इशिता सोचते हुए गॉव पहुंच चुकी थी... इशिता को देख सभी काफ़ी ख़ुश हो गए है.. मानो जैसे किसी बेज़ान चीज में वापस से जान समा गई हो... बरखा तुरंत इशिता के पास पहुंचकर उसे सहारे से पकड़के वही चौपाल में बैठा देती है और जल्दी से चिल्लाते हुए कहती है.... " काकी , जल्दी बाहर आजाइये वीरा आ चुकी है... " वीरा का नाम सुनते हीं निराली घर से दौड़ी हुई आती है और इशिता को देख हाथों से उसकी नज़र उतारकर उसे गले लगाते हुए कहती है.... " अच्छा हुआ तू ठीक है.. हम सब काफ़ी परेशान हो गए थे उस रांगा के तुझे ले जाने से... "
इशिता उन्हें समझाते हुए कहती है.... " आप परेशान मत हो मैं ठीक हूँ.. और उस रांगा से अभी हिसाब लेना भी बाकि है... " अभी कुछ देर की हीं शांति हुई थी की रांगा वहाँ पहुंच चूका था और इशिता को देख गुस्से में कहता है..... " तुम्हारे पेट में किसका बच्चा है मुखिया जी... " रांगा की बात सुनकर इशिता तो जैसे सन्न रह गई लेकिन गॉव वाले उसे हैरानी से देखते है.... सबको देखकर समझते हुए निराली गुस्से में रांगा के पास जाकर कहती है.... " तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई हमारी वीरा पर इतना घटिया इल्जाम लगाने की... उनकी तो अभी शादी भी नहीं हुई है.... "
रांगा वही टोन भरे अंदाज में कहता है.... " वही तो जिसे आप सब इतना भला समझ रहे थे वो तो चरित्रहीन है और दुसरो को उपदेश देती है.. ये चरित्रहीन है... " रांगा की बात सुनकर बरखा गुस्से में चाकू उठाकर उसकी तरफ करते हुए कहती है... " बस रांगा.. तुम झूठ बोलोगे और हम मान जाएंगे... " रांगा उसे देखकर हॅसते हुए कहता है.... " मुझे पता था तुम मेरी बातों पर विश्वास नहीं करोगे इसलिए वैद्य को साथ लाया हूँ, जिसने इनका उपचार किया था... बोलो , बताओ इन्हे सच्चाई.... "
वैद्य आगे आकर कहता है.... " ये बात सच है... ये पांच महीने की गर्भ से है.... "
फ़्लैशबैक....
बैद्य इशिता के घाव पर लेप लगाकर पट्टी बांधकर उसकी नाड़ी चेक करके हैरानी से कहता है.... " ये गर्भ से है... " इशिता का चेकअप करने के बाद वैद्य बाहर आकर रांगा से कहता है... " सरदार अब वो ठीक है, जल्द हीं उन्हें होश भी आजायेगा , और उनका बच्चा भी ठीक है..." बच्चे का नाम सुनते हीं रांगा आगबबूला होते हुए कहता है.... " ये क्या बकवास है...?.... उनकी तो अभी शादी भी नहीं हुई , तो फिर बच्चा.... " वैद्य अपनी सफाई देते हुए कहता है.... " ये मुझे नहीं पता बस वो गर्भ से है और वो भी पांच माह के... " वैद्य की बात से रांगा को धक्का पहुंचता है , आखिर वो वीरा से प्यार करने लगा था.. रांगा गुस्से में अपने पास रखे समान को उठाकर फैकते हुए कहता है.... " मैं तुम्हे अब जीने नहीं दूंगा.. तुमने मुझे धोखा दिया है.... "
निराली उसे देखकर कहती है... " इन्हे तो यहां आये हुए अभी चार हीं माह हुए है , इसका मतलब ये पहले से हीं गर्भ से है...." निराली इशिता के पास जाकर पुछती है... " क्या तुम्हारी शादी हो चुकी थी..?.. " इशिता कोई जबाब नहीं देती वो चुप चाप गुमसुम वही खड़ी थी... निराली उसकी चुप्पी को देखते हुए कहती है... " कौन है इसका बाप.. " तभी कोई गॉव वाला कहता है.... " अरे हमें तो ये नाजायज लग रहा है,, ये शहरी लोग ऐसे हीं होते है.. हमारे बच्चो पर क्या असर पड़ेगा, इन्हे निकालो यहां से... "
निराली और बरखा गुस्से में चिल्लाते हुए कहती है.... " आज तुम सब इन्ही की वजह से सुरक्षित हो , वरना रहते उसी नर्क में... " रांगा उस गॉव वाले की बातों के समर्थन में कहता है.... " अगर इतना ही तुम्हारी मुखिया अच्छी है तो पूछो उससे कौन है इसका बाप ,... "
तभी पीछे से आवाज आती है.... " मैं हूँ... "
...... To be continued.......