रखा था, तब जैसे वक्त रुक सा गया था। अंकित की नज़र उससे हट ही नहीं रही थी। ना वो फिल्मी लड़का था, ना चहर कोई हिरोइन – पर कुछ तो था जो उसे बाकी सब से अलग बनाता था।
अंकित ने कभी उससे बात करने की हिम्मत नहीं की। वो बस दूर से उसे देखता, क्लास नोट्स बनाते वक्त उसकी लिखावट चुपचाप देखता, और लाइब्रेरी में जब चहर चुपचाप किताबों में खोई रहती, अंकित बस एक कोना ढूंढकर उसे देखता रहता।
धीरे-धीरे नज़रों की पहचान हुई। चहर मुस्कराने लगी, अंकित थोड़ा बोलने लगा। दोस्ती हुई… और फिर धीरे-धीरे वो दोस्ती एक गहरी परछाईं में बदलने लगी – प्यार की परछाईं।
पर बात सिर्फ इतनी सी नहीं थी।
एक शाम कैंपस के उस पुराने पीपल के पेड़ के नीचे चहर ने कहा, “अंकित, क्या तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो?”
अंकित की धड़कनें तेज़ हो गईं, लेकिन शब्द होंठों तक पहुँचते-पहुँचते रुक गए। उसने बस हल्का सिर हिलाया – हाँ में।
चहर मुस्कराई, “तो बोलो ना… मैं भी इंतज़ार कर रही हूँ।”
अंकित ने अपनी डायरी से एक पन्ना फाड़ा, और चुपचाप उसे पकड़ा दिया। उस पन्ने पर लिखा था –
“तुम सिर्फ नाम नहीं हो मेरे लिए, चहर... तुम वो एहसास हो जो हर साँस में घुल गया है। तुम्हारी हँसी मेरे दिन की सुबह है और तुम्हारी चुप्पी मेरी रात की तन्हाई।”
चहर की आँखें नम हो गईं। उसने पन्ना बंद किया और धीरे से कहा, “अंकित, ये एहसास अब देर से आया… मेरे लिए अब घरवालों ने रिश्ता तय कर दिया है।”
वो शब्द, जैसे किसी ने अंकित की धड़कन को रोक दिया हो।
वो दिन, वो शाम, वो लम्हा – सब ठहर गया।
अगले दिन चहर कॉलेज नहीं आई। फिर हफ्ते नहीं आए… और फिर कभी नहीं आई।
अंकित की ज़िंदगी वहीं रुक गई। डायरी अब भी वही थी, कुर्सी अब भी वही थी… बस अब उसमें शब्द नहीं होते थे। बस एक नाम लिखा होता था – “चहर”।
वो तड़प… जो ना इज़हार बन सकी, ना इंकार… बस याद बन गई।
वो मोहब्बत… जो ना मिल सकी, ना मिट सकी।
आज भी, जब बारिश होती है और खिड़की पर बूँदें गिरती हैं, अंकित को वो शाम याद आती है।
वो नाम – चहर, अब भी उसकी हर साँस में ज़िंदा है।
और वो प्यार… आज भी अधूरा होकर भी सबसे खूबसूरत है।
---
चहर – एक अधूरी मोहब्बत की वापसी
भाग 2 – लौट आई वो तन्हाई में
तीन साल बीत चुके थे।
अंकित अब एक मंझा हुआ लेखक बन चुका था। उसकी किताबें बिक रही थीं, उसके इंटरव्यू अखबारों में छपते थे, लेकिन उसकी मुस्कान अब भी वही थी – अधूरी। वो हर किताब के पहले पन्ने पर एक ही नाम लिखता – "To Chahar, the girl who never left my eyes."
दिल्ली की सर्दियों में जब सुबह की चाय भाप छोड़ती थी, अंकित अब भी खिड़की के पास बैठकर अपने पुराने नोट्स देखता, वही डायरी… वही पीला पड़ चुका पन्ना, जिस पर चहर के लिए लिखा गया वो पहला इज़हार अब भी रखा था।
उस दिन दिल्ली के एक लिटरेरी फेस्ट में उसकी नई किताब “साँसों में तुम” की लॉन्च थी। भीड़ थी, कैमरे थे, ऑटोग्राफ थे… और उसी भीड़ के कोने में एक चेहरा… बहुत पुराना… बहुत जाना-पहचाना चेहरा।
वो चहर थी।
अंकित की नज़र उससे टकराई, पर यकीन नहीं हुआ।
वो आगे आई… वही पुरानी मुस्कान, बस आँखें थोड़ी थकी हुई थीं।
“कैसी हो?”
“तुम्हारी किताबें पढ़कर जी रही हूँ,” चहर ने कहा, “और हर बार लगा जैसे तुम मुझसे बात कर रहे हो।”
अंकित चुप था… फिर धीरे से बोला, “तुम चली गई थी… बिना कुछ कहे।”
चहर की आँखें भर आईं, “मैं चाहकर भी रुक नहीं पाई अंकित। शादी तय थी, और मेरी हिम्मत नहीं थी कि किसी को रोक सकूँ। पर जो हुआ… वो कभी रिश्ता बन नहीं सका। आज तलाक के बाद, मैं वही बन गई हूँ जो हमेशा थी – तुम्हारी चहर… अधूरी।”
भीड़ दूर थी, पर वक्त उस पल ठहर गया था। दोनों बस देख रहे थे एक-दूसरे को… जैसे वक्त के धागे फिर से जुड़ने लगे हों।
“क्या अब भी मुझमें कुछ बाकी है?” चहर ने पूछा।
अंकित मुस्कराया, “तुम कभी गई ही नहीं… मेरी हर कहानी में, हर पंक्ति में तुम ही तो थी। तुम अगर लौट आई हो, तो शायद अधूरी मोहब्बत अब मुकम्मल हो सकती है।”
---
कहानी अब कहाँ जाएगी?
क्या अंकित और चहर एक नए सिरे से रिश्ते की शुरुआत करेंगे?
या समाज, समय और जख्म फिर से दीवार बन जाएंगे?
भाग 3 – मोहब्बत के बाद की लड़ाई
वो रात अब भी अंकित के दिल में गूंज रही थी — जब सालों बाद चहर उसकी किताब के पन्नों से निकलकर सामने खड़ी हुई थी।
उसने कहा था —
"अगर अब भी मेरा इंतज़ार है... तो इस बार देर मत करना।"
अंकित ने बिना एक पल गँवाए हाँ कर दी।
अब ये मोहब्बत फिर से साँस लेने लगी थी।
दोनों ने साथ समय बिताया, पुराने जख्मों को बांटा, नए सपने बुने।
चहर के चेहरे पर फिर से मुस्कान लौटने लगी थी — वो मुस्कान जो कभी अंकित की जान हुआ करती थी।
🌸 लेकिन असली इम्तिहान तब शुरू हुआ…
अंकित ने घर जाकर माँ-पापा से कहा,
“मुझे चहर से शादी करनी है…”
माँ कुछ पल चुप रहीं… फिर बोलीं:
“वो वही लड़की है ना… जो तलाकशुदा है?”
पिता की आवाज़ सख्त थी:
“अंकित, हम तुम्हारे लिए एक अच्छा, संस्कारी और कुंवारी लड़की ढूंढेंगे। ऐसे दाग वाली लड़की से रिश्ता नहीं जोड़ सकते।”
अंकित जैसे पत्थर बन गया।
“दाग?” – ये शब्द उसके कानों में गूंज रहा था।
उसने कहा,
“आपको उसकी तलाक की वजह नहीं मालूम, आपने कभी उसकी कहानी नहीं सुनी। बस एक शब्द सुनकर आपने उसकी पूरी इंसानियत मिटा दी।”
माँ बोली,
“समाज क्या कहेगा बेटा? रिश्तेदार क्या सोचेंगे?”
अंकित की आँखों में आँसू थे, पर आवाज़ में मजबूती:
“अगर मैं उसी समाज को खुश करने के लिए उस लड़की को खो दूँ, जिसने मेरी हर साँस में खुद को जिया… तो फिर मैं सिर्फ उनका बेटा रह जाऊँगा, खुद का नहीं।”
अगली सुबह अंकित ने चहर को कॉल किया।
“तुम्हारे घर वाले…?”
“नाराज़ हैं। पर अगर मैं तुम्हारा नहीं बना, तो अपने आप से नज़रे नहीं मिला पाऊँगा।”
“तो क्या करोगे?”
“वो जो हर कहानी में होता है – लड़ाई।”
---
💍 एक छोटा, सच्चा और साहसी फैसला…
दोनों ने मिलकर कोर्ट मैरिज का निर्णय लिया।
शायद इसमें शहनाइयाँ नहीं थीं, फूलों की सजावट नहीं थी, न ही बारात…
पर एक चीज़ थी –
प्यार, जो किसी के भी प्रमाण पत्र या समाज की मुहर का मोहताज नहीं था।
---
🕊️ अंतिम पंक्तियाँ:
कुछ शादियाँ मंदिरों में होती हैं,
कुछ घरवालों के आशीर्वाद से…
और कुछ…
दो टूटी आत्माओं के मिलन से,
जो एक-दूसरे को फिर से जोड़ देती हैं।
अब चहर सिर्फ एक नाम नहीं थी –
वो अंकित की जीवन संगिनी बन चुकी थी।
एक अधूरी कहानी…
अब पूरी हो चुकी थी।
---
भाग 4: साया जो पीछा नहीं छोड़ता
शादी के बाद चहर और अंकित ने ज़िंदगी को नए सिरे से शुरू किया था।
सादा-सा घर, छोटी-सी दुनिया, लेकिन दिलों में सुकून था।
अंकित की किताबें चल रही थीं, चहर अब स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थी।
सब कुछ सही लगने लगा था…
…तब तक, जब तक उसका अतीत फिर से दरवाज़ा खटखटाकर नहीं आ गया।
---
🌑 एक डरावनी शाम...
चहर स्कूल से लौट रही थी, तभी गली के कोने पर एक परछाईं खड़ी थी।
जैसे ही वो पास पहुँची, उस आवाज़ ने उसकी रूह कंपा दी:
“काफ़ी बदल गई हो, लेकिन डर अब भी वही है ना?”
वो राघव था – उसका पूर्व पति।
चहर की सांसें थम गईं।
उसने पलटकर कुछ कहना चाहा…
पर राघव ने उसकी कलाई पकड़ते हुए कहा:
"अगर तूने अंकित से अलग नहीं हुई… तो वो सब सामने आ जाएगा, जो तूने कभी छुपाया था।"
"क्या चाहते हो?" – चहर की आवाज़ काँप रही थी।
"बस इतना कि… उस लेखक के पास मत रहो। वरना…"
---
🌪️ मन की उलझन…
चहर घर लौटी, लेकिन चुप थी।
अंकित ने पूछा –
“क्या हुआ चहर, तुम ठीक हो?”
चहर ने कुछ नहीं कहा। बस मुस्कराई,
लेकिन वो मुस्कान झूठी थी, और आँखें… डरी हुईं।
उस रात उसने पहली बार अंकित से कहा,
“शायद… हम दोनों की दुनिया अलग होनी चाहिए थी।”
अंकित चौंका।
“ऐसा क्यों कह रही हो?”
“बस... मैं नहीं चाहती कि तुम्हें मेरी वजह से कोई नुकसान पहुँचे…”
---
🔥 पर प्यार चुप नहीं रहता…
अगले दिन अंकित को एक गुमनाम ईमेल मिला –
जिसमें चहर और राघव की पुरानी तस्वीरें और झूठे आरोपों की धमकी थी।
पर अंकित डरा नहीं…
उसने चहर को सामने बैठाया, उसका हाथ थामा और कहा:
“मैंने तुमसे शादी की थी, तुम्हारे अतीत से नहीं भागने के लिए –
बल्कि तुम्हारे साथ मिलकर उसे हराने के लिए।”
“पर वो… सबकुछ बर्बाद कर सकता है अंकित।”
“तो करने दो।
मैं तुम्हें खोकर नहीं जी सकता।
मैं झूठे समाज से डरकर तुम्हें छोड़ नहीं सकता।
अब अगर लड़ाई है, तो साथ लड़ेंगे – बस तुम डरो मत।”
---
🌈 अगली सुबह…
अंकित ने कानूनी मदद ली।
राघव के खिलाफ FIR दर्ज की गई, और सबूतों के साथ पुलिस ने केस को गंभीरता से लिया।
इस बार चहर अकेली नहीं थी…
अब उसके साथ एक साथी, एक प्रेमी, और एक लड़ने वाला पति था।
---
🕊️ भाग 4 का अंत…
कुछ अतीत हमें डराने लौटते हैं,
लेकिन जब साथ में प्यार खड़ा हो…
तो कोई भी डर स्थायी नहीं रहता।
अब चहर सिर्फ “वो जो आँखों में रह गई” नहीं रही…
अब वो अंकित की आँखों की ताक़त बन चुकी थी।