1: अजनबी बुलावा
रवि एक आम लड़का था, दिल्ली के जनकपुरी में रहता था। छुट्टियाँ थीं और वह अपनी नानी के घर शिमला जाने वाला था, पर आखिरी समय पर नानी की तबीयत बिगड़ गई और प्लान कैंसिल हो गया। मन उदास था, तभी उसके दरवाज़े पर एक अजीब-सी चिट्ठी आई — बिना किसी नाम या पते के।
उस पर लिखा था:“अगर तुम असली रोमांच चाहते हो, तो कल सुबह 6:03 पर लाल दरवाज़े वाली ट्रेन में बैठ जाना।”
रवि चौंका — ये कौनसी ट्रेन है? उसने दिल्ली मेट्रो, इंडियन रेलवे सब देखा, पर ऐसी कोई ट्रेन लिस्ट में नहीं थी। लेकिन दिल ने कहा — "चलो रिस्क लेते हैं।"
भाग 2: लाल दरवाज़े का स्टेशन
अगली सुबह रवि 5:45 पर निकल पड़ा। जब वह पुरानी दिल्ली स्टेशन पहुंचा तो उसे वहां एक टूटा-फूटा प्लेटफॉर्म दिखा — जिस पर लिखा था “लाल दरवाज़ा प्लेटफॉर्म।” पर यह किसी भी रेलवे मैप पर नहीं था।
6:03 पर एक पुरानी, सीटी बजाती ट्रेन आई — खड़खड़ाती हुई। लेकिन अजीब बात ये थी कि उसमें लोग थे ही नहीं, सिर्फ एक कोच और उसमें एक बूढ़ा गार्ड।
“सवार हो या लौट जा — पर फिर लौटने की गारंटी नहीं,” गार्ड बोला।
रवि चढ़ गया।
भाग 3: समय की सुरंग
जैसे ही ट्रेन चली, बाहर के दृश्य बदलने लगे — इमारतें, सड़कें, पेड़ सब धुंधले हो गए। अचानक ट्रेन एक सुरंग में घुसी और जब बाहर आई तो रवि एक अजीब दुनिया में था — न वहाँ मोबाइल नेटवर्क था, न कोई पहचानी हुई चीज़। सब कुछ एक जादुई फिल्म जैसा लग रहा था।
हर स्टेशन पर नए नाम थे —“चांदनी तलहटी”, “बोलती चट्टान”, “रंगीन झील” — और हर जगह कोई न कोई अजूबा।
भाग 4: झील का राज
रवि “रंगीन झील” स्टेशन पर उतरा। वहाँ पानी सच में सात रंगों में चमक रहा था। लोग बहुत अजीब भाषा में बात कर रहे थे, लेकिन रवि उन्हें समझ पा रहा था। एक बूढ़ी औरत ने कहा, “तू वो है जिसे चुना गया है — रंगों की रक्षा के लिए।”
रवि हैरान था। उसे एक “सफरनामा पत्थर” दिया गया, जिस पर उसका नाम खुद-ब-खुद उभर आया — Ravi: Keeper of the Colors।
भाग 5: पलटाव
पर सब अच्छा नहीं था। एक काला जादूगर “रंगीन झील” के रंग चुराकर सबको अंधेरे में धकेलना चाहता था। रवि को चुनौतियाँ झेलनी पड़ीं — बोलती चट्टानों से सवालों के जवाब देने पड़े, आकाश में उड़ते घोड़ों से लड़ना पड़ा।
पर उसने वो जादुई पत्थर को सच्चे दिल से इस्तेमाल कर सब रंग बचा लिए।
भाग 6: वापसी और शक
जैसे ही रवि ने जीत पाई, ट्रेन वापस आई और उसे दिल्ली ले आई। उसने देखा — सिर्फ 3 घंटे बीते थे, पर उसकी घड़ी 3 साल आगे की तारीख दिखा रही थी।
वह वापिस दुनिया में था, पर दिल में सवाल लिए —“क्या वो सब सपना था या असलियत?”
एक हफ्ते बाद, उसके दरवाज़े पर फिर वही चिट्ठी आई...
“अब अगला सफर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है — ‘नीले पुल की दुनिया’।"
चलो फिर शुरू करते हैं कहानी का अगला मज़ेदार पार्ट —"नीले पुल की दुनिया – भाग 2"
भाग 2: नीले पुल की दुनिया
रवि को वो चिट्ठी देख déjà vu जैसा अहसास हुआ। फिर वही अजीब कागज़, वही लाल स्याही…“अब अगला सफर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है — ‘नीले पुल की दुनिया’। रात 12:00 बजे छत पर आ जाना।”
रवि के घर की छत! अब ये कौनसी ट्रेन वहीं से चलेगी? पर पिछली बार की तरह इस बार भी उसके अंदर की जिज्ञासा भारी पड़ गई।
रात 12:00 बजे, रवि छत पर पहुँचा। हवा अचानक तेज़ हो गई, और सामने — एक नीला, चमचमाता पुल आसमान से नीचे उतरने लगा। वो हवा में तैरता हुआ पुल जैसे चाँद तक जाता हो।
एक नीला दरवाज़ा खुला, और एक मीठी-सी आवाज़ आई,"स्वागत है तुम्हारा — दूसरी दुनिया में।"
भाग 3: हवा में तैरता शहर
जैसे ही रवि ने उस पुल पर कदम रखा, वो खुद हवा में तैरने लगा। चारों ओर तैरते द्वीप थे — कुछ बादलों से बने, कुछ पंखों से। वहाँ लोग उड़ते स्केटबोर्ड पर चल रहे थे, और पक्षी इंसानों की तरह बात कर रहे थे।
एक पक्षी, "गुग्गु", रवि का गाइड बना।"यहाँ सब कुछ कल्पनाओं से चलता है — सोचो और पा लो!"
रवि ने सोचा, "मुझे एक उड़ने वाली बाइक चाहिए", और पलक झपकते ही वह उसके सामने आ गई।
पर तभी एक चेतावनी गूंजने लगी —"अगर कोई लाल धागे को छूएगा, तो कल्पनाएँ हकीकत बन जाएँगी — और खतरा भी।"
भाग 4: लाल धागा और सच्चा इम्तिहान
रवि ने देखा — एक उड़ते हुए द्वीप पर एक लाल धागा बंधा था। कुछ खिंचाव था उसकी ओर। और अचानक तेज़ तूफ़ान आया, गुग्गु उड़ गया, और रवि का नियंत्रण बिगड़ गया। वह धागे को छू बैठा।
पूरा आसमानी शहर कांपने लगा। कल्पनाएँ अब राक्षस बन चुकी थीं। सोची गई चीज़ें सच्चाई बन चुकी थीं — और उनमें से कुछ डरावनी थीं।
एक विशालकाय छाया — "भूलघड़" — निकल आई।"तूने कल्पना के नियम तोड़े हैं! अब सज़ा भुगत!"
भाग 5: ज़िन्दगी का सबसे कठिन सवाल
भूलघड़ ने कहा,"तुझे वापस जाना है तो जवाब दे इस सवाल का —‘क्या ज़्यादा बड़ा होता है — डर, या सपना?’”
रवि चुप रहा... फिर बोला:“डर सपनों को खा सकता है, पर सपना अगर सच्चा हो तो डर खुद भाग जाता है।”
अचानक आसमान शांत हो गया। पुल वापस चमकने लगा। और भूलघड़ मुस्कुरा कर गायब हो गया।
भाग 6: वापस ज़मीन पर
रवि फिर से छत पर था। पर उसके हाथ में नीले रंग की एक चाबी थी — जिस पर लिखा था:“अभी दो दुनिया और बाकी हैं।”
उसने आसमान की ओर देखा — और मुस्कुरा दिया।🔹 क्या आप तैयार हैं अगली यात्रा के लिए?
"भाग 3: काँच के जंगल का रहस्य" — कहो तो लिख दूं?
अगर हाँ, तो अगली कहानी और ज़्यादा रोमांचक होगी – भूत, आईने और एक ऐसी लड़की जिससे मिलना रवि की किस्मत बदल देगा। ✨