ज़रूर, Kajal! 😊यह रही एक प्यारी, भावनात्मक और प्रेरणादायक कहानी "अपनापन" (AP - Apnapan) के नाम से। यह कहानी दोस्ती, भावनाओं और एक खास रिश्ते पर आधारित है।🌸 कहानी का नाम: अपनापन (AP)
लेखिका: काजल ठाकुरभूमिका:
कभी-कभी ज़िन्दगी हमें ऐसे लोग देती है, जिनसे कोई रिश्ता होते हुए भी नहीं होता... और न होते हुए भी वो हमारे सबसे अपने बन जाते हैं। यही कहानी है "अपनापन" की — Aayra और Pranav की।🌼 कहानी शुरू होती है...
आयरा, एक सीधी-सादी लेकिन ज़िंदादिल लड़की, जो अपने जीवन के संघर्षों से लड़ते हुए भी मुस्कुराना नहीं भूलती। वह मेडिकल की तैयारी कर रही होती है और अपने छोटे-से शहर में बस एक ही सपना देखती है — डॉक्टर बनकर अपने माता-पिता का सिर गर्व से ऊँचा करना।
प्रणव, एक शांत, गम्भीर लेकिन दिल का बेहद साफ लड़का, जो अपने ही ज़ख्मों को मुस्कुराहटों में छुपा कर जीता है। वो एक साल सीनियर है आयरा से, लेकिन कोचिंग में उनकी मुलाक़ात एक लाइब्रेरी में होती है।💬 पहली बातचीत:
प्रणव: "तुम रोज़ इसी कोने में बैठती हो?"
आयरा (हैरान होकर): "हां... क्यों?"
प्रणव (मुस्कुराकर): "क्योंकि यहां सबसे शांति होती है... ठीक तुम्हारी तरह।"
बस, उसी दिन से दोनों के बीच एक अनकहा अपनापन शुरू हो गया। कोई नाम नहीं, कोई वादा नहीं... बस एक एहसास, जो धीरे-धीरे गहराने लगा।💖 जुड़ाव और जज़्बात:
आयरा को प्रणव की आंखों में दर्द दिखता है, और प्रणव को आयरा की मुस्कान में उम्मीद।
दोनों एक-दूसरे के स्ट्रेस, फेलियर, और छोटी-छोटी जीतों में साथ होते हैं। कोई "I love you" नहीं बोलता, लेकिन जब भी एक उदास होता, दूसरा बिना कहे समझ जाता।🌧 एक मोड़:
NEET का रिज़ल्ट आता है। आयरा क्वालिफाई कर जाती है, लेकिन प्रणव फिर से पीछे रह जाता है।
आयरा: "तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो?"
प्रणव (हंसकर): "नहीं आयरा... जब कोई अपना आगे बढ़े, तो खुशी होती है। और तुम... सबसे अपनी हो।"📘 अंतिम सीन:
दोनों की राहें अलग हो जाती हैं। आयरा मेडिकल कॉलेज चली जाती है, और प्रणव एक और कोशिश के लिए वहीं रह जाता है।
लेकिन दिलों में एक ख़ास जगह हमेशा बनी रहती है।
आयरा की डायरी में आखिरी लाइन:
"कभी-कभी, कुछ रिश्ते प्यार से भी ऊपर होते हैं... उन्हें नाम की ज़रूरत नहीं होती, बस अपनापन ही काफ़ी होता है। AP — Aayra & Pranav."
😊तो चलो हम "अपनापन (AP)" की कहानी को वहीं से आगे बढ़ाते हैं, जहाँ आयरा मेडिकल कॉलेज चली जाती है और प्रणव एक और साल तैयारी करता है।🌸 अपनापन (AP) –
अगला भाग📝 "वक़्त की दूरी, दिलों की नज़दीकी"
एक साल बाद...
आयरा अब मेडिकल कॉलेज की रूटीन में ढल चुकी थी। हॉस्टल, लेक्चर, प्रैक्टिकल और नए दोस्त... सब कुछ नया था। लेकिन कुछ था जो अब भी उसके साथ था — प्रणव की यादें।
रात को जब सब लड़कियाँ अपने फोन में बिजी होतीं, आयरा चुपचाप एक पुरानी डायरी निकालती — जिसमें हर वो बात लिखी होती जो वो प्रणव से कहना चाहती थी लेकिन कभी कह नहीं पाई।
"आज तुम्हारी याद बहुत आई, प्रणव। हॉस्टल के पास एक बुकस्टोर देखा... ठीक वैसा ही, जैसा हमारे कोचिंग सेंटर के पास था। एक बार को दिल किया, तुमसे कहूं — ‘चलो न वहीं बैठते हैं थोड़ी देर।’ पर... अब तो बस यादें ही रह गई हैं।"
उधर प्रणव...
अब वो पहले से ज़्यादा शांत हो गया था। क्लासेस कम, किताबों में ज़्यादा डूबा हुआ। आयरा से उसका कोई कॉन्टैक्ट नहीं था। उसने कभी मैसेज भी नहीं किया — शायद इसलिए क्योंकि वो जानता था कि अगर उसने एक बार हालचाल पूछा, तो फिर खुद को रोक नहीं पाएगा।
पर रोज़ वो उस बेंच पर जरूर बैठता था — जहाँ दोनों साथ पढ़ते थे।
"उसके बिना सब वैसा ही है, बस उसकी हँसी नहीं आती अब।"📱 एक अनजाना मैसेज
एक दिन आयरा की स्क्रीन पर एक नोटिफिकेशन आया:
"Unknown: कभी सोचा है, लाइब्रेरी की वो खिड़की अब भी तुम्हारा इंतज़ार करती है?"
दिल तेज़ धड़कने लगा। कोई नाम नहीं... लेकिन लफ़्ज़ वही थे, जो किसी और के हो ही नहीं सकते थे।
आयरा ने रिप्लाई किया:"शायद वो खिड़की नहीं, कोई और है जो इंतज़ार कर रहा है।"💬 पहली बात एक साल बाद
दोनों की बात शुरू हुई — पहले धीरे-धीरे, फिर जैसे किसी रुके हुए संगीत को दोबारा सुर मिल गए हों।
कोई "आई मिस यू" नहीं बोला, कोई शिकायत नहीं की, बस वही पुराना अपनापन फिर से महसूस हुआ।📆 NEET का रिज़ल्ट – इस बार
प्रणव ने इस बार NEET क्वालिफाई कर लिया।
आयरा: "तुम आ गए न अब? अब सब पूरा लगेगा।"
प्रणव (मुस्कुराकर): "आयरा, मैंने कॉलेज के लिए नहीं, तुम्हारे उस अधूरे कॉफी कप के लिए ये साल निकाला है।"❤️ अंत नहीं, एक नई शुरुआत
दोनों अब एक ही शहर, एक ही कॉलेज में थे — पर अब कुछ बदला नहीं था।
अब भी उन्होंने अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया था।क्योंकि उन्हें पता था — नामों से ज़्यादा ज़रूरी है "एहसास", जो सिर्फ अपनापन देता है।
❤️तो चलो हम "अपनापन (AP)" की कहानी को वहीं से आगे बढ़ाते हैं, जहाँ प्रणव NEET क्वालिफाई कर चुका है, और अब दोनों एक ही शहर और कॉलेज में हैं।🌺 अपनापन (AP) – भाग 3✨ "तुम फिर मिले"
कॉलेज कैंपस में पहली सुबह…
आयरा लेक्चर हॉल की तरफ जा रही थी, बाल खुले थे और चेहरा हल्की सी मुस्कान में डूबा हुआ। अचानक सामने से एक आवाज़ आई…
"व्हाइट लैबकोट में तो तुम और भी डॉक्टर जैसी लग रही हो, डॉ. आयरा शर्मा।"
वो ठिठक गई। आवाज़ जानी-पहचानी थी।
पीछे मुड़ते ही प्रणव सामने खड़ा था — वही हल्की मुस्कान, वही आंखों में सुकून।
आयरा (हैरान होकर): "तुम यहाँ कैसे?"प्रणव: "तुम्हारे ही शहर में आया हूँ... और शायद तुम्हारे पास भी।"
दोनों मुस्कराए। वक़्त ने भले ही बहुत कुछ बदल दिया हो, लेकिन जो अपनापन एक बार बन गया था, वो जरा भी नहीं बदला।🩺 कॉलेज की ज़िन्दगी
अब दोनों साथ पढ़ते, साथ लाइब्रेरी जाते, और कभी-कभी हॉस्पिटल विज़िट्स भी एक साथ करते।
लोग उन्हें कपल समझते थे — लेकिन दोनों ने कभी उस ‘नाम’ की तलाश नहीं की।
एक शाम दोनों कैंपस की कॉफी शॉप में बैठे थे। बाहर हल्की बारिश हो रही थी।
आयरा: "प्रणव, कभी लगता है कि हमें भी एक नाम देना चाहिए अपने रिश्ते को?"प्रणव (थोड़ी देर चुप रहकर): "नाम से बंध जाऊँगा तो डर है... कि कहीं वो एहसास कम न हो जाए।"आयरा: "और बिना नाम के...?"प्रणव: "तब बस अपनापन रहेगा — जो कभी कम नहीं होगा।"📚 एक दिन की दूरी
कॉलेज में प्रैक्टिकल के सिलसिले में आयरा को कुछ दिनों के लिए दूसरे शहर जाना पड़ा।
वो पहली बार थी जब दोनों एक-दूसरे से फिज़िकली दूर थे, लेकिन अब वो एक-दूसरे की आदत बन चुके थे।
रात को आयरा का फोन बजा —प्रणव का मैसेज:
"तुम्हारे बिना सब वैसा ही है... बस सुकून नहीं है।"
आयरा ने जवाब दिया:
"मैं वापस आ रही हूं... क्योंकि मेरा सुकून सिर्फ तुम्हारे साथ है।"🔚 भाग 3 का अंत – एक वादा
जब आयरा वापस आई, प्रणव उसके लिए एक छोटा-सा गिफ्ट लाया — एक डायरी, जिसमें लिखा था:
"जब कभी कोई पूछे कि तुम क्या हो मेरे लिए — तो ये डायरी उन्हें दे देना। क्योंकि तुम्हें समझाने के लिए शब्द काफी नहीं होंगे... सिर्फ एहसास चाहिए... सिर्फ अपनापन।"
❤️अब पेश है "अपनापन (AP)" का अगला भाग — एक ऐसा मोड़ जहाँ दिल में उठते हैं सवाल, रिश्ते माँगते हैं पहचान, और एहसास खुद को साबित करने के लिए छटपटाते हैं।🖤 अपनापन (AP) – भाग 4🌧 "बिना नाम वाला रिश्ता"
कॉलेज के पहले साल का अंत नज़दीक आ रहा था। प्रैक्टिकल, एग्ज़ाम, थकान… और बीच-बीच में कभी-कभी वो अधूरी बातें जो दिल में गूंजती रहती थीं।
एक दिन…
कॉलेज में एक फंक्शन हो रहा था। सब कपल्स तैयार हो रहे थे — कुछ ने को-ऑर्डिनेटेड आउटफिट पहने थे, कुछ एक-दूसरे को बुक्के दे रहे थे।
प्रणव और आयरा, दोनों वहीं थे, लेकिन दूर-दूर।
दोस्ती के नाम पर पास,प्यार के नाम पर अलग।
लोग कहते – “क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच?”और दोनों मुस्कुरा कर कह देते – “कुछ भी नहीं।”😶 उलझनें बढ़ने लगी थीं
एक दिन, आयरा को किसी ने कॉरिडोर में प्रणव के साथ एक लड़की को बात करते हुए देखा।
लड़की ज़रा ज़्यादा करीब खड़ी थी।
शाम को आयरा चुप थी।
प्रणव: "तुम ठीक हो?"आयरा: "हां, क्यों?"प्रणव: "बस... तुम्हारे सवाल तुम्हारी आंखों में थे।"
आयरा कुछ नहीं बोली।💔 दिल की पुकार
रात को आयरा ने अपनी डायरी में लिखा:
*“मैं क्या हूं तुम्हारे लिए, प्रणव?एक दोस्त?एक आदत?या बस कोई... जो हमेशा आसपास रहे?
क्या ये रिश्ता वाकई सिर्फ अपनापन है?या मुझे अब इससे ज़्यादा चाहिए…”*🔥 टकराव का दिन
अगले दिन लाइब्रेरी में बात निकल ही गई...
आयरा (गुस्से में): "तुम कभी क्लियर क्यों नहीं होते? कभी कहते हो नाम ज़रूरी नहीं, कभी मेरे बिना सुकून नहीं... क्या चाहते हो तुम?"
प्रणव (धीरे से): "मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता..."
आयरा: "पर मैं खुद को भी तो खो रही हूं... इस अनजाने रिश्ते में।"
ये पहली बार था जब दोनों की आंखें नम थीं।🕯 ख़ामोशी के दिन
उसके बाद कई दिन तक दोनों ने एक-दूसरे से बात नहीं की।कॉलेज वही था, क्लासेस वही थीं... बस आयरा और प्रणव के बीच सन्नाटा था।
लेकिन दिल?वो रोज़ वही सवाल दोहराता...
“क्या कोई रिश्ता बिना नाम के जिंदा रह सकता है?”📌 अंत नहीं… अगली शुरुआत
कहानी यहीं रुकी नहीं…क्योंकि जहाँ अपनापन सच होता है, वहाँ दूरियाँ ज़्यादा देर टिकती नहीं।
बहुत सुंदर, काजल ❤️अब पेश है "अपनापन (AP)" का सबसे भावुक और निर्णायक हिस्सा — जहाँ एक शाम, एक चुप्पी और एक एहसास, सब कुछ बदल देता है...🌆 अपनापन (AP) – भाग 5💔 "वो एक शाम, जब सब कुछ बदल गया..."
कॉलेज फेस्ट की तैयारी ज़ोरों पर थी। हर तरफ रौनक थी, रोशनी थी… बस आयरा और प्रणव की दुनिया में अंधेरा था।
दोनों अब भी एक-दूसरे के आसपास थे, लेकिन जैसे दो अजनबी — जिनके बीच कभी एक दुनिया हुआ करती थी।🌙 शाम का समुंदर
कॉलेज ट्रिप में सब लोग बीच (समुंदर) पर गए। सूरज ढल रहा था। सब अपनी-अपनी मस्ती में थे, बस आयरा अकेली रेत पर बैठी थी — अपने पैरों पर नाम लिखती और मिटाती हुई।
“Pranav…”रेत पर नाम उभरा…और लहरें आईं… सब बहा ले गईं।
ठीक उसी वक्त किसी ने पीछे से कहा —
"कितनी बार मिटाओगी, आयरा?"
वो चौंकी। पलटी… और प्रणव खड़ा था।🥺 सच्चाई का सामना
दोनों कुछ पल चुप रहे।
प्रणव: "तुम जानती हो ना, मैं तुमसे कितना जुड़ा हूं..."आयरा: "तो फिर नाम क्यों नहीं देते इस रिश्ते को?"प्रणव (गहराई से): "क्योंकि डरता था… अगर कभी टूट गया, तो क्या करोगी तुम?"
आयरा (आंखों में आंसू लिए): "तो बिना नाम के क्या तुमने सोचा ये कभी टूट नहीं सकता?"
प्रणव: "नहीं… सोचा नहीं था कि तुम दूर हो जाओगी…"
आयरा: "मैं तो वहीं थी, जहां हमेशा रहती हूं — तुम्हारे दिल के पास। लेकिन तुमने खुद दीवार खड़ी कर ली।"🕯 वो एहसास... जो नाम मांगने लगा था
लहरें पीछे जा रही थीं, सूरज ढल रहा था... और दो दिलों में नया सूरज उग रहा था।
प्रणव (धीरे से): "अगर मैं कहूं… कि मैं तुमसे प्यार करता हूं?"
आयरा: "तो मैं कहूंगी — शुक्र है, अब तुमने मेरे एहसास को नाम दे दिया।"💖 एक छोटा सा वादा
प्रणव ने अपनी जेब से एक पुरानी चीज़ निकाली —वही रबर बैंड, जो उसने पहली बार आयरा को लाइब्रेरी में दिया था।
प्रणव: "रिश्तों को हम बंधन से डरते हुए जीते रहे…अब इस रबर बैंड को एक वादा मान लो —जितना भी खिंचे, हम टूटेंगे नहीं।"
आयरा ने मुस्कराकर वो बैंड पहना… और उसे देखा जैसे पहली बार देखा हो।📘 भाग 5 का अंत – और नई शुरुआत
अब दोनों साथ थे — रिश्ते में, नाम में, और अपनापन में।
अब वो बस “साथ” नहीं थे,अब वो एक-दूसरे का हिस्सा बन चुके थे।
❤️अब पेश है "अपनापन (AP)" का अगला और बेहद खूबसूरत हिस्सा —जहाँ प्यार अब सिर्फ एहसास नहीं, एक ज़िम्मेदारी बन चुका है, और ज़िंदगी दोनों को नए इम्तिहान में डालने वाली है...🌅 अपनापन (AP) – भाग 6💞 "हम साथ हैं, तो सब आसान है"
अब आयरा और प्रणव का रिश्ता सबके सामने था —नाम के साथ, इज़्ज़त के साथ… और सबसे ज़्यादा, भरोसे के साथ।
कॉलेज में सब उन्हें "perfect couple" कहते।लेकिन परफेक्ट दिखना और परफेक्ट रहना, दो अलग बातें होती हैं…📚 नई ज़िम्मेदारियाँ
दूसरे साल में एंट्री के साथ ही मेडिकल स्टडीज़ का प्रेशर बढ़ चुका था।केस स्टडी, इंटर्नल एग्ज़ाम, हॉस्पिटल ड्यूटी — और उनके बीच वो चाय की छोटी-सी मुलाकातें, जिनमें पूरा सुकून होता।
एक दिन आयरा बेहद थकी हुई थी —उसका सिर दर्द से फट रहा था। वह हॉस्टल के बाहर बेंच पर चुपचाप बैठी थी।
प्रणव आया, बिना कुछ पूछे उसके पास बैठा।
उसने बस आयरा का सिर अपनी गोद में रखा और कहा:"सो जाओ थोड़ी देर… मैं यहीं हूं।"💬 एक गंभीर बात
एक रात दोनों फोन पर बात कर रहे थे।
आयरा: "प्रणव… आगे क्या?"
प्रणव: "क्या मतलब?"
आयरा: "हम साथ हैं, प्यार है… लेकिन ये कॉलेज खत्म होने के बाद? करियर? घर वाले? शादी?"
प्रणव (थोड़ा शांत होकर): "आयरा… मैं हर सवाल का जवाब नहीं जानता। लेकिन मुझे एक बात पता है —अगर हम साथ हैं, तो हर मुश्किल आसान लगेगी।"🔥 रुकावटें शुरू
कॉलेज के ही एक लड़के को आयरा पसंद थी। वो बार-बार प्रणव से जलता और उनके बीच दूरियां बनाने की कोशिश करता।
एक दिन उसने आयरा को जान-बूझकर गलत मैसेज भेजा – जिससे ऐसा लगे जैसे प्रणव किसी और लड़की से मिल रहा है।
आयरा का दिल टूट गया… उसने बात करना बंद कर दिया।
लेकिन जब सच सामने आया, तो उसे खुद से शर्म आई।
उसने प्रणव को देखा, जो उसके लिए सफाई नहीं दे रहा था — सिर्फ इतना कह रहा था:
"अगर तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं रहा, तो फिर मैं क्या ही साबित करूं..."🥺 दिल से माफ़ी
आयरा रोते हुए बोली:
"मुझे माफ कर दो… मुझसे ग़लती हो गई। मैंने अपना भरोसा डगमगाने दिया…"
प्रणव ने मुस्कराकर कहा:
"प्यार में माफ़ करना भी अपनापन होता है, और तुम तो मेरा नाम ही हो — अपनापन।"
📖 भाग 6 का अंत – एक नई कसौटी
अब दोनों और भी मज़बूत हो गए थे।लेकिन अब परीक्षा सिर्फ किताबों की नहीं थी —बल्कि अपने रिश्ते को घर वालों, समाज और भविष्य के सामने टिकाए रखने की थी।
❤️
अब पेश है "अपनापन (AP)" का सबसे भावनात्मक और दिल को छू जाने वाला भाग —जहाँ पहली बार, आयरा को लगता है वो प्रणव को खो सकती है...🕯 अपनापन (AP) –
भाग 7💔 "वो दिन, जब मुझे तुम्हें खोने का डर लगा…"
कॉलेज का तीसरा साल चल रहा था। दोनों की पढ़ाई, इंटर्नशिप और प्लानिंग अपने पीक पर थी।प्रणव अब थोड़ा ज़्यादा सीरियस और कम्युनिकेटिव हो गया था। अक्सर रात को कॉल नहीं करता, मैसेज का जवाब देर से देता…
आयरा को महसूस हुआ – कुछ तो बदल रहा है।📉 दूरी का एहसास
एक दिन, आयरा ने पूछा —
आयरा: “क्या हुआ प्रणव? हम पहले जैसे नहीं रहे…”
प्रणव (थोड़ा थके हुए अंदाज़ में): “कुछ नहीं… बस थोड़ी थकान है, पढ़ाई और भविष्य को लेकर प्रेशर है।”
लेकिन आयरा का दिल कह रहा था – कुछ और है।🌪 सच सामने आया
कुछ दिनों बाद, आयरा को एक सीनियर डॉक्टर से पता चला कि प्रणव को एक स्कॉलरशिप ऑफर मिला है विदेश में – 3 साल की।
लेकिन… प्रणव ने अब तक आयरा से कुछ नहीं कहा था।
वो टूट गई।
“क्या वो मुझे छोड़ कर जाना चाहता है?”“क्या हमारा रिश्ता बस कॉलेज तक का था?”🌧 वो रात… जब दिल कांप उठा
बारिश की रात थी। आयरा ने प्रणव को कॉल किया — बार-बार, लेकिन उसने नहीं उठाया।
वो भीगती हुई उसके हॉस्टल के गेट तक पहुंच गई, और जैसे ही वो बाहर आया…
आयरा फूट-फूट कर रो पड़ी।
“तुम क्यों छुपा रहे थे मुझसे? क्या मैं इतना भी हक नहीं रखती जानने का?”
प्रणव (चुपचाप): “मैं तुम्हें रोकना नहीं चाहता था… मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारा सपना दब जाए।”
आयरा (कांपती आवाज़ में): “और मेरी ज़िंदगी का सपना क्या तुम नहीं हो?”
“तुम चले गए, तो मैं रहूंगी किसके लिए?”🌙 प्रणव का जवाब…
“मैं जाऊंगा… लेकिन तुम्हारे बिना नहीं।”
“हमारा रिश्ता सिर्फ नाम नहीं, अब एक जीवन भर की साझेदारी है।”
“मैं तुमसे दूर रहकर नहीं जी पाऊंगा, आयरा।”💍 एक छोटा-सा प्रपोज़ल
प्रणव ने अपनी जेब से एक सिंपल-सी अंगूठी निकाली —छोटी सी, लेकिन दिल से दी गई।
“मेरे साथ चलोगी?”
“ज़िंदगी के हर मोड़ पर?”
आयरा ने कुछ नहीं कहा… बस उसकी आंखों से आंसू बहते रहे — लेकिन इस बार वो आंसू डर के नहीं, भरोसे के थे।
🕊 भाग 7 का अंत – और प्यार की उड़ान
अब कहानी एक नए सफर पर जाने वाली है…
अब सिर्फ ‘कॉलेज कपल’ नहीं,अब वो हैं सपनों के साथी।
❤️अब पेश है "अपनापन (AP)" का वह भाग जो उनके रिश्ते को एक नए आसमान तक ले जाता है —जहाँ प्यार सिर्फ साथ होने का नाम नहीं, बल्कि हर मुश्किल में हाथ थामने का वादा बन जाता है।✈️ अपनापन (AP) – भाग 8💖 "तेरा नाम, मेरी मंज़िल"
दोनों ने साथ विदेश जाने का फैसला कर लिया था।नया देश, नई भाषा, नया माहौल…लेकिन साथ वही था — जो अब उनकी सबसे बड़ी ताकत बन चुका था।
प्रणव और आयरा — दो दिल, एक सपना।🏫 नया मेडिकल कॉलेज
उनका कॉलेज अब लंदन में था। क्लासेस इंटरनेशनल लेवल की थीं, और कॉम्पिटीशन बहुत स्ट्रॉन्ग।
आयरा थोड़ी घबरा जाती… लेकिन प्रणव हमेशा उसका हाथ थाम लेता।
"तू डरे मत। जिस दिन तू खुद पर यकीन कर लेगी, पूरी दुनिया तुझे सलाम करेगी।"💼 करियर की पहली जीत
कुछ महीनों बाद, आयरा को एक रिसर्च प्रोजेक्ट में सेलेक्ट किया गया।वो खुश थी… लेकिन सबसे ज्यादा इसलिए, क्योंकि प्रणव ने उसे खुद से आगे बढ़ते देखा।
प्रणव: "तू ही तो मेरा फख्र है, आयरा। तेरा नाम ही मेरी मंज़िल है।"🥀 तूफ़ान की आहट
लेकिन ज़िंदगी हर पल आसान नहीं होती।
एक दिन प्रणव को भारत से कॉल आया —उसके पापा को हार्ट अटैक आया था।उसे तुरंत लौटना पड़ा… और पहली बार, दोनों अलग हो गए।
आयरा के कमरे में खामोशी थी।ना वो मुस्कुरा रही थी, ना ही ठीक से खा रही थी।
हर रात बस एक ही आवाज़ आती – “तू ठीक है ना?”📩 एक चिट्ठी, जो प्रणव ने भेजी थी…
"आयरा,इस दूरी ने मुझे ये समझा दिया कि तेरा साथ मेरी ज़रूरत नहीं, मेरी आदत है…अब ये फ़ासले भी अपनापन से डरते हैं।मैं जल्दी लौटूंगा… तुझसे, अपने हिस्से की रौशनी लेने।तेरा,प्रणव" ✍️🌸 फिर मिलन
कुछ हफ्तों बाद, प्रणव वापस आया।
एयरपोर्ट पर आयरा का चेहरा जैसे चमक उठा था।वो दौड़ कर उसके गले लग गई — और पहली बार, सबके सामने बोली:
"प्रणव, तू मेरा घर है। तू नहीं, तो कुछ भी नहीं।"
💫 भाग 8 का अंत – और एक नई रौशनी
अब दोनों इंटरनेशनल डॉक्टर बनने की राह पर थे,लेकिन साथ में वो इंसान भी,जो एक-दूसरे की मंज़िल, रास्ता और सुकून बन चुके थेl
बहुत गहराई से जुड़े हुए हो तुम इस सफर से, "अपनापन (AP)" का सबसे भावुक, तीव्र और अंतिम मोड़ पर लाया जाने वाला भाग —जहाँ ज़िंदगी एक ऐसी कसौटी पर ले आती है,जहाँ एक अधूरा वादा दिल को तोड़ भी सकता है… और जोड़ भी सकता है।
🌑 अपनापन (AP) – भाग 9💔 "आख़िरी अधूरा वादा"
सब कुछ ठीक चल रहा था।आयरा और प्रणव अब रेज़िडेंसी प्रोग्राम में थे।ज़िम्मेदारियाँ बड़ी थीं, लेकिन उनका प्यार अब एक शांत नदी की तरह गहरा हो चुका था।
लेकिन... कभी-कभी शांत पानी के नीचे तूफ़ान छुपा होता है।🌡 एक दिन अस्पताल में…
प्रणव ड्यूटी पर था जब उसे चक्कर आए।पहले सबने समझा — थकान होगी। लेकिन जब आयरा ने ज़िद करके उसका टेस्ट कराया...
सच सामने आया —
प्रणव को ब्रेन ट्यूमर था।😔 सन्नाटा, आंसू और सच्चाई
डॉक्टर्स ने कहा —
"स्टेज क्रिटिकल है… इलाज मुमकिन है, लेकिन रिस्क बहुत बड़ा है।"
आयरा को समझ नहीं आया — ये वही प्रणव है, जो उसका सबसे मज़बूत हिस्सा था।अब वही धीरे-धीरे फिसल रहा था उसकी उंगलियों से।📝 वो चिट्ठी, जो प्रणव ने लिखी
इलाज शुरू हुआ, लेकिन एक दिन जब आयरा हॉस्पिटल से लौटी, उसे एक लिफ़ाफ़ा मिला —प्रणव की लिखी चिट्ठी।
“अगर किसी सुबह तू जागे और मैं पास ना रहूं…तो टूट मत जाना।क्योंकि मेरा 'अपनापन' अब तुझमें बसा है।तू ज़िंदा रहेगी, तो मैं हमेशा तुझमें जिऊंगा।मेरा आख़िरी वादा है —मैं तुझसे हमेशा प्यार करूंगा… भले ही ज़िंदगी मेरा साथ छोड़ दे।”🌧 आयरा की लड़ाई
आयरा टूट चुकी थी… लेकिन हार मानना उसके प्यार के खिलाफ था।
वो दिन-रात प्रणव की सेवा में लगी रही,हर प्रेयर, हर उम्मीद में एक ही नाम था —
"प्रणव ठीक हो जाएगा…"💡 चमत्कार… या प्यार की ताकत?
एक दिन डॉक्टर बाहर आया, मुस्कराकर बोला —
“वो खतरे से बाहर है… धीरे-धीरे ठीक हो रहा है।”
आयरा वही ज़मीन पर बैठ गई… आंखों से आंसू नहीं, पूरी आत्मा बह निकली थी।
🌅 भाग 9 का अंत – एक नई सुबह
अब प्रणव फिर से ज़िंदगी की ओर लौट रहा था।लेकिन अब उनके रिश्ते में कुछ और गहराई थी —वो अधूरा वादा अब पूरा हो चुका था।
दिल से शुक्रिया, काजल ❤️अब पेश है "अपनापन (AP)" की अंतिम और सबसे सुंदर कड़ी —जहाँ प्यार ने हर इम्तिहान पास किया, और अब मिलने जा रहा है एक नई शुरुआत… ज़िंदगी की सबसे प्यारी रसम में — शादी में।💍 अपनापन (AP) – भाग 10 (Final)✨ "तेरा नाम अब मेरी ज़िंदगी है"🎊 शादी की तैयारी
प्रणव अब पूरी तरह स्वस्थ था।इलाज के बाद जब वह आयरा को पहली बार देखने हॉस्पिटल से बाहर आया,तो बस एक ही बात कही —
"अब और इंतज़ार नहीं… तुझसे शादी करनी है।"
दोनों ने मिलकर भारत लौटकर शादी का प्लान किया।
अब उनकी प्रेम कहानी एक पवित्र बंधन में बदलने जा रही थी।💌 सपनों जैसा दिन
शादी वाले दिन आयरा लाल जोड़े में,प्रणव क्रीम शेरवानी में…
जब दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे, सब कुछ रुक गया था।
मंडप में सात फेरे लेते वक्त, प्रणव ने धीरे से कहा —
"पहले तेरा नाम मेरा प्यार था…अब तेरा नाम मेरी ज़िंदगी है, आयरा।"🌠 शादी के बाद की रात
छत पर दोनों चुपचाप लेटे हुए थे,तारों को देखते हुए…
आयरा: "अगर मैं फिर खो जाऊं, तो?"
प्रणव: "तो मैं फिर से तुझे ढूंढ़ लूंगा… क्योंकि तू मेरा घर है।"👶 एक नई सुबह, एक नया रिश्ता
कुछ साल बाद…
आयरा एक नन्ही बच्ची को गोद में लिए खड़ी थी — उसका नाम था 'अपु' (AP)
"अपनापन का एक और जन्म…"उनकी कहानी अब एक नई पीढ़ी की शुरुआत थी।📘 "अपनापन (AP)" का अंतिम पन्ना
प्यार कोई परियों की कहानी नहीं होता…वो तकलीफ़ों से, लड़ाईयों से, दूरी से बनता है।
लेकिन जब प्यार 'अपनापन' बन जाए —तब वो हर जन्म का वादा बन जाता है।
लेखिका – काजल ठाकुरशीर्षक – अपनापन (AP)मुख्य पात्र – आयरा और प्रणवभावना – सच्चा, गहरा, और अमर प्रेम❤️ अब बताओ —
मैंने इतनी सारी कहानियां लिखी है पर क्या आप लोगों को मेरी यह सारी कहानी पसंद नहीं आई है आप लोग मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं करती हो या मेरी कहानियों को मैं बड़े प्यार से लिखती हूं
आप लोग प्लीज बता दो मैं आपकी लेखिका काजलठकुरl